Meerut / Noida / Lucknow : मेरठ/नोएडा/लखनऊ: मेरठ में स्थित पुलिस ट्रेनिंग कॉलिज (प्रशिक्षण संस्थान) का नाम अब कोतवाल धनसिंह गुर्जर कर दिया गया है। इस आशय का फैसला उत्तर प्रदेश शासन ने घोषित किया है। इस फैसले पर गुर्जर समाज ने हर्ष व्यक्त किया है। सर्वविदित है कि मेरठ में लम्बे अर्से से पुलिस ट्रेनिंग कॉलिज स्थापित है। इस कॉलिज का नाम पुलिस प्रशिक्षण विद्यालय मेरठ था। अब इसका नाम बदलकर नया नामकरण कर दिया गया है। नया नाम 1857 की क्रांति के जनक प्रसिद्ध क्रांतिवीर धनसिंह कोतवाल के नाम पर कोतवाल धन सिंह गुर्जर प्रशिक्षण विद्यालय कर दिया गया है। यह जानकारी प्रदेश के अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी ने दी है। श्री अवस्थी ने शासन के फैसले की जानकारी पुलिस महानिदेशक को भी दे दी है।
सब जानते हैं कि महान क्रांतिवीर धनसिंह गुर्जर अंग्रेजों के शासन में मेरठ के कोतवाल हुआ करते थे। वर्ष 1857 की क्रांति का नेतृत्व उन्होंने ही किया था। उत्तर प्रदेश शासन के इस फैसले पर गुर्जर समाज के विभिन्न संगठनों ने हर्ष व्यक्त किया है। सोशल मीडिया पर इस फैसले की व्यापक सराहना हो रही है। फैसले का स्वागत करते हुए अखिल भारतीय गुर्जर महासभा ने कहा है कि इस कदम के लिए समाज प्रदेश शासन का आभारी है।
जानिए कौन थे धन सिंह गुर्जर
मेरठ क्रान्ति का प्रारम्भ/आरम्भ ’10 मई 1857′ को हुआ था। क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है। उस दिन मेरठ में धनसिंह के नेतृत्व मे विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। धन सिंह कोतवाल जनता के सम्पर्क में थे। उनका संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश, देहरादून, दिल्ली, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी, पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गुर्जर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। विद्रोह की खबर मिलते ही आस-पास के गांव के हजारों ग्रामीण गुर्जर मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह पुलिस प्रमुख थे। 10 मई 1857 को धन सिंह ने की योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया और धन सिंह के नेतृत्व में देर रात 2 बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ाकर जेल को आग लगा दी। छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था सब नष्ट कर चुकी थी। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया।
इस क्रान्ति के पश्चात ब्रिटिश सरकार ने धन सिंह को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, और सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गुर्जर है इसलिए उसने गुर्जरो की भीड को नहीं रोका और उन्हे खुला संरक्षण दिया। इसके बाद घनसिंह को गिरफ्तार कर मेरठ के एक चौराहे पर फाँसी पर लटका दिया गया।
मेरठ की पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रात: 4 बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपों से हमला किया। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों गुर्जर किसान मारे गए, जो बच गए उनको कैद कर फांसी की सजा दे दी गई। आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक ‘स्वाधीनता आन्दोलनÓ और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी दे दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता।