Wednesday, 18 December 2024

Article : अंगूर की बेटी दिल्ली की यूपी की

अंजना भागी Article : अंगूर की बेटी इस वर्ष ऐसे भी क्या तुम्हारे सुर्खाब के पंख निकल आए। तुमने तो…

Article : अंगूर की बेटी दिल्ली की यूपी की

अंजना भागी

Article : अंगूर की बेटी इस वर्ष ऐसे भी क्या तुम्हारे सुर्खाब के पंख निकल आए। तुमने तो आबकारी विभाग (Excise Department) को मालामाल कर दिया, राजस्व विभाग भी खुशहाल है। कहते हैं कि विभाग ने भी शराब ( Liquor) से संबन्धित बहुत से नियमों का सरलीकरण किया है। यही नहीं विभाग अधिक से अधिक राजस्व अर्जित करने के लिए नए से नये स्रोत भी विकसित कर रहा है और इसका असर अब दिखाई भी देने लगा है। जैसे की उद्यमियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, वे नई डिस्टिलरियों की स्थापना करें। पहले से स्थापित डिस्टिलरियों की कार्य क्षमता में विस्तार करने के लिए जैसे कि अधिकाधिक माइक्रोब्रेवरी की स्थापना, नए सिस्टम पास, लाइसेंसी की स्वीकृति, रिटेल के अन्य शब्द, होम लाइसेंस इत्यादि प्रदान किए जाने की दिशा में बहुत मेहनत की जा रही है। शायद इसी का असर है –

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मार्च 2023, होली (Holi) पर लगभग 60 करोड़ ( 60 Crores) की शराब गटक गए दिल्लीवासी! एक दिन में बिकी लगभग 26 लाख बोतलें। 2023 में एक मार्च से हर दिन 14 लाख से ज्यादा बोतलें बिकीं। 8 मार्च होली को ड्राइडे घोषित था। ऐसे में 6 मार्च को एक ही दिन में 58.8 करोड़ रुपये की लगभग 26 लाख बोतल शराब की बिक्री हो गई थी। राजधानी दिल्ली में आबकारी विभाग ने इस महीने 227 करोड़ रुपये की1.13 करोड़ शराब की बोतलें 6 मार्च तक ही बेच दी थीं। यहाँ तक की अधिकारियों को एस्टीमेट था कि केवल 7 मार्च को ही 20 लाख दारू की बोतलों की बिक्री हो सकती है।

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दिल्ली (Delhi) में फिलहाल में 560 शराब की दुकानें हैं। आम दिनों में जहां 12 से 13 लाख बोतलें रोजाना बिकती थीं। वहीं होली के मौके पर शनिवार, रविवार और सोमवार को ही शराब की सेल के आंकड़े बढक़र क्रमश: 15 लाख, 22 लाख और 26 लाख डेली हो गई थी। शराब विक्रेताओं (Liquor Vendors) को शायद इस बार अधिक बिक्री का अंदाजा भी था। इसीलिए होली से पहले ही जिन क्षेत्रों में 2 या 3 दुकानें थीं वहाँ गिनती 5 या 6 दुकानों या ठेकों तक पहुँच गई थी। कहते हैं किसी भी विद्यालय परिसर के आस-पास नशीले पदार्थों की दुकान नहीं होनी चाहिए। लेकिन अब तो यह सुविधा लगभग सभी जगह उपलब्ध है।

इस साल दिल्ली ने शराब की बिक्री से 6,100 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया है। इस राशि में शराब की बोतलों पर उत्पाद शुल्क (एक्साइज) से 5,000 करोड़ रुपये और मूल्य वर्धित कर (वैल्यू ऐडेड टैक्स) के रूप में 1,100 करोड़ रुपये शामिल हैं। आबकारी विभाग के मुताबिक, पिछले साल की तुलना में इस मार्च में राजस्व संग्रह कहीं बेहतर रहा है। 1 मार्च को शराब की 15.2 लाख बोतलें 27.9 करोड़ रुपये में बिकीं, 2 मार्च को 26.5 करोड़ रुपये की 14.6 लाख बोतलें, 3 मार्च को 31.9 करोड़ रुपये की 16.5 लाख बोतलें बिकी हैं। होली से पहले 4 मार्च को 35.5 करोड़ रुपये की 17.9 लाख बोतलें; 5 मार्च को 46.5 करोड़ रुपये की 22.9 लाख बोतलें और 6 मार्च को 26 लाख बोतलें बिकीं थीं । जिनकी कुल कीमत 58.8 करोड़ रुपये थी। शहर में अब भी 11 से 12 लाख बोतलों की दैनिक औसत बिक्री दर्ज की गई है। 1 मार्च से हर दिन 14 लाख या उससे अधिक बोतलें ही बेची गई हैं। देसी-विदेशी हर प्रकार कि दारू बिकी और लगभग 400 से 1000 रुपये प्रति बोतल वाली शराब अधिक खरीदी गई। इस वर्ष जुलाई तक बढक़र 1,710 करोड़ अधिक आय अर्जित करते हुए 12,874 करोड़ का राजस्व हासिल हुआ है। जो पिछले वर्ष की तुलना में 15.31 प्रतिशत अधिक है। राजस्व लक्ष्यों को पाने के लिए अब आबकारी विभाग निरंतर प्रयास करते हुए पूरी तरह से कटिबद्ध है।


नोएडा/ग्रेटर नोएडा (Noida/Greater Noida) में कुल मिलाकर 549 शराब की दुकानें राजधानी दिल्ली से सटे हैं अच्छी हैं या जहां भी गली कूँचे में हैं बिना मुर्हूत या इनोऔगरैशन के खुल गईं और झक्कास व्यापार दे रही हैं। यूपी में भी ये ही सबसे अच्छी कमाऊ पूत हैं। खाली नोएडा/ग्रेटर नोएडा (Noida/Greater Noida) में ही 1 से 7 मार्च तक 14 करोड का व्यापार दिया। इतना ही नहीं लॉकडाउन के बाद इन दुकानों ने 300 करोड का व्यापार दे उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत की थी।
गाजियाबाद में होली पर 39 करोड का व्यापार दिया। बिजनौर का आबकारी विभाग तो 27 करोड की सेल उठा मालामाल हो गया। कानपुर इनसे भी आगे 50 करोड की यानि देसी विदेशी दोनों .. हमें पीने दो, हमें जीने दो …

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जो ज्ञानी होता है उसे समझाया जा सकता है। जो अज्ञानी होता है उसे भी समझाया जा सकता है। पर यदि कोई अभिमानी हो जाए तो उसे कोई नहीं समझा सकता। सिवाय वक्त के! यह भी सच है की अहंकार भी उसी को होता है जिसे बिना मेहनत के ही सब कुछ मिलने लग जाता है। मेहनत से सुख प्राप्त करने वाला व्यक्ति दूसरों की मेहनत का भी सम्मान करता है। आज-कल कुछ लोगों को नींद ही नहीं आती। क्या करें? दिन भर तो चारपाई पर लेटे हुए ही काटना होता है। रात में जब वे नहीं सोते तो बाकी घर वाले परेशान होते हैं। उनके फालतु शोर मचाने के कारण, रात में बेबात क्लेश करने के कारण या कारण जो भी हो। अब जो परिवार के लोग दिन भर काम करके आते हैं। आखिरकार आत्मसात कर ही लेते हैं कि इसे तो रोज पी कर ही सोना है। पीना इसकी मजबूरी है।


ये भी क्या करें? सबके दिन आते हैं इनके भी आए हैं। कोरोना काल में कोई भूखा न रहे इसलिए सरकार ने व्यवस्था दी थी फ्री राशन की। जो कि एक वर्ष के लिए और बढा दी गई है। बाकी सामान तो हर रोज खरीदा नहीं जाता सिर्फ खाने का सामान ही हर रोज खरीदना होता है उसकी तो अब कोई चिंता ही नहीं है। इनके घर से इनकी औरतें जो सुबह ही कमाने निकलती हैं घरों में सहायिका के रूप में कार्य करती हैं। भोजन कपड़ा तथा अन्य सामान उन घरों से भी वे ले ही आती हैं। इनके घर की बेटियां भी नौकरी करने वालों के घर में अच्छी तनख्वाह पर उनके बच्चों की संभालने के काम पा जाती है। अब पुरुषों के पास यही काम रह जाता है घर में चारपाई पर सोना और टाइम पास (time pass) के लिए देसी-विदेशी (Domestic-Foreign) दारू  (Alcohol) पीना। ऐसे में होली तो एक अच्छा ‘मौका’ बन गई और पिछले सालों के सारे ही रिकॉर्ड तोड़ गई। लोगों का यह भी मानना है कि ये भी एक व्यवस्था सी ही बन गई है। सरकार फ्री में इनको खाने को राशन दे रही है। ये अपनी बचत दारू पीकर सरकार को अच्छा राजस्व दे लौटा देते हैं।

पर ये अकेले नहीं हैं। इनके सहयोगी वे लोग भी हैं जो कि मल्टीनेशनल कंपनियों में मोटी तनख्वाह पर कार्यरत हैं या व्यापारी जो कि बहुत मोटा टैक्स भर इस व्यवस्था का बोझ ढो रहे हैं। उन्हें भी रातों को नींद नहीं आती कि यदि नौकरी न रही तो मेरा और मेरे परिवार का क्या होगा। जवाब नेगेटिव ही दिखता है इसलिए वे भी पीते हैं। अब जो व्यापार तरक्की करेगा काम भी तो उसी पर किया जाएगा न? अंगूर कि बेटी के पंखों को उड़ान ऐसे ही नहीं है।
(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता व चेतना मंच की प्रतिनिधि हैं)

 

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