पिछले साल दिसंबर (December) में जब केरल के तिरुवनंतपुरम में विश्व बैंक (World Bank) ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए भारत में भीषण गर्मी (Scorching Heat) को लेकर चेतावनी दी थी, तब शायद ही किसी को आभास होगा कि आने वाले साल में गर्मी अपने प्रचंड रूप में इसी क्षेत्र में दस्तक देगी। बीते 9 मार्च को तिरुवनंतपुरम और कन्नूर जिलों में तापमान ताप सूचकांक 54 डिग्री को छू गया। यह सूचकांक तापमान और आर्द्रता को मिलाकर तय किया जाता है और बताता है कि लोगों को कितनी गर्मी महसूस हो रही है। मतलब, इन क्षेत्रों में लोगों को 54 डिग्री सेल्सियस तापमान के बराबर गर्मी के एहसास से रूबरू होना पड़ा। इस साल यह गर्मी की दस्तक भर है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में गर्मी सिर्फ डराएगी नहीं, बल्कि रुलाएगी भी!
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भीषण गर्मी को लेकर इस बार पहले ही अनुमान जाहिर किए जाने लगे थे। बदले मिजाज के साथ गर्मी की दस्तक ने अनुमानों पर मुहर लगाने का काम किया है। गोवा में मार्च के शुरुआती 11 दिनों में ही महादेई वन्य जीव अभ्यारण्य में आग लगने की 48 घटनाएं हो चुकी हैं। हो सकता है कि इनमें से कुछ घटनाओं के पीछे मानवीय भूल हो, लेकिन गोवा में अभूतपूर्व रूप से चल रही गर्म हवाओं को ही इनके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। पिछले दिनों वहां हालात ऐसे हो गए कि स्कूलों को बंद तक करना पड़ा। गर्मी की यह प्रचंडता एक-दो राज्यों या कुछ विशेष क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है। मौसम विज्ञान विभाग का दावा है कि इस बार फरवरी महीने का अधिकतम औसत तापमान 146 सालों में सबसे अधिक रहा। वहीं, न्यूनतम औसत तापमान 122 सालों में पांचवें स्थान के तौर पर दर्ज किया गया। विभाग की हाइड्रोमेट और एग्रोमेट सलाहकार सेवा के प्रमुख एससी भान का कहना है कि अप्रैल और मई में बेहद गंभीर हालात का सामना करना होगा।
विश्व बैंक ने बीते दिसंबर में भारत में शीतलन क्षेत्र में जलवायु निवेश के अवसर शीर्षक से जारी रिपोर्ट में दावा किया था कि भारत दुनिया का ऐसा पहला देश होगा, जो भीषण गर्म हवाओं का सामना करेगा। इस रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी पैनल (यूएनआईपीसीसी) के आकलन के हवाले से कहा गया कि सिर्फ अत्यधिक गर्म हवाएं ही नहीं चलेंगी, बल्कि इनके चलने की समयावधि भी बढ़ेगी। जी-20 क्लाइमेट रिस्क एटलस ने भी अपनी 2021 की रिपोर्ट में कहा था कि 2036 से 2065 के बीच भारत में लू चलने की समयावधि 25 गुना तक बढ़ जाएगी। विश्व बैंक की रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि भीषण गर्मी की वजह से 2030 तक देश में तीन करोड़ 40 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे। करीब 38 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां का वातावरण गर्म है। बेतहाशा गर्मी से उपजे तनाव के चलते लोगों की उत्पादकता पर नकारात्मक असर पड़ेगा, जो अंतत: नौकरी से हाथ धोने का कारण बनेगा।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) का मानना है कि इस बार कुछ देश या कुछ क्षेत्र नहीं, बल्कि समूची दुनिया भयंकर गर्मी से जूझेगी। इसकी वजह अल-नीनो का सक्रिय होना बताया जा रहा है। अल-नीनो एक प्राकृतिक घटना है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में प्रशांत महासागर के ऊपर के वातावरण में घटित होती है। इस दौरान महासागर की सतह का तापमान चार-पांच डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, जो भीषण गर्मी का कारण बनता है। इससे पहले साल 2016 भी अल-नीनो की वजह से सबसे गर्म रहा था। लेकिन, क्या यह अकेला कारण है, जो इस बार लोगों को भीषण गर्मी में झुलसाएगा? अगर, पिछले साल के कार्बन उत्सर्जन के आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति काफी हद तक साफ हो जाएगी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के कार्यकारी निदेशक फतिह बिरोल ने विगत दो मार्च को रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि पिछले साल 36.80 गीगाटन कार्बन का उत्सर्जन दर्ज किया गया। तमाम देशों ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयले का जमकर इस्तेमाल किया। नतीजतन, उत्सर्जन में 1.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसका परिणाम भीषण गर्मी के रूप में लोगों को भुगतना पड़ेगा।
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मुद्दा सिर्फ गर्मी बढऩे तक ही सीमित नहीं है। बढ़ता प्रदूषण, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण की कमी जैसे तमाम कारण हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग की वजह बन रहे हैं। इसके चलते जलवायु पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। हाल यह है कि एक ही क्षेत्र कभी भीषण गर्मी तो कभी सूखे से जूझ रहा है। केरल में कुछ महीने पहले बारिश-बाढ़ ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया, तो अब गर्मी ने डरा दिया है। गर्म होती दुनिया की मुसीबतें यही रुकने वाली नहीं हैं। अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अध्यक्ष रिक स्पिनरेड ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि इस सदी के खत्म होते-होते दुनिया के तकरीबन 36 बड़े शहर समुद्र का जलस्तर बढऩे की वजह से लोगों के रहने लायक नहीं रहेंगे। इनमें न्यूयॉर्क, टोक्यो, लंदन, सिंगापुर, दुबई, ढाका, बैंकॉक जैसे शहरों के साथ ही भारत के तीन शहर चेन्नई, मुंबई और कोलकाता भी शामिल हैं। रिपोर्ट में अनुमान जाहिर किया गया है कि 2050 तक भारत के तीनों शहरों की अधिकतर सडक़ें समुद्री पानी में डूब जाएंगी। पिछली सदी में समुद्र के जलस्तर में औसतन सालाना वृद्धि 1.4 मिलीमीटर थी, जो 2006 से 2015 के बीच 3.6 मिलीमीटर दर्ज की गई। यूएनआईपीसीसी का दावा है कि ग्लोबल वार्मिंग से सदी के अंत तक समुद्र का जलस्तर एक से तीन फीट तक बढ़ जाएगा। इसके चलते कम से कम 25 करोड़ लोगों पर बेघर होने का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नेचर वॉटर जर्नल में प्रकाशित हालिया अध्ययन बताता है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ही भीषण गर्मी, सूखा, अत्यधिक बारिश और बाढ़ की समस्या पैदा हो रही है। नासा के वैज्ञानिक रोडेल और बेलिंग ली ने दो उपग्रहों की मदद से 2002 से 2021 तक अत्यधिक बारिश और सूखे की 1056 घटनाओं का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है।
बहरहाल, गर्मी के बदले हुए तेवरों से यह तो तय है कि इस बार चुनौतियां कुछ ज्यादा हैं। कोरोना के मामले फिर से बढऩे लगे हैं, तो वहीं एच3एन2 इनफ्लुएंजा (H3N2 Influenza) भी पैर पसार रहा है। डायरिया, चिकन पॉक्स, टायफाइड जैसे दर्जनभर रोग गर्मी अपने साथ लेकर आती ही है। ऐसे में, भीषण गर्मी से डरने की नहीं, बल्कि सामना करने की तैयारी में जुटने की जरूरत है। हालांकि, 6 मार्च को गांधीनगर के राजभवन में बैठक कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आला अफसरों को गर्मी से निपटने के लिए तैयार रहने का निर्देश देकर जता दिया है कि सरकार ने भी आंख-कान खुले रखे हैं, लेकिन समस्या का हल एकाध बरस की तैयारी से होने वाला नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए दूरगामी प्रभाव डालने वाले ठोस निर्णय लेने होंगे। वैश्विक नेताओं को अपने क्षेत्रीय हित एक तरफ रखकर दुनिया को एक बड़े खतरे से बचाने के लिए साथ आना होगा।
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