Home Remedies : पुरूषों में स्वपनदोष (नाइट फॉल) आमतौर पर यौन सपने के साथ जननांगों की उत्तेजना के कारण होता है। ऐसे पुरूष जिनके यौन अंग ठीक से काम करते हैं उन्हें आमतौर पर सप्ताह में एक या दो बार इसका अनुभव हो सकता है। लडक़े जब किशोरावस्था में पहुंचते हैं तो उनके शरीर में कई सारे बदलाव होते हैं। इसमें मुख्य रूप से शरीर में यौन अंगों की वृद्धि और हार्मोन परिवर्तन शामिल है। युवा लडक़ों में नाइटफॉल की समस्या बहुत आम है। लेकिन किसी भी उम्र के पुरूष इस स्थिति से पीडि़त हो सकते हैं। यह एक सामान्य स्थिति है और इसे जूझ रहे लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं क्योंकि कुछ घरेलू नुस्खे हैं जो इस समस्या से निजात दिला सकते हैं। प्रसिद्ध चिकित्सक डा. अजीत मेहता आज बता रहे स्वपनदोष को ठीक करने वाले कुछ अचूक उपाय ।
Home Remedies :
डा. अजीत मेहता के मुताबिक गुठली अलग किए हुए, सूखे आँवलों को कूट-छानकर चूर्ण बना लें। इस आँवला चूर्ण (एक भाग) और पिसी हुई मिश्री या देशी खाँड (दो भाग) मिलाकर सुरक्षित रख लें। इसे रोजाना रात्रि को सोने से आधा घंटे पहले दो चम्मच की मात्रा से पानी के साथ लें। लगातार दो सप्ताह तक इसका सेवन करने से स्वप्नदोष प्राय: आराम हो जाता है। जिन्हें स्वप्नदोष न भी हो उनके लिए भी हितकर है। इससे वीर्यविकार जैसे वीर्य का पतला होना, शीघ्रपतन आदि दूर होने के अतिरिक्त रक्त शुद्ध होता है। पाण्डु रोग (शरीर का पीलापन) कब्ज और सिरदर्द में लाभ होता है। नेत्रों पर भी हितकारी प्रभाव पड़ता है। वीर्यनाश से कमजोर शरीर में वीर्यवृद्धि होकर नयी ताकत आती है और वीर्यरक्षण होता है।
विशेष : पुरुष द्वारा नींद में वासनात्मक स्वप्न देखने अथवा कामुक चेष्टा मात्र से अनायास उसके वीर्य का निकल जाना ही स्वप्नदोष है। स्वप्नदोष का मूल कारण है गन्दे और कामोत्तेजक विचार। अत: इस रोग को निर्मूल करने के लिए औषधियों से भी अधिक कामुक प्रवृत्ति पर संयम की परम आवश्यकता है। प्राचीन भारत में विवाह से पहले 25 साल तक के काल को ब्रह्मचर्य आश्रम का नाम देकर ब्रह्मचर्य पालन को विशेष महत्त्व दिया था और विवाह के बाद गृहस्थाश्रम में भी संतान की आवश्यकता न होने पर बिना किसी कारण वीर्यनाश को अनुचित ठहराया गया था। आज के बदलते परिवेश में भी मन की चंचलता और कामुक प्रवृत्ति पर नियंत्रण अत्यावश्यक है। अत: ‘बीति ताहि विसारी दे, आगे की सुधि लेही’ और स्वप्नदोष से बचने के लिए सर्वप्रथम कामुक विचार और गलत आदतों द्वारा होने वाले वीर्य-नाश को रोकना चाहिए। विचार पवित्र रखने के साथ-साथ प्याज, बैंगन, उड़द की दाल, रबड़ी, खोया, बासी-तले-गरिष्ठ- खट्टे-चटपटे पदार्थ, चाय, कॉफी, धूम्रपान, शराब व नशीले पदार्थ, मांस, अण्डे, मछली, कामोत्तेजक संगीत और फिल्में, कामुक चिन्तन, पठन आदि उत्तेजक आहार-विहार से बचें। सोने से पूर्व अपने इष्टदेव का स्मरण, स्वाध्याय या सत्साहित्य का पठन करें। सोने से 2-3 घंटे पहले शाम का भोजन कर लें और भूख से थोड़ा कम खाएँ । सादा, हल्का और जल्दी पचने वाला भोजन करें। सोने से तुरन्त पहले दूध न पीएँ। रात को सोते समय शीतल जल से पाँव हाथ धोकर सोएँ। मूत्रेन्द्रिय को भी रोजाना ठण्डे पानी से साफ करें। सोने से पहले मूत्र-त्याग करें और रात को मूत्र-त्याग की इच्छा होने पर आलस्य न करें। पीठ के बल (सीधा) तथा पेट के बल न सोएँ। कब्ज न होने दें। कब्ज होने पर गुलकन्द, त्रिफला, ईसबगोल की भूसी में से किसी एक का प्रयोग करें।
सहायक उपचार : योगासन— भुजंगासन, सर्वागासन, वज्रासन, सिद्धासन, पद्मासन, सूर्य नमस्कार—किसी योग्य शिक्षक से अच्छी तरह सीखकर नित्य प्रात: नियमित करें। अश्विनी मुद्रा — अश्विनी मुद्रा में बार-बार गुदा को ऊपर खींचते हुए भीतर की ओर, सिकोडऩा और छोडऩा होता है जैसे घोड़ा लीद करने के बाद अपनी गुदा को संकुचित और शिथिल करता है। गुदा की मांसपेशियों हुए को सिकोड़ते या तानते समय दोनों हाथों की मु_ियाँ कसकर बाँधे और गुदा को ढीला छोडऩे पर मु_ियाँ खोल दें। यह क्रिया खाना खाकर न करें बल्कि खाली पेट प्रात: सायं 10-15 बार करें। इस मुद्रा को खड़े-खड़े किसी भी सुखमय आसन या कुर्सी पर बैठे-बैठे भी कर सकते हैं। अश्विनी मुद्रा के अभ्यास से स्वप्नदोष, बवासीर, नासूर, कांच निकलना, गर्भाशय के बाहर निकलने, पौरुष ग्रन्थि वृद्धि की शिकायतें ठीक होती है। अश्विनी मुद्रा योग में मूलबन्ध मुद्रा का एक भेद है और यह ब्रह्मचर्य पालन और वीर्यरक्षण में सहायक है।