नई दिल्ली। अपनों की नाराजगी झेल रही बीजेपी ने अब उन्हें मनाने और उचित सम्मान देने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। शायद इसीलिए एनसीपी को दो फाड़ कर अजित पवार को डिप्टी सीएम बनाया गया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले 10 से 15 दिनों के भीतर महाराष्ट्र में एक और सियासी बदलाव देखने को मिल सकता है। उस बदलाव के तहत देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी जा सकती है। यह भी कहा जा रहा है कि इस बदलाव के पीछे की पटकथा लिखी जा चुकी है। यानि सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद यह लगभग साफ हो गया है कि एकनाथ शिंदे और उनके 15 विधायकों को अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
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शुरू से ही हिल डुल रही सरकार
साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही महाराष्ट्र की सत्ता हिल डुल रही है। राज्य में 105 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सत्ता से बाहर रहने की टीस बीजेपी को बेचैन करती रही। वह हमेशा ही इस ताक में लगी रही कि कैसे वह महाराष्ट्र की सत्ता हासिल करे। आखिर, बीजेपी के चाणक्य अमित शाह ने व्यूह रचना की। उन्होंने एक तीर से दो शिकार करने का फैसला किया। पार्टी की रणनीति उद्धव ठाकरे को सत्ता से बाहर करने और शिवसेना के अस्तित्व को ही समाप्त करने की रही। उसमें वह कामयाबी भी रहे। यानि आपरेशन कमल कामयाब हो गया।
तीन दशक पुराने रिश्ते टूटने की टीस
एकनाथ शिंदे शिवसेना के 40 विधायकों के साथ बीजेपी के साथ आ गए। नतीजतन, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई। बीजेपी को इतने से ही चैन नहीं मिला। उसने तीन दशक पुराने रिश्ते को तोड़कर सत्ता में बैठने वाली शिवसेना को ही ठिकाने लगाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया। आखिर, शिवसेना और उसके सिंबल पर भी एकनाथ शिंदे का कब्जा हो गया। चुनाव आयोग ने भी एकनाथ शिंदे के हक में ही फैसला दिया।
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ये थी ठाकरे की दलील
आपरेशन कमल के बाद उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने उनकी पार्टी से अलग हुए एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की। ठाकरे के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 10 का हवाला देते हुए दलील रखी कि अगर कोई विधायकों का समूह दो तिहाई से ज्यादा लोग बगावत करते हैं तो उन्हें किसी न किसी दल में विलीन होना होगा। लेकिन, शिंदे और उनके गुट ने ऐसा नहीं किया। इसलिए उन्हें अयोग्य घोषित किया जाये।
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तो भी सरकार कोई कोई खतरा नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को इस पूरे मामले पर सख्त रुख अख्तियार किया और कहा कि अगर उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा नहीं दिया होता तो उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनने का कानूनी अवसर मिल जाता। लेकिन, अदालत ने विधायकों को अयोग्य ठहराने का मामला महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर पर छोड़ दिया। हालांकि आंकड़ों के लिहाज से विधानसभा में बीजेपी और उसे समर्थन देने वाले विधायकों की संख्या इतनी है कि अगर 16 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया, तो भी सरकार को कोई खतरा नहीं है।
मराठा वोटरों को साधने की रणनीति
अब बड़ा सवाल कि अगर महाराष्ट्र सरकार को कोई खतरा नहीं है तो फिर एनसीपी को तोड़ने के पीछे का कारण क्या हो सकता है। जानकार बताते हैं कि भाजपा के लिए एकनाथ शिंदे और उनके 15 विधायकों की अब विशेष जरूरत नहीं है। अभी हाल में आए भाजपा के एक सर्वे के मुताबिक एकनाथ शिंदे की लोकप्रियता लगभग चार फीसदी ही है। ऐसे में वह आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए उपयोगी साबित नहीं होंगे। इसलिए भाजपा अब एकनाथ शिंदे को ठिकाने लगाने की मंशा पाल बैठी है। दूसरी ओर, अजित पवार को पार्टी में लाने और डिप्टी सीएम बनाने के पीछे की रणनीति महाराष्ट्र के मराठा वोटरों को साधने की है।
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अपने नेताओं को खुश करने का प्लान
अजित पवार को लाकर भाजपा ने महाराष्ट्र के अपने नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं को बनाने का भी प्लान बना लिया है। समझा जा रहा है कि अगले 10 से 15 दिनों के भीतर एक और बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। इसके तहत एक बार फिर मुख्यमंत्री पद पर डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस की ताजपोशी हो सकती है। ऐसा कर पार्टी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को खुश कर चुनाव में उतरने की तैयारी में जुट गई है।
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