गोरा भगत की कथा नहीं पढ़ी तो अधूरा है आपका ज्ञान

गोरा भगत की कथा नहीं पढ़ी तो अधूरा है आपका ज्ञान
locationभारत
userचेतना मंच
calendar12 Sep 2025 04:41 PM
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भारत में एक से बढक़र एक भगत (भक्त) तथा संत-महात्मा पैदा हुए हैं। भारत के भक्तों की परम्परा में एक बहुत बड़ा नाम गोरा भक्त का नाम है। भारत के जिस किसी नागरिक ने गोरा भक्त की कहानी नहीं पढ़ा-सुना है तो समझ लेना चाहिए कि उस व्यक्ति का ज्ञान अधूरा ज्ञान है। गोरा भक्त ने अपने जीवन में भगवान की भक्ति करके वह सब कुछ साबित किया है जो एक सच्चा भक्त बड़ी आसानी से कर देता है।Gora Bhagat

प्रजापति समाज में पैदा होने के कारण गोरा कुम्हार नाम था गोरा भगत का

गोरा भगत (भक्त) का जन्म प्रजापति समाज में हुआ था। भारत में प्रजापति समाज को कुम्हार समाज के नाम से भी जाना जाता है। कुम्हार समाज में पैदा होने के कारण गोरा भगत को गोरा कुम्हार के नाम से भी जाना जाता है। कुम्हार समाज के दूसरे नागरिकों की तरह से ही गोरा कुम्हार भी मिट्टी के बर्तन बनाकर अपने परिवार का पालन- पोषण करते थे। मिट्टी के बर्तन बनाकर अपने परिवार को पालने के साथ ही साथ गोरा भगत रात-दिन श्रीकृष्ण भगवान के द्वारकाधीश स्वरूप की पूजा करना ही गोरा भगत का मुख्य कार्य था। गोरा भगत की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवन ने एक बार नहीं बल्कि अनेक बार गोरा भगत को दर्शन दिए थे।    Gora Bhagat

गोरा भगत ने जलते हुए आंवे में से जीवित बचाया बिल्ली के बच्चों को

आपको बता दें कि कुम्हार जलते हुए जिस भट्टे में मिट्टी के बर्तन पकाता है उस भट्टे को आंवा कहा जाता है। एक बार गलती से गोरा कुम्हार के आंवे में बिल्ली के दो बच्चे दब गए थे जब गोरा कुम्हार को पता चला कि आंवे में बिल्ली के बच्चे दबे हुए हैं तो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को पूरी श्रद्धा के साथ पुकारा। गोरा कुम्हार की पुकार सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने तुरंत बिल्ली के बच्चों को आंवे की भीषण आग में से जीवित रूप में बाहर निकाल दिया। इतना ही नहीं गोरा कुम्हार की भक्ति से खुश होकर भगवान ने गोरा कुम्हार के मृत बेटे को भी पुन: जीवित करके गोरा कुम्हार की गोदी में डाल दिया था।

गोरा कुम्हार को गुरू बना लिया था प्रसिद्ध संत नामदेव ने

गोरा कुम्हार के जीवन का एक प्रसंग यह भी है कि एक बार संत गोरा कुम्हार ने अपनी कुम्हार की छड़ी से अपने मेहमानों के सिर थपथपाए। वे कोई साधारण मेहमान नहीं थे। निवृत्ति, ज्ञानदेव, सोपान, नामदेव, मुक्ताबाई और अन्य भक्त शांत मुस्कान के साथ बैठे थे और उनके सिर पर कोमल थपथपाहट को स्वीकार कर रहे थे। वे भगवान के महान भक्त थे और अपने जीवनकाल में ही संतों के रूप में पूजनीय थे। ज्ञानदेव के अनुरोध पर, गोरा कुम्हार उनकी परीक्षा ले रहे थे (सिर थपथपा रहे थे) यह देखने के लिए कि उनमें से किसका ज्ञान ठोस या पूर्ण है। लेकिन नामदेव इस बात से बहुत आहत थे कि उनकी आध्यात्मिक उपलब्धि की परीक्षा ली जाए। तब गोरा ने विनम्रतापूर्वक नामदेव को अधूरा और अंतिम सत्य में स्थापित न होने वाला घोषित कर दिया। नामदेव पंढरपुर के भगवान विट्ठल के परम भक्त थे। वे जब चाहें भगवान से बात कर सकते थे। उनका संसार विठोबा से शुरू और खत्म होता था। वे ईश्वर के किसी अन्य रूप को नहीं पहचानते थे। लेकिन यह कट्टर भक्ति ईश्वर के उच्चतर और गहन अनुभव की ओर उनकी प्रगति में बाधा बन रही थी।अत्यंत अपमानित होकर, नामदेव भगवान विठोबा के पास पहुँचे, जिन्होंने उनकी गलती बताई और उन्हें आगे की अनुभूति के लिए एक गुरु के पास भेज दिया। नामदेव ने गोरा कुम्हार को ही अपना गुरू बना लिया।    Gora Bhagat

यह फिल्म देखकर जान सकते हैं गोरा कुम्हार का पूरा जीवन

यहां हम आपको गोरा कुम्हार के पूरे जीवन को जानने का आसान तरीका बता रहे हैं। गोरा कुम्हार से गोरा भगत बने इस बड़े भक्त के ऊपर एक फिल्म बनी है। यह फिल्म Raj Old Film Center नामक यूट्यूब चैनल पर मौजूद है। नीचे गोरा भगत के ऊपर बनी फिल्म का यूट्यूब लिंक दिया गया है। आप इस फिल्म को देखकर गोरा भगत को पूरी तरह से जान सकते हैं।  लिंक https://www.youtube.com/watch?v=jWut80Lkx4g    Gora Bhagat
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ट्रैफिक चालान पर राहत पाने लोक अदालत पहुंच रहे लोग, जानिए क्या है नियम?

ट्रैफिक चालान पर राहत पाने लोक अदालत पहुंच रहे लोग, जानिए क्या है नियम?
locationभारत
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calendar12 Sep 2025 04:30 PM
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ट्रैफिक चालान के निपटारे के लिए लोक अदालत 2025 में नियमित रूप से आयोजित की जाती है। इस साल अब तक दो बार लोक अदालत हो चुकी है और अगली लोक अदालत 13 सितंबर 2025 को होने वाली है लेकिन सवाल यह है कि क्या आप लोक अदालत में बिना टोकन के भी जा सकते हैं? और लोक अदालत में जाने के लिए किन दस्तावेजों की जरूरत होती है? Lok Adalat 2025

लोक अदालत में जाने के लिए टोकन लेना जरूरी है

लोक अदालत में ट्रैफिक चालान के निपटारे के लिए पहले टोकन लेना जरूरी होता है। बिना टोकन के आप लोक अदालत में अपना चालान कम करवाने या माफ करवाने के लिए नहीं जा सकते। टोकन मिलने के बाद ही आपको अपनी निर्धारित तारीख और समय पर अदालत में आना होता है।

लोक अदालत कब-कब होती है?

पहली लोक अदालत 8 मार्च 2025, दूसरी लोक अदालत 10 मई 2025, तीसरी लोक अदालत 13 सितंबर 2025 (कल) अगर आप 13 सितंबर की लोक अदालत के लिए टोकन नहीं ले पाए हैं तो अगली बार आपको 13 दिसंबर 2025 तक इंतजार करना होगा। लोक अदालत जाने के लिए सबसे जरूरी दस्तावेज है लोक अदालत का टोकन या अपॉइंटमेंट की प्रिंट आउट कॉपी। इस टोकन में आपके चालान की पूरी जानकारी और अदालत की डिटेल्स होती हैं। इसके अलावा अन्य किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं पड़ती।

लोक अदालत का समय और नियम

लोक अदालत का समय सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक रहता है लेकिन ध्यान रखें, आपको अपनी टोकन में दिए गए समय पर ही लोक अदालत पहुंचना होगा। अगर आप लेट आएंगे तो आपका चालान कम करने या माफ करने का मौका छूट सकता है।

टोकन कैसे लें?

अगर आप अगली लोक अदालत के लिए टोकन लेना चाहते हैं तो दिल्ली ट्रैफिक पुलिस की वेबसाइट से ऑनलाइन टोकन बुक कर सकते हैं।https://traffic.delhipolice.gov.in/notice/lokadalat पर जाएं। वाहन नंबर, इंजन या चेसिस नंबर दर्ज करें। पेंडिंग नोटिस दिखेगा तो उसे चुनें। फिर आपको तीन सवाल पूछे जाएंगे कोर्ट चुनना होगा, कोर्ट नंबर और अपनी पसंद का टाइम स्लॉट चुनना होगा। इन सारी जानकारी के बाद आपका टोकन बन जाएगा।

यह भी पढ़ें: संघ प्रमुख के जीवन पर प्रधानमंत्री का लेख हो गया वायरल

ध्यान दें: अगर आप दिल्ली के बाहर रहते हैं तो आप अपने राज्य की लोकल अथॉरिटी या NALSA (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण) की वेबसाइट पर जाकर टोकन बुक कर सकते हैं। लोक अदालत ट्रैफिक चालान कम करवाने या माफ करवाने का अच्छा मौका देती है, लेकिन इसके लिए टोकन लेना अनिवार्य है। बिना टोकन के लोक अदालत जाना संभव नहीं है। इसलिए अगली बार समय रहते टोकन बुक करें ताकि आप अपनी सुविधा के अनुसार लोक अदालत में भाग ले सकें।
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संघ प्रमुख के जीवन पर प्रधानमंत्री का लेख हो गया वायरल

संघ प्रमुख के जीवन पर प्रधानमंत्री का लेख हो गया वायरल
locationभारत
userचेतना मंच
calendar12 Sep 2025 02:48 PM
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RSS के सरसंघ चालक मोहन भागवत हैं। 11 सितंबर 2025 को RSS प्रमुख मोहन भागवत का जन्मदिन मनाया गया। RSS प्रमुख मोहन भागवत 11 सितंबर 2025 को 75 साल के हो गए हैं। RSS प्रमुख मोहन भागवत के जीवन के ऊपर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बड़ा लेख लिखा है। RSS प्रमुख के जीवन पर लिखा गया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लेख प्रमुख समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुआ है। समाचार पत्रों के साथ ही प्रधानमंत्री के लेख को न्यूज पोर्टलस पर भी प्रकाशित किया गया है। अलग-अलग न्यूज पोर्टल पर प्रकाशित हुआ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लेख वायरल हो गया है। RSS

RSS प्रमुख के ऊपर लिखा गया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लेख

RSS प्रमुख मोहन भागवत दुनिया की प्रसिद्ध हस्ती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी RSS प्रमुख मोहन भागवत को बचपन से ही जानते हैं। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि RSS प्रमुख के ऊपर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अच्छा लेख किसी दूसरे का नहीं हो सकता है। RSS प्रमुख मोहन भागवत के ऊपर जो लेख लिखा है उस लेख को हम यहां ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लिखा है कि आज 11 सितंबर है। यह दिन अलग-अलग स्मृतियों से जुड़ा है। एक स्मृति 1893 की है जब स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्व बंधुत्व का संदेश दिया और दूसरी स्मृति है 9/11 का आतंकी हमला, जब विश्व बंधुत्व को सबसे बड़ी चोट पहुंचाई गई। आज के दिन की एक और विशेष बात है। आज एक ऐसे व्यक्तित्व का 75वां जन्मदिवस है, जिन्होंने वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र पर चलकर समाज को संगठित करने, समता- समरसता व बंधुत्व की भावना को सशक्त करने में पूरा जीवन समर्पित किया है। संघ परिवार में जिन्हें परम पूजनीय सरसंघचालक के रूप में श्रद्धाभाव से संबोधित किया जाता है, ऐसे आदरणीय मोहन भागवत का आज जन्मदिन है। यह एक सुखद संयोग है कि इसी साल संघ भी अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। मैं मोहन भागवत को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं और प्रार्थना करता हूं कि ईश्वर उन्हें दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें।

पिता और पुत्र दोनों पारसमणि जैसे रहे है

मेरा मोहन भागवत के परिवार से बहुत गहरा संबंध रहा है। मुझे उनके पिता स्वर्गीय मधुकरराव भागवत के साथ निकटता से काम करने का सौभाग्य मिला था। मैंने अपनी पुस्तक ‘ज्योतिपुंज’ में मधुकरराव के बारे में विस्तार से लिखा भी है। वकालत के साथ-साथ मधुकरराव जीवनभर राष्ट्र निर्माण के कार्य में समर्पित रहे। अपनी युवावस्था में उन्होंने लंबा समय गुजरात में बिताया और संघ कार्य की मजबूत नींव रखी। मधुकरराव का राष्ट्र निर्माण के प्रति झुकाव इतना प्रबल था कि वे अपने पुत्र मोहनराव को भी इस महान कार्य के लिए निरंतर गढ़ते रहे। एक पारसमणि मधुकरराव ने मोहनराव के रूप में एक और पारसमणि तैयार कर दी। मोहन भागवत का पूरा जीवन सतत प्रेरणा देने वाला रहा है। वे 1970 के दशक के मध्य में प्रचारक बने। सामान्य जीवन में प्रचारक शब्द सुनकर यह भ्रम हो जाता है कि कोई प्रचार करने वाला व्यक्ति होगा, लेकिन जो संघ को जानते हैं, उन्हें पता है कि प्रचारक परंपरा संघ कार्य की विशेषता है।

समाज को मजबूत करने के काम में समर्पित रहे भागवत

गत सौ वर्षों में देशभक्ति की प्रेरणा से भरे हजारों युवक-युवतियों ने अपना घर-परिवार त्याग करके पूरा जीवन संघ परिवार के माध्यम से राष्ट्र को समर्पित किया है। भागवत भी उस महान परंपरा की मजबूत धुरी हैं। उन्होंने उस समय प्रचारक का दायित्व संभाला, जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश पर आपातकाल थोप दिया था। उस दौर में प्रचारक के रूप में भागवत ने आपातकाल-विरोधी आंदोलन को निरंतर मजबूती दी। उन्होंने कई वर्षों तक महाराष्ट्र के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों, विशेषकर विदर्भ में काम किया। 1990 के दशक में अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख के रूप में मोहन भागवत के कार्यों को आज भी कई स्वयंसेवक स्नेह पूर्वक याद करते हैं। इसी कालखंड में उन्होंने बिहार के गांवों में अपने जीवन के अमूल्य वर्ष बिताए और समाज को सशक्त करने के कार्य में समर्पित रहे।

राष्ट्र प्रथम की मूल विचारधारा को हमेशा सर्वोपरि रखा

वर्ष 2000 में मोहन भागवत सरकार्यवाह बने और यहां भी उन्होंने अपनी अनोखी कार्यशैली से हर कठिन परिस्थिति को सहजता और सटीकता से संभाला। 2009 में वे सरसंघचालक बने और आज भी अत्यंत ऊर्जा के साथ कार्य कर रहे हैं। उन्होंने राष्ट्र प्रथम की मूल विचारधारा को हमेशा सर्वोपरि रखा। सरसंघचालक होना मात्र एक संगठनात्मक जिम्मेदारी नहीं है। यह एक पवित्र विश्वास है, जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी दूरदर्शी व्यक्तित्वों ने आगे बढ़ाया है और इस राष्ट्र के नैतिक और सांस्कृतिक पथ को दिशा दी है। असाधारण व्यक्तियों ने इस भूमिका को व्यक्तिगत त्याग, उद्देश्य की स्पष्टता और मां भारती के प्रति अटूट समर्पण के साथ निभाया है। यह गर्व की बात है कि मोहन भागवत जी ने न केवल इस विशाल जिम्मेदारी के साथ पूर्ण न्याय किया है, बल्कि इसमें अपनी व्यक्तिगत शक्ति, बौद्धिक गहराई और सहृदय नेतृत्व भी जोड़ा है। भागवत का युवाओं से सहज जुड़ाव है और इसलिए उन्होंने अधिक से अधिक युवाओं को संघ कार्य के लिए प्रेरित किया है। वे लोगों से प्रत्यक्ष संपर्क में रहते हैं और संवाद करते रहते हैं। श्रेष्ठ कार्य पद्धति को अपनाने की इच्छा और बदलते समय के प्रति खुला मन रखना, ये भागवत की बहुत बड़ी विशेषता रही है। अगर हम व्यापक संदर्भ में देखते हैं, तो संघ की सौ साल की यात्रा में भागवत का कार्यकाल संघ में सर्वाधिक परिवर्तन का कालखंड माना जाएगा। चाहे वो गणवेश परिवर्तन हो, संघ शिक्षा वर्गों में बदलाव हो, ऐसे अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन उनके निर्देशन में संपन्न हुए। कोरोना काल में मोहन भागवत के प्रयास विशेष रूप से याद आते हैं। उस कठिन समय में उन्होंने स्वयंसेवकों को सुरक्षित रहते हुए समाजसेवा करने की दिशा दी और प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाने पर बल दिया। उनके मार्गदर्शन में स्वयंसेवकों ने जरूरतमंदों तक हरसंभव सहायता पहुंचाई, जगह-जगह चिकित्सा शिविर लगाए। उन्होंने वैश्विक चुनौतियों और वैश्विक विचारों को प्राथमिकता देते हुए व्यवस्थाओं को विकसित किया। हमें कई स्वयंसेवकों को खोना भी पड़ा, लेकिन भागवत की प्रेरणा ऐसी थी कि अन्य स्वयंसेवकों की दृढ़ इच्छाशक्ति कमजोर नहीं पड़ी। इस वर्ष की शुरुआत में मैंने नागपुर में उनके साथ माधव नेत्र चिकित्सालय के उद्घाटन के दौरान कहा था कि संघ अक्षयवट की तरह है, जो राष्ट्रीय संस्कृति और चेतना को ऊर्जा देता है। इस अक्षयवट वृक्ष की जड़ें इसके मूल्यों की वजह से बहुत गहरी और मजबूत हैं। इन मूल्यों को आगे बढ़ाने में जिस समर्पण से मोहन भागवत जुटे हैं वो हर किसी को प्रेरणा देता है।

समाज कल्याण के लिए संघ की शक्ति का उपयोग

समाज कल्याण के लिए संघ की शक्ति के निरंतर उपयोग पर उनका विशेष बल रहा है। इसके लिए उन्होंने पंच परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया है। इसमें स्व बोध, सामाजिक समरसता, नागरिक शिष्टाचार, कुटुंब प्रबोधन और पर्यावरण के सूत्रों पर चलते हुए राष्ट्र निर्माण को प्राथमिकता दी गई है। देश और समाज के लिए सोचने वाले हर भारतवासी को पंच परिवर्तन के इन सूत्रों से अवश्य प्रेरणा मिलेगी। संघ का हर कार्यकर्ता वैभव संपन्न भारत माता का सपना साकार होते देखना चाहता है। इस सपने को पूरा करने के लिए जिस स्पष्ट दृष्टि और ठोस कदम की जरूरत होती है, मोहन भागवत इन दोनों गुणों से परिपूर्ण हैं। उनके स्वभाव की एक और बड़ी विशेषता यह है कि वे मृदुभाषी हैं। उनमें सुनने की भी अद्भुत क्षमता है। यह विशेषता न केवल उनके दृष्टिकोण को गहराई देती है, बल्कि उनके व्यक्तित्व एवं नेतृत्व में संवेदनशीलता और गरिमा भी लाती है। मोहन भागवत हमेशा ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के प्रबल पक्षधर रहे हैं। वैसे बहुत कम लोगों को ये पता है कि वे अपनी व्यस्तता के बीच संगीत और गायन में भी रुचि रखते है। वे विभिन्न भारतीय वाद्ययंत्रों में भी निपुण हैं। पठन-पाठन में उनकी रुचि, उनके अनेक भाषणों और संवादों में साफ दिखाई देती है। पिछले दिनों देश में जितने सफल जन-आंदोलन हुए, चाहे स्वच्छ भारत मिशन हो या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, मोहन भागवत ने पूरे संघ परिवार को इन आंदोलनों में ऊर्जा भरने के लिए प्रेरित किया। मैं पर्यावरण से जुड़े प्रयासों और सतत जीवनशैली को आगे बढ़ाने के प्रति उनके समर्पण को जानता हूं। उनका जोर आत्मनिर्भर भारत पर भी है।

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कुछ ही दिनों में विजयादशमी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सौ वर्ष का हो जाएगा। यह भी सुखद संयोग है कि विजयादशमी का पर्व, गांधी जयंती, लाल बहादुर शास्त्री की जयंती और संघ का शताब्दी वर्ष एक ही दिन आ रहे हैं। यह भारत और विश्वभर के लाखों स्वयंसेवकों के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है। हम स्वयंसेवकों का सौभाग्य है कि हमारे पास मोहन भागवत जैसे दूरदर्शी और परिश्रमी सरसंघचालक हैं, जो ऐसे समय में संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं। विचार के प्रति पूर्ण समर्पण और व्यवस्थाओं में समयानुकूल परिवर्तन करते हुए उनके नेतृत्व में संघ कार्य का निरंतर विस्तार हो रहा है। मैं मां भारती की सेवा में समर्पित मोहन भागवत के दीर्घ और स्वस्थ जीवन की पुन: कामना करता हूं। उन्हें जन्मदिवस पर अनेकानेक शुभकामनाएं। लेखक भारत के प्रधानमंत्री