जाने विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी अन्ना मणि
अन्ना मणि ने उस दौर में उच्च शिक्षा और शोध किए, जब भारत में महिलाओं की साक्षरता दर मात्र 1% थी। लेकिन उनका साहस, दृढ़ता और वैज्ञानिक सोच ने न सिर्फ मौसम विज्ञान को नई दिशा दी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा भी बन गईं।

भारत में महिला वैज्ञानिकों की बात आती है तो अक्सर हम मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) की टीम की प्रतिभाशाली महिलाओं को याद करते हैं। लेकिन इससे दशकों पहले ही भारत की एक विलक्षण महिला वैज्ञानिक ऐसे खोज कर चुकी थीं, जिनकी वजह से आज मौसम का अनुमान लगाना कहीं अधिक सटीक और वैज्ञानिक हो पाया है। यह नाम है अन्ना मणि, जिन्हें पूरे विश्व में ‘द वेदर वुमन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है। उनके जन्म की 104वीं जयंती पर गूगल ने उन्हें समर्पित एक विशेष डूडल बनाकर सम्मान दिया था—यह दिखाता है कि उनका योगदान सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के लिए कितना महत्वपूर्ण है।
विज्ञान की दुनिया में एक अग्रणी नाम
अन्ना मणि भारतीय मौसम विभाग की पूर्व उप महानिदेशक थीं। सौर विकिरण (Solar Radiation), ओज़ोन मापन और पवन ऊर्जा उपकरणों के विकास में उनका योगदान अतुलनीय है। मौसम पर नज़र रखने और सटीक पूर्वानुमान लगाने वाले कई महत्वपूर्ण उपकरणों के डिज़ाइन में उनकी अहम भूमिका रही। आज मौसम विज्ञान की जो आधुनिक प्रणाली हमें दिखाई देती है, उसकी नींव में अन्ना मणि का अथक शोध और निष्ठा शामिल है।
23 अगस्त 1918 – एक असाधारण प्रतिभा का जन्म
केरल के पीरूमेडू में एक संपन्न परिवार में जन्मीं अन्ना मणि के पिता सिविल इंजीनियर थे। बचपन में उनका सपना एक डांसर बनने का था, लेकिन परिवार ने पढ़ाई को प्राथमिकता दी। यही कारण रहा कि उन्होंने विज्ञान की राह चुनी और भौतिकी (Physics) में अपना करियर बनाने का फैसला किया। 1939 में उन्होंने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज से भौतिकी और रसायन विज्ञान में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद 1940 में वह भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बैंगलोर में रिसर्च स्कॉलर बनीं और प्रो. सी.वी. रमन के मार्गदर्शन में रूबी और हीरे के ऑप्टिकल गुणों पर रिसर्च किया। 1945 में आगे की पढ़ाई के लिए वह लंदन के इंपीरियल कॉलेज चली गईं, जहां उनकी रुचि मौसम संबंधी उपकरणों की ओर और गहरी होती गई।
ग्रेजुएशन, रिसर्च और फिर भी नहीं मिली पीएचडी
अन्ना मणि ने पांच शोध पत्र लिखे और अपना पीएचडी रिसर्च तैयार किया, लेकिन उन्हें पीएचडी की डिग्री नहीं मिल सकी क्योंकि उनके पास भौतिकी में पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री नहीं थी। देश की आज़ादी के बाद 1948 में वह भारत लौटीं और पुणे स्थित मौसम विभाग में काम शुरू किया।
गांधीवादी विचारधारा और सरल जीवन
भारत लौटने के बाद वह गांधीवादी विचारों से प्रभावित हो गईं। वह जीवनभर खादी पहनती रहीं और सादगी का रास्ता चुना। 1969 में उन्हें भारतीय मौसम विभाग का उप महानिदेशक नियुक्त किया गया। बंगलुरु में उन्होंने अपनी एक वर्कशॉप स्थापित की, जहां वह हवा की गति और सौर ऊर्जा मापन के उपकरण विकसित करती थीं।1976 में वह इसी पद से सेवानिवृत्त हुईं।
सम्मान और अंतिम यात्रा
विज्ञान में उल्लेखनीय योगदान के चलते 1987 में उन्हें INSA के.आर. रामनाथन मेडल से सम्मानित किया गया। 16 अगस्त 2001 को तिरुवनंतपुरम में इस महान वैज्ञानिक का निधन हो गया।
भारत में महिला वैज्ञानिकों की बात आती है तो अक्सर हम मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) की टीम की प्रतिभाशाली महिलाओं को याद करते हैं। लेकिन इससे दशकों पहले ही भारत की एक विलक्षण महिला वैज्ञानिक ऐसे खोज कर चुकी थीं, जिनकी वजह से आज मौसम का अनुमान लगाना कहीं अधिक सटीक और वैज्ञानिक हो पाया है। यह नाम है अन्ना मणि, जिन्हें पूरे विश्व में ‘द वेदर वुमन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है। उनके जन्म की 104वीं जयंती पर गूगल ने उन्हें समर्पित एक विशेष डूडल बनाकर सम्मान दिया था—यह दिखाता है कि उनका योगदान सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के लिए कितना महत्वपूर्ण है।
विज्ञान की दुनिया में एक अग्रणी नाम
अन्ना मणि भारतीय मौसम विभाग की पूर्व उप महानिदेशक थीं। सौर विकिरण (Solar Radiation), ओज़ोन मापन और पवन ऊर्जा उपकरणों के विकास में उनका योगदान अतुलनीय है। मौसम पर नज़र रखने और सटीक पूर्वानुमान लगाने वाले कई महत्वपूर्ण उपकरणों के डिज़ाइन में उनकी अहम भूमिका रही। आज मौसम विज्ञान की जो आधुनिक प्रणाली हमें दिखाई देती है, उसकी नींव में अन्ना मणि का अथक शोध और निष्ठा शामिल है।
23 अगस्त 1918 – एक असाधारण प्रतिभा का जन्म
केरल के पीरूमेडू में एक संपन्न परिवार में जन्मीं अन्ना मणि के पिता सिविल इंजीनियर थे। बचपन में उनका सपना एक डांसर बनने का था, लेकिन परिवार ने पढ़ाई को प्राथमिकता दी। यही कारण रहा कि उन्होंने विज्ञान की राह चुनी और भौतिकी (Physics) में अपना करियर बनाने का फैसला किया। 1939 में उन्होंने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज से भौतिकी और रसायन विज्ञान में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद 1940 में वह भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बैंगलोर में रिसर्च स्कॉलर बनीं और प्रो. सी.वी. रमन के मार्गदर्शन में रूबी और हीरे के ऑप्टिकल गुणों पर रिसर्च किया। 1945 में आगे की पढ़ाई के लिए वह लंदन के इंपीरियल कॉलेज चली गईं, जहां उनकी रुचि मौसम संबंधी उपकरणों की ओर और गहरी होती गई।
ग्रेजुएशन, रिसर्च और फिर भी नहीं मिली पीएचडी
अन्ना मणि ने पांच शोध पत्र लिखे और अपना पीएचडी रिसर्च तैयार किया, लेकिन उन्हें पीएचडी की डिग्री नहीं मिल सकी क्योंकि उनके पास भौतिकी में पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री नहीं थी। देश की आज़ादी के बाद 1948 में वह भारत लौटीं और पुणे स्थित मौसम विभाग में काम शुरू किया।
गांधीवादी विचारधारा और सरल जीवन
भारत लौटने के बाद वह गांधीवादी विचारों से प्रभावित हो गईं। वह जीवनभर खादी पहनती रहीं और सादगी का रास्ता चुना। 1969 में उन्हें भारतीय मौसम विभाग का उप महानिदेशक नियुक्त किया गया। बंगलुरु में उन्होंने अपनी एक वर्कशॉप स्थापित की, जहां वह हवा की गति और सौर ऊर्जा मापन के उपकरण विकसित करती थीं।1976 में वह इसी पद से सेवानिवृत्त हुईं।
सम्मान और अंतिम यात्रा
विज्ञान में उल्लेखनीय योगदान के चलते 1987 में उन्हें INSA के.आर. रामनाथन मेडल से सम्मानित किया गया। 16 अगस्त 2001 को तिरुवनंतपुरम में इस महान वैज्ञानिक का निधन हो गया।







