पूर्वांचल को बड़ा झटका : 8-लेन गंगा पाथवे एक्सप्रेसवे परियोजना रद
गंगा नदी के किनारे-किनारे बनाया जाने वाला यह 8-लेन हाई-स्पीड एक्सप्रेसवे दिल्ली और पूर्वी उत्तर प्रदेश को जोड़ने वाली एक रणनीतिक लाइफलाइन माना जा रहा था। इसका उद्देश्य पूर्वांचल को नोएडा/दिल्ली से सीधे जोड़ना था।

उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों बलिया, गाजीपुर और मऊ के लिए एक बड़ी निराशाजनक खबर आई है। लंबे समय से प्रतीक्षित और ग्रेटर नोएडा से बलिया तक प्रस्तावित आठ-लेन गंगा पाथवे एक्सप्रेसवे परियोजना को उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरी तरह रद कर दिया है। यह वही परियोजना थी जिसे पूर्वांचल के तेज विकास और दिल्ली से सीधी कनेक्टिविटी का आधार माना जा रहा था। इस परियोजना के रद होने से पूर्वांचल के लोगों की आशाओं पर तुषारापात हो गया, अब वे दिल्ली से सीधा जुड़ने का लाभ नहीं ले सकेंगे।
क्या था यह एक्सप्रेसवे?
गंगा नदी के किनारे-किनारे बनाया जाने वाला यह 8-लेन हाई-स्पीड एक्सप्रेसवे दिल्ली और पूर्वी उत्तर प्रदेश को जोड़ने वाली एक रणनीतिक लाइफलाइन माना जा रहा था। इसका उद्देश्य पूर्वांचल को नोएडा/दिल्ली से सीधे जोड़ना था। दूसरा पूर्वांचल तक का सफर का समय कई घंटों तक कम करना और व्यापार, पर्यटन और उद्योग को बढ़ावा देना इसका उद्देश्य था। परियोजना की लंबाई लगभग 600+ किमी मानी जा रही थी और इसे यूपी की सबसे महत्वाकांक्षी सड़कों में गिना जा रहा था।
सरकार ने क्यों रद किया प्रोजेक्ट?
यूपी एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीईडा) के अनुसार नई परियोजना की जरूरत नहीं है, क्योंकि पहले से मौजूद बड़े एक्सप्रेसवे पूर्वांचल की जरूरतें पूरी कर रहे हैं। इनमें शामिल हैं : यमुना एक्सप्रेसवे, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे ,
निमार्णाधीन गंगा एक्सप्रेसवे। सरकार का कहना है कि इन रास्तों से यात्रियों को पहले ही तेज कनेक्टिविटी मिल रही है। नई परियोजना बनाना आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं है। पुराना डीपीआर और सर्वे अब अप्रासंगिक हो चुका है। इस आधार पर परियोजना को असंगत और अव्यावहारिक बताकर रद कर दिया गया।
2008 से अब तक क्यों लटका रहा प्रोजेक्ट?
यह एक्सप्रेसवे कोई नया विचार नहीं था। इसकी शुरुआत 2008 में हुई थी, जब इसे चार साल में पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया था। लेकिन कई कारणों से कार्य आगे नहीं बढ़ पाया। सबसे पहले पर्यावरण मंजूरी में अड़चन हुई, हाईकोर्ट ने साफ कहा कि जब तक पर्यावरण विभाग क्लीयरेंस नहीं देता, तब तक निर्माण कार्य नहीं होगा। यही प्रोजेक्ट के ठप होने की सबसे बड़ी वजह बनी। दूसरा जमीन अधिग्रहण पर करोड़ों खर्च हुए, लगभग 38 करोड़ रुपये जमीन अधिग्रहण पर खर्च होने के बावजूद निर्माण शुरू नहीं हो सका। तीसरा ठेकेदार कंपनी को धन वापसी करनी होगी। परियोजना का ठेका मेसर्स जेपी गंगा इंफ्रास्ट्रक्चर कॉपोर्रेशन लिमिटेड को मिला था, लेकिन अब रद होने के बाद कंपनी को 3,26,96,764 रुपये वापस करने होंगे। चौथा कारण बदलती सरकारें और प्राथमिकताएँ हैं। उत्तर प्रदेश में बदलती सरकारों और नीतियों के कारण परियोजना लगातार अपनी प्राथमिकता खोती गई।
पूर्वांचल में विकास की उम्मीदों को बड़ा झटका
इस निर्णय से पूर्वी यूपी के जिलों बलिया, गाजीपुर, के लोगों में निराशा है। वहां के लोग कई वर्षों से इस एक्सप्रेसवे की उम्मीद लगा चुके थे। इसके रद होने से व्यापार पर असर पड़ेगा। दिल्ली जैसे बड़े बाजारों से सीधा संपर्क टूटने के कारण नए उद्योग, गोदाम, लॉजिस्टिक, हब, फल/सब्जी/अनाज परिवहन की संभावनाओं को नुकसान होगा। रोजगार के अवसर को भी नुकसान होगा। गंगा किनारे बसाए गए शहरों के लिए यह एक्सप्रेसवे पर्यटन को भी बढ़ावा दे सकता था। एक दशक से ज्यादा समय तक उम्मीद जगाने के बाद 8-लेन गंगा पाथवे एक्सप्रेसवे परियोजना को रद कर दिया गया है। यह फैसला पूर्वी उत्तर प्रदेश की विकास योजनाओं के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों बलिया, गाजीपुर और मऊ के लिए एक बड़ी निराशाजनक खबर आई है। लंबे समय से प्रतीक्षित और ग्रेटर नोएडा से बलिया तक प्रस्तावित आठ-लेन गंगा पाथवे एक्सप्रेसवे परियोजना को उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरी तरह रद कर दिया है। यह वही परियोजना थी जिसे पूर्वांचल के तेज विकास और दिल्ली से सीधी कनेक्टिविटी का आधार माना जा रहा था। इस परियोजना के रद होने से पूर्वांचल के लोगों की आशाओं पर तुषारापात हो गया, अब वे दिल्ली से सीधा जुड़ने का लाभ नहीं ले सकेंगे।
क्या था यह एक्सप्रेसवे?
गंगा नदी के किनारे-किनारे बनाया जाने वाला यह 8-लेन हाई-स्पीड एक्सप्रेसवे दिल्ली और पूर्वी उत्तर प्रदेश को जोड़ने वाली एक रणनीतिक लाइफलाइन माना जा रहा था। इसका उद्देश्य पूर्वांचल को नोएडा/दिल्ली से सीधे जोड़ना था। दूसरा पूर्वांचल तक का सफर का समय कई घंटों तक कम करना और व्यापार, पर्यटन और उद्योग को बढ़ावा देना इसका उद्देश्य था। परियोजना की लंबाई लगभग 600+ किमी मानी जा रही थी और इसे यूपी की सबसे महत्वाकांक्षी सड़कों में गिना जा रहा था।
सरकार ने क्यों रद किया प्रोजेक्ट?
यूपी एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीईडा) के अनुसार नई परियोजना की जरूरत नहीं है, क्योंकि पहले से मौजूद बड़े एक्सप्रेसवे पूर्वांचल की जरूरतें पूरी कर रहे हैं। इनमें शामिल हैं : यमुना एक्सप्रेसवे, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे ,
निमार्णाधीन गंगा एक्सप्रेसवे। सरकार का कहना है कि इन रास्तों से यात्रियों को पहले ही तेज कनेक्टिविटी मिल रही है। नई परियोजना बनाना आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं है। पुराना डीपीआर और सर्वे अब अप्रासंगिक हो चुका है। इस आधार पर परियोजना को असंगत और अव्यावहारिक बताकर रद कर दिया गया।
2008 से अब तक क्यों लटका रहा प्रोजेक्ट?
यह एक्सप्रेसवे कोई नया विचार नहीं था। इसकी शुरुआत 2008 में हुई थी, जब इसे चार साल में पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया था। लेकिन कई कारणों से कार्य आगे नहीं बढ़ पाया। सबसे पहले पर्यावरण मंजूरी में अड़चन हुई, हाईकोर्ट ने साफ कहा कि जब तक पर्यावरण विभाग क्लीयरेंस नहीं देता, तब तक निर्माण कार्य नहीं होगा। यही प्रोजेक्ट के ठप होने की सबसे बड़ी वजह बनी। दूसरा जमीन अधिग्रहण पर करोड़ों खर्च हुए, लगभग 38 करोड़ रुपये जमीन अधिग्रहण पर खर्च होने के बावजूद निर्माण शुरू नहीं हो सका। तीसरा ठेकेदार कंपनी को धन वापसी करनी होगी। परियोजना का ठेका मेसर्स जेपी गंगा इंफ्रास्ट्रक्चर कॉपोर्रेशन लिमिटेड को मिला था, लेकिन अब रद होने के बाद कंपनी को 3,26,96,764 रुपये वापस करने होंगे। चौथा कारण बदलती सरकारें और प्राथमिकताएँ हैं। उत्तर प्रदेश में बदलती सरकारों और नीतियों के कारण परियोजना लगातार अपनी प्राथमिकता खोती गई।
पूर्वांचल में विकास की उम्मीदों को बड़ा झटका
इस निर्णय से पूर्वी यूपी के जिलों बलिया, गाजीपुर, के लोगों में निराशा है। वहां के लोग कई वर्षों से इस एक्सप्रेसवे की उम्मीद लगा चुके थे। इसके रद होने से व्यापार पर असर पड़ेगा। दिल्ली जैसे बड़े बाजारों से सीधा संपर्क टूटने के कारण नए उद्योग, गोदाम, लॉजिस्टिक, हब, फल/सब्जी/अनाज परिवहन की संभावनाओं को नुकसान होगा। रोजगार के अवसर को भी नुकसान होगा। गंगा किनारे बसाए गए शहरों के लिए यह एक्सप्रेसवे पर्यटन को भी बढ़ावा दे सकता था। एक दशक से ज्यादा समय तक उम्मीद जगाने के बाद 8-लेन गंगा पाथवे एक्सप्रेसवे परियोजना को रद कर दिया गया है। यह फैसला पूर्वी उत्तर प्रदेश की विकास योजनाओं के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।







