Delhi Air Pollution : देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर में लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण के अभी कम होने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा समेत पूरे एनसीआर और दिल्ली की हवा इतनी जहरीली हो गई है कि यहां पर सांस लेना भी दुभर हो रहा है। दिल्ली वालों को प्रदूषण के इस जहर से बचाने के लिए दिल्ली सरकार ने कदम उठाए हैं। सरकार ने दिल्ली की बदतर हवा को सुधारने के लिए आर्टिफिशियल बारिश करवाने की तैयारी कर दी है। संभावना जताई जा रही है कि नोएडा में भी आर्टिफिशियल बारिश कराई जाएगी।
Delhi Air Pollution
आपको बता दें कि दिल्ली की हवा में जहर बढ़ता ही जा रहा है। कुछ दिन से एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI का स्तर 500 के पार बना हुआ है। लोगों का सांस लेना तक मुश्किल हो रहा है। ग्रैप फोर और एनजीटी के तमाम नियमों को लागू करने के बावजूद हालात में कोई सुधार होता न देख दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बुधवार को आईआईटी कानपुर की टीम के साथ बैठक की थी। बैठक में तय हुआ कि अगर सबकुछ ठीक रहा और परमिशन मिल गई तो 21 और 22 नवंबर को आर्टिफिशियल बारिश करवाई जाएगी।
आईआईटी कानपुर के एक्सपर्ट साल 2017 से क्लाउड सीडिंग के जरिए आर्टिफिशियल बारिश करवाने की तकनीक पर काम कर रहे थे। इसी साल जून में आईआईटी कानपुर को इसमें कामयाबी मिली थी। टेस्टिंग के दौरान सेसना एयरक्राफ्ट (छोटे विमान) को पांच हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ाया गया।
इसके बाद क्लाउड सीडिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए बादलों में एक केमिकल पाउडर छिड़का, जिससे पानी की बूंदें बनने लगीं। और कुछ देर बाद आसपास के इलाकों में बारिश शुरू हो गई।
क्या होती है क्लाउड सीडिंग ?
आपको बता दें कि क्लाउड सीडिंग पर 1940 के दशक से काम चल रहा है। अमेरिका पर आरोप लगते रहे हैं कि वियतनाम युद्ध में उसने क्लाउड सीडिंग को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया था। इससे वियतनामी सेना की सप्लाई चेन बिगड़ गई थी, क्योंकि ज्यादा बारिश से जमीन दलदली हो गई थी। हालांकि, इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं।
साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी वर्ल्ड मीटियरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन ने अनुमान लगाया था कि दुनिया के 50 से ज्यादा क्लाउड सीडिंग को आजमा चुके हैं। इनमें चीन, अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देश शामिल हैं।
क्लाउड सीडिंग एक तरह से मौसम में बदलाव करने की कोशिश है। इसमें आर्टिफिशियल तरीके से बारिश करवाई जाती है।
क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया के दौरान छोटे-छोटे विमानों को बादलों के बीच से निकाला जाता है। ये विमान सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और क्लोराइड छोड़ते जाते हैं। इससे बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं। यही पानी की बूंदें फिर बारिश बनकर जमीन पर गिरती हैं।
आमतौर पर क्लाउड सीडिंग के जरिए करवाई गई आर्टिफिशियल बारिश सामान्य बारिश की तुलना में ज्यादा तेज होती है। हालांकि, ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि इस दौरान कितनी मात्रा में केमिकल्स का इस्तेमाल हो रहा है।
क्या कम हो जाएगा प्रदूषण ?
अब सवाल उठता है कि आर्टिफिशयल बारिश से क्या प्रदूषण कम हो जाएगा। उम्मीद यही की जा रही है कि आर्टिफिशियल बारिश से प्रदूषण कम हो जाएगा। क्योंकि वैज्ञानिक भी दिल्ली की हवा अचानक खराब होने की एक वजह कम बारिश को भी मान रहे हैं।
सितंबर में मॉनसून खत्म होने के बाद बारिश नहीं होने के कारण हवा में प्रदूषणकारी तत्व जमा हो गए हैं। और अक्टूबर में नाममात्र की बारिश हुई है।
अक्टूबर 2021 में दिल्ली में 123 मिमी बारिश हुई थी। अक्टूबर 2022 में 129 मिमी बारिश हुई थी, लेकिन इस साल अक्टूबर में सिर्फ 5.4 मिमी बारिश ही हुई।
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