Saturday, 28 September 2024

दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश के लिए कितने रुपये खर्च कर रही सरकार

Delhi Air Pollution : दिल्ली NCR  सहित देश के कई शहरों में बढ़ रहे प्रदूषण से लोगों को काफी परेशानियों…

दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश के लिए कितने रुपये खर्च कर रही सरकार

Delhi Air Pollution : दिल्ली NCR  सहित देश के कई शहरों में बढ़ रहे प्रदूषण से लोगों को काफी परेशानियों का समना करना पड़ रहा है। प्रदूषण के कारण हवा भी इतनी जहरीली हो गई है कि लोगों को सांस लेने में भी बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही है। प्रदूषण की इस चुनौती से निपटने के लिए दिल्ली सरकार और सुप्रीम कोर्ट भी गाइड लाइन जारी कर चुका है, लेकिन लोगों को जहरीली हवा से राहत नहीं मिल रही है। अब दिल्ली सरकार ने प्रदूषण को कम करने के लिए आर्टिफिशियल बारिश कराने पर विचार कर रही है। माना जा रहा है कि दो दिन दिल्ली सरकार राजधानी में इस एक्सपेरिमेंट को अंजाम दे सकती है।

Delhi Air Pollution

क्या है आर्टिफिशियल बारिश

कृत्रिम वर्षा का सबसे जाना-पहचाना तरीका ‘क्लाउड सीडिंग’ कहलाता है। इसमें उन बादलों को चयन किया जाता है जिनमें पहले से कुछ नमी मौजूद होती है। फिर हवाई जहाज की मदद से उन बादलों पर सिल्वर आयोडाइड, कॉमन सॉल्ट और ड्राइ आइस या इसकी जैसी चीजें डाली जाती हैं। इनकी वजह से मौजूद नमी एकसाथ एकत्र हो जाती है, जिससे बारिश होती है। क्लाउड सीडिंग के दो प्रमुख तरीके हैं। पहला कोल्ड क्लाउड सीडिंग और दूसरा वॉर्म क्लाउड सीडिंग।

आर्टिफिशियल बारिश आएगा कितना खर्चा

आर्टिफिशियल वर्षा कराने के लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार को इसके लिए काफी सारी प्रमिशन लेनी पड़ेगी। इसमें केंद्र की मोदी सरकार को भी शामिल होना पड़ेगा। अब एक बार के लिए दिल्ली में इस एक्सपेरिमेंट को किया जरूर जा सकता है। लेकिन इसके करने पर बड़ा खर्चा आएगा। असल में पहला खर्चा तो वो विमान रहता है, जिसकी मदद से स्प्रे किया जाता है। इसके अलावा दूसरा खर्चा उस इंस्ट्रूमेंट का रहता है, जिससे स्प्रे किया जाता है। एक घंटे के ही पांच लाख तक खर्च हो जाते हैं। ऐसे में इस एक्सपेरिमेंट को लगातार नहीं किया जा सकता। इसके ऊपर अगर हवा का रुख बदल गया तो ये प्रक्रिया फेल भी हो सकती है।

कैसे काम करती है आर्टिफिशियल बारिश

कृत्रिम बारिश के लिए जिस केमिकल का छिड़काव किया जाता है, सबसे पहले उससे नकली बूंदे बनती हैं। और जब बादल उनका भार नहीं ले पाता वो नीचे बारिश के रूप में बरसने लगती हैं। अब इसे ही कृत्रिम बारिश कहा जाता है। लेकिन इसे अंजाम तक पहुंचाना भी इतना आसान नहीं रहता है। असल में एक प्लेन को आर्टिफिशियल रेन में सबसे बड़ी भूमिका निभानी पड़ती है। जिस केमिकल का छिड़काव किया जाता है, वो एक इंस्ट्रूमेंट के जरिए आसमान में छोड़ा जाता है। वो इंस्ट्रूमेंट भी प्लेन में ही फिट किया जाता है। ऐसे में एक विमान की अहम भूमिका रहती है।

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