दिल्ली में प्रदूषण पर क्यों नहीं लग रहा ब्रेक? सामने आई चौंकाने वाली सच्चाई
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को काबू में करने के लिए GRAP-4, NO PUC NO FUEL और BS6 वाहनों की एंट्री जैसे कड़े नियम लागू किए गए हैं। हजारों वाहनों के चालान काटे गए और कई गाड़ियों को राजधानी की सीमा से वापस भेजा गया। इसके बावजूद दिल्ली का AQI 387 से ऊपर बना हुआ है।

दिल्ली और उत्तर भारत में प्रदूषण एक बार फिर गंभीर स्तर पर पहुंच चुका है। ठंड बढ़ते ही राजधानी की हवा दमघोंटू होती जा रही है और हालात ऐसे बन गए हैं कि सांस लेना तक मुश्किल हो रहा है। सरकार ने स्थिति को काबू में लाने के लिए ग्रेप-4 जैसे सबसे सख्त नियम लागू किए हैं, BS6 वाहनों की ही एंट्री की अनुमति दी गई है और ‘NO PUC NO FUEL’ जैसे अभियान शुरू किए गए हैं। इसके बावजूद शुक्रवार को दिल्ली का ओवरऑल AQI 387 से ऊपर दर्ज किया गया जो बेहद खराब श्रेणी में आता है।
काटे गए 3746 से ज्यादा वाहनों के चालान
गुरुवार से लागू हुए नए नियमों के तहत दिल्ली में केवल BS6 मानक वाले वाहनों को ही प्रवेश की अनुमति दी गई। इसके साथ ही जिन वाहनों के पास वैध प्रदूषण प्रमाण पत्र यानी PUC नहीं है उन्हें ईंधन न देने का फैसला भी लागू किया गया। इस अभियान का असर यह रहा कि सिर्फ पहले दिन ही 3746 से ज्यादा वाहनों के चालान काटे गए। करीब 570 ऐसे वाहन जो नियमों का पालन नहीं कर रहे थे, उन्हें 24 घंटे के भीतर दिल्ली की सीमा से बाहर लौटा दिया गया। ट्रैफिक पुलिस और परिवहन विभाग की संयुक्त टीमों ने राजधानी के एंट्री पॉइंट्स पर लगभग 5000 वाहनों की जांच की और 217 ट्रकों के रूट डायवर्ट किए गए।
WFH से होगी सुधार!
सरकार ने यह भी उम्मीद जताई थी कि वर्क फ्रॉम होम को 50 प्रतिशत तक अनिवार्य करने से सड़कों पर भीड़ कम होगी और वाहनों की आवाजाही घटेगी। हालांकि जमीनी हकीकत इससे अलग नजर आई। कई इलाकों में शुक्रवार को भी ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी रही। लोगों का कहना है कि दफ्तरों में स्टाफ कम होने के बावजूद निजी वाहनों और कमर्शियल मूवमेंट में खास कमी नहीं आई। एयर क्वालिटी अर्ली वार्निंग सिस्टम के मुताबिक आने वाले कुछ दिनों तक मौसम की परिस्थितियां भी प्रदूषण को फैलाने में मदद कर सकती हैं जिससे राहत की उम्मीद फिलहाल कम दिख रही है।
कितना दिखा NO PUC NO FUEL अभियान का असर
NO PUC NO FUEL अभियान का असर हालांकि एक जगह साफ तौर पर देखने को मिला। PUC सर्टिफिकेट बनवाने वालों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गई। गुरुवार को अकेले 45,479 PUC बनाए गए, जबकि बुधवार को यह आंकड़ा 31,197 था और सोमवार को सिर्फ 17,719। इसका मतलब साफ है कि सख्ती होते ही लोग नियमों का पालन करने के लिए आगे आए हैं लेकिन इसका प्रभाव हवा की गुणवत्ता पर तुरंत दिखना आसान नहीं है।
सरकार पर उठाए जा रहे सवाल
विपक्ष की तरफ से प्रदूषण को लेकर सरकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इन आरोपों पर दिल्ली सरकार में मंत्री आशीष सूद ने पलटवार करते हुए कहा कि पिछली सरकारों ने लंबे समय तक जरूरी कामों को नजरअंदाज किया। उन्होंने आरोप लगाया कि न तो ट्रांसपोर्ट सिस्टम को मजबूत किया गया न ही सफाई व्यवस्था पर सही से ध्यान दिया गया। ईवी पॉलिसी को लेकर भी लापरवाही बरती गई और वाहन सब्सिडी के लिए तय किए गए करोड़ों रुपये जारी नहीं किए गए। मंत्री के मुताबिक प्रदूषण एक दिन में पैदा हुई समस्या नहीं है और इसका समाधान भी लंबी रणनीति और निरंतर प्रयास से ही संभव है।
धीरे-धीरे सामने आएंगे नतीजे
असल में दिल्ली का प्रदूषण केवल चालान काटने या कुछ दिनों की पाबंदियों से खत्म नहीं हो सकता। इसके पीछे ट्रैफिक, निर्माण कार्य, औद्योगिक उत्सर्जन, पराली जलाने और मौसम की भूमिका जैसे कई बड़े कारण जुड़े हैं। सरकार के मौजूदा कदम जरूरी जरूर हैं लेकिन इनके नतीजे धीरे-धीरे सामने आएंगे। जब तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट मजबूत नहीं होता, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा नहीं मिलता और नियमों का सख्ती से लंबे समय तक पालन नहीं होता तब तक दिल्ली की हवा में बड़ा सुधार देखना मुश्किल है।
दिल्ली और उत्तर भारत में प्रदूषण एक बार फिर गंभीर स्तर पर पहुंच चुका है। ठंड बढ़ते ही राजधानी की हवा दमघोंटू होती जा रही है और हालात ऐसे बन गए हैं कि सांस लेना तक मुश्किल हो रहा है। सरकार ने स्थिति को काबू में लाने के लिए ग्रेप-4 जैसे सबसे सख्त नियम लागू किए हैं, BS6 वाहनों की ही एंट्री की अनुमति दी गई है और ‘NO PUC NO FUEL’ जैसे अभियान शुरू किए गए हैं। इसके बावजूद शुक्रवार को दिल्ली का ओवरऑल AQI 387 से ऊपर दर्ज किया गया जो बेहद खराब श्रेणी में आता है।
काटे गए 3746 से ज्यादा वाहनों के चालान
गुरुवार से लागू हुए नए नियमों के तहत दिल्ली में केवल BS6 मानक वाले वाहनों को ही प्रवेश की अनुमति दी गई। इसके साथ ही जिन वाहनों के पास वैध प्रदूषण प्रमाण पत्र यानी PUC नहीं है उन्हें ईंधन न देने का फैसला भी लागू किया गया। इस अभियान का असर यह रहा कि सिर्फ पहले दिन ही 3746 से ज्यादा वाहनों के चालान काटे गए। करीब 570 ऐसे वाहन जो नियमों का पालन नहीं कर रहे थे, उन्हें 24 घंटे के भीतर दिल्ली की सीमा से बाहर लौटा दिया गया। ट्रैफिक पुलिस और परिवहन विभाग की संयुक्त टीमों ने राजधानी के एंट्री पॉइंट्स पर लगभग 5000 वाहनों की जांच की और 217 ट्रकों के रूट डायवर्ट किए गए।
WFH से होगी सुधार!
सरकार ने यह भी उम्मीद जताई थी कि वर्क फ्रॉम होम को 50 प्रतिशत तक अनिवार्य करने से सड़कों पर भीड़ कम होगी और वाहनों की आवाजाही घटेगी। हालांकि जमीनी हकीकत इससे अलग नजर आई। कई इलाकों में शुक्रवार को भी ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी रही। लोगों का कहना है कि दफ्तरों में स्टाफ कम होने के बावजूद निजी वाहनों और कमर्शियल मूवमेंट में खास कमी नहीं आई। एयर क्वालिटी अर्ली वार्निंग सिस्टम के मुताबिक आने वाले कुछ दिनों तक मौसम की परिस्थितियां भी प्रदूषण को फैलाने में मदद कर सकती हैं जिससे राहत की उम्मीद फिलहाल कम दिख रही है।
कितना दिखा NO PUC NO FUEL अभियान का असर
NO PUC NO FUEL अभियान का असर हालांकि एक जगह साफ तौर पर देखने को मिला। PUC सर्टिफिकेट बनवाने वालों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गई। गुरुवार को अकेले 45,479 PUC बनाए गए, जबकि बुधवार को यह आंकड़ा 31,197 था और सोमवार को सिर्फ 17,719। इसका मतलब साफ है कि सख्ती होते ही लोग नियमों का पालन करने के लिए आगे आए हैं लेकिन इसका प्रभाव हवा की गुणवत्ता पर तुरंत दिखना आसान नहीं है।
सरकार पर उठाए जा रहे सवाल
विपक्ष की तरफ से प्रदूषण को लेकर सरकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इन आरोपों पर दिल्ली सरकार में मंत्री आशीष सूद ने पलटवार करते हुए कहा कि पिछली सरकारों ने लंबे समय तक जरूरी कामों को नजरअंदाज किया। उन्होंने आरोप लगाया कि न तो ट्रांसपोर्ट सिस्टम को मजबूत किया गया न ही सफाई व्यवस्था पर सही से ध्यान दिया गया। ईवी पॉलिसी को लेकर भी लापरवाही बरती गई और वाहन सब्सिडी के लिए तय किए गए करोड़ों रुपये जारी नहीं किए गए। मंत्री के मुताबिक प्रदूषण एक दिन में पैदा हुई समस्या नहीं है और इसका समाधान भी लंबी रणनीति और निरंतर प्रयास से ही संभव है।
धीरे-धीरे सामने आएंगे नतीजे
असल में दिल्ली का प्रदूषण केवल चालान काटने या कुछ दिनों की पाबंदियों से खत्म नहीं हो सकता। इसके पीछे ट्रैफिक, निर्माण कार्य, औद्योगिक उत्सर्जन, पराली जलाने और मौसम की भूमिका जैसे कई बड़े कारण जुड़े हैं। सरकार के मौजूदा कदम जरूरी जरूर हैं लेकिन इनके नतीजे धीरे-धीरे सामने आएंगे। जब तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट मजबूत नहीं होता, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा नहीं मिलता और नियमों का सख्ती से लंबे समय तक पालन नहीं होता तब तक दिल्ली की हवा में बड़ा सुधार देखना मुश्किल है।











