भारत के बेटे ने रच दिया इतिहास, नासा में गाड़ रहा झण्डा

भारत के बेटे ने रच दिया इतिहास, नासा में गाड़ रहा झण्डा
locationभारत
userचेतना मंच
calendar06 Aug 2025 07:17 PM
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भारत के एक बेटे ने इतिहास रच दिया है।भारत का यह बेटा नासा में भारत का झंडा फहराने का काम कर रहा है।आपको बता दें कि नासा को हिन्दी में राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन कहा जाता है। नासा का अंग्रेज़ी नाम National Aeronautics and Space Administration है। इसी नासा में भारत के अनेक वैज्ञानिक काम कर रहे हैं । नासा में काम करने वाले इन्हीं भारतीय वैज्ञानिकों में में अंश नाम के एक एक बेटे का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है । नासा में भारत का झंडा बुलंद करने वाले अंश की कहानी पढ़कर आप भी ज़रूर कहेंगे कि भारत के बेटे ने कर दिया है कमाल ।

माँ तथा बेटे के अदभुत संघर्ष की कहानी भारत से नासा तक

नासा अमरीका का प्रसिद्ध अंतरिक्ष संगठन है। भारत से नासा तक यह कहानी एक माँ तथा बेटे के संघर्ष की अदभुत कहानी है ।कोविड में पति को खोया, बेटे के सहारे फिर संभलीं पूजा, आज बेटा नासा में दर्ज करवा चुका है भारत का नाम । साल 2021 में जब पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में थी, उस वक्त दिल्ली की रहने वाली पूजा सक्सेना की जिंदगी भी एक झटके में बिखर गई। उनके पति विवेक कुमार, जो अदाणी सीमेंट में 23 सालों तक हेड ऑफ एनवायरनमेंट एंड हॉर्टिकल्चर के पद पर कार्यरत थे, महामारी की लहर में चल बसे। परिवार का मुखिया चला गया, और पूजा अकेली रह गईं एक किशोर बेटे वंश की पूरी जिम्मेदारी के साथ। यह वह समय था जब न तो मन साथ दे रहा था और न ही भविष्य की कोई स्पष्ट दिशा दिख रही थी। लेकिन मां का कर्तव्य, बेटे की आंखों में झलकता भरोसा और अपने पति की यादों में छुपी प्रेरणा ने पूजा को टूटने नहीं दिया। उन्होंने खुद को समेटा और एक बार फिर जिंदगी की लड़ाई शुरू की।

अदाणी समूह ने बढ़ाया मदद का हाथ

पूजा के पास पर्यावरण विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से वह पारिवारिक जिम्मेदारियों में व्यस्त थीं। ऐसे समय में अदाणी समूह ने न केवल उनके पति की सेवाओं का सम्मान किया, बल्कि पूजा की योग्यता पर भरोसा करते हुए उन्हें संगठन में एक नई भूमिका दी। यह भूमिका उनके लिए एक नई शुरुआत थी — एक ऐसा मंच, जिसने उन्हें आत्मनिर्भर बनने का हौसला दिया। उनके लिए यह सिर्फ नौकरी नहीं थी, यह सहारा था।

वंश: जो कंप्यूटर स्क्रीन पर रच रहा था इतिहास

इस दौरान पूजा का बेटा वंश, जो उस वक्त केवल 14-15 साल का था, अपने कमरे में चुपचाप कुछ और ही कहानी लिख रहा था। उसे बचपन से ही कंप्यूटर से गहरी लगाव थी। जहां दूसरे बच्चे मोबाइल गेम या क्रिकेट में मस्त थे, वंश कंप्यूटर के सिस्टम और कोड्स में डूबा रहता था। धीरे-धीरे उसकी रुचि एथिकल हैकिंग की ओर बढ़ी — यानी ऐसी हैकिंग जिसमें सिस्टम को नुकसान पहुंचाने की बजाय उसकी कमजोरियों को खोजकर सुरक्षा मजबूत की जाती है। वंश कहता है, “मैं मानता हूं कि तकनीक का इस्तेमाल जिम्मेदारी से होना चाहिए। इसे सुरक्षा देने का माध्यम बनाना चाहिए, न कि डर का।”

NASA से मिला सबसे बड़ा सम्मान

वंश ने महज 17 साल की उम्र में अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की एक वेबसाइट में बड़ी तकनीकी खामी खोज निकाली। यह ऐसी उपलब्धि थी जिसे नासा ने खुद मान्यता दी और वंश का नाम अपने हॉल ऑफ फ़ेम में दर्ज किया। वंश उस पल को याद करते हुए कहता है, “मैं कई दिनों से टेस्ट कर रहा था। एक दिन अचानक स्क्रीन पर वह बग नजर आया। कुछ देर तक मैं बस देखता रहा, यकीन नहीं हो रहा था कि मैं ये कर पाया।” पूजा के लिए यह पल सिर्फ गर्व का नहीं था, बल्कि उन तमाम संघर्षों की जीत थी जो उन्होंने अकेले लड़ी थीं। पूजा कहती हैं, “ये सिर्फ नासा का सम्मान नहीं था, ये उस मेहनत और ईमानदारी की जीत थी जो वंश ने बिना शोर किए दिखाई थी। मेरे लिए वह पल जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि था।” दुबई में बसे हुए भारतवंशी ने कर दिया है बड़ा कमाल
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RBI ने दिया बड़ा झटका, कम नहीं होगा EMI का बोझ

RBI ने दिया बड़ा झटका, कम नहीं होगा EMI का बोझ
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 07:53 PM
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भारतीय रिजर्व बैंक RBI के नाम से प्रसिद्ध है। RBI भारत का सबसे बड़ा बैंक है। RBI  ही भारत की पूरी अर्थव्यवस्था का संचालन करता है। RBI की मौद्रिक नीति समिति यानि MPC ने 6 अगस्त को बड़ा फैसला सुनाया है। RBI की PMC ने अपने फैसले में कहा है कि भारत में रैपोरेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है। RBI की MPC में इस फैसले से सस्ती EMI का सपना देखने वालों को बड़ा झटका लगा है।  RBI Repo Rate

क्या फैसला सुनाया है रेपो रेट पर RBI की MPC ने ?

RBI की MPC की  बैठक लगातार तीन दिन तक चली। तीन दिन बाद 6 अगस्त बुधवार को RBI के गर्वनर संजय मल्होत्रा ने RBI की MPC के फैसले की घोषणा की है।उन्होंने बताया कि RBI की MPC ने फैसला किया है कि फिलहाल रेपो रेट नहीं बदले जाएंगे। RBI के गर्वनर संजय मल्होत्रा ने रैपोरेट को फिलहाल 5.5 प्रतिशत पर ही रखने का बड़ा ऐलान कर दिया है। RBI के गर्वनर ने साफ कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था अनुमान के अनुसार आगे बढ़ रही है।

RBI की MPC से पहले थी रेपोरेट घटने की उम्मीद

RBI की MPC की बैठक से पहले रेपो रेट पर विशेषज्ञों की राय सामने आई थी। इस राय में 40% विशेषज्ञों का मानना था कि 0.25% (25 बेसिस पॉइंट) की कटौती हो सकती है, जबकि 60% इसे स्थिर रहने की उम्मीद करते हैं। पिछले 6 महीनों में तीन कटौतियां (फरवरी, अप्रैल, जून) हो चुकी हैं, जिससे रेपो रेट 5.50% पर पहुंच गया है। अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 25% टैरिफ लगाने का फैसला (7 अगस्त से प्रभावी) आरबीआई को सतर्क बना रहा है इससे GDP पर 0.2–0.3% का नकारात्मक असर हो सकता है। RBI ने वित्त वर्ष 2026 (FY26) के लिए महंगाई का अनुमान 3.1% रखा है, जो जून के पूर्वानुमान (3.7%) से कम है। इसकी वजह मॉनसून और फसल उत्पादन में सुधार है। सामान्य से अधिक बारिश और घटती महंगाई आर्थिक गतिविधियों को मजबूती दे रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, औद्योगिक उत्पादन की विकास दर मंद और असमान बनी हुई है। कुछ उप-क्षेत्रों में ही सुधार दिख रहा है। RBI ने चालू वित्त वर्ष (2024-25) के लिए जीडीपी विकास दर 6.5% ही रखने का फैसला किया है। जोखिम "संतुलित" बताए गए हैं।

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वास्तव में क्या होता है रेपो रेट

आपको बता दें कि रेपो रेट वह दर है, जिस पर रिजर्व बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को ऋण दिया जाता है।अगर रिजर्व बैंक द्वारा सस्ती दरों पर कॉमर्शियल बैंकों को धन मुहैया कराया जाता है तो उसका सीधे असर आम आदमी पर भी पड़ता है, क्योंकि आरबीआई द्वारा दरों में कमी किए जाने के बाद बैंक भी अपनी ब्याज दरों में गिरावट करते हैं। GHV इंफ्रा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड के शेयर लगातार फोकस में हैं। कंपनी के शेयर आने वाले दिनों में चर्चा में रह सकते हैं। दरअसल, कंपनी ने अपने निवेशकों को शानदार तोहफा दिया है। हाल ही में GHV इंफ्रा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड के बोर्ड मेंबर ने 24 जुलाई 2025 को हुई बैठक में कंपनी के मौजूदा शेयरधारकों को 3:2 के रेशियो में बोनस शेयर जारी करने को मंजूरी दे दी है। यानी प्रत्येक 2 शेयरों पर तीन पूर्ण चुकता इक्विटी शेयर। इसके अलावा, बोर्ड मेंबर ने 2:1 के रेशियो में उप-विभाजन/विभाजन को भी मंजूरी दे दी है। इस शेयर विभाजन का उद्देश्य बाजार में कंपनी के शेयरों की लिक्विडिटी को बढ़ाना है। बता दें कि बीते शुक्रवार को कंपनी के शेयर 2% तक चढ़कर 1,549.20 रुपये पर आ गए थे।  RBI Repo Rate
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गांव की पगडंडी से चलकर देश के फलक पर छा गए थे सत्यपाल मलिक

गांव की पगडंडी से चलकर देश के फलक पर छा गए थे सत्यपाल मलिक
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 04:55 AM
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चेहरे पर एक चमक और आत्मविश्वास से लवरेज रहने वाले बेबाक सत्यपाल मलिक के निधन से राजनीति के एक युग का अंत हो गया। गांव की पगडंडियों से चलकर पहले छात्र राजनीति में कदम रखा, फिर देश की राजनीति की धुरी बन गए। भले ही वह पांच राज्यों के राज्यपाल रहे, लेकिन किसान के मुद्दे हो या फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का मामला। उनकी बेबाकी ने मोदी जैसे दिग्गज प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को भी कई बार खासा असहज कर दिया। राजनीति के पंडितों की मानें तो सत्यपाल मलिक की स्थान सियासत में भरना आसान नहीं हैं। Satyapal Malik

साल 2017 में पहली बार बने बिहार के राज्यपाल

भाजपा जब सियासत के समुंदर में हिचकोले खा रही थी उस समय बड़े नेताओं की सत्यपाल मलिक पर पड़ी। उनके राजनीतिक कौशल के चलते वर्ष 2004 में भाजपा में शामिल करा दिया। उसके बाद 2012 में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया। भाजपा जब 2014 के लोकसभा चुनाव में उतरी तो वेस्ट यूपी समेत हरियाणा व राजस्थान के जाट बाहुल्य इलाकों में भाजपा को भारी सफलता मिली। इससे हाईकमान को उनकी रणनीति का लोहा मानने को मजबूर होना पड़ा। उन्हें 2017 में पहली बार बिहार का राज्यपाल बनाया गया। उनके राज्यपाल बनते ही बिहार के सियासी समीकरण बदले और भाजपा नेताओं में जोश का संचार हुआ। इसके बाद वह ओडिशा के राज्यपाल बनाए गए।

बगैर एक कतरा खून बहाए किया सबकुछ ठीक

सत्यपाल मलिक ने बिहार और ओडिशा के राज्यपाल रहते बेहतर कार्य किया तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नजर मिशन जम्मू-कश्मीर को पूरा करने के लिए सत्यपाल मलिक पर लग गई। भाजपा हाईकमान ने माना कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने में मलिक ही खासे कारगर हो सकते हैं। उन्हें 2018 में जम्मूृ-कश्मीर का राज्यपाल बना दिया गया। इसमें दो राय नहीं कि सत्यपाल मलिक ने अहम रोल अदा किया और अनुच्छेद 370 हटा। हैरत की बात तो यह है कि सभी आशंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए बगैर एक कतरा खून बहाए सब कुछ सही कर दिया। लेकिन उसी समय हाइड्रो प्रोजेक्ट को लेकर करीब 300 करोड़ रुपए की कथित रिश्वत को लेकर उन्होंने जो बयान दिया, उसके बाद केन्द्र सरकार और उनकी बीच दरार पैदा हो गई। मामला सुलह समझौते का चल रही रहा था कि उसी समय पुलवामा हमला हो गया। इसे लेकर भी उन्होंने जांच की मांग कर डाली। कथित रिश्वत कांड के बाद पुलवामा कांड पर सत्यपाल मलिक के रुख से केन्द्र सरकार के दिग्गजों के माथे पर बल पड़ गए।

भाजपा के दिग्गज नहीं पचा पा रहे थे आंदोलन का समर्थन

इसके बाद सियासी गलियारों में चर्चा हुई कि अब शायद सत्यपाल मलिक को निपटा दिया जाएगा। लेकिन चौंकाने वाली बात तो यह रही कि उन्हें 2019 में गोवा और फिर 2020 में मेघालय का राज्यपाल बना दिया। इसी दौरान किसान आंदोलन चरम पर था। उनकी जन्मभूमि बागपत और वेस्ट यूपी के तमाम किसान धरने पर बैठे थे। कानून की डिग्री लेने वाले सत्यपाल मलिक  किसानों के साथ हो रहे अन्याय को हजम नहीं पाए। परिणाम यह रहा कि उन्होंने खुले मंच से किसान आंदोलन की वकालत कर दी। सरकार एक बार फिर बैचेन हो उठी। इस तरह उनके द्वारा पहले पुलवामा, फिर होइड्रो प्रोजेक्ट के कथित भ्रष्टाचार और किसान आंदोलन का समर्थन को भाजपा के दिग्गज पचा नहीं पा रहे थे। परिणाम यह रहा कि उन्हें बगावती मान लिया गया। भाजपा ने जहां उनसे किनारा कर लिया, वहीं हाइड्रो प्रोजेक्ट के कथित भ्रष्टाचार में उनके खिलाफ सीबीआई जांच कर चार्जशीट तक कोर्ट में दाखिल कर दी।

कहां से ताल्लुक रखते थे सत्यपाल मलिक

राजनीति के इस पुरोधा का जन्म बागपत जिले के गांव हिसवाड़ा में 24 जुलाई 1946 को हुआा था। उनके पिता बुद्धदेव किसान थे। उन्होंने गांव के प्राइमरी स्कूल से प्राथमिक श्क्षिा ग्रहण की। गांव की पगडंडियों चलते हुए यूपी बोर्ड से इंटर करने के बाद मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। बस यहीं से सत्यपाल मलिक ने राजनीति का ककहरा सीखा। उन्होंने पहली बार 1966 चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष पद के लिए ताल ठोकी। जु­झारू और बेबाकी के चलते छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसी समय किसानों मसीहा चौैधरी चरण सिंह की उन पर नजर पड़ी तो उन्होंने पहली बार 1974 में बागपत से विधान सभा के चुनाव में उतारा और चुनाव जीते। 1980 में राज्यसभा का सदस्य बने। 1984 में जनता जल छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए। उसी समय बोफोर्स विवाद उठा तो कांग्रेस से बगावत करके जनता दल में वापस आ गए। इसी दौरान वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में उन्हें अलीगढ़ से जनता दल के चुनाव में उतारा गया। पार्टी के अंदर उनसे रंजिश मानने वालों का मानना था कि अलीगढ़ उनके लिए नया है। इसलिए जीतना आसान नहीं रहेगा। लेकिन सत्यपाल मलिक ने अपने राजनीतिक कौशल से सीट पर जीत दर्ज की। वीपी सिंह सरकार में उन्हें संसदीय व पर्यटन राज्यमंत्री भी बनाया गया।

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सिद्धांतों से कभी नहीं किया समझौता

अलीगढ़ सांसद रहने के दौरान उनके खासे नजदीक रहे राजनीतिक विश्लेषक योगेश शर्मा का कहना हैं कि सत्यपाल मलिक बेबाक नेता रहे। वह पहले नेता थे, जिन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी सम­झौता नहीं किया। उनकी बेबाकी के साथ ही गांव, गरीब और किसानों के हितों की चिंता को ही कुछ नेताओं ने बगावत मान लिया। निश्चित तौर पर उनके निधन के बाद राजनीति के एक युग का अंत हो गया। Satyapal Malik