Greater Noida News: उत्तर प्रदेश के नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा शहरों को उत्तर प्रदेश की ओद्योगिक राजधानी कहा जाता है। यह बात काफी हद तक सही भी है। क्योंकि पूरे उत्तर प्रदेश में जितने उद्योग धंधे हैं उतने ही उद्योग धंधे नोएडा तथा ग्रेेटर नोएडा शहर में हैं। इन सब विशेषताओं के बीच नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा में स्थापित की गई कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाएं बर्बाद भी हुई हैं। इन्हीं परियोजनाओं में एक बड़ी परियोजना ग्रेटर नोएडा शहर में खिलौना सिटी (टॉय सिटी) बसाने की थी। ग्रेटर नोएडा में बसने वली टॉय सिटी का सपना बस सपना ही बनकर रह गया है।
ग्रेटर नोएडा के शिल्पकार ने बनाई थी योजना
आपको बता दें कि अब रिटायर्ड हो चुके उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध IAS अधिकारी बृजेश कुमार को ग्रेटर नोएडा का जनक तथा ग्रेटर नोएडा का शिल्पकार भी कहा जाता है। बृजेश कुमार ने ही ग्रेटर नोएडा शहर में खिलौनों का शहर (टॉय सिटी) बसाने का सपना देखा था। इस सपने पर काम भी हुआ किन्तु दुर्भाग्य से टॉय सिटी की परियोजना ने दम तोड़ दिया है। ग्रेटर नोएडा शहर में जहां टॉय सिटी बसाई गई थीं वहां आज सन्नाटा पसरा हुआ है। टॉय सिटी की यह योजना ग्रेटर नोएडा शहर के सेक्टर ईकोटेक-3 में वर्ष-1996 में शुरू की गई थी। दुर्भाग्य से ग्रेटर नोएडा की इस टॉय सिटी में आज जमीन तथा कुछ फैक्ट्रियां तो हैं किन्तु यहां खिलौने नहीं बनते।
टॉय सिटी की दुर्दशा का विश्लेषण
ग्रेटर नोएडा शहर के टॉय सिटी के सपने के मरने से एक बड़ी परियोजना नष्ट हो गयी है। टॉय सिटी के स्थापित होने तथा खिलौनों के शहर के नष्ट होने पर व्योमकेश के नाम से अपना चर्चित कॉलम “याद हो कि न या हो” लिखने वाले पत्रकार व लेखक ने बड़ा ह सारगर्भित विश्लेषण किया है। ग्रेटर नोएडा शहर की टॉय सिटी को याद करते हुए व्योमकेश ने लिखा है कि सात समुंदर पार से गुडिय़ों के बाजार से एक अच्छी-सी गुडिय़ा लाना, पापा जल्दी आ जाना…… सोचा तो यही गया था। इस शहर के बच्चों को कभी गुडिय़ाओं की कमी नहीं होगी। मगर ऐसा हो न सका। खिलौनों का शहर बसाने के सपने कब खील-खील होकर बिखर गए, अब किसी को याद भी नहीं है।
1996 के आसपास दिल्ली- एनसीआर के खिलौना उत्पादन के क्षेत्र से जुड़े 100-125 उद्यमियों ने प्रस्ताव रखा कि उन्हें अपने उद्योग के लिए टॉय सिटी के नाम से एक अलग इलाका आवंटित किया जाए। प्राधिकरण ने बात मान भी ली। ग्रेटर नोएडा में करीब 150 भूखंडों की स्कीम खिलौना उत्पादकों के लिए निकाली गई। कुछ खिलौना उत्पादकों ने यहां अपने उद्यम स्थापित भी किए, लेकिन अपेक्षित बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलने के कारण वह धीरे-धीरे यहां से पलायन करने लगे। जिस इलाके को रंग-बिरंगे खिलौनों की आभा से खिलखिला कर खिलना था वहां अब भुतहा सन्नाटा है। स्थिति यह है कि टॉय सिटी में गिनती के व्यापारी ही बचे हैं। वह भी कब तक टिके रहेंगे कहा नहीं जा सकता। बाकी चाइनीज खिलौनों का बाजार तो गुलजार है ही देश भर में।
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