Chaitra Purnima Vrat : चैत्र पूर्णिमा एक अत्यंत ही शुभ और विशेष समय जब हर प्रकार से किया जाने वाला पूजन भक्तों को सुख समृद्धि का वरदान प्रदन करता है. ऎसे में चैत्र पूर्णिमा के दिन यदि लक्ष्मी जी के एक वैदिक स्त्रोत का पाठ आप कर लेते हैं तो आप हर प्रकार के कर्ज या आर्थिक संकट से पल भर में मुक्त हो सकते हैं. इस बार की चैत्र पूर्णिमा पर बनने वाला चित्रा नक्षत्र का योग इसकी शुभता को बढ़ाने वाला भी होगा.
चैत्र पूर्णिमा पूजा मुहूर्त समय
इस वर्ष चैत्र पूर्णिमा मंगलवार के दिन 23 अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी. इसी दिन पूजा एवं व्रत का पन होगा. चैत्र पूर्णिमा तिथि का आगमन 23 अप्रैल 2024 को 03:25 ए एम से होगा और इसकी समाप्ति 24 अप्रैल, 2024 को 05:18 ए एम पर होगी. ऎसे में तिथि वृद्धि का संयोग भी इस समय पर दिखाई देगा. चैत्र पूर्णिमा का पूजन 23 अप्रैल की रात्रि में चंद्रमा के पूजन के साथ संपन्न होगा.
चैत्र पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजन से दूर होते हैं आर्थिक संकट
Chaitra Purnima Vrat
प्रत्येक माह में आने वाली पूर्णिमा अपने आप में कुछ विशेष योगों वाली होती है. इसी अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा पर हनुमान जन्मोतस्व का समय भी होता है जिसके चलते यह अत्यंत शुभ समय माना जाता है. इस दिन वैदिक मंत्रों जा जाप करना उत्तम फल देने वाला माना गया है. इसी अनुसार वैदिक ग्रंथोम में वर्णित श्री सूक्त का पाठ इस दिन करने से माँ लक्ष्मी भक्तों को धन धान्य का वरदान देती हैं. तात्रि समय निशिथकालीन समय पर यदि इस का पाठ किया जाए तो कर्ज की समस्या से निजात मिलती है ओर पूर्ण होते हैं सभी मनोरथ. आइये जान लेते हैं वेदों में वर्णित स्री सूक्त की महिमा और उसका प्रभाव : –
Chaitra Purnima Vrat श्री सूक्त पाठ
ओम हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्,
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।
तां म आवह जात वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्,
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्,
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं,
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्,
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।
आदित्य वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः,
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
उपैतु मां दैव सखः, कीर्तिश्च मणिना सह,
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे।।
क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्,
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्,
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि,
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम,
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम।।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे,
निच देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले।।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्,
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्,
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्,
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्,
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।
ज्योतिषाचार्य राजरानी