Friday, 17 May 2024

Ram Navami :  राम को भगवान मत मानो, मर्यादा पुरूषोत्तम ही रहने दो

Ram Navami :  भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर की गूंज अभी सब जगह सुनाई पड़ रही…

Ram Navami :  राम को भगवान मत मानो, मर्यादा पुरूषोत्तम ही रहने दो

Ram Navami :  भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर की गूंज अभी सब जगह सुनाई पड़ रही है। इसी दौरान भगवान राम का जन्मदिवस (अवतरण तिथि) भी आ रहा है। बुधवार 17 अप्रैल 2024 को रामनवमी (Ramnavami ) का त्यौहार मनाया जाएगा। रामनवमी के आसपास एक बार फिर पूरी दुनिया में राम की चर्चा तथा राम गुणगान होगा। आपको पता ही है कि रामनवमी का पर्व राम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। राम का जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इसी कारण हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को रामनवमी मनाई जाती है। रामनवमी को याद करते हुए आज हम राम के विषय में विस्तार से चर्चा कर रहे हैं।

Ram Navami

राम को भगवान मत मानो

राम को भगवान मत मानो यह वॉक्य पढ़ते ही आप चौंक गए होंगे। चौंकने की आवश्यकता नहीं है। यहां हमारे सहयोगी अरूण कुमार पाण्डे ने रामनवमी से पूर्व राम के ऊपर एक व्यापक विश्लेषण लिखा है। रामनवमी के बहाने ही सही अरूण कुमार पाण्डे के इस लेख को पढक़र आप राम के अदभुत स्वरूप को ठीक से समझ पाएंगे।

मर्यादा पुरूषोत्तम ही मानो

लेखक अरूण कुमार पाण्डे लिखते हैं कि श्री राम को भगवान मत मानो । समाज की भलाई इसी में है ।उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम ही मानो । जैसे ही हम उन्हें परमात्मा की श्रेणी में रख देते है हमारा कपटी और चालक मन बहाने ढूँढ लेता है राम के चरित्र और मर्यादा को जीवन में उतारने के लक्ष्य को तिरोहित कर देता है ! अरे वह तो भगवान थे ! अरे नहीं वह पुरुष थे उत्तम पुरुष , मर्यादा पुरुष ! मानक व्यक्तित्व।  उनके चरित्र तक पहुँचनें  की कोशिश करो वह भगवान नहीं दशरथ जी और माता कौशल्या के सुपुत्र है ! उनका पुत्र का किरदार , भ्रातृत्व प्रेम, न्याय के प्रति प्राणो से बढ़ कर प्रेम ! माता सीता के भाव का सम्मान ,रोका नहीं वनवास से , एक निष्ठ पत्नी प्रिय , साहसी सेनापति और धनुर्धारी , प्रजा वत्सल राजा !  कल्पना करो कि आप चक्रवर्ती सम्राट बनने जा रहे हो और आप नव विवाहित हो , आप पिता के वचन का ज्ञान होने पर बिना कहे उसे आज्ञा मानकर वन गमन करने और स्त्री को घर पर छोड़ने तथा वल्कल धारी बन कर जाने में चेहरे का कोई भाव नहीं बदला ! माता कैकई को सबने कुछ न कुछ कहा लेकिन राम ने मर्यादा नहीं तोड़ी ! क्या इसका एक अंश भी हमारे आप में है । वापस आ कर उन्होंने राज्य को वेद सम्मत समानता, सम्पन्नता, मनुष्य सहित वृक्ष, गाय, जीव जंतु सब पर वात्सल्य लुटाया ! राजधर्म के आगे लक्ष्मण को भी त्यागना पड़ा तो त्यागे लेकिन धर्म यानी मानक से विचलित नहीं हुए ।किसी से बदला नहीं लिया मंथरा को आत्म ग्लानि से बाहर निकाला ! श्री लंका जीत कर लंका निवासियों को दिया अपने समर्थक अंगद या सुग्रीव को नहीं , वंश रावण का चला , किसी अन्य का नहीं !

भरत जैसे भाई बनाना आसान नहीं , लक्ष्मण के उग्र स्वभाव को अपने प्रेम से नियंत्रित करने वाले श्री राम को आत्म सात करने की ज़रूरत है। जिनके राज्य में हर्ष था , happiness index टॉप पर था (हर्षित भये गये सब शोका ) राम प्रताप विषमता खोयी ( अमीर गरीब जैसी विषमता समाप्त हो गयी) फ़लही फूलही सदा तरु कानन ( फल फूल वृक्षों में सदा प्राकृतिक रूप से लगे रहते थे अर्थात् पर्यावरण शुद्ध था , ऐसा नहीं कि एक साल बौर आये दूसरे साल नहीं आये ! जल शुद्ध , वायु शुद्ध , नदी और पोखर शुद्ध ।विचारों में विरोधी में साथ साथ मिल कर समाज निर्माण में लगे थे , धेनु का थन भरा रहता था , यानी मनुष्य के साथ पशु भी हृष्ट पुष्ट थे । ऐसा समावेशी समाज जिसमें

नहि दरिद्र कोउ दुखी ना दींहा, न कोउ अबुध न लक्षण हीना,

कोई दरिद्रता का शिकार नहीं तो जान बूझ कर पाप क्यों करेगा, कोई अमीर इतना नहीं कि कोई दुखी हो, न कोई बिना पढ़ा लिखा है यानी free education to All , इससे बिना ज्ञान का कोई मनुष्य यानी गुण हीन व्यक्ति ( स्त्री, पुरुष, वर्ण ) नहीं था, हर नागरिक में गुण था और उन गुणों के माध्यम से राष्ट्र का विकास हो रहा था !

सब नर करहीं परस्पर प्रीति , चलही स्व धर्म सुरती श्रुति नीति । सभी मनुष्य परस्पर प्रेम भाव रखते है द्वेष भाव नहीं रखते , और अपने अपने स्वाभाविक कर्तव्य (धर्म) का पालन नीतिपूर्वक करते है , यानी शुचिता और ईमानदारी से जीवन नीतिवानवृत्तियों का अनुगमन करते हुए जीते हैं !

“दैहिक ,दैविक भौतिक तापा , राम राज्य नर काहु न व्यापा” अर्थात् जहाँ दैहिक बायोलॉजिकल , दैविक प्राकृतिक आपदा का कष्ट और भौतिक जगत के आवश्यकता की वस्तु के लिए कोई कष्ट नहीं उठाना था , इलाज , बाढ़ और सूखे से सुरक्षा और आध्यात्मिक सुख न मिलने का कष्ट राज्य के किसी मानव में नहीं था ।ऐसा नहीं था कि सत्ता प्रतिष्ठान के लोग और आम जन में कोई भेद था , राम राज्य नर (मनुष्य) काहु न व्यापा , सर्व सुलभ चाहे वह जो कोई हो !

इसके श्रेय सेठ जी यानी कुबेर जी को नहीं था , राम के राज्य को था , अर्थात् निजीकरण नहीं था , सब राज्य के प्रति और राज्य सबके प्रति जवाबदेह था !

राम को अंगीकृत कीजिए , यह तनाव , व्यर्थ संघर्ष , बनावटी व्यवहार , विषमता सब ख़त्म हो जाएगी ! भेदभाव नहीं होगा कोई ओपीएस एनपीएस में राजकीय कर्मचारी का वर्गीकरण नहीं होगा , सामाजिक सुरक्षा से हैप्पीनेस इंडेक्स आता है !सब राजकीय पाठशाला में पढ़ेंगे अपने स्वाभाविक रुचि के अनुसार और पारंगत होंगे ! तब राम राज्य आएगा !

राम को राजा मानो , पुत्र और पति मानो ,शिष्य और भ्राता मानो ,देखो कैसे पृथ्वी स्वर्ग बनती है ! अयोध्या के राम को हनुमान जी की तरह हृदय में बसाना पड़ेगा उनके समान बनने की यात्रा करनी होगी ! राम तभी साकार होंगे ! एक अयोध्या मन में भी बनानी होगी। Ram Navami

 

(प्रस्तुति : अरूण कुमार पाण्डे)

 

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