Sawan Special – जल्द ही त्योहारों, उत्सवों और व्रतों की जैसे झड़ी लगने वाली है। सावन (sawan) के महीने में शिवरात्रि, हरियाली तीज और रक्षा बंधन जैसे पर्व मनाये जाते हैं। फिर देखते ही देखते जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवरात्री, दुर्गा पूजा और दशहरा जैसे शुभ दिन आ जाते हैं। और मानो पालक झपकते ही करवा चौथ, धनतेरस, दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज मानाने का समय हो जाता है।
इन अनेकों मंगल दिनों से परिपूर्ण अवधि को चातुर्मास या चौमासा के नाम से जाना जाता है। परंतु आपको जानकर आश्चर्य होगा, कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस शुभ प्रतीत होने वाले समय में किसी भी प्रकार के नए एवं मंगल कार्य को प्रारंभ करना अस्वीकृत है।
ऐसा माना जाता है कि चातुर्मास या चौमासा देवों के सोने का समय होता है। यह देवशयनी एकादशी (10 जुलाई 2022) से देवप्रबोधिनी एकादशी (4 नवंबर 2022) तक चलता है। इस दौरान भगवान विष्णु को भी संसार का पालन करने के दायित्व से विश्राम लेने का अवसर प्राप्त होता है।
अपने शयन काल में विष्णुजी, विश्व के संचालन का कार्यभार शिवजी को सौंपकर, सो जाते हैं। यही कारण है कि शयनावस्था में विष्णुजी का दाहिने यानी प्रधान हस्त बाहर की ओर रहता है। उसी हाथ के नीचे शिवलिंग की स्थापना की जाती है जिसके बिना विष्णु शयन प्रतिमा अधूरी मानी जाती है।
अब प्रश्न ये उठता है, कि जिनकी नियति संहार है, वो भगवान शिव संपूर्ण सृष्टि का शांतिपूर्ण संचालन किस प्रकार करेंगे?
शिव के सच्चे भक्त तो भगवान शंकर के स्वरूप मात्र से आश्वस्त हो जाते हैं। एक ओर भस्म है जो हमें यह भूलने नहीं देती कि इस संसार में सभी कुछ नश्वर है, स्वयं यह संसार भी। वहीं रुद्राक्ष के बीज हैं जो ना कभी मुरझाते हैं, ना मरते हैं, अपितु जीवनदाई हैं। शिव के तन पर सुशोभित यह चिन्ह स्वयं उनके सामर्थ्य का प्रदर्शन करते हैं।
शिव जहां ब्रह्मा के अहंकार रूपी पांचवे सिर को धड़ से अलग करते हैं, वहीं ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता की प्रतियोगिता का अंत भी करते हैं। जो सती के आत्मदाह पर वीरभद्र बन प्रलय लाने की मंशा रखते हैं, वही शिव समुद्रमंथन पर नीलकंठ बन संपूर्ण जगत के विध्वंस योग्य विष को धारण करने की क्षमता भी रखते हैं। शिव जहां त्रिपुरासुर का संहार करते हैं, वहीं माता काली को असंख्य राक्षसों का वध करने से रोकते भी हैं। जो हनुमान बन ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वही शिव अर्धनारीश्वर बन सृष्टि का विस्तार भी करते हैं।
ज़रा सोचिए कि शिव एक महान तपस्वी हैं, जो आदियोगी के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस सृष्टि के सृजन अथवा उद्धार हेतु, वैराग्य को त्याग, सांसारिक जीवनशैली अपनाने में सक्षम है तो उसी संसार के प्रति उनकी निष्ठा कितनी पवित्र होगी।
तो शिव के इस बहुमुखी व्यक्तित्व से हम क्या सीखें?
यद्यपि शिव की संहारक भूमिका की झलक उनके 19 अवतारों में स्पष्ट है, परंतु शिव ही प्रमाण हैं कि विनाश में ही व्युत्पति और नवधारणाओं का स्रोत है।
मनुष्य का तो समय भी सीमित है, ऊर्जा भी ससीम है और बल भी नियंत्रित है। ऐसे में व्यर्थ प्रयोजनों में समय, ऊर्जा और बल गंवाना निरर्थक है। अपने हृदय से दोष भाव, मस्तिष्क से कुविचार और आचरण से दुर्व्यवहार को नष्ट करना अति आवश्यक है। इसके पश्चात ही नई ज्योति, नए विवेक और नई संभावनाओं की उत्पत्ति का मार्ग प्रकाशित हो पाएगा।
कोई भी प्राणी अपनी इच्छाशक्ति और क्षमता से एक नई शुरुवात कर सकता है। बस वो शिव से यह सीख ले, की जैसे हर रात का सवेरा है, वैसे ही हर अंत किसी अन्य आदि का प्रतीक होता है। केवल देर है तो नकारात्मकता और निराशावाद के विनाश की।