Wednesday, 26 June 2024

Vat Savitri Vrat : इस साल 6 जून को है वट सावित्री का व्रत

Vat Savitri Vrat : अपने पति की लम्बी उम्र के लिए भारतीय महिलाएं वट सावित्री का व्रत करती हैं। वर्ष-2024…

Vat Savitri Vrat : इस साल 6 जून को है वट सावित्री का व्रत

Vat Savitri Vrat : अपने पति की लम्बी उम्र के लिए भारतीय महिलाएं वट सावित्री का व्रत करती हैं। वर्ष-2024 में वट सावित्री का व्रत 6 जून को रखा जाएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि वर्ष-2024 में वट सावित्री का व्रत गुरूवार को मनाया जाएगा।

सुहाग की सलामती की कामना के लिए सुहागिन 6 जून को वट सावित्री का व्रत करेंगी। अमावस्या के दिन पहले आ जाने के कारण 6 जून यानी गुरुवार की सुबह ब्रह्म मुहूर्त से पूजन का समय शुरू है। सबसे अधिक फल अभिजीत मुहूर्त में पूजन का है। गुरुवार की ब्रह्मï मुर्हूत में पूजन विशेष फलदायक होगा। वट सावित्री व्रत के लिए बाजारों में खरीदारी तेज हो गई है।

प्रसिद्घ पंडित रामकृपाल शर्मा ने बताया कि शुद्ध अमावस्या में वट सावित्री पूजा होती है। ऋषिकेश, महावीर व हनुमान आदि पंचागों के अनुसार इस बार Vat Savitri Vrat से एक दिन पहले 5 जून की शाम 6:57 बजे अमावस्या का प्रवेश हो रहा है। दूसरे दिन 6 जून गुरुवार की सुबह ब्रह्म मुहूर्त से लेकर शाम 5:38 बजे तक अमावस्या है। बुधवार को महिलाओं ने व्रत को लेकर नहाय-खाय करेंगी। सोलह शृंगार के साथ सुहागिन वट वृक्ष के तने में रंगीन कच्चा सूत लपटते हुए प्रदक्षिणा (फेरी) करेंगी।

सुहागिन सुनेंगी साविश्री की कथा

व्रत की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए आचार्य नवीन चंद्र मिश्र वैदिक ने बताया कि सुहागिन अखंड सौभग्य की कामना को लेकर गहरी आस्था के साथ व्रत करती हैं। पूजन के दौरान महिलाएं सावित्री की कथा सुनती हैं। पूजा में वट वृक्ष के तने में कच्चा सूत लपटते हुए प्रदक्षिणा की जाती है। वट वृक्ष के नहीं रहने पर दीवार पर वट वृक्ष की तस्वीर बनाकर भी पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद सुहाग की सामग्री और एक पंखा दान करना उत्तम होता है।

Vat Savitri Vrat

इस व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है। इस दिन व्रत रखकर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य के लिए करती हैं। जगन्नाथ मंदिर के पंडित सौरभ कुमार मिश्रा ने बताया कि वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन और अग्र भाग में भगवान शिव निवास करते हैं। वट सावित्री व्रत के एक दिन पूर्व महिलाएं नये कपड़े पहन सोलहों श्रृंगार करती हैं। हाथ में मेहंदी रचाती है। उपवास रख महिलाएं पांच तरह के फल-पकवान आदि से डलिया भरती हैं।

दूसरे दिन सुबह वट वृक्ष के पास डलिया खोलकर बांस के पंखे पर पकवान आदि रखकर सावित्री और सत्यवान की कथा कही और सुनी जाती है। वट वृक्ष के पेड़ में कच्चा धागा लपेटकर तीन या पांच बार परिक्रमा की जाती है और वट वृक्ष को जल देती हैं तथा कच्चा धागा गले में पहनती हैं।

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