Nur Jahan : मुगल इतिहास की जब भी बात होती है तो अक्सर बादशाहों के नाम ही सामने आते हैं बाबर, अकबर, औरंगज़ेब… लेकिन इस कड़ी में एक नाम ऐसा भी है जिसने पर्दे के पीछे रहते हुए भी सल्तनत की बागडोर थाम ली। यह नाम था नूरजहां का। नूरजहां एक ऐसी महिला रही जो न तो सिर्फ बादशाह की बेगम बनी बल्कि खुद एक सत्ता का चेहरा बन गई। एक समय ऐसा भी आया था जब नूरजहां के हुक्म के बगैर कोई शाही फरमान जारी नहीं होता था।
एक फारसी लड़की की अद्भुत यात्रा
31 मई 1577 को अफगानिस्तान के कंधार में जन्मी मेहरुन्निसा बाद में नूरजहां नाम से इतिहास में दर्ज हुईं। नूरजहां के माता-पिता फारसी मूल के थे जो सफवी शासन के दमन से तंग आकर ईरान से भारत आ बसे थे। हालांकि नूरजहां का शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा था लेकिन किस्मत उन्हें मुगल सल्तनत के सबसे ऊंचे शिखर तक ले जाने वाली थी।
शेर अफगान से पहला निकाह
अगर बात करें नूरजहां के निकाह की तो नूरजहां की पहली शादी अलीकुली खां उर्फ शेर अफगान से हुई थी जो मुगलों के लिए काम करता था। अलीकुली खां उर्फ शेर अफगान इतने बहादुर था कि एक शेर का शिकार करने पर उन्हें ‘शेर अफगान’ की उपाधि मिली। लेकिन किस्मत ने फिर करवट ली जहांगीर (तब शहजादा सलीम) के विद्रोह के समय शेर अफगान ने अकबर का साथ दिया जिससे जहांगीर से उसकी रंजिश हो गई। बाद में एक षड्यंत्र में शेर अफगान की मौत हो गई और मेहरुन्निसा को दरबार में स्थान दे दिया गया। यहीं एक मोड़ आया जिसने इतिहास की धारा ही बदल दी।
मीना बाजार में पहली झलक
साल 1611 में नववर्ष (नौरोज) के मौके पर आयोजित मीना बाजार में जहांगीर की नजर मेहरुन्निसा पर पड़ी। वह पहली ही नजर में दीवाना हो गया। कुछ समय बाद निकाह हुआ और मेहरुन्निसा को “नूरजहां बेगम” (जहां की रोशनी) की उपाधि दी गई। जहांगीर अपने जीवन में शराब और विलासिता का आदी था। शासन में उसकी रुचि कम होती चली गई। ऐसे में नूरजहां ने धीरे-धीरे सत्ता की कमान अपने हाथ में ले ली। आदेशों पर उनके हस्ताक्षर होने लगे और न्यायालयों से लेकर व्यापारिक दस्तावेजों तक में उनका नाम दर्ज होने लगा। इतिहासकार रूबी लाल लिखती हैं कि नूरजहां न सिर्फ शाही दरबार में बैठकों की अध्यक्षता करती थीं, बल्कि पर्दे के पीछे रहकर शासन चलाने की बजाय उन्होंने सक्रिय नेतृत्व किया।
जब पर्दे की ओट में बोलने वाली महिलाओं का था दौर
1617 में उनके नाम के साथ चांदी के सिक्के जारी किए गए यह उस युग में अद्वितीय था जब औरतों को सार्वजनिक जीवन में जगह नहीं मिलती थी। इतना ही नहीं जब जहांगीर को बंदी बना लिया गया था तब नूरजहां ने मुगल सेना की कमान संभाली और संघर्षरत भूमिका निभाई। नूरजहां एक विधवा थीं और उस समय पर्दे की ओट से बोलने वाली महिलाओं का दौर था। लेकिन उन्होंने उस दायरे को तोड़ा। वह शिकार पर जाती थीं, इमारतों के नक्शे खुद बनवाती थीं, समाज की कमजोर महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ती थीं। उनका रुतबा ऐसा था कि मुगल दरबार से लेकर फौज तक उनके फैसलों को सिर झुकाकर मानती थी।