Bakrid : बकरीद के पर्व की खूब चर्चा हो रही है। भारत में बकरीद का पर्व 7 जून 2025 को मनाया जा रहा है। कई पीढ़ियों से बकरीद (Bakrid) का पर्व मनाते आ रहे आधे से अधिक मुस्लिम यह नहीं जानते कि बकरीद का पर्व क्यों मनाया जाता है? उन्हें यह भी नहीं पता कि बकरीद के पर्व पर बेजुबान पशुओं की कुर्बानी क्यों दी जाती है? बकरीद (Bakrid) के पर्व पर कुर्बानी देने के औचित्य को भी मुसलमान नहीं समझ सकता है। हम आपको बता रहे हैं कि बकरीद मनाने की परम्परा कैसे शुरू हुई।
पैगम्बर इब्राहीम की याद में मनाया जाता है बकरीद का पर्व
इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ है क़ुरआन। क़ुरआन में इस्लाम धर्म के अनेक पैगम्बर (नबी) बताए गए हैं। इन्हीं पैगम्बरों में एक प्रसिद्ध पैगम्बर इब्राहीम (नबी) थे। पैगंबर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) का जन्म 2510 हिजरी से पहले हुआ था। उन्हीं पैगंबर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) से जुड़ा हुआ है बकरीद का पर्व । इस्लाम के जानकारों का कहना है कि पैगंबर इब्राहीम को अल्लाह की तरफ से ख्वाब आया जिसमें उनसे अपने सबसे प्यारे बेटे की कुर्बानी मांगी गई। पैगंबर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के सबसे प्यारे बेटे इस्माईल (अलैहिस्सलाम) थे। यह ख्वाब पैगंबर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को लगातार तीन दिन तक आता रहा। जिसके बाद पैगंबर इब्राहीम ख्वाब को अल्लाह का हुक्म मानकर अपने बेटे इस्माईल की कुर्बानी के लिए निकल पड़े। जैसे ही उन्होंने इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की आंखों पर पट्टी बांधकर उनकी गर्दन पर छुरा चलाया, वैसे ही अल्लाह ने इस्माईल की जगह एक दुम्बा (मेंढ़ा) भेज दिया। ऐसा कहा जाता है कि तब से ही बकरीद का पर्व मनाया जाता है। इस घटना से यह सीख मिलती है कि जब कोई इंसान अल्लाह के हुक्म को पूरी तरह मान लेता है तो अल्लाह उसकी नीयत और ईमान की कद्र करता है। हजरत इब्राहीम द्वारा अल्लाह के निर्देश पर दी जाने वाली कुर्बानी की याद में मुसलमान हर साल बकरीद का पर्व मनाते हैं। बकरीद के पर्व पर बकरी, बकरा, दुम्बा, भैंस तथा ऊंट आदि की कुर्बानी दी जाती है।
दुनियाभर में विरोध है बकरीद के नाम पर कुर्बानी का
पूरी दुनिया में बकरीद के नाम पर पशुओं को काटकर उनकी कुर्बानी का विरोध हो रहा है। दुनिया भर के पशु प्रेमी सवाल उठा रहे हैं कि अल्लाह के निर्देश पर अपने बेटे तक को कुर्बान करने की बात मानने वाले हजरत इब्राहीम के नाम पर कुर्बानी का क्या औचित्य है। अल्लाह ने कब कहा है कि उसे खुश करने के लिए एक जीव दूसरे जीव की हत्या करे? कुर्बानी का विरोध करने वालों का स्पष्ट मत है कि अल्लाह के प्रति समर्पण करके प्रत्येक जीव मात्र की सेवा करना उसकी रक्षा करना तथा सबको अमन चैन से जीने देना ही अल्लाह की सच्ची भक्ति है। बकरीद के दिन पुरानी परम्परा को निभाकर कुर्बानी देने का औचित्य किसी भी पढ़े-लिखे इंसान की समझ में नहीं आता है। मुस्लिम समाज में भी एक बड़ा तबका कुर्बानी की पुरानी परंपरा के विरूद्ध है। तमाम विरोध के बावजूद बकरीद पर कुर्बानी देने का सिलसिला लगातार जारी है। यह भी नहीं पता कि यह सिलसिला कब तक इसी प्रकार से जारी रहेगा।