रानी सुमिता
अभी हाल में पुनः मात्र बीस वर्षीय एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री के सुसाइड की खबर ने मन विचलित कर दिया। कम उम्र में सफलता, शोहरत, पैसा सभी कुछ हासिल कर लेने के बावजूद दबाव की तीक्ष्णता के तहत ऐसे कदम उठा रही है आज की पीढ़ी, यह एक सोचनीय स्थिति है। जिस तरह मानसिक दबाव झेल रही है आज की पीढ़ी , उसका कारण क्या है और दबाव को झेल पाने में खुद को असमर्थ पा रही है, उसका कारण क्या है?
कभी रिश्तों की उलझन को झेल नहीं पाने की स्थिति हो रही है तो कभी अनेक अन्य समस्याएँ। कुल मिलाकर आज युवा पीढ़ी अनेक दबावों से घिरी नजर आती है।
जब परीक्षाओं का वक्त आता है ऐसे कई केस सामने आने लगते हैं। परीक्षाओं के परिणाम कई बच्चों के लिए मुसीबत बन कर आते हैं । प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करते कई छात्र बीच में ही हिम्मत हार बैठते हैं और जीवन से ही पीछा छुड़ा लेते हैं। मतलब एरिया कोई भी हो आज मनोबल बहुत शीघ्र कमजोर होता दिख रहा है। वैसे खुद को साबित भी कर रहे आज के बच्चे और युवा। पर साथ ही साथ यह भी सच है कि आज की पीढ़ी का बहुत जल्दी अवसाद में आ जाना एक गंभीर समस्या बन गया है। वहीं जीवन त्याग को ही आतुर हो उठना तो एक अति गंभीर समस्या है।
आपका जीवन बेशकीमती है इसे किसी हाल में गंवाने की सोच रखना पलायनवादी स्वभाव है। तो क्या यह मानसिकता आज बच्चों पर हावी हो रही है? बहुत आवश्यक है कि हम अपनी भावी पीढ़ी को ऐसी सोच से बचाएँ।
बस कुछ वक्त पीछे जायें तो स्थिति ऐसी नहीं थी जबकि सुविधाएं,अवसर सभी कमतर ही थे पर हाँ , जिजीविषा गजब की थी।असफलताएं इतनी आसानी से किसी व्यक्ति या विद्यार्थी को तोड़ नहीं सकती थी।घर- परिवार की अपेक्षाएं और जिम्मेदारियाँ तब भी ज्यादा ही थीं ।जीवन में जिसने आगे बढ़ना चाहा संघर्ष के तमाम झंझावतों को झेलते हुए किसी न किसी रास्ते आगे निकल ही आया । संघर्ष, गर्व में तब्दील हुआ और गर्व, मस्तक उठा कर जीवन जीने की शक्ति बना।
आज हर सुविधाओं से लैस जीवन है।अनेक विकल्प हैं, अवसर ज्यादा हैं पर एक अजीब बेचैनी का दौर है । तभी कभी नंबर, कभी प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी का दबाव मन को झकझोर दे रहा है तो कभी बेहद कम उम्र में रिश्तों की उठा पटक जीवन से पीछा छुड़ाने की दुखद स्थिति में युवाओं को ढकेल रही है।
हमारी पीढ़ी एक फाइटर पीढ़ी सी दिखती है मुझे।कम से कम तब शायद ही कोई स्कूल- कालेज का विद्यार्थी अवसाद का शिकार होता दिखता था। किसी किस्म की उदासी होती तो उससे उबर कर युवा बाहर भी आ जाता था ।
अब हर साधारण उदासी को भी अवसाद का नाम दे दिया गया है।अब कोई उदास नहीं बल्कि सीधे अवसाद का शिकार कहा जाता है। फिर इसे ऐसी स्थिति मान ली जाती है कि उससे उबरने के लिए युवा हाथ पांव मारने में खुद को अक्षम मान बैठता है और हताशा से घिरा महसूस करता है। उदासी,परेशानी और अवसाद की चिकित्सीय स्थिति के अंतर को समझना भी अति आवश्यक है। उदासी और परेशानी से आप खुद ब खुद लड़ कर बाहर आ सकते हैं। सबसे ज्यादा आवश्यक और महत्वपूर्ण तो एक “जीवन” ही है।एक जीवन से जुड़े अनेक लोग होते हैं । किसी रिश्ते का टूटना जीवन के उपर हावी नहीं हो, ये यत्न पूरे परिवार को करना होगा। जीवन को बचाना सबसे आवश्यक है क्योंकि विकट परिस्थितियां एक दिन अवश्य बदल जाती हैं। जीवन में उतार चढ़ाव ठीक भी हो जाते हैं।
जीवन को आप वक्त देंगे तो जीवन आपको संभावनाएं देंगी।
समाज और परिवार को आज के जेनरेशन का दोस्त, सखा बन कर भी चलना आवश्यक है। उन्हें किसी हाल में कमजोर होने से बचाना है। विश्वास, भरोसा के साथ साथ मानसिक सहारा और मजबूती देना भी आवश्यक है। यंग जेनरेशन का जीवन यूँ जाया हो जाना बहुत दुखद स्थिति है।
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