Friday, 19 July 2024

नि:संकोच : चिंता करो मगर पेड़ भी लगाओ!

विनय संकोची हम चिंता बहुत करते हैं और चिंता के अलावा कुछ और नहीं करते हैं, क्योंकि हम सोचते हैं…

नि:संकोच : चिंता करो मगर पेड़ भी लगाओ!

विनय संकोची

हम चिंता बहुत करते हैं और चिंता के अलावा कुछ और नहीं करते हैं, क्योंकि हम सोचते हैं कि चिंता करना भी बड़ी बात है और अकेले हमारे कुछ करने से कौन सा भारत का भाग्य बदल जाएगा। परिणाम स्वरूप तालाब में दूध की एक बूंद भी नहीं होती है।

तालाब और दूध वाली कहानी याद आई आपको या नहीं, अगर नहीं तो मैं बता देता हूं। एक बार की बात है, वर्षा नहीं हो रही थी। किसी विद्वान ज्योतिषी ने बताया, अगर सारे गांव वाले एक-एक लोटा दूध तालाब में डालेंगे तो झमाझम बारिश हो जाएगी। गांव वालों ने बात की अहमियत को समझा और तालाब में दूध डालने का मन बना लिया।

रामलाल दूध का लोटा लेकर तालाब पर गया, अचानक उसके मन में आया – ‘अकेला अगर मैं दूध नहीं डालूंगा तो क्या फर्क पड़ जाएगा, बाकी गांव वाले तो डालेंगे ही।’ परिणाम स्वरूप उसने दूध नहीं डाला और घर को लौट आया। यह रामलालीया विचार एक-एक करके सभी गांव वालों के मन में आता गया। …और तालाब में एक बूंद दूध भी किसी ने नहीं डाला। जब उपाय नहीं हुआ, तो बारिश भी नहीं हुई। बारिश नहीं हुई, तो सबको सूखा झेलना पड़ा। सारे गांव ने चिंता की, लेकिन उपाय नहीं किया।

हम उनमें से अधिकांश उस गांव के ग्रामीणों जैसे ही हैं। एक हमारे न करने से क्या फर्क पड़ेगा, वाला सोच हम पर हावी है और हम नहीं कर रहे हैं। अगर कर रहे होते तो पर्यावरण इतना दूषित-प्रदूषित कभी नहीं होता। हमें पार्क चाहिए लेकिन हम पेड़ नहीं लगाएंगे क्योंकि पेड़ लगाने काम तो सरकार का है। उस सरकार का जिसे चुनते हम हैं, लेकिन अपना मानते नहीं हैं। अपनी सरकार के काम में हम हाथ बटाते नहीं है। बस चिंता करते हैं। अगर हिंदुस्तान की एक सौ तीस करोड़ आबादी एक- एक पेड़ न केवल लगा दें, बल्कि उसे पाल पोस कर बड़ा भी कर दें, तो इतनी जल्दी, इतनी प्राणवायु उत्पन्न हो जाएगी कि उसे एक्सपोर्ट कर सकेंगे।

असम के एक व्यक्ति की कहानी चिंता करने के साथ आपको काम करने की प्रेरणा भी दे सकती है। असम के जयदेव ने अपने गांव में मिट्टी का कटाव रोकने के लिए 1979 में पौधे लगाने शुरू किए। आज वह इलाका खूबसूरत जंगल बन चुका है। जयदेव ने गुवाहाटी से 350 किलोमीटर दूर मौलाई गांव की बंजर जमीन पर 16 साल की उम्र में अकेले ही पौधे लगाने का काम शुरू किया और पिछले सालों से वे लगातार ऐसा करते चले आ रहे हैं। उन्होंने अकेले दम पर ब्रह्मपुत्र नदी के घेरे वाली 1360 एकड़ जमीन को एक हरे-भरे जंगल में तब्दील कर दिया है। जयदेव के जज्बे को सलाम। जयदेव से प्रेरणा लेकर हम सब एक – एक पेड़ ही अपने आसपास लगा दें तो बड़ी बात होगी। यह पर्यावरण सुधार की दिशा में हमारा कम महत्वपूर्ण योगदान नहीं होगा।

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