Saturday, 18 May 2024

Prithviraj Chauhan: “पृथ्वीराज रासो” जिसमे दर्ज है साहस का इतिहास

Prithviraj Chauhan:  पृथ्वीराज रासो एक बड़ी कविता है जिसे आदिकाल यानी साल 1000-1400 के दौर की रचना माना जाता है.…

Prithviraj Chauhan: “पृथ्वीराज रासो” जिसमे दर्ज है साहस का इतिहास

Prithviraj Chauhan:  पृथ्वीराज रासो एक बड़ी कविता है जिसे आदिकाल यानी साल 1000-1400 के दौर की रचना माना जाता है. हिंदी साहित्य को चार भागों में बांटा गया है- आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिककाल. साहित्य के इतिहास के इसी विकासक्रम में शुरुआती दौर को आदिकाल कहा जाता है.

पृथ्वीराज रासो एक ऐसी कविता है जिसमें पृथ्वीराज चौहान की कहानी बताई गई है. इस कविता के लेखक चंद बरदायी हैं.

पृथ्वीराज रासो की कहानी कुछ यूं है, ”पृथ्वीराज अजमेर के राजा सोमेश्वर के बेटे थे. सोमेश्वर की शादी दिल्ली के राजा अनंगपाल की बेटी कमला से हुई. दूसरी बेटी की शादी कन्नौज के राजा विजयपाल से हुई जिनसे जयचंद पैदा हुए. अनंगपाल ने नाती पृथ्वीराज को गोद लिया. जयचंद को बुरा लगा. बाद में जयचंद ने यज्ञ का आयोजन किया और बेटी संयोगिता का स्वयंवर रखा. पृथ्वीराज यज्ञ में नहीं आए. गुस्साए जयचंद ने पृथ्वीराज की मूर्ति दरवाज़े पर रखवाई. संयोगिता को पहले से पृथ्वीराज पसंद थे. संयोगिता ने मूर्ति पर माला डालकर अपने प्रेम का इज़हार किया. बाद में पृथ्वीराज आए, लड़ाई करके संयोगिता को दिल्ली ले आए.”

Prithviraj Chauhan:   पृथ्वीराज रासो की कहानी जो लोक कथाओं में भी शामिल है और एक बड़े तबके के लिए हक़ीक़त भी है.

पृथ्वीराज रासो, पृथ्वीराज चौहान के जीवन और चरित्र का वर्णन करता हिंदी भाषा में लिखित एक बहुत ही सुन्दर महाकाव्य हैं। इस महाकाव्य की रचना पृथ्वीराज चौहान के बचपन के प्रिय मित्र और राज कवि चंदबरदाई द्वारा की गई हैं। इसमें लगभग 2500 पृष्ठ हैं। वीर रस की कविताओं से भरा यह ग्रन्थ पृथ्वीराज चौहान पर लिखा हुआ अब तक का सबसे सर्वश्रेष्ठ और प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता हैं। पृथ्वीराज रासो में 69 सर्ग हैं, जिसमें मुख्य छन्द कवित्त ,दोहा ,त्रोटक ,गाहा और आर्या हैं।

इसमें दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के जीवन की घटनाओं का उल्लेख मिलता हैं। 

Prithviraj Chauhan:  पृथ्वीराज रासो के अनुसार जब शहाबुद्दीन गौरी द्वारा पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर गजनी ले गया उसके पश्चात् चंदबरदाई भी वहाँ जाने के लिए तैयार हो गए और उनके पुत्र जल्हण को रासो को पूरा करने का काम सौंपा गया। रासो को जल्हण के हाथ में सौंपे जाने तथा उसको पूरा करने को लेकर इस ग्रंथ में एक उल्लेख मिलता हैं –

पुस्तक जल्हण हत्थ दै चलि गज्जन नृपकाज।

रघुनाथनचरित हनुमंतकृत भूप भोज उद्धरिय जिमि।

पृथिराजसुजस कवि चंद कृत चंदनंद उद्धरिय तिमि।।

पृथ्वीराज रासो में उल्लेखित तथ्यों को कई इतिहासकार सही नहीं मानते हैं। इसकी सबसे प्राचीन प्रति बीकानेर के राजकीय पुस्तकालय में प्राप्त हुई हैं, जिसमें इस बात का वर्णन किया गया हैं कि पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण चलाकर गौरी को मौत के घाट उतरा था। रासक परम्परा का यह काव्य पृथ्वीराज चौहान के जीवन में घटित घटनाओं पर आधरित हैं। पृथ्वीराज रासो के अनुसार राजा जयचंद द्वारा गद्दारी किए जाने के पश्चात मोहम्मद गोरी ने जालसाजी से पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया और अपने साथ गजनी लेकर चले गए।

राजा जयचंद की मदद से मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाने में कामयाबी हासिल की थी।

गजनी पहुंचने के पश्चात पृथ्वीराज चौहान को तरह-तरह की यातनाएं दी गई जो बहुत ही अमानवीय थी। पृथ्वीराज चौहान की आंखें फोड़ दी गई और तहखाने में बंद कर दिया।
पृथ्वीराज चौहान के राज दरबारी चंदवरदाई लिखते हैं कि मोहम्मद गोरी तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन करवाता था। इस प्रतियोगिता के दौरान चंदवरदाई ने मोहम्मद गोरी से अपील की पृथ्वीराज चौहान भी इस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता है। पहले तो मोहम्मद गोरी को यह बात हास्यास्पद लगी की एक अंधा कैसे तीरंदाजी प्रतियोगिता में भाग ले सकता है लेकिन बाद में उसने हां कर दिया

प्रतियोगिता की शुरुआत होने से पहले ही चंदवरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को बताया कि जहां पर मोहम्मद गोरी बैठा है उस स्थान को शब्दों के माध्यम से बयां करूंगा और आप तीर चला देना।

जैसे ही पृथ्वीराज चौहान की बारी आई चंदबरदाई ने एक दोहा बोला

चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान

Prithviraj Chauhan:  इस श्लोक के माध्यम से पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी के बेठे होने की जगह की सटीक जानकारी प्राप्त हो गई। उन्होंने जैसे ही तीर चलाया सीधा मोहम्मद गौरी के सीने को चीरता हुआ पार निकल गया, मोहम्मद गौरी की मृत्यु हो गई। इतने में मोहम्मद गोरी के सैनिक पृथ्वीराज चौहान की ओर दौड़ पड़े लेकिन पूर्व नियोजित योजना के अनुसार चंदवरदाई ने एक तलवार पृथ्वीराज चौहान के हाथ में पकड़ाई और दूसरी स्वयं के हाथ में रखी और दोनों ने एक दूसरे को मौत के घाट उतार दिया क्योंकि उन्हें दुश्मनों के हाथों मृत्यु तक पसंद नहीं थी।

Upanishads : उपनिषद:- “आध्यात्मिक चिंतन की अमूल्य निधि “

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