Politics : बिहार की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आता दिख रहा है। अब तक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की छाया में खेलने वाली कांग्रेस ने संकेत दे दिया है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में वह फ्रंटफुट पर खेलेगी। दिल्ली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बीच हुई मुलाकात को महज एक शिष्टाचार भेंट न मानें इसके संकेत दूर तक जाएंगे। पहले कांग्रेस के नेता लालू यादव के दरबार में रणनीति तय करने जाते थे। लेकिन अब तेजस्वी को दिल्ली बुलाया गया, और वहाँ उन्हें बताया गया कि कांग्रेस अब बिहार में अपनी शर्तों पर खेलना चाहती है।
बैठक के बाद क्या बोले तेजस्वी?
राहुल गांधी के साथ बैठक के बाद तेजस्वी ने कहा कि सीएम फेस का फैसला चुनाव से पहले होगा या बाद में, यह मीडिया की चिंता का विषय नहीं है। यह बयान खुद में एक बड़ा संकेत है। क्योंकि अब तक राजद की ओर से यह लगातार कहा जाता रहा है कि तेजस्वी ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे। बैठक से पहले आरजेडी ने कहा था कि बिहार की जनता ने तेजस्वी यादव को ही मुख्यमंत्री मान लिया है। लेकिन दिल्ली बैठक के बाद यह स्वर धीमा और संशयपूर्ण हो गया।
कांग्रेस की रणनीति क्या है?
बैठक से पहले ही कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि 70 से कम सीटों पर समझौता नहीं होगा। कांग्रेस सिर्फ जिताऊ सीटों पर ही लड़ेगी।
मुख्यमंत्री पद का चेहरा चुनाव के बाद तय किया जाएगा, न कि पहले। यानी कांग्रेस अब राजद से बराबरी की साझेदारी चाहती है, न कि केवल पिछलग्गू की भूमिका। भाजपा और जेडीयू ने इस बैठक को लेकर तंज कसा है कि कुर्सी के लिए यह सारी सियासी नौटंकी हो रही है। सत्ता की लालच में ये लोग एक-दूसरे को धोखा देने में लगे हैं। जेडीयू का कहना है कि अगर कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी तेजस्वी का नेतृत्व स्वीकार करती है, तो यह कांग्रेस की दुर्गति है।
तेजस्वी कमजोर हुए हैं या कांग्रेस ताकतवर?
पहली बार ऐसा हुआ कि आरजेडी को सीएम फेस पर नरमी दिखानी पड़ी। महागठबंधन में कांग्रेस निगोसियेटर बनना चाहती है, फालोवर नहीं। कांग्रेस का मकसद है कि वह अखिल भारतीय पार्टी की तरह व्यवहार करे। राज्य के क्षेत्रीय दलों के दबाव से बाहर आए। चुनाव के वक्त अगर गठबंधन में सीएम फेस पर सहमति नहीं बनती, तो कांग्रेस तीसरा विकल्प भी ला सकती है।
क्या आगे कोई बड़ा फेरबदल संभव है?
अगर आरजेडी और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे या नेतृत्व पर तनाव बढ़ा, तो गठबंधन टूट भी सकता है। नीतीश कुमार की तरफ कांग्रेस झुकाव भी दिखा सकती है, अगर उसे मजबूत स्थिति चाहिए। कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनावों को बिहार विधानसभा चुनाव की प्रैक्टिस की तरह इस्तेमाल कर सकती है।
अब सिर्फ तेजस्वी का खेल नहीं रहेगा
बिहार की राजनीति अब एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है। महागठबंधन में अब सिर्फ तेजस्वी यादव का ही पलड़ा भारी नहीं रहेगा।
कांग्रेस अपने पुराने फॉर्म में लौटने की कोशिश कर रही है और वह चाहेगी कि इस बार सिर्फ सपोर्टिंग रोल नहीं, बल्कि डायरेक्टर की कुर्सी भी उसे मिले।
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