Supreme Decision : सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में वकील, प्रोफेसर और तीन अन्य लोगों के घरों को बुलडोजर से गिराए जाने को असंवैधानिक करार देते हुए इसे अंतरात्मा को झकझोरने वाला बताया है। अदालत ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) को आदेश दिया है कि सभी पांच पीड़ितों को छह सप्ताह के भीतर 10-10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत ने कहा कि घर गिराने की प्रक्रिया उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना की गई थी, जो संविधान के खिलाफ है। राइट टू शेल्टर (आश्रय का अधिकार) एक मौलिक अधिकार है और सरकार इस तरह की कार्रवाइयों को मनमाने ढंग से अंजाम नहीं दे सकती।
अदालत ने कहा कि मकान सिर्फ संपत्ति नहीं, बल्कि पूरे परिवार का आश्रय होता है, जिसे ध्वस्त करने से पहले सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए।
अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सिर्फ मुआवजा देना काफी नहीं है। क्योंकि घर सिर्फ पैसों से नहीं बनता, बल्कि उससे भावनाएं जुड़ी होती हैं। उन्होंने बीजेपी सरकार पर भी निशाना साधते हुए इसे अन्याय करार दिया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि बुलडोजर कार्रवाई कोई उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह आवश्यकता थी। उनका कहना था कि यह कार्रवाई कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए की गई थी।
बुलडोजर कार्रवाई पर पहले भी फटकार
नवंबर 2023 में भी सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि जिस व्यक्ति का घर गिराया गया, उसे 25 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। अदालत ने मनमाने तरीके से बुलडोजर चलाने पर सवाल उठाते हुए इसे कानून के खिलाफ बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने बिना नोटिस बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने का आदेश दिया था।
क्या कहता है कानून?
भारत में राइट टू शेल्टर संविधान द्वारा संरक्षित मौलिक अधिकारों में आता है। किसी भी अतिक्रमण हटाने या संपत्ति ध्वस्त करने से पहले उचित नोटिस देना आवश्यक होता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की मनमानी कार्रवाई को कानून विरोधी बताया और पीड़ितों को मुआवजा देने का आदेश दिया। यह फैसला बुलडोजर नीति पर भविष्य में प्रभाव डाल सकता है और सरकारों को इस तरह की कार्रवाइयों में अधिक सतर्कता बरतने के लिए मजबूर कर सकता है।
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