Kalma : कलमा शब्द अचानक बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। हर कोई सवाल पूछ रहा है कि कलमा (Kalma ) क्या होता है? कलमा (Kalma ) को जानने की सर्वाधिक उत्सुकता भारत की नई पीढ़ी में अधिक है। 22 अप्रैल 2025 के मंगलवार से कलमा (Kalma ) बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। हम यहां विस्तार से बता रहे हैं क्या होता है कलमा।
इस्लाम धर्म की मूल पहचान है कलमा
जिस प्रकार हिन्दु धर्म में अनेक मंत्र पढ़े जाते हैं उसी प्रकार इस्लाम धर्म में कलमा (Kalma ) पढ़ा जाता है। हिन्दू धर्म के जानकार यह भी बोल सकते हैं कि कलमा इस्लाम धर्म का मंत्र होता है। कलमा इस प्रकार से पढ़ा जाता है- ‘ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह’ यही कलमा इस प्रकार भी पढ़ा जाता है कि – ‘ला इल्लिल्लाह महम्मद उर्र रसूल्लिाह’। कलमा का हिन्दी में अनुवाद है कि- ‘अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं, हजरत मुहम्मद सल्ललाहु अलैहिवसल्लम अल्लाह के रसूल हैं’। दरअसल कलमा इस्लाम धर्म का मूल आधार माना जाता है। इस आर्टिकल में हम आगे आपको कलमा के विषय में औैर अधिक जानकारी देंगे। पहले बात करते हैं कि अचानक कलमा की इतनी बड़ी चर्चा क्यों हो रही है।
कश्मीर के पहलगाम में हुई आतंकवादी घटना से चर्चा में आया कलमा
भारत के जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को हुई आतंकी हमले की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। आतंकवादियों के कायराना हमले के पीडि़तों को आतंकवादियों ने अपनी मुस्लिम पहचान साबित करने के लिए कलमा पढऩे को कहा था। जो लोग ऐसा करने में विफल रहे, उन्हें गोली मार दी गई। उस समय कश्मीर का स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले पहलगाम की शांति और कुदरत के नजारों का लुत्फ लेने के लिए आए पर्यटकों के लिए कलमा जीने-मरने का सवाल बन गया था। इस आतंकवादी कायराना हमले में असम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य बाल-बाल बच गए। क्योंकि उन्हें कलमा का ज्ञान था, जिसे उन्होंने पहलगाम में आतंकवादियों के सामने पढ़ा। देबाशीष भट्टाचार्य ने बाद में बताया कि “एक आतंकवादी हमारे पास आया और मेरे बगल में बैठे व्यक्ति को गोली मार दी। फिर उसने मेरी तरफ देखा और पूछा कि मैं क्या कर रहा हूं। मैंने सिर्फ जोर से कलमा पढ़ा और उसके सवाल का जवाब नहीं दिया। मुझे नहीं पता कि क्या हुआ, वह बस पलट गया और चला गया।” इस घटना के बाद से कलमा बड़ी चर्चा का विषय बन गया है।
पूरी दुनिया में इस्लाम की पहली निशानी है कलमा
इस्लाम मानने वालों के लिए कलमा पढऩा और उसका यकीन करना जरूरी है। कलमा पढऩा यह बताता है कि कोई व्यक्ति अल्लाह को मानता है और मुहम्मद साहब को उनका आखिरी रसूल मानता है। कलमा इस्लाम की बुनियादी पहचान है। दुनिया के किसी भी हिस्से में मुसलमान होने की पहली और सबसे जरूरी निशानी यही है कि वह कलमा जानता और मानता है। कलमा इस्लाम की आस्था की बुनियाद है। यह सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि अल्लाह और उसके रसूल पर यकीन और समर्पण का इजहार है। नियमित रूप से कलमा पढऩा मुसलमानों के लिए केवल अल्लाह की पूजा करने और पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं का पालन करने की अपनी प्रतिबद्धता को याद दिलाने का एक तरीका है। इस्लाम में मुख्य रूप से छह कलमा बताए जाते हैं। सबसे अहम पहला कलमा तैय्यिब (पवित्रता) है। यह कलमा है, ‘ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह’ जिसका अर्थ है, ‘अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं। बाकी पांच कलमा भी इस्लामी विश्वास के अलग-अलग पहलुओं को उजागर करते हैं, जैसे शहादत (गवाही), तमजीद (प्रशंसा), तौहीद (एकता), अस्तगफ़ार (पश्चाताप) और रद्दे कुफ्र (अविश्वास को अस्वीकार करना)। नियमित कलमा पढऩा और समझना मुसलमानों की आस्था को मजबूत करता है। ये अल्लाह से रिश्ता गहरा करता है और इस्लामी जीवन-मूल्यों को अपनाने में मदद करता है।
मुसलमानों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कलमा पढऩा
पूरी दुनिया में कलमा जानना और मानना हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है। क्योंकि इसी के जरिए कोई व्यक्ति मुसलमान कहलाता है। कलमा न सिर्फ धार्मिक रस्म है, बल्कि इस्लामी जीवन और आस्था का मूल आधार है। यह हर मुसलमान की पहचान, उसकी आस्था और उसके जीवन का मार्गदर्शन है। इसके अलावा, कलमा क्षमा, कृतज्ञता और बहुदेववाद से सुरक्षा के लिए प्रार्थना है। दक्षिण एशियाई देशों (जैसे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश) के मुसलमानों में छह कलमा याद करवाना आम है। लेकिन यह परंपरा दुनिया के बाकी हिस्सों में उतनी प्रचलित नहीं है। अमेरिका और यूरोप के मुसलमान खासकर अरब, तुर्क, अफ्रीकी या इंडोनेशियाई मूल के लोग इन छह कलमों को उस तरह नहीं पढ़ते या याद नहीं करते जैसे भारत या पाकिस्तान के मुस्लिम करते हैं, लेकिन वे इस्लाम की बुनियादी आस्था ‘अल्लाह की एकता और मुहम्मद की पैगंबरी’ को जरूर मानते हैं। अमेरिका और यूरोप में अधिकतर मुसलमान शहादा जानते और मानते हैं। क्योंकि यही इस्लाम में प्रवेश की बुनियादी शर्त है। शहादा का अर्थ है ‘ईश्वर की गवाही’ या ‘विश्वास की घोषणा.’ इस्लाम में मुसलमान होने के लिए शहादा जानना और मानना जरूरी है। Kalma :
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