Ancient Ayodhya of Lord Ram : प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या, जिसके बारे में हम सभी बचपन से सुनते और पढ़ते आए हैं। जिसमें अयोध्या नगरी को बहुत ही सुंदर और भव्य बताया गया है। लेकिन कई बार हमारे मन में यह सवाल भी आया है कि आखिर जैसी अयोध्या के बारे में हमने सुना है क्या सच में सतयुग के रामायण काल में भी वह वैसी ही दिखती थी? तो इसका जवाब आपको मिलेगा लेखिका नीना राय की हाल ही में लिखी पुस्तक “अद्भुत अयोध्या प्रभु श्रीराम की दिव्य नगरी” में, जिसे उन्होंने बाल्मिकी रामयाण को आधार बनाकर लिखा है।
किसने और कब की अयोध्या की स्थापना ?
राम की नगरी अयोध्या की स्थापना हजारों वर्ष पूर्व सतयुग में मनु मानवेंद्र के हाथों की गई थी। अयोध्या को एक राजधानी के तौर पर बसाया गया था। जहां के राजा थे महाराज दशरथ, जिनके साम्राज्य के अधीन कई राज्य आते थे। महाराज्य दशरथ हर 10 साल में अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा छोड़ते थे। और वह घोड़ा जिस-जिस राज्य की भूमि पर जाता वहां के राजा दशरथ, का आधिपत्य स्वीकार कर लेते थे। और जो न मानते उन्हें अयोध्या से युद्ध लड़ना पड़ता।
इस महान नगरी अयोध्य के शत्रु भी कम नहीं थे, पुस्तक में बताया गया है कि अयोध्या पर कई बार 3 से 4 राज्य एक साथ मिल कर हमला करते थे। शत्रुओं के हमलों से राज्य की रक्षा करने के लिए अयोध्या राजधानी की इस तरह संरचना की गई थी, कि शत्रु आसानी से उसे भेद नहीं सकता था। जब अयोध्या नगरी का निर्माण हुआ तो वह बेहद सुंदर और मनमोहक थी। जिसपर कब्जा करना हर राज्य का सपना था। इस बात को देखते हुए अयोध्या को इतनी कुशलता के साथ बनवाया गया था कि उस पर इंसान तो क्या कोई राक्षस, दानव या असुर भी आक्रमण न कर सके।
कैसे हुआ था अयोध्या का निर्माण?
अद्भूत अयोध्या पुस्तक में लिखा है कि जब अयोध्या नगरी का निर्माण हो रहा था, तो क्षत्रिया दृष्टिकोण से वास्तुशिल्प तैयार किया गया था। ताकि इस पर कोई हमला न कर सकें। इसके अलावा उन्होंने राज्य के निर्माण के लिए वास्तु शास्त्र का भी ध्यान रखा था। अयोध्या के लिए स्थान का चुनाव भी वास्तु को देखकर किया गया था। जैसे राज्य के मुख को उत्तर दिश की ओर रखा गया। क्योंकि माना जाता है कि अगर किसी भी घर या राज्य का मुख उत्तर दिशा की ओर हो तो, कभी भी धन, धर्म और पुश्तैनी जायदाद की कमी नहीं होती। इसके अलावा राज्य के पास पानी के स्त्रोत के होने का भी विशेष रूप से ध्यान रखा गया था। इसी वजह से अयोध्या नगरी का निर्माण सरयू नदी के पास हुआ। राज्य के पैटर्न को भी वास्तु शास्त्र को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था।
परिंदा भी पर नहीं मार सकता था अयोध्या में
अयोध्या को शत्रुओं से बचाने के लिए महल की प्राचीर पर शताकणों को रखा गया था। जिसे अधुनिक समय की मिसाइल कह सकते हैं, जो दूर से ही शत्रुओं पर वार कर सकती थी। महल के आस-पास घना वन था ताकि शत्रु आसानी से महल तक न पहुंच सके। और महल से पहले बड़े-बड़े गड्डे और जल कुंड थे ताकि शत्रु सेना के हाथी या घोड़े महल में प्रवेश न कर सकें। सतयुग की अयोध्या का यह डिजाइन अपने आप में ही निराला था। जिसकी नकल हमें बाद के साम्राज्यों में भी दिखाई देती है।
कैसी दिखती थी अयोध्या नगरी ?
पुस्तक में दी गई जानकारी के अनुसार अयोध्या के निर्माण के समय बने ज्यादातर घरों पर सोना लगा हुआ था। वहां हर प्रकार के फलों के पेड़, खेत, सुंदर बंगीचे, अलग-अलग तरह के पशु-पक्षी भी मौजूद थे। राजपरिवार के सदस्यों के महलों की शान ही निराली थी। रानी कैकई के महल को उनके पसंद के अनुरूप सजाया गया था। जिसमें दीवारों पर कई चित्र उकेरे गए थे। उन्हें संगीत सुनने और पक्षियों का भी बहुत शौक था। इस बात को ध्यान में रखते हुए महाराज दशरथ ने उनके महल का निर्माण करवाया था। रानी कैकई के महल को भव्य बनाने के लिए उनकी दीवारों पर सुदंर चित्र बनवाएं गए थे। इसके साथ ही महल में सितार, वीणा जैसे कई वाद्य यंत्र भी मौजूद थे। इसके अलावा वहां सुंदर बंगीचे भी थे, जहां कई तरह के पक्षी रखे गए थे। जिनकी अवाजों से उनका महल हमेश गूंजता रहता था।
कैसा दिखता था श्रीराम का भव्य महल ?
अद्भुत अयोध्या प्रभू श्रीराम की दिव्य नगरी पुस्तक के अनुसार प्रभू श्रीराम का महल बेहद भव्य था। अयोध्या में मौजूद सभी महल उसके आगे फीके थे। उनके महल में बड़े-बड़े दरवाजे लगाए गए थे। साथ ही महल के निर्माण के समय उस पर बेहद कीमती हीरे, मोती और मणि का इस्तेमाल किया गया था। जिस वजह से राम जी का महल काफी दूर से ही चमकता था। इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता हैं कि श्रीराम का महल कैलश पर्वत सा चमकता था। इसके साथ ही महल में कई तरह के पशु-पक्षी भी मौजूद थे, जिनकी मनमोहक अवाजे वहां से आती रहती थी।
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