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भारत में दिवाली के अवसर पर कर्मचारियों को दिया जाने वाला बोनस आज केवल आर्थिक प्रथा नहीं बल्कि त्योहारी सद्भाव और कर्मचारी-नियोक्ता संबंध का प्रतीक बन चुका है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत विरोध-प्रदर्शन से हुई थी? आजादी से पहले भारत में कई संस्थान कर्मचारियों को साप्ताहिक वेतन देते थे। लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान मासिक वेतन प्रणाली लागू होने लगी, जिससे कर्मचारियों को सालभर में कुल 4 हफ्तों का वेतन कम मिलने लगा। यही आर्थिक असंतोष धीरे-धीरे विरोध का रूप लेने लगा और अंततः दिवाली बोनस की परंपरा का बीजारोपण हुआ। Diwali Bonus History
भारतीय उपमहाद्वीप में त्योहारों पर दान और उपहार देने की परंपरा सदियों पुरानी है। फसल कटाई और उत्सवों के अवसर पर राजाओं, जमींदारों और समृद्ध व्यवसायियों द्वारा कामगारों और सेवकों को अनाज, वस्त्र या नकद देना आम था। यह न केवल आर्थिक स्थिति को संतुलित रखता था बल्कि वफादारी और सामाजिक स्थिरता को भी सुनिश्चित करता था। ऐसे उपहारों को आधुनिक दिवाली बोनस की प्रारंभिक परंपरा माना जा सकता है। मध्यकाल में भी शाही दरबारों और जमींदारी व्यवस्था में पर्वों पर कर्मचारियों को अतिरिक्त भुगतान या वस्तुएं देना सामान्य था। इससे प्रशासन और श्रमिकों के बीच विश्वास और निष्ठा बनी रहती थी। औद्योगिक क्रांति के बाद यह प्रथा शहरों और व्यवसायिक संस्थाओं में विकसित हुई और आधुनिक बोनस की नींव रखी। Diwali Bonus History
19वीं और 20वीं सदी में औद्योगिक इकाइयों और कार्यालयों के उदय के साथ कर्मचारी वर्ग उभरा। इससे त्योहारों पर अतिरिक्त भुगतान की मांग बढ़ी और कई बार श्रमिकों और नियोक्ताओं के बीच विवाद भी हुए। स्वतंत्रता के बाद, इन संबंधों को कानूनी ढांचे में ढालने की आवश्यकता महसूस हुई।1965 में केंद्र सरकार ने Payment of Bonus Act लागू किया। इस अधिनियम ने वार्षिक बोनस की पात्रता, सीमा और भुगतान के नियम निर्धारित किए। हालांकि यह कानून केवल दिवाली-विशेष बोनस के लिए नहीं था, लेकिन इसने नियोक्ताओं पर बोनस देने का औपचारिक दायित्व स्थापित किया और इस प्रथा को कानूनी मान्यता प्रदान की।
स्वतंत्रता से पहले भारत में कर्मचारियों को साप्ताहिक वेतन मिलता था, यानी साल में 52 वेतन। ब्रिटिश शासन के दौरान मासिक वेतन प्रणाली लागू हुई और कर्मचारियों को केवल 48 सप्ताह का वेतन मिलने लगा। 4 हफ्तों के इस नुकसान ने विरोध को जन्म दिया। 1940 में ब्रिटिश सरकार ने इसे हल किया और दिवाली पर कर्मचारियों को एक माह का अतिरिक्त वेतन देने की घोषणा की। स्वतंत्रता के बाद यह प्रथा दिवाली बोनस के नाम से जानी जाने लगी। 1965 में लागू अधिनियम ने इसे औपचारिक और कानूनी रूप दे दिया।
धार्मिक और सांस्कृतिक: दिवाली समृद्धि का त्योहार है, इसलिए अतिरिक्त भुगतान को शुभ माना जाता है।
कर्मचारी कल्याण और मनोबल: बोनस कर्मचारियों के उत्साह और त्योहारी तैयारियों को बढ़ाता है।
सामाजिक प्रतिष्ठा और व्यापारिक परंपरा: व्यापारी और संस्थान अपने कर्मचारियों और ग्राहकों के प्रति सद्भाव दिखाते हैं।
कानूनी और संस्थागत ढांचा: नियम और परंपरा मिलकर बोनस को सामान्य और अपेक्षित बनाते हैं। Diwali Bonus History
दिवाली बोनस का रूप आज भी विविध है। छोटे पारंपरिक व्यवसायों में यह शगुन या नकद होता है, जबकि बड़े औद्योगिक घरानों और संगठनों में प्रदर्शन आधारित या कानूनी मानदंड के अनुसार तय होता है। कुछ संस्थान वेतन एडवांस, उपहार या वाउचर देते हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में नकद आदान-प्रदान की परंपरा भी कायम है। Diwali Bonus History


