जाट समाज के हर परिवार में चर्चित है धन्ना जाट की कहानी

जाट समाज के हर परिवार में चर्चित है धन्ना जाट की कहानी
locationभारत
userचेतना मंच
calendar25 Aug 2025 05:13 PM
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जाट समाज भारत का प्रतिष्ठित समाज है। जाट समाज में अनेक महान विभूतियां पैदा हुई हैं। भारत का जाट समाज अपनी महान विभूतियों पर गर्व करता है। भारत के जाट समाज की विभूतियों में एक नाम है धन्ना जाट का नाम। धन्ना जाट का धन्ना सेठ तथा धन्ना भक्त के नाम से भी जाना जाता है। भारत में एक प्रसिद्ध कहावत भी धन्ना जाट के ऊपर बहुत प्रचलित है। कहावत यह है कि जब किसी पूंजीपति का जिक्र होता है तो कहा जाता है कि-‘‘तू कौन सा धन्ना सेठ है”। यहां हम धन्ना जाट की पूरी कहानी आपको बता रहे हैं। Dhanna Jatt

धन्ना जाट के ऊपर प्रचलित हैं अनेक कहानियां

जाट समाज के लगभग हर परिवार में धन्ना जाट की कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित है। दुर्भाग्य से जाट समाज की युवा पीढ़ी धन्ना जाट की कहानी को नहीं जानती। युवा पीढ़ी को भी धन्ना जाट के विषय में जानकारी मिले हम यहां यही प्रयास कर रहे हैं। धन्ना जाट कहें, धन्ना सेठ कहें अथवा धन्ना भक्त कहें यह तीनों एक ही व्यक्तित्व के नाम हैं। धन्ना सेठ की कहानी तथा उनका परिचय अलग-अलग ढंग से दिया जाता है। धन्ना जाट के विषय में एक कहानी तो यह है कि वह बेहद गरीब किसान थे। एक काले पत्थर के अंदर भगवान मानकर उसकी पूजा करने लगे। उन्होंने इतनी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान की पूजा तथा सेवा की कि उन्हें साक्षात भगवान विष्णु मिल गए। भगवान विष्णु ने धन्ना जाट के ऊपर मेहरबान होकर उनका घर धन-धान्य से भर दिया। इसी प्रकार अलग-अलग ढंग से धन्ना जाट की कहानियां सुनाई जाती हैं।

धन्ना जाट की सर्वाधिक प्रमाणिक तथा ज्यादा सुनाई जाने वाली कहानी

धन्ना जाट की सबसे प्रमाणिक मानी जाने वाली कहानी हम आपको बता रहे हैं। धन्ना जाट की इस कहानी के मुताबिक, धन्ना जाट का जन्म राजस्थान के एक जाट परिवार में 20 अप्रैल 1415 को हुआ था। जिनके पिता खासतौर से खेती और माता गौ पालन करती थी। कहानी की शुरुआत उस वक्त से होती है जब एक दिन धन्ना जाट के परिवार के कुलगुरु जिनका नाम पंडित त्रिलोचन था, तीर्थयात्रा करके लौटे और कुछ दिनों के लिए धन्ना जाट के घर पर ठहरे। पंडित त्रिलोचन शालिग्राम भगवान की सेवा किया करते थे, वे बड़े भाव से शालिग्राम शिला की सेवा करते, फूल अर्पित करते और उन्हें भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण किया करते थे। बालक धन्ना जाट पंडित जी को यह सब करते हुए देखता था, उसे भगवान की सेवा बहुत पसंद आयी। कुछ दिन बाद जब पंडित जी उनके घर से जाने लागे तो धन्ना जाट पंडित जी से शालिग्राम पत्थर लेने की जिद करने लगा और कहने लगा कि मझे ठाकुर जी चाहिए लेकिन पंडित जी ऐसे ठाकुर जी को कैसे दे सकते थे। धन्ना जाट को उनके माता-पिता ने बहुत समझाया लेकिन वो नहीं माने। आखिर में यही हुआ कि ये तो छोटा सा बच्चा है इसे क्या ही पता चलेगा कि आम पत्थर और शालिग्राम पत्थर में क्या अंतर होता है और अगले दिन पंडित जी ने स्नान किया तो वे नदी से एक काला पत्थर ले आए और धन्ना जाट से बोले कि मैं दो ठाकुर जी लाया हूं एक बडे वाले और दूसरा छोटे वाले आप को कौन सा चाहिए। तब उन्होंने ने बड़ा वाला ठाकुर जी मांग लिया। वही पत्थर जो पंडित जी नहाते वक्त लेकर आए थे उसे धन्ना जाट को शालीग्राम ठाकुर जी बताकर दे दिया। ठाकुर जी को पाकर धन्ना जाट बहुत खुश हुए और अपने साथ ही गाय चराने खेतों में लेकर जाने लगे। धन्ना जाट की मां अक्सर उन्हें बाजरे की रोटी और गुड दिया करती थी। ऐसे में धन्ना जाट ने ये निर्णय किया कि अब वो भी पंडित जी की ही तरह ठाकुर जी को भोग लगाकर ही खाना खायेंगे। उन्होंने जोर से आवाज लगाकर ठाकुर जी को भोग लगाया लेकिन ठाकुर जी ने उनका भोग नहीं लिया। तभी धन्ना जाट ने ये फैसला लिया कि जब तक तक ठाकुर जी प्रकट होकर उनका भोग नहीं लेते वो भी खाना नहीं खाएंगे। जब ठाकुरजी ने भोग नहीं लगाया तो धन्ना जाट ने शाम को वह रोटी गाय को खिला दी। तीन दिनों तक ऐसा ही चलता रहा न ठाकुरजी भोग लगाते और ना धन्ना जाट भोजन ग्रहण करते।

धन्ना जाट की श्रद्धा के कारण प्रकट हुए भगवान

धन्ना जाट तीन दिन तक भूखे रहे। चौथे दिन धन्ना जाट की माताजी फिर से रोटी लेकर आयी तो धन्ना जाट खेतों में जोर-जोर से रोने लगे और ठाकुर जी से गुहार लगाने लगे, वे बोले आप तो बड़े वाले ठाकुरजी है, आपको तो लोग रोज ही छप्पन भोग चढ़ाते होंगे, लेकिन मैं बालक तीन दिन से भूखा और परेशान हूं, आपको मुझ पर दया नहीं आती है क्या, मुझ पर दया करके ही थोड़ा भोग लगा लो जिससे मैं भी कुछ खा सकूँ, क्योकि पंडितजी ने कहा है कि आपको खिलाये बिना कुछ नहीं खाना। इसलिए पहले आप खा लो उसके बाद ही मैं खा सकूंगा। धन्ना जाट के भोलेपन से की गयी प्रार्थना को सुनकर भगवान श्री कृष्ण साक्षात् प्रकट हो गए। अपने ठाकुरजी को देखकर धन्ना जी बहुत प्रसन्न हो गए। उन्होंने ठाकुर जी को माँ की दी हुई बाजरे की रोटी साग और गुड़ खाने को दिया। ठाकुरजी बड़े चाव रोटी खाने लगे। चार रोटियों में से दो रोटी ठाकुर जी ने खा ली, जब ठाकुरजी तीसरी रोटी को खाने लगे तब धन्ना जाट ने उनका हाथ पकड़ लिया और कहा सारी रोटियां आप ही खा जायेगें क्या, मुझे भी तो भूख लगी है, मैंने तो चार दिनों से कुछ भी नहीं खाया। दो रोटी आपने खा ली अब दो रोटी मेरे लिए छोड़ दो। इसके बाद ठाकुर जी मुस्कुराने लगे और बची हुई दो रोटियां धन्ना जाट ने खाई। ठाकुर जी को भोग लगाकर खाना अब जाट का रोज का नियम हो गया था जाट जब गायें चराने जाते तो भोजन खेतों में जाकर ठाकुरजी के साथ ही करते। एक दिन ठाकुरजी ने जाट से कहा तुम रोज मुझे रोटी खिलाते हो, मैं मुफ्त में रोटी नहीं खाना चाहता इसलिए मैं तुम्हारा कोई काम कर दिया करूंगा। धन्ना जाट ने कहा मैं तो बालक हूं केवल गायें ही चराता हूँ, मैं आपको क्या काम बता सकता हूं। तब ठाकुर जी ने कहा मैं तुम्हारी गायें ही चरा दिया करूंगा। उस दिन के बाद से ठाकुर जी धन्ना जाट की गायें चराने लगे। एक दिन धन्ना जाट ने ठाकुरजी से पूछा आप मुझे अपने ह्रदय से क्यों नहीं लगाते हैं, तब ठाकुर जी ने कहा मैं तुम्हारे सामने प्रत्यक्ष प्रकट हो गया हूं। लेकिन पूरी तरह से मैं तब मिलता हूँ जब कोई सदगुरु जीव को अपना लेते है, अभी तक तुमने किसी गुरु की शरणागति ग्रहण नहीं की है, इसलिए मैं तुम्हे अपने हृदय से नहीं लगा सकता। तब धन्ना जाट बोले मैं तो जानता नहीं की गुरु किसे कहते है, फिर मैं किसे अपना गुरु बनाऊं। ठाकुर जी बोले काशी में जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य मेरे ही स्वरूप में विराजमान है, तुम जाकर उनकी शरण ग्रहण करो। ठाकुर जी के कहे अनुसार धन्ना जाट ने काशी जाकर श्री रामानंदाचार्य जी की शरणागति ग्रहण कर ली, उस समय धन्ना जाट की आयु पंद्रह-सोलह वर्ष के आसपास थी। ठाकुर जी ने जब धन्ना जाट को गले से लगाया श्री रामानंदाचार्य जी ने धन्ना जी को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया और उन्हें आदेश दिया की अब तुम अपने घर चले जाओ। धन्ना जाट बोले गुरूजी अब मैं घर नहीं जाना चाहता तो आप मुझे घर जाने का आदेश क्यों दे रहें है। गुरूजी बोले अगर तुम यहां रहकर भजन करोगे तो केवल तुम्हारा ही कल्याण होगा, लेकिन अगर तुम अपने घर जाकर खेती किसानी करते हुए अपने माता-पिता की सेवा करते हुए भजन करोगे तो तुम्हारे साथ कई जीवों का उद्धार हो जायेगा। गुरूजी के आदेश पर धन्ना जाट घर लौट आये, इसके बाद जैसे ही धन्ना जाट घर पहुंचे ठाकुर जी ने उन्हें अपने ह्रदय से लगा लिया।

धन्ना जाट ने शुरू कर दी संत महात्माओं की सेवा

वापस अपने घर पर आकर धन्ना जाट ने संत तथा महात्माओं की सेवा शुरू कर दी। जब भी उनके गाँव में कोई साधु संत आते धन्ना जाट उन्हें अपने घर ले आते और बड़े प्रेम से उनकी सेवा करते उन्हें भोजन खिलते। संतों की सेवा करने के कारण अब उनके घर दूर-दूर से साधु-संत पधारने लगे। धन्ना जाट उन सभी का बड़े प्रेम से सत्कार करते और उन सभी को भोजन खिलाते। पिता ने साधुओं को घर आने से रोका एक दिन धन्ना जाट के पिताजी ने धन्ना जाट से कहा, देखो भाई हम लोग गृहस्त लोग है, यदि महीने में एकआध बार कोई साधु आ जाये तो हम उनकी सेवा भी कर दें और उन्हें भोजन भी करा दें, लेकिन तुम्हारी इन साधुओं से ऐसी दोस्ती हो गयी है की हर दूसरे दिन कोई न कोई साधु चला आता है और अपने साथ एक दो को और ले आता है। यह ठीक नहीं है, हम अपनी खेती-बाड़ी का काम करें या इन साधुओं की सेवा करें। तुम तो अभी बालक हो कुछ कमाते हो नहीं, तुम्हारा पालन पोषण भी हम ही करतें है और ऊपर से तुम साधुओं को बुला लाते हो। इस प्रकार इन निठल्ले साधुओं की सेवा करना ठीक नहीं है। इसलिए एक बात कान खोलकर सुन लो आज के बाद यदि तुम किसी साधु को घर लेकर आये तो मैं उन्हें घर में नहीं घुसने दूंगा। तुम्हे यदि साधु सेवा करनी है तो पहले कुछ कमाई करो फिर अपनी कमाई से साधु सेवा करना। पिताजी की बात सुनकर धन्ना जाट उदास हो गए और चुपचाप खड़े हो गए, तब पिताजी ने धन्ना जाट को डांटते हुए कहा आज के बाद किसी साधु को घर में लेकर मत आना और जाओ खेतों में गेहूं बोकर आओ। खेत तैयार है, बोरी में बीज का गेहूं रखा है, इसे बैलगाड़ी में ले जाओ और खेत में बो दो। धन्ना जाट ने बैलगाड़ी में गेहूं रख लिया और खेत में बोने चल दिए। धन्ना जाट थोड़ी दूर ही चले थे उन्हें मार्ग में पांच- छ: साधु-संतों की टोली आती दिखाई दी। धन्ना जाट ने बैलगाड़ी से उतरकर उन्हें शाष्टांग प्रणाम किया। संतों ने धन्ना जाट को आशीर्वाद दिया और पूछा बेटा इस गाँव में धन्ना जाट का घर कौन सा है, सुना है वे जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य के शिष्य है और बहुत छोटी उम्र में ही उन्होंने भगवान का दर्शन प्राप्त कर लिया है। हम भी उनका दर्शन करना चाहते है। यह सुनकर धन्ना जाट संकोच में पड गए और वे हाथ जोडक़र बड़ी विनम्रता से बोले महाराज मुझे ही लोग धन्ना जाट कहते है। संत बोले भगवान ने बड़ी कृपा की, हम जिनसे मिलने आये थे वे यहीं मिल गए, निश्चित ही आप ऐसे ही भक्त है, जैसा आपके विषय में सुना था, कितनी विनम्रता है आपमें। चलिये आपके घर चलतें है, वहीं बैठ कर आपसे चर्चा करेंगे। धन्ना जाट ने सोचा अभी पिताजी ने साधुओं को घर लाने के लिए मना किया है, यदि मैं खेतों में बीज बोने के बजाय इन साधु-संतों को घर ले गया तो पिताजी आसमान सिर पर उठा लेंगे और इन साधुओं को भी भगा देंगे। तब धन्ना जाट कुछ विचार करके बोले महाराज अभी घर पर कोई नहीं है, मैं भी खेतों की तरफ जा रहा हूँ, आप मेरे साथ वहीं चलिए। संत बोले ठीक है हमें तो आपसे मिलना था, अब आप जहाँ ले चलें हम वहीं चलेगें। फिर धन्ना जाट उन सभी को अपने खेत ले गए, खेत में एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर साधुओं को बैठाकर बोले महाराज आप यहीं पर कुछ देर विश्राम कीजिये तब तक मैं आपके भोजन की व्यवस्था करता हूँ। यह कहकर धन्ना जाट वहाँ से बैलगाड़ी लेकर चले गए। बैलगाड़ी लेकर धन्ना जाट सीधे बनिये की दुकान पर पहुंचे, वहां पर उन्होंने बैलगाड़ी में जो बीज वाला गेहूं जो खेत में बोने के लिए रखा था, उसे बनिये को बेच दिया और उससे दाल-बाटी और चूरमा बनाने का सारा सामान खरीद लिया। सामान लेकर धन्ना जाट खेत पहुंचे। वहाँ पर उन्होंने संतों के साथ मिलकर बहुत बढ़िया दाल बाटी और चूरमे का प्रसाद बनाया। भगवान को प्रसाद का भोग लगाने के बाद बड़े प्रेम से उन्होंने संतों को भोजन करवाया, इसी बीच भगवत चर्चा भी होती रही। संतों को भोजन करवाने के बाद बड़े प्रेम से उन्हें विदा भी कर दिया।

धन्ना जाट की श्रद्धा से रेत भी बन गया गेहूं का बीज

संतों के जाने के बाद धन्ना जाट सोचने लगे कि बीज वाले गेहूं को तो बेचकर संतों को भोजन करा दिया अब खेत में क्या बोया जाये। अगर पिताजी से फिर बीज माँगने गया तो पिताजी बहुत नाराज होंगे। यह सोचकर धन्ना जाट ने बोरियों में रेत भर ली और आसपास के लोगों को दिखने के लिए उस रेत को ही खेतों में बोने लगे। धन्ना जाट ने राम-राम का नाम लेते हुए शाम तक बोरियों की सारी रेत खेत में छिड़क दी। आस-पास के खेतों के किसान देख रहे थे की धन्ना जाट खेतों में गेहूं बो रहे है परन्तु वे तो खेतों में रेत बो रहे थे। खेत बोने के बाद धन्ना जाट बड़े प्रसन्न मन से घर की ओर चल दिए, वे सोचने लगे खेत में तो कुछ उगना नहीं है, तो देखभाल भी नहीं करनी पड़ेगी। घर पर पिताजी ने पूछा खेत बो आये, धन्ना जाट बोले, जी पिताजी बो आया। कुछ दिन बाद धन्ना जाट के पिताजी और गाँव के कुछ बड़े बूढ़े लोग धन्ना जाट के पास आये और बोले की तुमने कैसा खेत बोया है ऐसी फसल तो हमने अपने जीवन में आज तक नहीं देखी। ऐसा लगता है जैसे गेहूं का एक एक दाना नाप-नाप कर एक समान दूरी पर बोया गया है, और सारे ही दाने उग आएं हो। इतनी सुंदर फसल तो हमने आज तक नहीं देखी, ये सब तुमने कैसे किया। धन्ना जाट सोचने लगे ये सब उनको ताने मार रहें है, खेत में कुछ उगा ही नहीं होगा इसलिए ऐसी बातें बोल रहें है। तब धन्ना जाट ने स्वयं खेत पर जाकर देखा। वहाँ जाकर वे आश्चर्यचकित रह गए उन्होंने देखा जिस खेत में उन्होंने रेत बोई थी, वहाँ पर फसल उग आयी थी, और ऐसी सुन्दर फसल उन्होंने कभी नहीं देखी थी। फसल को देखकर धन्ना जाट को भगवान की कृपा का अहसास हुआ और उनकी आँखों से आँसू निकल आये। धन्ना जाट जोर-जोर से रोने लगे। जब धन्ना जाट के पिताजी और अन्य गाँव वालों ने रोने का कारण पूछा। तब धन्ना जाट ने रोते हुए सारी घटना कह सुनाई। धन्ना जाट बोले पिताजी जब आपने संतों को घर लाने के लिए मना किया था और खेत बोने के लिए गेहूं दिया था, उसी दिन मुझे मार्ग में कुछ संत मिल गए। मैंने उन संतों को अपने खेत पर ठहराया और बीज वाला गेहूं बनिये को बेचकर संतों को भोजन करवाया। इसके बाद मैंने खेतों में रेत बो दी, रेत बोने के बाद यह फसल कैसे उग आयी मुझे नहीं मालूम। धन्ना जाट की यह बात सुनकर उनके पिताजी के भी आंसू निकल आये और वे बोले मेरा धन्य भाग जो मेरे घर में ऐसे पुत्र ने जन्म लिया। आज के बाद हम तुम्हेंं रोकेंगे नहीं खूब साधु बुलाओ खूब संत सेवा करो हम तुम्हें अब कभी मना नहीं करेंगें। आज से मैं भी भगवान की भक्ति किया करूँगा और तुम्हारे साथ संतों की सेवा किया करूँगा। इसके बाद धन्ना जाट और उनके परिवार वाले खूब संत सेवा करने लगे। कुछ समय बाद धन्ना जाट की उगाई हुई फसल को काटने का समय आ गया। उस फसल से उतने ही आकर की खेती से 50 गुना ज्यादा गेहूँ निकला, यह गेहूँ इतना ज्यादा था की उसे रखने तक की जगह नहीं बची थी। गाँव से सभी लोग धन्ना जाट की फसल देखकर आश्चर्य करने लगे। इस प्रकार धन्ना जाट एक साधारण जाट से धन्ना सेठ बन गए। बाद में उन्हें धन्ना भक्त के नाम से जाना गया।

धन्ना जाट के ऊपर दारा सिंह ने बनाई थी फिल्म

भारत के प्रसिद्ध पहलवान दारा सिंह भी जाट समाज से आते थे। पहलवानी की पारी पूरी करके दारा सिंह फिल्म निर्माता तथा अभिनेता बन गए थे। दारा सिंह ने धन्ना जाट के जीवन पर आधारित बहुत ही शानदार फिल्म का निर्माण किया था। यहां दिए गए लिंक के द्वारा आप धन्ना जाट के ऊपर बनाई गई फिल्म को भी देख सकते हैं। Dhanna Jatt
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क्या होता है Blood Moon? क्यों इसे देखने के लिए तरसती है सैकड़ों अखियां

क्या होता है Blood Moon? क्यों इसे देखने के लिए तरसती है सैकड़ों अखियां
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calendar01 Dec 2025 08:48 PM
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7 से 8 सितंबर 2025 की रात आसमान में एक बेहद खास खगोलीय घटना देखने को मिलेगी। भारत समेत एशिया के कई हिस्सों में करीब 82 मिनट तक चांद खून जैसा गहरा लाल रंग लिए नजर आएगा। इस अनोखे नजारे को ‘ब्लड मून’ या ‘रक्त चंद्रग्रहण’ कहा जाता है, जो बिना दूरबीन या किसी उपकरण के भी नंगी आंखों से आसानी से देखा जा सकेगा। Blood Moon 

Blood Moon क्या है और क्यों खास है?

ब्लड मून तब बनता है जब पृथ्वी, सूर्य और चांद के बीच आ जाती है और सूर्य की सीधी किरणें चांद तक नहीं पहुंच पातीं। पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरती हुई रोशनी चांद पर लाल-नारंगी रंग बिखेर देती है जिससे पूरा चांद एक खूबसूरत खून जैसा लाल रंग में दिखाई देता है। इस साल का यह दूसरा पूर्ण चंद्रग्रहण है और खास बात यह है कि यह ‘हार्वेस्ट मून’ यानी शरद विषुव के सबसे नजदीकी पूर्णिमा के साथ हो रहा है। साथ ही, यह ग्रहण चांद के पेरिजी पृथ्वी के सबसे करीब आने वाले बिंदु के कुछ दिन पहले होगा जिससे चांद सामान्य से बड़ा और चमकदार दिखाई देगा।

भारत में कब और कहां देखें ब्लड मून?

नासा की जानकारी के मुताबिक, यह खून जैसा लाल चांद एशिया, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई हिस्सों में साफ दिखाई देगा। भारत में इसे रात 11 बजे से 12:22 बजे के बीच देखा जा सकेगा। लगभग 82 मिनट तक चांद का यह लाल रंग बना रहेगा जो दर्शकों के लिए यादगार पल होगा। चीन, जापान, थाईलैंड और ईरान जैसे देशों में भी इस खूबसूरत दृश्य का आनंद लिया जा सकेगा।

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ब्लड मून कैसे देखें?

इस अद्भुत खगोलीय घटना को नंगी आंखों से भी आसानी से देखा जा सकता है। बेहतर अनुभव के लिए शहर की रोशनी से दूर किसी खुले और साफ आसमान वाले स्थान पर जाएं। अगर आपके पास दूरबीन या बाइनाकुलर है तो चांद की सतह के रंग और बनावट को और भी करीब से देख सकते हैं। साफ मौसम और खुला आसमान देखने के लिए जरूरी हैं। सोशल मीडिया पर पहले से ही इस ब्लड मून को लेकर चर्चा जोरों पर है। खगोल प्रेमी इसे एक अनमोल अवसर मान रहे हैं तो कई लोग इसे ईश्वरीय चमत्कार की तरह देख रहे हैं। इस खगोलीय नजारे को मिस न करें, क्योंकि यह साल में सिर्फ दो बार ही होता है और आपके लिए एक यादगार अनुभव साबित हो सकता है। Blood Moon 
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विज्ञान गढ़ रहा है भविष्य की कोख, मां के बिना जन्म लेंगे बच्चे!

विज्ञान गढ़ रहा है भविष्य की कोख, मां के बिना जन्म लेंगे बच्चे!
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userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 12:41 PM
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क्या आने वाले समय में बच्चे मां के गर्भ से नहीं बल्कि रोबोट से जन्म लेंगे? ये सवाल अब सिर्फ साइंस फिक्शन फिल्मों तक सीमित नहीं है। चीन में वैज्ञानिक ऐसा प्रेगनेंसी रोबोट विकसित कर रहे हैं जो इंसानी भ्रूण को गर्भ में पाल-पोसकर जन्म दे सकेगा। लेकिन क्या यह वाकई मुमकिन है? क्या रोबोट इंसानी गर्भावस्था को दोहरा सकते हैं? और अगर हां, तो इसका समाज पर क्या असर होगा? आइए, जानते हैं विज्ञान इस तकनीक के बारे में क्या कहता है। Pregnancy Robot

क्या है प्रेगनेंसी रोबोट?

चीन की एक बायोटेक कंपनी काइवा टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. झांग क्यूफेंग एक ऐसे ह्यूमनॉइड रोबोट पर काम कर रहे हैं, जिसमें कृत्रिम गर्भाशय (Artificial Womb) होगा। यह रोबोट इंसानी भ्रूण को गर्भधारण से लेकर जन्म तक की पूरी प्रक्रिया में सहायता कर सकेगा। इस कृत्रिम गर्भाशय में विशेष तरल (Artificial Amniotic Fluid) होगा जो सामान्य गर्भ में पाए जाने वाले एम्नियोटिक फ्लूइड की तरह काम करेगा। भ्रूण को पोषक तत्व एक ट्यूब के जरिए मिलेंगे और रोबोट का सिस्टम हर गतिविधि की निगरानी करेगा। डॉ. झांग का दावा है कि इसका प्रोटोटाइप 2026 तक तैयार हो जाएगा जिसकी अनुमानित कीमत करीब 10 लाख रुपये होगी।

क्या यह तकनीक वाकई संभव है?

विज्ञान के हिसाब से, पूरी गर्भावस्था को कृत्रिम रूप से दोहराना अभी संभव नहीं है लेकिन शुरुआत हो चुकी है। 2017 में अमेरिका के चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल ऑफ फिलाडेल्फिया के वैज्ञानिकों ने एक बायोबैग तैयार किया था, जिसमें समय से पहले जन्मे मेमने को कुछ हफ्तों तक जीवित रखा गया। यह एक कृत्रिम गर्भ जैसा था, जिसमें भ्रूण को तरल और पोषण मिला। मेमना सुरक्षित रूप से विकसित हुआ और जीवित रहा। लेकिन इंसानी भ्रूण की बात अलग है। गर्भधारण और विकास में कई जटिल जैविक प्रक्रियाएं होती हैं जैसे- निषेचन (Fertilization): अंडाणु और शुक्राणु का मिलन। भ्रूण का प्रत्यारोपण (Implantation): गर्भाशय की दीवार पर भ्रूण का चिपकना। गर्भकाल (Gestation): 9 महीने तक भ्रूण का पोषण और विकास। प्रसव (Delivery): बच्चे का सुरक्षित जन्म। इन सभी प्रक्रियाओं को कृत्रिम रूप से करना बेहद कठिन और संवेदनशील है। खासकर, मां के शरीर में मौजूद हार्मोन और प्रतिरक्षा तंत्र की भूमिका को तकनीक से दोहराना एक बड़ी चुनौती है।

निकट भविष्य में क्या संभव हो सकता है?

2026 तक प्रोटोटाइप तैयार होने की उम्मीद है, लेकिन यह सिर्फ शुरुआती चरण होगा और सबसे पहले जानवरों पर परीक्षण किया जाएगा। बांझपन के इलाज में मददगार हो सकता है खासकर चीन जैसे देशों में, जहां 2020 तक बांझपन की दर बढ़कर 18% हो गई है। प्रीमैच्योर बच्चों को बचाने के लिए यह तकनीक उपयोगी हो सकती है यानी वो बच्चे जो समय से पहले जन्म लेते हैं और गर्भ के बाहर जीवित नहीं रह सकते।

अगर रोबोट से बच्चे पैदा हुए तो क्या होंगे असर?

सामाजिक बदलाव

महिलाओं की भूमिका पर असर: कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे महिलाओं को गर्भावस्था की शारीरिक तकलीफों से मुक्ति मिलेगी, लेकिन नारीवादियों का मानना है कि इससे मातृत्व की भावनात्मक भूमिका कमजोर हो सकती है। पारिवारिक रिश्तों पर असर: बिना मां के गर्भ में पले बच्चों का भावनात्मक विकास और मां से जुड़ाव सवालों के घेरे में आ सकता है। जनसंख्या संकट का समाधान: जिन देशों में जन्म दर कम है, वहां ये तकनीक नई उम्मीद बन सकती है।

नैतिक सवाल

मां-बच्चे के रिश्ते का क्या होगा? अंडाणु और शुक्राणु कहां से आएंगे? क्या इससे ब्लैक मार्केटिंग बढ़ेगी? बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य कैसे प्रभावित होगा अगर उसे पता चले कि वह मां के गर्भ से नहीं, बल्कि रोबोट से जन्मा है?

कानूनी चुनौतियां

कानून की जरूरत: फिलहाल चीन में इंसानी भ्रूण को कृत्रिम गर्भ में दो हफ्तों से ज्यादा विकसित करना गैरकानूनी है। भविष्य में इसके लिए पूरी कानूनी संरचना बनानी होगी। गलती की कोई गुंजाइश नहीं: अगर किसी तकनीकी त्रुटि से भ्रूण को नुकसान होता है, तो उसके जिम्मेदार कौन होंगे? यह भी बड़ा सवाल है।

विज्ञान क्या कहता है?

वैज्ञानिकों का मानना है कि कृत्रिम गर्भाशय तकनीक समय से पहले जन्मे बच्चों के लिए उम्मीद की किरण हो सकती है, लेकिन पूरी गर्भावस्था को दोहराना अभी दूर की बात है। मां के शरीर में होने वाले प्राकृतिक जैविक, हार्मोनल और प्रतिरक्षात्मक परिवर्तन अभी भी किसी मशीन से दोहराना असंभव है। इस तकनीक को इंसानों के लिए सुरक्षित और नैतिक रूप से स्वीकार्य बनाने में कम से कम 10 से 20 साल लग सकते हैं।

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रोबोट से बच्चे पैदा करने का विचार भले ही सुनने में अविश्वसनीय लगे, लेकिन विज्ञान उसी दिशा में छोटे-छोटे कदम बढ़ा रहा है। 2026 में इसका प्रोटोटाइप जरूर सामने आ सकता है, पर इंसानी गर्भावस्था को पूरी तरह रोबोट से दोहराने में अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। साथ ही, इसका सामाजिक, नैतिक और कानूनी असर भी बहुत गहरा होगा, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। Pregnancy Robot