Tuesday, 21 January 2025

लोकसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएगा अयोध्या का राम मन्दिर

election opinion आज से ठीक 33 साल पहले, 2 नवम्बर को, अयोध्या में निहत्थे कार सेवकों पर गोली चलाने की…

लोकसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएगा अयोध्या का राम मन्दिर

election opinion आज से ठीक 33 साल पहले, 2 नवम्बर को, अयोध्या में निहत्थे कार सेवकों पर गोली चलाने की घटना से, भारत की राजनीति में एक निर्णायक मोड़ आया था। ठीक वैसे ही जैसे जलियावालां बाग़ की फायरिंग से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ आया था। और अब 2024 के चुनाव में श्री राम जन्म-भूमि मंदिर एक प्रमुख मुद्दा बनने जा रहा है।

नृशंस फायरिंग बनी बुनियाद

इस विषय की बुनियाद 2 नवम्बर, १९९० की वो नृशंस फायरिंग थी जो उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री मुलायम सिंह यादव ने चलवाई थी। शस्त्रहीन कार सेवकों को, पॉइंट-ब्लैंक रेंज पर, पुलिस ने निर्ममता से भून डाला था। सबसे मार्मिक चित्र दो जवान लड़कों, कोठरी बंधुओं का था। सर में गोली मारे जाने का वो भयावह दृश्य किसी को भी हिला देता।

कहने को कोई कुछ भी कहे, कि वो फायरिंग मुलायम सिंह ने नहीं, बल्कि DGP ने आर्डर की थी। लेकिन सच बात तो ये है कि इतना बड़ा फैसला, जिसके कारण मुलायम सिंह का ‘जनता दल’ उत्तर प्रदेश का चुनाव भी हार गया, कोई पुलिस अधिकारी नहीं ले सकता था। अगर हम एक बार को मानना भी चाहें कि शायद प्रदेश के पुलिस प्रमुख ने ये फैसला किया होगा, तो भी ये मानना हमारे लिए संभव नहीं है। मुलायम सिंह यादव ने तो खुद ही कहा था कि वो फायरिंग उन्होंने ही आर्डर की थी।

तब आज जैसा ध्रुवीकरण नहीं था

वो समय और आज के समय में बहुत फ़र्क़ है। तब आज जैसा ध्रुवीकरण नहीं था। उन दिनों मुलायम सिंह यादव और लालू यादव खुले-आम मुस्लिम-यादव कार्ड खेलते थे, और सफल हो जाते थे। ये ठीक है कि मुलायम सिंह के ‘जनता दल’ के टिकट पर खड़े होने वाले मुसलमान प्रत्याशियों को यादवों के कम वोट मिलते थे, लेकिन फिर भी ‘जनता दल’ के यादव प्रत्याशी भरपूर मात्रा में मुस्लिम वोट पा जाते थे। मतलब कुल मिलाकर फार्मूला कारगर था।

धीरे-धीरे आया बदलाव

जब 2 नवम्बर जैसी कोई बड़ी घटना होती थी, तब हिन्दू समाज की प्रतिक्रिया गंभीर होती थी। लेकिन जात-पात में बँटे होने के कारण हिन्दू समाज एक स्थायी ध्रुव नहीं बनता था। परन्तु धीरे-धीरे बदलाव आ रहा था। लोगों के मन की बात समझना तो हमेशा मुश्किल होता है। जनता अपना मन आसानी से बताती भी नहीं है। लेकिन ज़मीन पर, खास तौर पर वोट प्रतिशत के माध्यम से, लोगों के मत को नापा जा सकता है।

हिन्दू ध्रुवीकरण का राजनैतिक लाभ भाजपा को मिला

‘भारतीय जनता पार्टी’ को हिन्दू ध्रुवीकरण का राजनैतिक लाभ कब-कब कितना-कितना मिला, ये मतगणना से स्पष्ट था। अयोध्या में श्री राम जन्म-भूमि मंदिर के शिलान्यास वाले महीने में, यानी नवम्बर 1989 में, जब लोक सभा चुनाव हुआ, तो BJP के सीटें 2 से बढ़ कर 89 हो गयीं। फिर 2 नवम्बर, 1990, की फायरिंग के बाद, 1991 में होने वाले लोक सभा चुनाव में BJP की सीटें बढ़ कर 119 हो गयीं। 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद होने वाले लोक सभा चुनाव में, यानी 1996 में, BJP की सीटें बढ़ कर 163 हो गयीं, और BJP की १३-दिन की सरकार बन गयी। ध्रुवीकरण बढ़ता गया, और BJP भी बढ़ती गयी। 1998 के लोक सभा चुनाव में BJP को 182 सीटें मिलीं। NDA की 13 महीने की सरकार बन गयी। अगले साल, कारगिल युद्ध के बाद, BJP फिर NDA की सरकार बना ले गयी, और पाँच साल चला ले गयी। अटल जी के नेतृत्व में हिन्दू ध्रुवीकरण तो कमज़ोर हुआ था, लेकिन कारगिल युद्ध के कारण राष्ट्रवाद के आधार पर होने वाले ध्रुवीकरण का अंतिम नतीजा वही आया। 1999 के चुनाव में सीटें न बढ़ीं, न घटीं। नंबर 182 ही रहा। यानी अगर कारगिल युद्ध नहीं होता तो अटल जी चुनाव हार जाते। पाँच साल सरकार चलाने के बाद, ध्रुवीकरण न होने की वजह से, 2004 का चुनाव BJP हार गयी। दस साल सोनिया-मनमोहन की सरकार रही। 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू-राष्ट्रवादी वोटों का इतना मज़बूत ध्रुवीकरण हुआ की पहली बार BJP पूर्ण बहुमत में आ गयी। नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व और नेतृत्व निखरता गया। BJP का अस्तित्व भी चमकता गया।

नरेंद्र मोदी ने जो हासिल किया उसको theory में समझना तो किसी भी राजनैतिक विश्लेषक के लिए आसान था। लेकिन practical में लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो हिम्मत, जो प्रतिबद्धता, और जो पारदर्शिता चाहिए होती है, वो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से पहले नहीं मिली। जब मिली तो नतीजा सबके सामने है। और अगले साल लोक सभा चुनाव में एक बार फिर से सामने आ जाएगा।

( इस स्टोरी के लेखक मनोज रघुवंशी एक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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