1000 करोड़ का साइबर फ्रॉड, CBI ने किया ट्रांसनेशनल नेटवर्क का भंडाफोड़

CBI ने 1000 करोड़ रुपये के ट्रांसनेशनल साइबर फ्रॉड का भंडाफोड़ किया। लोन ऐप, फेक जॉब और ऑनलाइन निवेश के जरिए हजारों लोगों को ठगने वाले 58 कंपनियों और 17 आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई। जानें कैसे विदेशी मास्टरमाइंड और शेल कंपनियों के नेटवर्क ने बड़ी ठगी को अंजाम दिया।

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CBI ने 1000 करोड़ के साइबर फ्रॉड का किया खुलासा
locationभारत
userअसमीना
calendar14 Dec 2025 02:03 PM
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देश में एक बड़े और संगठित ट्रांसनेशनल साइबर फ्रॉड नेटवर्क का खुलासा हुआ है जिसने हजारों लोगों को ऑनलाइन निवेश, लोन और नौकरी का झांसा देकर चुना लगाया गया। CBI की जांच में यह सामने आया कि इस नेटवर्क के जरिए 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम का लेन-देन किया गया और इसका संचालन विदेश से किया जा रहा था।

17 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल

केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 17 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है जिनमें 4 विदेशी नागरिक शामिल हैं। इसके अलावा 58 कंपनियों पर भी कार्रवाई की गई। जांच में पता चला कि इस साइबर फ्रॉड नेटवर्क ने पूरे देश में अपनी जाल फैला रखा था और आम लोगों को विभिन्न ऑनलाइन स्कीमों के जरिए निशाना बनाया। CBI के मुताबिक यह नेटवर्क भ्रामक लोन ऐप, फर्जी निवेश स्कीम, पोंजी और MLM मॉडल, नकली पार्ट-टाइम जॉब ऑफर और धोखाधड़ी वाले ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म के जरिए लोगों को ठग रहा था। प्रत्येक गतिविधि एक ही नेटवर्क के तहत संचालित की जा रही थी।

तीन भारतीय सहयोगी गिरफ्तार

जांच के शुरुआती चरण में अक्टूबर 2025 में तीन मुख्य भारतीय सहयोगियों को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद CBI ने केस की गहन जांच शुरू की जिसमें साइबर और वित्तीय पैटर्न की परत-दर-परत जांच की गई। केस I4C (Indian Cyber Crime Coordination Centre) से मिले इनपुट पर दर्ज किया गया।

CBI की जांच में हुआ बड़ा खुलासा

CBI की जांच में यह भी सामने आया कि अपराधियों ने अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया। Google Ads, बल्क SMS, SIM-बॉक्स मैसेजिंग सिस्टम, क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर और फिनटेक प्लेटफॉर्म के जरिए ठगी की गई। ठगी के हर चरण को इस तरह डिजाइन किया गया कि असली कंट्रोलर्स की पहचान छिपी रहे। नेटवर्क की रीढ़ 111 शेल कंपनियां थीं। इन कंपनियों को डमी डायरेक्टर, फर्जी दस्तावेज और नकली पते के साथ रजिस्टर कराया गया। इन शेल कंपनियों के नाम पर बैंक अकाउंट और पेमेंट गेटवे मर्चेंट अकाउंट खोले गए, जिनका इस्तेमाल पैसे की लेयरिंग और डायवर्जन के लिए किया गया।

सैकड़ों बैंक अकाउंट्स का एनालिसिस

CBI ने सैकड़ों बैंक अकाउंट्स का एनालिसिस किया जिसमें खुलासा हुआ कि 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा का लेन-देन किया गया। इनमें से एक बैंक अकाउंट में ही 152 करोड़ से ज्यादा की रकम जमा हुई थी। 27 जगहों पर छापेमारी कर डिजिटल डिवाइस, दस्तावेज और वित्तीय रिकॉर्ड जब्त किए गए।

भारत में बनवा रहे थे शेल कंपनियां

जांच में यह भी पता चला कि पूरे नेटवर्क का ऑपरेशनल कंट्रोल विदेश से किया जा रहा था। दो भारतीय आरोपियों के बैंक अकाउंट से जुड़ी UPI ID अगस्त 2025 तक विदेशी लोकेशन से एक्टिव थी। विदेशी मास्टरमाइंड्स – Zou Yi, Huan Liu, Weijian Liu और Guanhua Wang साल 2020 से भारत में शेल कंपनियां बनवा रहे थे। भारतीय सहयोगी आम लोगों के नाम पर कंपनियां रजिस्टर कर बैंक अकाउंट खोलते और साइबर फ्रॉड से कमाई गई रकम को कई प्लेटफॉर्म और खातों के जरिए घुमाते थे। इससे मनी ट्रेल को छुपाना आसान हो जाता था।

58 कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज

CBI ने सभी आरोपियों और 58 कंपनियों के खिलाफ आपराधिक साजिश, जालसाजी, फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल और Banning of Unregulated Deposit Schemes Act, 2019 के तहत मामला दर्ज किया। यह कार्रवाई Operation CHAKRA-V के तहत की गई जो ट्रांसनेशनल साइबर वित्तीय अपराधों के खिलाफ CBI का विशेष अभियान है।

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केरल निकाय चुनाव में शशि थरूर की भूमिका संदिग्ध, भाजपा की जीत से खुश

कांग्रेस सांसद शशि थरूर की भूमिका को लेकर भी नई अटकलों को जन्म दिया है। तिरुवनंतपुरम नगर निगम में भाजपा के अप्रत्याशित प्रदर्शन ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राज्य की राजनीति किसी नए दौर में प्रवेश कर रही है।

tharoor
शशि थरूर और पीएम नरेंद्र मोदी
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar13 Dec 2025 07:10 PM
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Kerala Local Body Elections : केरल की राजनीति में हालिया स्थानीय निकाय चुनावों ने ऐसी हलचल पैदा कर दी है, जिसने न सिर्फ पारंपरिक राजनीतिक समीकरणों को चुनौती दी है, बल्कि कांग्रेस सांसद शशि थरूर की भूमिका को लेकर भी नई अटकलों को जन्म दिया है। तिरुवनंतपुरम नगर निगम में भाजपा के अप्रत्याशित प्रदर्शन ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राज्य की राजनीति किसी नए दौर में प्रवेश कर रही है।

तिरुवनंतपुरम में भाजपा की बढ़त : एक संकेत, सिर्फ जीत नहीं

तिरुवनंतपुरम नगर निगम में भाजपा-नीत एनडीए का लगभग बहुमत तक पहुंचना केरल के राजनीतिक इतिहास में एक अहम घटना है। यह वही क्षेत्र है, जिसे लंबे समय से वाम दलों और कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। इस प्रदर्शन ने साफ कर दिया है कि शहरी मतदाता अब पारंपरिक विकल्पों से संतुष्ट नहीं हैं और नए राजनीतिक प्रयोग के लिए तैयार दिख रहे हैं। यह बदलाव सिर्फ सीटों की संख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि मतदाताओं की सोच में आए परिवर्तन को भी दर्शाता है।

शशि थरूर का बदला हुआ तेवर: संयोग या संकेत?

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर का रुख हाल के दिनों में चर्चा का विषय बना हुआ है। पार्टी नेतृत्व की अहम बैठकों से उनकी अनुपस्थिति और भाजपा की जीत पर सार्वजनिक रूप से बधाई देना सामान्य राजनीतिक व्यवहार से अलग माना जा रहा है। थरूर का बयान लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सम्मान को दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह भी संकेत देता है कि वह कांग्रेस की मौजूदा रणनीति और नेतृत्व से पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिख रहे। उनका यह रुख पार्टी के भीतर बढ़ती असहमति की ओर भी इशारा करता है।

कांग्रेस की चुनौती : बाहरी खतरे से ज्यादा अंदरूनी असमंजस

इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता भाजपा की जीत नहीं, बल्कि अपनी पकड़ का कमजोर होना है। खासकर शहरी और शिक्षित मतदाताओं के बीच पार्टी की अपील लगातार घटती नजर आ रही है। यूडीएफ के भीतर स्पष्ट नेतृत्व, ठोस एजेंडा और भविष्य की दिशा को लेकर भ्रम की स्थिति दिखाई देती है। यही कारण है कि भाजपा जैसे दल को राजनीतिक विस्तार का अवसर मिल रहा है।

भाजपा के लिए अवसर, लेकिन रास्ता आसान नहीं

भाजपा के लिए यह जीत मनोबल बढ़ाने वाली जरूर है, लेकिन केरल जैसे राज्य में दीर्घकालिक सफलता हासिल करना अब भी चुनौतीपूर्ण रहेगा। सामाजिक संरचना, राजनीतिक परंपराएं और मजबूत विपक्ष भाजपा के लिए बड़ी बाधाएं बनी रहेंगी। हालांकि, यह परिणाम 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा को एक मजबूत आधार जरूर प्रदान करता है। केरल की राजनीति में बदलाव के संकेत स्पष्ट हैं, लेकिन इसे पूर्ण परिवर्तन कहना अभी जल्दबाजी होगी। यह चुनाव परिणाम एक चेतावनी, एक अवसर और एक संभावित नए राजनीतिक अध्याय की शुरूआत जरूर है। शशि थरूर की भूमिका आने वाले समय में और अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है, चाहे वह कांग्रेस के भीतर सुधार की आवाज बनें या केरल की राजनीति में किसी नए संतुलन का संकेत दें। फिलहाल इतना तय है कि केरल की सियासत अब पुराने ढर्रे पर चलने को तैयार नहीं दिख रही।

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पश्चिम बंगाल में बाबरी मस्जिद वाले विधायक हुमायूं कबीर पर बड़ा पेंच

TMC से निष्कासित किए गए हुमायूँ कबीर के मुद्दे पर एक बड़ा पेंच फंस गया है। यह पेंच इतना बड़ा है कि विधायक को चिल्ला-चिल्लाकर घोषणा करनी पड़ रही है कि ‘‘मैं बाबरी मस्जिद वाला विधायक हुमायूँ कबीर नहीं हूं।

एक नाम, दो विधायक… बंगाल में ‘हुमायूं कबीर’ को लेकर बड़ा कन्फ्यूजन
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locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar12 Dec 2025 03:58 PM
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Humayun Kabir : पश्चिम बंगाल में बाबरी मस्जिद बनाने की नींव पड़ गई है। पश्चिम बंगाल में बाबरी मस्जिद की नींव तृणमूल कांग्रेस (TMC) के एक विधायक हुमायूं कबीर ने रखी है। टीएमसी (TMC) ने विधायक हुमायूं कबीर को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। TMC से निष्कासित किए गए हुमायूँ कबीर के मुद्दे पर एक बड़ा पेंच फंस गया है। यह पेंच इतना बड़ा है कि विधायक को चिल्ला-चिल्लाकर घोषणा करनी पड़ रही है कि ‘‘मैं बाबरी मस्जिद वाला विधायक हुमायूँ कबीर नहीं हूं। 

नाम के संकट ने उलझा दिया हुमायूं कबीर का मामला

दुनिया के प्रसिद्ध लेखक तथा दार्शनिक शेक्सपियर ने कहा था कि 'नाम में क्यों रखा है' और कई मायने में यह कथन सच लगता है, लेकिन पश्चिम बंगाल में, इन दिनों यह उक्ति मिथ्या साचित हो रही है। यहां नाम को लेकर राजनीति गरमा गई है। पश्चिम बंगाल में दो-दो हुमायूं कबीर को लेकर अफरा-तफरी मची है। मजे की बात है कि दोनों ही हुमायूं कबीर तृणमूल कांग्रेस के नेता हैं और दोनों ही विधायक भी। एक हुमायूं कबीर हैं भरतपुर के विधायक, जो जो मुर्शिदाबाद जिले के बेलडांगा में बीते 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद की नींव रखने के बाद चर्चा में बने हुए हैं और दूसरे हुमायूं कबीर हैं डेबरा के विधायक, जो पहले भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में थे। डेबरा वाले पुलिस सेवा से राजनीति में आए और तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। भरतपुर वाले ने कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा पहुंचने के बाद तृणमूल का दामन थामा था।

मैं बाबरी मजिस्द वाला हुमायूं कबीर नहीं हूं

एक ही नाम होने के कारण डेबरा वाले हुमायूं कबीर को बीते दो-तीन दिनों से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उनकी फोन की घंटी लगातार बज रही है और वह यह बताते बताते थक से गए हैं कि मैं बाबरी मस्जिद वाला हुमायूं कबीर नहीं हूं। दरअसल, भरतपुर के विधायक ने छह दिसंबर को बेलडांगा में बाबरी मस्जिद की नींव रखी थी और इसके निर्माण के लिए लोगों से 'क्यूआर कोड' के जरिये आर्थिक मदद देने का आग्रह किया था। जिन्हें नहीं मालूम कि बंगाल में हुमायूं कबीर नाम के दो-दो विधायक हैं, वे मस्जिद निर्माण में आर्थिक सहयोग देने के लिए लगातार डेबरा वाले विधायक को फोन कर 'क्यूआर कोड' या 'गूगल-पे नंबर' या 'बैंक अकाउंट नंबर' मांग रहे हैं। डेबरा विधायक ने बताया कि एक जैसा नाम होने के कारण बीते तीन दिनों में 300 से अधिक लोगों ने चंदा देने की इच्छा से उन्हें फोन किया। ये फोन बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मुंबई, हरियाणा, राजस्थान और विदेशों से भी आ रहे हैं। अब भी अजनबियों के फोन आ रहे हैं। पूर्व आईपीएस और मौजूदा विधायक हुमायूं कबीर ने बताया कि लगातार फोन और संदेश का जवाब देने में बहुत मुश्किल हो रही है। उन्हें बार-बार समझाना पड़ रहा है कि वह मुर्शिदाबाद वाले हुमायूं कबीर नहीं हैं। वह सफाई देते फिर रहे हैं कि उनका नाम भी हुमायूं कंबीर है, लेकिन उन्हें तृणमूल कांग्रेस से निलंबित नहीं किया गया है

सोशल मीडिया पर देनी पड़ रही है सफाई

डेबरा वाले हुमायूं कबीर को सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर भी सफाई देनी पड़ रही है। डेबरा वाले हुमायूं कबीर ने कहा कि स्थिति थोड़ी अजीब हो गई है, लेकिन वह विनम्रतापूर्वक लोगों को सही नंबर ढूंढने और भरतपुर वाले हुमायूं कबीर से संपर्क करने की सलाह दे रहे हैं। उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट भी लिखा कि मंदिर और मस्जिद राजनीतिक अखाड़ा नहीं, बल्कि प्रार्थना व पूजा के स्थल हैं। Humayun Kabir

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