Wrestlers Protest : इंसाफ मिलने तक जारी रहेगी लड़ाई, शाह से हुई थी मुलाकात : साक्षी, बजरंग

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Fight will continue till justice is met, had met Shah: Sakshi, Bajrang
locationभारत
userचेतना मंच
calendar05 Jun 2023 11:07 PM
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नयी दिल्ली। भारतीय कुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई कर रहे ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया ने इससे पीछे हटने की खबरों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि इंसाफ मिलने तक उनकी लड़ाई जारी रहेगी। रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साक्षी ने ट्वीट कर कहा कि ये खबर बिल्कुल गलत है। इंसाफ की लड़ाई में ना हम में से कोई पीछे हटा है और ना हटेगा।

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शाह से बातचीत में नहीं निकला कोई समाधान

साक्षी और बजरंग ने तीन जून की रात गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की और उसके बाद से ही मीडिया में उनके आंदोलन से नाम वापिस लेने की अटकलें लगाई जा रही थीं। साक्षी ने इस मुलाकात की पुष्टि की और कहा कि यह औपचारिक मुलाकात थी और इसमें कोई समाधान नहीं निकला है। उन्होंने गृहमंत्री से मुलाकात को लेकर मीडिया से बातचीत में कहा कि हमारी सामान्य बातचीत हुई और कोई अंतिम समाधान नहीं निकला। हमारी मांग आखिर तक यही रहेगी कि आरोपी पर गंभीर आरोप लगे हैं और उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिये।

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आंदोलन वापस लेने की खबरें कोरी अफवाह

वहीं, तोक्यो ओलंपिक कांस्य पदक विजेता बजरंग ने ट्वीट कर कहा कि आंदोलन वापस लेने की खबरें कोरी अफवाह हैं। ये खबरें हमें नुकसान पहुंचाने के लिये फैलाई जा रही है। उन्होंने आगे लिखा कि हम न पीछे हटे हैं और न ही हमने आंदोलन वापस लिया है। महिला पहलवानों की एफआईआर वापस लेने की खबर भी झूठी है। इंसाफ मिलने तक लड़ाई जारी रहेगी।

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जारी है हमारा आंदोलन

साक्षी ने बाद में मीडिया से बातचीत के दौरान आगे कहा कि आंदोलन से हम बिल्कुल भी पीछे नहीं हटे हैं। इंसाफ मिलने तक सत्याग्रह जारी रहेगा। और जहां तक रेलवे की बात है तो आंदोलन के साथ मैं अपनी जिम्मेदारी भी निभा रही हूं। उन्होने कहा कि हम आगे की रणनीति बना रहे हैं। हम अहिंसा के साथ आंदोलन को आगे बढाना चाहते हैं। मैं रेलवे में ओएसडी हूं और मेरी बहुत सारी जिम्मेदारियां हैं, तो जब तक आंदोलन नहीं चल रहा है और हम रणनीति बना रहे हैं, तब तक मैं यहां अपना काम देख रही हूं।

नाबालिग लड़की के बयान वापस लेने की खबर गलत

नाबालिग लड़की के बयान वापस लेने की खबरों पर उन्होंने कहा कि यह फेक न्यूज है। यह हमारे आंदोलन को कमजोर करने और आम जनता को हमसे तोड़ने के लिये ये खबरें चलाई गई हैं, जो बिल्कुल गलत है। हम इस लड़ाई में ना कभी पीछे हटे थे और ना ही हटेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि हम सभी इस आंदोलन में एक हैं और एक ही रहेंगे।

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28 मई को हुई थी गिरफ्तारी

एक अवयस्क समेत सात महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे बृजभूषण की गिरफ्तारी की मांग को लेकर ये पहलवान 23 अप्रैल से जंतर मंतर पर धरने पर बैठे थे। लेकिन, 28 मई को नये संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर वहां महिला महापंचायत के आयोजन के लिये बढ़ने की कोशिश के बाद दिल्ली पुलिस ने पहलवानों को कानून और व्यवस्था बिगाड़ने के आरोप में हिरासत में ले लिया था। उन्हें शाम को छोड़ दिया गया, लेकिन जंतर मंतर को खाली कराके उन्हें दोबारा वहां प्रदर्शन की अनुमति नहीं देने का ऐलान किया गया। इसके बाद पहलवान 30 मई को हरिद्वार में अपने पदक गंगा में विसर्जित करने गए, लेकिन किसान और खाप नेताओं के समझाने के बाद पदक बहाये बिना लौट आये थे।

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Rajasthan News : चुनाव में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए काम करे निर्वाचन आयोग : मिश्र

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Election Commission should work to increase citizens' participation in elections: Mishra
locationभारत
userचेतना मंच
calendar05 Jun 2023 10:37 PM
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जयपुर। राजस्‍थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि मतदान के प्रति लोगों को जागरूक कर चुनाव प्रक्रिया में नागरिकों की अधिकाधिक सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग काम करे। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं में आमजन के विश्वास को मजबूत करने में निर्वाचन आयोग की प्रभावी भूमिका है। राज्यपाल मिश्र सोमवार को माउंट आबू में 'सुदृढ़ लोकतंत्र में राज्य चुनाव आयोगों की भूमिका’ विषयक सम्मेलन में सम्बोधित कर रहे थे।

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लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती के लिए नागरिकों की सहभागिता जरूरी

कलराज मिश्र ने कहा कि वही लोकतांत्रिक संस्थाएं सुदृढ़ होती हैं, जहां नागरिकों की अधिकाधिक सहभागिता होती है और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव ही इसका आधार है। चुनाव कराने की प्रक्रिया जितनी महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्व मतदान में अधिकाधिक भागीदारी का भी है। राज्य निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है और संविधान ही चुनाव आयोग की शक्तियों की रक्षा करता है।

उन्होंने कहा कि संविधान प्रदत्त अधिकारों और शक्तियों का समुचित उपयोग करते हुए पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों की चुनाव प्रक्रिया का प्रभावी संचालन कर निर्वाचन आयोग लोकतंत्र को मजबूत करने का कार्य कर रहे हैं। मिश्र ने चुनावी व्यय में कमी लाने के उपायों पर सम्मेलन में चर्चा किए जाने का सुझाव भी दिया। उन्होंने आशा उम्मीद जताई कि विभिन्न राज्यों में गठित राज्य निर्वाचन आयोग अपने यहां अपनाए गए नवाचारों और अनुभवों को साझा करेंगे, ताकि पंचायत स्तर तक लोकतंत्र को सशक्त करने के लिए प्रभावी कार्य हो सकें।

राज्य निर्वाचन आयोग को और शक्तियों और स्वायत्तता की जरूरत

राज्य निर्वाचन आयुक्त मधुकर गुप्ता ने कहा कि संवैधानिक संस्था के रूप राज्य निर्वाचन आयोगों को भी वही शक्तियां, स्वतंत्रता और स्वायत्तता प्रदान किए जाने की जरूरत है, जो वर्ष 1994 के बाद भारत निर्वाचन आयोग को दी गई है। अपने संबोधन में उन्होंने चुनाव प्रक्रिया में सूचना प्रौद्योगिकी और तकनीक के प्रभाव, स्थानीय निकाय चुनावों और पंचायत चुनावों में वित्तपोषण, चुनाव प्रक्रिया का खर्च घटाने और ईवीएम सहित अन्य संसाधनों के बेहतर उपयोग सहित विभिन्न पहलुओं की चर्चा की।

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सम्मेलन में की गई विभिन्न मुद्दों पर चर्चा

आंध्र प्रदेश की राज्य निर्वाचन आयुक्त नीलम साहनी ने कहा कि राज्य चुनाव आयोगों के बेहतर प्रबंधन पर विचार-विमर्श की दृष्टि से यह सम्मेलन महत्वपूर्ण साबित होगा। सम्मेलन में राज्य निर्वाचन आयोग के पूर्ण स्वतंत्र और समेकित बजट, आईटी के प्रभावी उपयोग, मतदाता जागरूकता के लिए नवाचार आदि मुद्दों पर प्रभावी रूप से चर्चा की गई। सम्मेलन में महाराष्ट्र के राज्य निर्वाचन आयुक्त रविन्दर पाल सिंह मदान सहित विभिन्न राज्यों के चुनाव आयुक्त, सचिव एवं अधिकारी उपस्थित रहे।

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Delhi Sakshi Murder Case : साक्षी मर्डर केस के बाद बढ़ी समाज विज्ञानियों की चिंता, संवेदनहीनता बड़ी समस्या

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Delhi Sakshi Murder Case 
locationभारत
userचेतना मंच
calendar26 Nov 2025 02:15 AM
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Delhi Sakshi Murder Case : दिल्ली के शाहबाद डेरी इलाके में हुए साक्षी हत्याकांड ने सामाजिक कार्यकर्ताओं, समाज के जागरूक नागरिकों व समाज विज्ञानियों की चिंता बढ़ गई है। इन सबकी चिंता का सबब बहुत ही वाजिब है। अधिकतर समाज विज्ञानियों का मत है कि इस मामले ने समाज में बढ़ती संवेदनहीनता का बड़ा उदाहरण पेश किया है। इस विषय में चेतना मंच ने सामाजिक विज्ञान की ज्ञाता सुश्री प्रवीणा अग्रवाल से बात की है। नीचे हम उनके विचारों को ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहे हैं।

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बढ़ते अपराध और मरती संवेदनायें या संवेदनहीन समाज

जिस तरह दिन-ब-दिन अपराधिक घटनायें क्रूर से क्रूरतम होती जा रही हैं और इन घटनाओं के उपरांत जिस तरह की प्रतिक्रिया आती हैं वह हमें सोचने पर विवश करती हैं कि क्या भारतीय समाज एक समाज के रूप में विफल हो गया है। क्या हमारी चेतना इतनी निश्चेतन हो गयी है कि हमारा मन-मस्तिष्क इन क्रूरतम अपराधों में भी मनोरंजन की खोज कर रहा है अथवा समाज अपनी नपुसंकता के लिये आवरण तलाश रहा है और समय पर कुछ न कर पाने की विवशता के लिये स्पष्टीकरण गढ रहा है। पिछले दिनों दिल्ली के व्यस्ततम क्षेत्र शहबाद डेयरी में एक 16 वर्षीय किशोरी की चाकू के बीसियों वार कर हत्या कर दी गयी। लोग आस-पास से गुजरते रहे। हत्यारा बिना किसी डर या भय के चाकू से किशोरी को गोदता रहा, पैरों से रौंदता रहा, पत्थरों से कुचलता रहा। ऐसे वीभत्स दृश्य को आप और हम देख भी नहीं सकते। लेकिन जब यह वीभत्स अपराध घटित हो रहा था तब कोई प्रतिरोध के लिये आगे नही बढ़ा। सिर्फ तमाशबीन बने रहे सब। क्या एक जीवंत समाज इस तरह निष्क्रिय, मूकदर्शक बना रह सकता है ? क्रूरतम घटनाएं हजारों लोगों के सामने घट जाती है पर अफसोस किसी ने कुछ नहीं देखा होता, क्योंकि हम उस समाज के अंग है जो बहरा है, गूंगा है और अंधा भी है। बाद में लोग कहेंगे अगर अपनी बहन बेटी होती तो, पर हर बच्ची हर महिला किसी न किसी की बहन बेटी तो होती ही है। ये क्रूरतम घटनायें बाद में मनोरंजन या समय गुजारने का जरिया बनती हैं।

Delhi Sakshi Murder Case

ये क्रूरतम अपराध से अचानक ‘STORY’ बन जाती है। चैनलों में टीआरपी की होड होती है। कौन सबसे पहले कौन सा सीक्रेट ‘खोज’ कर ले आया ? पोस्टमार्टम में क्या मिला ? चाकू कहाँ से खरीदा, कितने टुकड़े किये, कितनी बार चाकू घोंपा ? कितने वार किये ? माता-पिता क्या कह रहे है। पड़ोसी क्या जानते हैं। दोस्तों सहेलियों ने कौन सा राज खोला। लोगों की प्रतिक्रियायें, कानून विशेषज्ञों की राय। घटना घटी बेचने का मसाला मिला। यदि कहीं पीडित एवं अपराधी का धर्म अलग हो अथवा दलित और सवर्ण का एंगल निकल आये तो फिर कहना ही क्या ? समाज इसे लेकर जुगाली कर रहा है। क्या इसी नैतिक दिवालियेपन ने समाज नामक संस्था के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। जो अन्याय, अत्याचार के खिलाफ लड़ता नहीं केवल तमाशबीन बनकर खड़ा है। ऊपर से ढकोसला यह कि कुछ रुपये पैसे बांटकर आवाजें बंद कर दी जाये क्योंकि अन्याय का शिकार गरीब है, अभावग्रस्त है। अपने अधिकारों के प्रति सजगता एवं दायित्वों के प्रति आंख मूंद लेने की प्रवृत्ति ने समाज को रोगी बना दिया है।

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अब यह जरूरी हो गया है कि निष्क्रिय हो रहे समाज को बचाया जाये। पर कैसे? क्या हम एक ऐसी न्याय व्यवस्था बना सकते है जो जल्दी फैसले करे क्योंकि अभी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में एक फैसला 42 वर्षों के बाद आया है। जिसके 10 में से 9 अपराधियों की मृत्यु हो चुकी है। एक जीवित है जिसे आजीवन कारावास की सजा मिली हैं उसकी उम्र 90 वर्ष है। क्या उन 10 व्यक्तियों के परिवारीजनों को न्याय मिला, जिनकी हत्या कर दी गयी थी ? क्या हम कोई ऐसा कानून बना सकते हैं कि घटना के समय मूकदर्शक बने रहने वालों की भी जिम्मेदारी तय की जाये। यदि यह कानूनी रूप से संभव न हो तो समाज स्वयं यह जिम्मेदारी लें। अन्याय एवं अत्याचार के विरुद्ध एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनानी होगी जो डटकर मुकाबला करें। हर अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद करें। अब समय आ गया है कि हम अपने निजी लाभ हानि का गणित लगाना बंद करें अन्यथा इस मृतप्राय सामाजिक व्यवस्था के ताबूत में अंतिम कील ठोंकने का जिम्मेदारी हमी पर होगी।

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