ईपीएस-95 : 7500 रुपये न्यूनतम पेंशन देने में क्यों हो रही देरी

पेंशनर्स की प्रमुख मांग है कि न्यूनतम पेंशन को 7,500 रुपये किया जाए, साथ ही महंगाई भत्ता, बेहतर फैमिली पेंशन और मुफ्त चिकित्सा सुविधा भी दी जाए। लेकिन अब तक सरकार की ओर से इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।

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ईपीएफओ
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar18 Dec 2025 03:50 PM
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पीएस-95 पेंशन योजना : ईपीएस-95 पेंशन योजना से जुड़े लाखों सेवानिवृत्त कर्मचारी कई वर्षों से न्यूनतम पेंशन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। वर्तमान में उन्हें केवल 1,000 रुपये मासिक पेंशन मिलती है, जो आज की महंगाई में पर्याप्त नहीं मानी जा रही। पेंशनर्स की प्रमुख मांग है कि न्यूनतम पेंशन को 7,500 रुपये किया जाए, साथ ही महंगाई भत्ता, बेहतर फैमिली पेंशन और मुफ्त चिकित्सा सुविधा भी दी जाए। लेकिन अब तक सरकार की ओर से इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।

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श्राप या संयोग: 200 साल बाद भी क्यों नहीं बसा कुलधरा

राजस्थान के जैसलमेर शहर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर रेगिस्तान के बीच बसा कुलधरा गांव आज भी रहस्य, इतिहास और सन्नाटे की कहानी कहता है। यह गांव बीते करीब 200 वर्षों से पूरी तरह वीरान पड़ा है। मान्यता है कि यहां रहने वाले लोग एक ही रात में गांव छोड़कर चले गए थे और फिर कभी लौटकर नहीं आए।

Kuldhara village in Rajasthan
इतिहास और लोककथाओं के बीच कुलधरा गांव (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar18 Dec 2025 03:37 PM
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बता दें कि वर्तमान में कुलधरा गांव भारतीय पुरातत्व विभाग की निगरानी में है। स्थानीय परंपराओं और लोककथाओं के अनुसार, करीब दो शताब्दी पहले जब जैसलमेर एक रियासत हुआ करता था, तब कुलधरा उसका सबसे समृद्ध गांव माना जाता था। यहां पालीवाल ब्राह्मण समुदाय निवास करता था और यह गांव रियासत को सबसे अधिक राजस्व देने वाला क्षेत्र था। गांव में उत्सव, पारंपरिक नृत्य और संगीत कार्यक्रम आम बात थे।

कहानी जैसलमेर रियासत की

कुलधरा के उजड़ने की कहानी जैसलमेर रियासत के तत्कालीन दीवान सालिम सिंह से जुड़ी बताई जाती है। लोककथाओं के अनुसार, गांव की एक अत्यंत सुंदर युवती पर सालिम सिंह की नजर पड़ गई और उसने उससे विवाह करने की जिद कर दी। सालिम सिंह को एक क्रूर और अत्याचारी शासक के रूप में जाना जाता था। गांव वालों ने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया, लेकिन उन्हें यह भी डर था कि इंकार करने पर वह गांव में भारी अत्याचार कर सकता है। परंपरा के अनुसार, गांव के मंदिर के पास स्थित चौपाल में पंचायत बुलाई गई। पंचायत में यह निर्णय लिया गया कि बेटी और गांव के सम्मान की रक्षा के लिए वे अपना गांव ही छोड़ देंगे। उसी रात पूरा गांव—अपने मवेशी, अनाज, कपड़े और जरूरी सामान के साथ—कुलधरा छोड़कर चला गया। इसके बाद यह गांव कभी आबाद नहीं हो सका।

समृद्ध अतीत की झलक

आज कुलधरा में पत्थरों से बने घरों की कतारें खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं, लेकिन चूल्हे, बैठने की जगहें और पानी के घड़े रखने के स्थान अब भी मौजूद हैं, जो यहां के समृद्ध अतीत की झलक देते हैं। खुला रेगिस्तानी इलाका और सरसराती हवा यहां के सन्नाटे को और भी भयावह बना देती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि रात के समय खंडहरों में कदमों की आहट सुनाई देती है। यह भी मान्यता है कि कुलधरा के निवासियों की आत्माएं आज भी यहां भटकती हैं। एक और प्रचलित विश्वास यह है कि गांव छोड़ते समय लोगों ने कुलधरा को श्राप दिया था कि यह स्थान दोबारा कभी नहीं बसेगा।

गांव का प्राचीन मंदिर आज भी इतिहास का मूक साक्षी

राजस्थान सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गांव के कुछ मकानों को पुराने स्वरूप में बहाल कराया है। गांव का प्राचीन मंदिर आज भी इतिहास का मूक साक्षी बनकर खड़ा है। हर साल देश-विदेश से हजारों पर्यटक इस रहस्यमय गांव को देखने पहुंचते हैं। कुलधरा गांव आज भी जैसलमेर के रेगिस्तान में सम्मान, बलिदान और रहस्य की एक जीवित कहानी बनकर खड़ा है।

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रबी मौसम की महत्वपूर्ण फसल जौ, कम पानी में बेहतर पैदावार

भारत में गेहूं और धान के बाद जौ एक महत्वपूर्ण अनाज की फसल है, जिसे मुख्य रूप से रबी के मौसम में उगाया जाता है। यह फसल ठंडे मौसम में बोई जाती है और गर्म इलाकों में सफलतापूर्वक उत्पादन देती है।

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रबी मौसम की महत्वपूर्ण फसल जौ (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar18 Dec 2025 02:32 PM
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बता दें कि जौ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कम पानी में भी अच्छी पैदावार देने की क्षमता रखती है, जिससे यह फसल किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध होती है। जौ की खेती हल्की जमीनों जैसे रेतीली और कल्लर वाली मिट्टी में भी आसानी से की जा सकती है। हालांकि, उपजाऊ भूमि और भारी से दरमियानी मिट्टी इसकी अच्छी पैदावार के लिए अधिक अनुकूल मानी जाती है। तेजाबी मिट्टी में जौ की खेती उपयुक्त नहीं होती।

उन्नत किस्में और उनकी विशेषताएं

कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित कई उन्नत किस्में किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही हैं। बिना छिलके वाली किस्म है, जिससे सत्तू, फ्लेक्स, दलिया और आटा बनाया जाता है। इसकी औसतन पैदावार 16.8 क्विंटल प्रति एकड़ है। बीयर उद्योग के लिए उपयुक्त किस्म है और 19.4 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार देती है। बारानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है और 130 दिनों में पक जाती है। PL 172, PL 807, DWRUB 52, VJM 201, BH 75, BH 393 और PL 426 जैसी किस्में रोग प्रतिरोधक क्षमता, अच्छी बढ़वार और संतोषजनक उपज के लिए जानी जाती हैं।

खेत की तैयारी और बिजाई

अच्छी फसल के लिए खेत को 2–3 बार जोतना चाहिए ताकि नदीनों का सही ढंग से नाश हो सके। बिजाई के लिए 15 अक्तूबर से 15 नवंबर का समय सर्वोत्तम माना जाता है। समय से देर होने पर पैदावार में गिरावट आ सकती है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए, जबकि देर से बिजाई में 18–20 सेंटीमीटर का फासला उपयुक्त रहता है।

बीज, उपचार और नदीन नियंत्रण

सिंचित क्षेत्रों में 35 किलोग्राम और बारानी क्षेत्रों में 45 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ प्रयोग करने की सिफारिश की जाती है। बीज को बाविस्टिन या वीटावैक्स से उपचारित करने पर कांगियारी और अन्य रोगों से बचाव होता है। दीमक नियंत्रण के लिए फॉर्माथियोन का उपयोग लाभदायक है। नदीनों की समय पर रोकथाम फसल की सफलता के लिए जरूरी है। चौड़े पत्तों वाले नदीनों के लिए 2,4-D और बारीक पत्तों वाले नदीनों के लिए आइसोप्रोटियूरॉन या पैंडीमैथालीन का छिड़काव प्रभावी माना जाता है।

किसानों के लिए लाभकारी विकल्प

विशेषज्ञों का मानना है कि जौ की खेती कम लागत, कम पानी और विविध उपयोगों के कारण किसानों के लिए एक सुरक्षित और लाभदायक विकल्प है। सही किस्म, समय पर बिजाई और उचित प्रबंधन से किसान जौ की फसल से अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं।


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