Bihar News : बिहार की राजधानी पटना में शुक्रवार को तमाम विपक्षी दलों की महाबैठक हुई जिसमे एंटी-बीजेपी विपक्षी दलों के सभी बड़े चेहरे देखने को मिले तकरीबन 15 पार्टियों के नेता आए और एक साथ मिशन 2024 की हुंकार भरी गई। नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष एकजुट है, इसका ढिंढोरा भी खूब पीटा गया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विपक्षी एकजुटता के लिए संयोजक की जिम्मेदारी दी गई हालांकि नीतीश इस किरदार को बहुत पहले से ही खुलकर निभा भी रहे हैं । राजनीतिक इंजीनियरों का कहना कि अभी पटना में सिर्फ टीजर दिखा है अगले महीने शिमला में पूरी पिक्चर दिखाने का वादा भी हो गया । वहां पर कांग्रेस की अगुआई में विपक्षी दल पटना मीटिंग से आगे की रणनीति को तय करेंगे।
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लेकिन इसी बीच कुछ दिलचस्प किरदार भी सामने आए विपक्षी एकता आकार लेने से पहले ही ढहती हुई दिख रही है। आम आदमी पार्टी ने पटना मीटिंग के बाद हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस से खुदको अलग कर लिया फिर भी यहां तक तो ठीक था लेकिन आम आदमी पार्टी ने बयान जारी कर धमकी भी दे दी कि अगर उसकी बात नहीं मानी गई तो वह किसी भी ऐसे गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी, खासकर जिसमें कांग्रेस होगी। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के तेवरों ने नीतीश कुमार की मुश्किलें और भी बढ़ा दी हैं ।
क्या चाहती है काँग्रेस
आम आदमी पार्टी चाहती है कि जितने भी विपक्षी दल है वे सब एक साथ आए और दिल्ली में नौकरशाही पर कंट्रोल को लेकर लाए गए केंद्र के अध्यादेश के विरोध में उसका साथ दे। क्योंकि अध्यादेश के बाद अरविंद केजरीवाल के मुंह का निवाला भी बीजेपी ने छीन लिया जो की सुप्रीम कोर्ट ने दिया था। इसे लोकतंत्र पर हमला बताते हुए केजरीवाल ने शरद पवार, नीतीश कुमार, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन, एमके स्टालिन समेत जितने भी विपक्ष के नेता है उन सबसे अलग-अलग मुलाकात कर उनका समर्थन मांगा था। हालांकि, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल को न तो मिलने का समय दिया और न ही अध्यादेश पर कुछ खुलकर बोला है यही बात केजरीवाल को पच नहीं रही है।
पटना में विपक्ष की बैठक से पहले आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए धमकी दी कि अगर कांग्रेस ने संसद में अध्यादेश के विरोध का भरोसा नहीं दिया तो वह मीटिंग में नहीं शामिल होगी। इतना ही नहीं, मीटिंग में वह सबसे पहले अध्यादेश के मुद्दे पर ही चर्चा की मांग पर अड़ गए थे केजरीवाल । लेकिन उसे कोई भाव नहीं मिला। खैर, मीटिंग हुई तो उसमें अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान भी शामिल हुए। उन्हें उम्मीद थी कि मीटिंग में कांग्रेस अध्यादेश के मुद्दे पर चुप्पी तोड़ेगी और समर्थन का भरोसा देगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद तो उसके सब्र का बांध मानो टूट ही गया और साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस से खुदको अलग कर लिया।
पटना की बैठक के बाद विपक्ष के नेताओं ने संयुक्त रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। इसमें बाकी सभी चेहरे तो दिखे लेकिन जो चेहरा नहीं था वो था अरविंद केजरीवाल का। आम आदमी पार्टी का कोई भी नेता प्रेस वार्ता में नहीं सम्मलित हुआ।
लेकिन अब सवाल ये है की उस प्रेस वार्ता ने दिखे तो डीएमके चीफ एमके स्टालिन भी नही । लेकिन चेन्नई पहुंचने के बाद कोई धमकी सुनने को नहीं मिली अरविंद केजरीवाल की तरह जिससे विपक्षी एकता को झटका लगे लेकिन बैठक से निकलने के बाद केजरीवाल की तरफ से एक धमकी भरा बयान आता है की जबतक कांग्रेस केंद्र के अध्यादेश की निंदा नहीं करती, तब तक उसके साथ पार्टी किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सकती।
बयान में कहा गया, ‘जबतक कांग्रेस सार्वजनिक तौर पर केंद्र के काले अध्यादेश का विरोध नहीं करती, ये ऐलान नहीं करती कि राज्यसभा में उसके सभी 31 सांसद इसका विरोध करेंगे, तब तक AAP भविष्य में समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों की ऐसी किसी बैठक में हिस्सा नहीं लेगी खासकर जिसमें कांग्रेस हो । हाला की बीजेपी जो इस महगठबंधन की बैठक को ठगबंधन और फोटो सेशन बता रही थी वो होता हुआ कही न कही नजर भी आया ।
आम आदमी पार्टी ने अपने बयान में कहा, ‘पटना की मीटिंग में 15 पार्टियों ने हिस्सा लिया। इनमें से 12 पार्टियां ऐसी हैं जिनके राज्यसभा में भी सांसद हैं। लेकिन कांग्रेस को छोड़कर बाकी सभी पार्टियों ने अध्यादेश के खिलाफ साथ देने की इच्छा जाहिर की है और ऐलान किया है कि सब एक साथ मिलकर राज्यसभा में इस अध्यादेश का विरोध करेंगे। इस बयान के बाद केजरीवाल के शीर्ष नेताओं ने कहा की कांग्रेस और बीजेपी दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है किसी पर पूर्णतया यकीन नही किया जा सकता।
ऐसे में जहां नीतीश कुमार खुदको विपक्षी एकजूटता का मुखिया समझ रहे है वही क्या केजरीवाल ने नीतीश के सपने पर पानी फेरने का काम कर दिया है देखना दिलचस्प रहेगा की नीतीश की अगली बाजी क्या होगी।