Political Analysis : अयोध्या में कार सेवकों पर गोली न चली होती तो नहीं हो पाता भाजपा का यूं उदय

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The firing on kar sevaks in Ayodhya
locationभारत
userचेतना मंच
calendar03 Nov 2022 04:43 PM
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 मनोज रघुवंशी Political Analysis : नई दिल्ली। देश के जाने माने पत्रकार व चेतना मंच के सतत सहयोगी मनोज रघुवंशी ने आंखों देखी घटना के आधार पर बड़ा विश्लेषण किया है। उनका मत है कि यदि 32 साल पहले उस वक्त के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (अब दिवंगत) ने अयोध्या में कार सेवकों पर गोली नहीं चलवाई होती तो देश में भारतीय जनता पार्टी का उदय इतनी तेजी से नहीं होता।

Political Analysis :

अयोध्या में कार सेवकों पर हुए उस गोलीकाण्ड का आंखों देखा हाल प्रसिद्ध पत्रकार मनोज रघुवंशी ने केवल चेतना मंच के लिए विस्तार से लिखा है। आप भी पढ़िए पूरा सच। ठीक 32 साल पुरानी बात है। अयोध्या में पुलिस की फायरिंग में हमारे कैमरे के सामने लोग मारे गए। अभी तीन दिन पहले ‘चेतना मंच’ में मेरी स्टोरी छपी थी कि कैसे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सख्त दावों के बावजूद उनकी पुलिस ने कार सेवकों को, करीब-करीब एस्कॉर्ट करते हुए, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर के गेट तक पहुंचा दिया, और अंदर से आकर एक पुलिसवाले ने गेट का ताला खोल दिया। कार सेवकों ने परिसर में घुसकर तोड़फोड़ की, जिसको हम केवल इस कारण से शूट कर पाए क्योंकि हमें एक सूत्र ने 15 मिनट पहले ही सूचना दे दी थी कि पुलिस कार सेवकों को मंदिर परिसर में प्रवेश देने वाली है। अब उसके बाद की कहानी। वो घटना 30 अक्टूबर, 1990 की थी। उसके बाद दो दिन तक सस्पेंस बना रहा कि अब क्या होगा? अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद के एक सूत्र ने मुझे बताया था कि कुछ और होने वाला है, लेकिन वो ये नहीं जानते कि क्या होगा, और कब होगा। सूत्र विश्वसनीय था, इसलिए हमने विचार किया कि जो भी हो, वो हमारी टीम को कवर करना चाहिए। ये सारा घटनाक्रम बाबरी ढांचे के सम्पूर्ण विध्वंस से दो साल पहले का है। 30 अक्टूबर को एक खबर आग की तरह फैल गयी थी कि लाठीचार्ज में विश्व हिन्दू परिषद के तत्कालीन नेता अशोक सिंघल जी के सिर में गंभीर चोट आयी है। पहले पता चला कि अशोक सिंघल जी अस्पताल में हैं, लेकिन अस्पताल जाने पर वो नहीं मिले। खबर की पुष्टि तो नहीं हुई, लेकिन इस खबर से वहां पहुंचे कार सेवक बहुत ज्यादा आहत हुए। दो दिन में कार सेवकों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। सूचना मिली कि अशोक जी के साथ कुछ गुप्त मीटिंगों में कार सेवकों को मानसिक रूप से तैयार किया गया कि दो नवम्बर को उन्हें क्या करना है। दो नवम्बर को कार सेवकों का एक विशाल समूह एक बार फिर से श्रीराम जन्मभूमि परिसर की ओर बढ़ने लगा। लेकिन, 30 अक्टूबर के मुकाबले ये हुजूम बहुत दृढ़-संकल्प वाला लग रहा था। आज का हुजूम पुलिस पर पथराव नहीं कर रहा था। आज का हुजूम सड़क पर बैठकर एक-एक कदम करके आगे बढ़ रहा था। लोग एक-दूसरे से चिपक कर इंच-दर-इंच आगे सरक रहे थे। पुलिस उनको रोकने का प्रयास कर तो रही थी, लेकिन ऐसा लग रहा था कि आज लोग रुकेंगे नहीं। आज ये मंदिर परिसर तक पहुंच ही जाएंगे, और आज शायद बाबरी ढांचा बचेगा नहीं। तभी मुलायम सिंह यादव का आदेश आया और पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। फायरिंग बहुत ही नृशंस थी। प्वाइंट-ब्लैंक रेंज पर, आटोमेटिक राइफलों से, निहत्थे कार सेवकों पर गोलियां चलाई गयीं। दो भाइयों, कोठारी बंधुओं को घर से निकालकर गोली मारी गयी। 30 अक्टूबर को भी, अंत में हल्की फायरिंग में 2 लोगों कि मृत्यु हुई थी, जिसमे एक तो हमारे कैमरा के सामने ही मरा था। आज का दृश्य वीभत्स था। आज, दोनों दिन की मिलाकर मृतकों की कुल संख्या 16 पहुंच गयी। बात संख्या की नहीं थी, बर्बरता की थी। संख्या केवल 16 थी, लेकिन अफवाहों में बढ़ गयी। अफवाह थोड़ी दूर पहुंची तो लोगों ने सुना कि 160 कार सेवक मारे गए। थोड़ी और दूर पहुंची तो मरने वालों की संख्या 1,600 हो गयी। और दूर जाने पर 16,000 हो गयी। विश्व हिन्दू परिषद् ने मरने वालों की एक लिस्ट भी जारी की, जिसमे लिखे नामों में, बाद में बहुत से लोग जिंदा पाए गए। बहरहाल, फायरिंग का रिबाउंड मुलायम सिंह यादव पर हो चुका था। उस फायरिंग का खामियाजा मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश के चुनाव में उठाना पड़ा। अगले साल ‘जनता दल’ की हार हुई और ‘भाजपा’ की जीत। कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, जो वो 6 दिसंबर, 1992 तक रहे, जिस दिन बाबरी ढांचे के विध्वंस के कारण उनकी सरकार चली गयी। लेकिन 2 नवम्बर, 1992 की फायरिंग के अगले साल एक और बड़ा बदलाव आया। लोकसभा चुनाव में ‘भाजपा’ की सीटें 88 से बढ़कर 119 हो गयीं। ये ‘भाजपा’ के राष्ट्रीय पटल पर सत्ता में आने से बस दो कदम दूर था। 1996 के लोकसभा चुनाव में यानी बाबरी विध्वंस के बाद वाले चुनाव में ‘भाजपा’ की सीटें बढ़कर 163 हो गयीं और भाजपा की 13 दिन की सरकार बन गयी। उसके अगले लोकसभा चुनाव, यानी 1998 में भाजपा की सीटें 182 हो गयीं और उसने पहली गठबंधन सरकार बना ली। फिर भाजपा ने अगले साल, यानी 1999 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर केंद्रीय सरकार बना ली, जो पूरे पांच साल तक चली। उसके बाद का इतिहास सबके सामने है। भाजपा के इस सारे इजाफे में मुलायम सिंह यादव की 2 नवम्बर, 1990 की फायरिंग के आदेश का असर बार बार पड़ा, लगातार पड़ा।  

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Rajsthan Political News : बगावती गहलोत को तत्काल सजा दें खड़गे : पायलट

Sachin
Kharge should immediately punish Bhagwati Gehlot: Pilot
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Nov 2022 07:48 PM
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Jaipur : जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच की सियासी अदावत थमने का नाम नहीं ले रही है। माना जा रहा है कि पायलट के इस हमले के बाद राज्य की सियासत में भूचाल आना तय है। इससे पहले मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खेमे पर हमला बोला। अब खुद सचिन पायलट ही मैदान में उतर आए हैं। उन्होंने सीधे-सीधे पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से अनुशासनहीनता के आरोपी और बगावत करने वाले नेताओं पर तुरंत कार्रवाई की मांग की है। यह नेता अशोक गहलोत के समर्थक माने जाते हैं।

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मीडियाकर्मियों से चर्चा के दौरान सचिन पायलट ने कहा कि जहां तक राजस्थान की बात है, सब जानते हैं कि 25 सितंबर को कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई थी। वह मीटिंग हो नहीं पाई। उसके लिए खुद मुख्यमंत्री जी ने सॉरी फील किया। माफी भी मांगी थी। पार्टी से भी और पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी जी से भी। उसके बाद जो पर्यवेक्षक यहां आए थे- अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे साहब। उन्होंने भी इसे गंभीरता से लिया था। उस पर संज्ञान लेने के बाद एआईसीसी ने इसे अनुशासनहीनता का मामला माना। उन्होंने कहा कि तीन लोगों को नोटिस दिया गया। नोटिस का जवाब दिया गया है। मैं मानता हूं कि कांग्रेस एक पुरानी पार्टी है। अनुशासित पार्टी है। इस पार्टी में सबके लिए नियम और कायदे-कानून बराबर हैं। अगर अनुशासनहीनता हुई है और उसका जवाब लिया गया है तो इस पर भी शीघ्र निर्णय होना चाहिए। कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो, लेकिन पार्टी का नियम, अनुशासन सब पर बराबरी से लागू होता है। मुझे विश्वास है कि मल्लिकार्जुन खड़गे साहब अभी नए-नए अध्यक्ष बने हैं। उन्होंने पदभार संभाला है। जल्द ही इस पर निर्णय लेंगे। ऐसा तो हो नहीं सकता कि अनुशासनहीनता माना गया, नोटिस भेजा गया, उसका जवाब दिया गया और उसके बाद कोई भी निर्णय न लिया जाए। निर्णय लिया जाएगा और जल्द लिया जाएगा।

Rajsthan Political News :

पायलट ने मानगढ़ धाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तारीफ को दिलचस्प बताया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने भाषण में जो बड़ाइयां कीं, यह एक बेहद दिलचस्प घटनाक्रम है। इसी तरह प्रधानमंत्री जी ने सदन के अंदर गुलाम नबी आजाद जी की बड़ाइयां की थी। उसके बाद क्या घटनाक्रम हुआ, यह हम सबने देखा है। मैं इसे दिलचस्प मानता हूं। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। पायलट ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री से लोगों को बहुत उम्मीद थीं। हमारी सरकार ने मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक के तौर पर विकसित करने की मांग की थी। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए प्रधानमंत्री ने घोषणा नहीं की। प्रधानमंत्री जी ने ईआरसीपी को लेकर भी कुछ नहीं कहा। चुनाव चल रहे थे, तब प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करेंगे। इसका मुझे खेद है। मुझे उम्मीद थी पर ऐसा नहीं हुआ।
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Political News : जयंत के सवाल पर महाना का जवाब, रद्द नहीं की आजम की सदस्यता

Jayant chaudhary
Mahana said on Jayant's question, did not cancel Azam's membership
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Nov 2022 05:46 PM
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Lucknow : लखनऊ। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान की सदस्यता रद्द करने पर राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने सख्त नाराजगी जताई है। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को चिट्ठी लिखकर फैसले पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि अगर आजम खान पर कार्रवाई की गई तो विक्रम सैनी पर क्यों नहीं।

Political News :

जयंत चौधरी ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को भेजे पत्र में लिखा है कि हेट स्पीच मामले में अगर आजम खान को सजा के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म हो सकती है तो मुजफ्फरनगर दंगे में दोषी पाए गए बीजेपी विधायक विक्रम सैनी की क्यों नहीं? जयंत चौधरी के इस पत्र पर विधानसभा स्पीकर सतीश महाना ने भी जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि आजम खान की विधानसभा सदस्यता रद्द नहीं की है। उनकी तरफ से सिर्फ रामपुर सीट को रिक्त घोषित करने की अधिसूचना जारी की गई है। महाना ने कहा कि वह इस बाबत चुनाव आयोग से जानकारी करेंगे कि वास्तव में क्या स्थिति है।

Political News :

जयंत चौधरी ने स्पीकर के फैसले पर नाराजगी जताते हुए लिखा है कि आजम खान के मामले में जितनी तत्परता दिखाई गई, उतनी ही तत्परता खतौली से बीजेपी विधायक विक्रम सैनी के मामले में क्यों नहीं दिखाई गई, जिन्हें 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे से जुड़े मामले में दो साल की सजा सुनाई गई है। उन्होंने पूछा है कि जनप्रतिनिधि कानून की व्याख्या व्यक्ति-व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकती है?

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जयंत चौधरी ने आगे लिखा कि यह सवाल तब तक अस्तित्व में रहेगा, जब तक आप बीजेपी विधायक विक्रम सैनी के मामले में ऐसी ही पहल नहीं करते। उन्होंने लिखा, मुझे उम्मीद है कि आप मेरे पत्र का संज्ञान लेते हुए विक्रम सैनी के मामले में भी शीघ्र ऐसा निर्णय लेंगे जो सिद्ध करेगा कि न्याय की लेखनी का रंग एक सा होता है, भिन्न-भिन्न नहीं।