चंद्रशेखर आजाद व भगत सिंह के समान ही अद्भुत क्रांतिकारी थे महावीर सिंह राठौर, आज ही के दिन 17 मई 1933 को अंडमान निकोबार की पोर्टब्लेयर जेल (काला पानी) में अंग्रेजों ने इस महान योद्धा की हत्या करके शव को समुद्र में फेंक दिया था।
कौन थे महावीर सिंह राठौर ?
हमारे महान देश भारत को आजाद कराने के लिए हुई क्रांति में हजारों जाने व अनजाने क्रांतिवीरों ने भाग लिया था। ऐसे ही एक अद्भुत क्रांतिवीर थे अमर स्वतंत्रता सेनानी महावीर सिंह राठौर।
आजादी के आंदोलन में देशभर के साथ ही उत्तर प्रदेश के भी अनेक क्रांतिवीरों का विशेष योगदान था। इन्हीं वीरों में शामिल थे उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के रहने वाले वीर योद्धा महावीर सिंह राठौर।
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Tribute
कासगंज जिले की पटियाली तहसील क्षेत्र के शाहपुर टहला गांव में जन्मे शहीद महावीर सिंह राठौर का नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सम्मान के साथ लिया जाता है। बालपन से ही कुछ कर गुजरने की इच्छा ने उन्हें महान बलिदानी बना दिया। अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद, शहीद भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के साथ उन्होंने क्रांति की पटकथा में कई अध्याय जोड़े। वे दिल्ली असेंबली में बम फेंकने एवं ब्रिटीश अफसर सांडर्स के हत्याकांड में भी शामिल रहे थे।
उनका क्रांतिकारी इतिहास
महावीर सिंह किशोर उम्र से ही स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सेदारी करने लगे। किशोर उम्र में बच्चों की टोलियां बनाकर उन्होंने अमन सभा में ब्रिटिश अफसरों के सामने अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में नारे लगाए और महात्मा गांधी के समर्थन में नारेबाजी की। इस वाकये के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें विद्रोही घोषित कर दिया। महावीर सिंह के मन में धधकी आजादी की ज्वाला और तेज होने लगी और वे निरंतर आजादी की धुन में लगे रहे। इंटरमीडिएट की शिक्षा हासिल करने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए कानपुर के डीएवी कॉलेज में पहुंचे। जहां चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आए और उनकी सोशलिस्ट रिपब्लिक पार्टी के सदस्य बन गए। यहीं पर उनका परिचय अमर शहीद भगत सिंह से हुआ था।
Tribute
असेंबली बम धमाके में थे शामिल
सब जानते हैं कि 1929 में दिल्ली की असेंबली में बम फेंका गया था और अंग्रेजी अफसर सांडर्स की हत्या की गई थी। इन दोनों ही मामलों में भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव एवं बटुकेश्वर दत्त के साथ महावीर सिंह राठौर को भी गिरफ्तार किया गया था। मुकदमे की सुनवाई लाहौर में हुई। इस मामले में महावीर सिंह को भगत सिंह का सहयोग करने में आजीवन कारावास का दंड सुनाया गया।
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ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पंजाब, तमिलनाडु की जेलों में रखा। इसके बाद 1933 में उन्हें अंडमान की सेल्यूलर जेल में रखा गया। क्रांतिकारियों के साथ अंडमान की जेल में महावीर सिंह ने भूख हड़ताल की। अंग्रेजों ने भूख हड़ताल छुड़वाने के लिए उनके मुंह में जबरन दूध डालने का प्रयास किया, लेकिन महावीर सिंह निरंतर विरोध करते रहे, जिससे दूध उनके फेफड़ों में चला गया और उनकी मौत हो गई। अंग्रेजों ने उनका शव पत्थरों से बांधकर समुद्र में प्रवाहित कर दिया। इस तरह से 16 सितंबर 1904 में जन्मे महावीर सिंह 29 वर्ष की अल्पायु में 17 मई 1933 को वीरगति को प्राप्त हो गए।
अनेक प्रतिमाएं
‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।’
इन अमर पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए उस महान शहीद महावीर सिंह राठौर की अनेक प्रतिमाएं स्थापित हुई हैं। उनके गांव शाहपुर टहला में भी उनकी आदमकद प्रतिमा लगी हुई है। वहीं, पटियाली में भी प्रतिमा स्थापित है। अंडमान की सेल्यूलर जेल में भी प्रतिमा स्थापित है। स्वतंत्रता आंदोलन के जानकार अरुण मिश्रा ने बताया कि अब शहीद महावीर सिंह राठौर के वशंज राजस्थान में रहते हैं, जहां बड़े कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।
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