नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने संबंधी वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका प्रथमदृष्टया विचार योग्य नहीं है। अदालत ने याचिकाकर्ता को उच्चतम न्यायालय में ऐसे ही मामलों में अपने अनुरोध पेश करने का निर्देश दिया।
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साल 2015 में वापस ले ली थी याचिका
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने उपाध्याय से कहा कि आप उन अनुरोधों को दर्ज करें। हम देखेंगे। यह प्रथमदृष्टया विचारणीय नहीं है। हम पहले देखेंगे कि क्या यह बरकरार रखने योग्य है। अदालत को सूचित किया गया था कि मार्च में उच्चतम न्यायालय ने लैंगिक व धार्मिक रूप से तटस्थ कानूनों के संबंध में उपाध्याय की याचिकाओं पर यह कहते हुए विचार करने से इनकार कर दिया था कि उन्होंने 2015 में यूसीसी के संबंध में अपनी याचिका वापस ले ली थी।
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सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी उपाध्याय की याचिका
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील एमआर शमशाद ने कहा कि वह इस मामले में मध्यस्थ हैं। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर उपाध्याय की याचिकाएं खारिज कर दी थीं। उन्होंने कहा कि उपाध्याय ने उच्चतम न्यायालय में चार याचिकाएं दायर की थीं, जिन्हें खारिज कर दिया गया था। उपाध्याय ने कहा कि शीर्ष अदालत के समक्ष दाखिल उनकी याचिका मुस्लिम कानून के तहत तलाक से संबंधित है और वह विधि आयोग के जवाब का इंतजार कर रहे हैं।
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भारत को तत्काल समान नागरिक संहिता की आवश्यकता
मई 2019 में, उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय एकता, लैंगिक न्याय एवं समानता और महिलाओं की गरिमा को बढ़ावा देने के लिए यूसीसी का मसौदा तैयार करने के सिलसिले में एक न्यायिक आयोग के गठन के अनुरोध संबंधी उपाध्याय की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था। उपाध्याय की याचिका के अलावा, चार अन्य याचिकाएं भी हैं, जिनमें कहा गया है कि भारत को तत्काल समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है।
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