Noida News : अब महिला की खिलाफत करने वालों को अपना मार्ग बदलना ही होगा। क्योंकि महिला के साथ अब सशक्त हाथ हैं प्रधान मंत्री मोदी और सी एम योगी जी के। मोदी जी का स्वप्न है कि कम से कम 4 करोड़ दीदियाँ तो लखपति हों? पर आपके साथ ने क्या कमाल दिखाया है। आज 10 करोड दिदियाँ लखपति हुई हैं। इस सरस मेले के बाद 12 लाख दीदियाँ लखपति बनेंगी।
अंजना भागी
पिछले चार वर्षों में पहले साल 3 करोड का व्यापार। अगले वर्ष 5 करोड़ फिर 9 करोड़ इस बार 15 से 20 करोड़ का लक्ष्य है। ऐसा लगता है की पूरा शहर ही इन दीदियों की सफलता को आगे बढ़ाने आया है। इन्हें बढ़ने में देर लगी क्योंकि बढ़ने दिया ही नहीं जाता था। सरस मेला देश की आधी आबादी यानि की महिलाओं को मजबूत करने का एक सक्षम उदाहरण है।
सरस मेला देश की आधी आबादी को मजबूत करने का सक्षम उदाहरण
नोएडा की पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह का भी यही कहना है। महिला चाहे किसी भी तबके से हो लेकिन जब परिवार पर आन पड़ती है तब महिला पढ़ी लिखी हो या न हो। जो भी उसके पास स्किल है उसका इस्तेमाल कर वह परिवार के लिए दाल – रोटी जुगाड़ ही लेती है। रविवार 20 फरवरी दोपहर सरस मेला में मैं रूपा के पास बैठी थी। तीन बच्चों की माँ, घर में रोटी के लाले ऊपर से आए दिन की पिटाई। कुछ करना चाहें तो गाली गलोच। क्यों जाओगी, कहाँ जाओगी इससे तो जहर खाकर मर जाओ। संतान का प्रेम और पति का विरोध सब झेलते हुए गोबर मिट्टी मिला कर दिये बनाना शुरू किया । सास की समझ में बहु की कर्मठता आ गई थी और उन्होंने पुरा सहयोग दिया। अफसाना भी 4 महिलाओं को साथ जोड़, कड़ी मेहनत कर समूह में दीदी बनी थी। अफसाना का पति जो कि उसका कटटर विरोधी था अब उसका माल सप्लाई करने में ही सारा दिन व्यस्त रहता है। 14 फरवरी को नोएडा हाट में हुई प्रैस कान्फ्रेंस में अफसाना को अब स्वाति शर्मा , संयुक्त सचिव, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नोएडा प्राधिकरण के सीईओ लोकेश एम जिलाधिकारी मनीष वर्मा तथा चिरंजीलाल कटारिया के साथ बैठे देख गदगद था।
दीपा की सफलता की कहानी Noida News
दीपा रावत के अनुसार जो की गाँव डोबरी उत्तराखंड की निवासी हैं। दीपा और उसके पति गांव में एक प्राइवेट नौकरी करते थे। एक कमरे का घर, तीन बच्चे ,ज़िंदगी की गाड़ी चल रही थी । करोना काल में जब सब बंद हुआ तो पति की नौकेरी भी बंद, अगले ही माह दीपा की नौकरी भी बंद। बचत तो वैसे ही नहीं थी। फिर उनके पति को करोना हो गया। दीपा के अनुसार उसके पति की हालत इतनी खराब थी कि उसके पति का वजन सिर्फ 25 किलो ही रह गया था। एक कमरे में तीन बच्चों के साथ गुजारा करना कठिन ही नहीं नामुमकिन की ओर जा रहा था। ऐसे में उनकी भेंट कल्पना बिष्ट से हुई। कल्पना बिष्ट दिल्ली शहर में रहती थीं। वहां से कभी-कभी गांव भी आती थी। कल्पना ने दीपा के कष्ट को सुना तब कहा मैं तुम्हारी छोटी सी मदद करूंगी। इस वायदे के साथ कि इस पैसे से आप अपने घर में कोई खर्च नहीं करोगी बल्कि इससे कोई ना कोई काम करोगी। जो भी काम कर सकती हो करो,सामान खरीद मैं लूँगी। यूं कल्पना ने दीपा को 2500 रूपए दिये। दीपा ने भी वायदा निभाया। उन 2500 रुपये में अचार डालने के लिए सामग्री खरीदी । वह पापड़ और बढ़ियाँ बनाने में भी विशेषज्ञ थी। उसने पूरे 2500 रुपये से सिर्फ सामान ही बनाया और कल्पना को वह सामान दे दिया। कल्पना ने फौरन दीपा का अकाउंट खुलवाया। आप वह दिल्ली चली गई। दो दिन बाद ही दीपा के अकाउंट में 3500/ रुपए आए। साथ ही फोन कि दीपा आप अपने साथ कुछ और महिलाओं को लगा लो। कम से कम दस जिसको हम समूह कहते हैं। फिर देखना सरकार भी तुम्हारी मदद करेगी। दीपा को बात समझ में आ गई थी । उसने जल्दी ही आठ महिलाओं को जोड़ा और समूह बनाया और इन पैसों से माल ला फिर सामान बनाया। कल्पना ने ही इनको मार्केट के साथ जोड़ा । समूह बंनते के साथ ही इनके अकाउंट में 15000 रुपए सरकार की ओर से आए। दीपा के अनुसार हालात तो खराब थे ही सभी ने कहा हम ये पैसे बाँट लेते हैं। पर दीपा ने कल्पना जी को दिया वायदा निभाया अबकी सामान भी ज्यादा आया उसके बाद फिर इस अकाउंट में 2300 रुपये दरी इत्यादि खरीदने को आए जिस पर बैठ महिलाएं काम कर सकें। अब दीपा अपने समूह की अध्यक्ष हैं। कल्पना दिल्ली छोड़ अब डोबरी में ही बस गई हैं। बहुत सारे समूहों को क्लस्टर कहते हैं। कल्पना क्लस्टर कि अध्यक्ष हैं। वे अब पूरे उत्तराखंड में व्यापार कर रही हैं। दीपा फरीदाबाद के सरस मेले में अपनी बहुत बड़ी स्टाल लगाए हुए थीं। नोएडा सरस मेले कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में वे भी स्टेज पर बैठी थीं। अब उनका डाबरी में अपना तीन कमरे का मकान है। पति गाँव में उसकी प्रॉडक्शन देखते हैं। दीपा मेलों में स्टॉल लगाती हैं । आप सभी को पढ़कर अति हर्ष होगा कि अब हमें मार्केट की तो जरूरत ही नहीं। हम अपने समूहों में मेसेज डालते हैं। सब वहीं बिक जाता है। आचार, पापड़, बडियाँ, छाछ, पनीर, रस्सी, दरियाँ क्या नहीं बनाते हमारे समूह।
कैसे बनता है समूह Noida News
स्वाति के अनुसार 8 या 10 महिलाओं को साथ मिलकर समूह बनाना होता है जो की अपने ब्लॉक के पास जाती हैं वहाँ उनका अकाउंट खुलता है। समूह की औरतें बहुत ही छोटे कलेक्शन को इस अकाउंट में हर माह डालती हैं। 50-50 या 100 – 100 सरकार भी उसमें पैसे डालती है। बहुत तंगी में महिलायें शुराआत करती हैं। प्रधान मंत्री मोदी का ये लक्ष्य था की कम से कम दो करोड़ लखपति दिदीयाँ हों। लेकिन इन दीदियों की संख्या 10 करोड़ से ऊपर पहुँच रही है। इतनी महिलायें एक साथ इतने नाम कैसे याद रखेँ इसलिए इनको दीदी नाम दिया गया है। दीपा 500- 600 महिलाओं के साथ एक क्लस्टर चला रही हैं वह अपने कुछ समूहों की अध्यक्ष है और कल्पना बिष्ट उनके क्लस्टर की अध्यक्ष हैं । अब व्यापार का यह हाल है कि यह महिलाएं जो भी बनाती हैं उनका अपने क्लस्टर में ही बिक जाता है। घरेलू इस्तेमाल की चीजें जिन्हें हम कहते हैं यह हमारे लिए बहुत ही जरूरी हैं। जिंदगी की आवश्यकता है वह सब ये बनाती हैं जो अब पहले उनके क्लस्टर में ही बिक जाता है। जो बच जाता है वह उससे आगे भेजा जाता है, सरस मेला इत्यादि में। दीपा के अनुसार हम आकर अत्यधिक सीखते हैं, यहां हमें व्यापार के साथ-साथ अन्य प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता है और आज वह एक कमरे के मकान से तीन कमरे के अपने घर में रह रही हैं। घर में उनका ऐसा इंतजाम है कि उनके बेड ऊंचे हैं नीचे स्पेस है जहां वह अपना सामान बनवा बनवा कर रखती है अगले मेले में सेल करने के लिए। मेरे यह पूछने पर की इतनी महिलाएं और वह भी संगठित। इन दीदीयों का एक ही जवाब था यह भी हमें हमारे समूह की दीदी ही सिखाती हैं। Noida News
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