'अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस' बढ़ाता है सम्मान का महत्व

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calendar02 Dec 2025 03:43 AM
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अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस' (INTERNATIONAL ELDERS DAY) को सन् 1990 से मनाया जा रहा है। विश्व में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और अन्याय पर रोक लगाने में जागरूकता (AWARENESS) फैलाने को लेकर 14 दिसंबर 1990 को यह फैसला लिया गया। उसके बाद से प्रति वर्ष 1 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं 1 अक्टूबर 1991 के दिन पहली बार अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस या अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया गया।

दुनिया भरे में आज के दिन सभी अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस मनाते हैं। इस दिन का मतलब है कि हमें बुजुर्गों के महत्व (IMPORTANCE) को समझने की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक बुजुर्ग, घर का अनुभवी खजाना होने के बावजूद अपने परिजनों से बेवजह अपमानित हो जाता है। इस पर रोक लगाने के लिए दुनिया बुजुर्गों के लिए विशेष दिन के रूप में मनाते हैं, ताकि हमारा समाज घर में बुजुर्गों को सम्मान दे सके।

बुजुर्गों को अकेलापन का ना होने दें महसूस

बुजुर्गों के प्रति परिवार (FAMILY) का हर सदस्य अपनापन रखें। उन्हें अकेलापन न महसूस करने दें, उनकी बातों को नजरंदाज न करें बल्कि उनको ध्यान से सुनें। कुछ ऐसा करना चाहिए कि वे खूब व्यस्त हो जाएं। आप उनकी पसंद की जगह पर ले जा सकते हैं व उनके मनपसंद गीतों को गुनगुनाना भी एक अच्छा उपाय है। उनके सोने, खाने जैसी महत्वपूर्ण चीजों का खूब ध्यान रखे।

पहले भी बुजुर्गों को सुखी करने की हुई थी पहल

माना जाता है कि पहले भी बुजुर्गों (ELDERS) की ओर चिंता व्यक्त करते हुए, उनके लिए इस तरह की पहल हुई थी। सन् 1982 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने, "वृद्धावस्था को सुखी बनाइए" नारे के साथ "सबके लिए स्वास्थ्य" अभियान शुरू किया था। इसको ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1991 में अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस की शुरुआत करने के बाद 1999 को "अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग वर्ष" के रूप में मनाया था।

इस दिन को पूरी तरह से बुजुर्गों के लिए समर्पित कर दिया गया है। उनके लिए वृद्धाश्रमों में बहुत तरह के आयोजन होते हैं, और उनकी खुशी व सम्मान करने पर ध्यान दिया जाता है। उनकी सुविधाओं और समस्याओं पर सबसे अधिक विचार किया जाता है।

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समझौता होने तक चीन के साथ जारी रहेगा सीमा विवाद : नरवणे

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calendar02 Dec 2025 02:19 AM
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नई दिल्ली। चीन अपनी विस्तारवादी नीति को लेकर हमेशा से ही कुख्यात रहा है। ये सभी जानते हैं कि चीन ने ताकत और पैसे के बल पर एशिया प्रशांत क्षेत्र के तमाम देशों की नाक में दम कर रखा है। चीन किसी को धन के बल पर तो किसी को शक्ति दिखाकर अपने प्रभाव में लेने की कोशिश करता रहा है। यही दुस्साहस उसने भारत के साथ किया था लेकिन भारतीय सेनाओं ने उसको उसी की भाषा में जवाब देते हुए उसे उसकी धरती तक खदेड़ दिया था। भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। इसी क्रम में पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन के बीच जारी तनाव के बीच सेना प्रमुख जनरल एम नरवणे ने कहा है कि जब तक दोनों देशों के बीच सीमा समझौता नहीं हो जाता तक दोनों के बीच सीमा पर छिटपुट घटनाएं होती रहेंगी। पूर्वी लद्दाख में एलएसी के साथ लगे सीमाई इलाकों में घटनाक्रम पश्चिमी और पूर्वी मोर्चे पर भारत की 'सक्रिय और विवादित सीमाओं' पर चल रही विरासत की चुनौतियों को जोड़ता है।

पीएचडी चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (PHD Chamber of Commerce and Industry, PHDCCI) में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने कहा कि चीन के साथ हमारा बड़ा सीमा विवाद है। चीन के आक्रामक रवैये पर सेना प्रमुख नरवणे ने कहा कि हम भविष्य में किसी भी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। हमने पहले भी ऐसा करके दिखाया है।

बता दें कि इस विवाद का अध्याय अप्रैल 2020 में शुरू हुआ था जब चीन ने विवादित एलएसी के पूर्वी लद्दाख और अन्य इलाकों में बड़ी संख्या में सैनिकों और हथियारों के साथ मोर्चाबंदी कर ली थी। जिससे गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स जैसे इलाकों में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं। इसी दौरान दोनों देशों की सेनाओं में खूनी संघर्ष भी हुआ था जिसमें भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों का बड़े पैमाने पर नुकसान किया था। कई दौर की वार्ता होने के बावजूद अभी तक इसका हल नहीं निकल सका है।

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अमेरिकी संसद में आए बिल से पाकिस्तान को लगा तगड़ा झटका

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calendar30 Nov 2025 04:49 AM
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पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी ने खद पाकिस्तान को ये चेतावनी दी है कि अमेरिका का साथ देने के चलते पाकिस्तान को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अमेरिका के 'आतंक के खिलाफ युद्ध' में पाकिस्तान सहयोगी बनकर अगर साथ देता है तो इसके चलते पाकिस्तान को काफी दिक्कतें पेश आ सकती हैं। वही मजारी ने अपने सिलसिलेवार ट्वीट्स में ये बातें कही हैं। अमेरिका के रिपबल्किन पार्टी के 22 सांसदों ने अमेरिकी सीनेट में एक विधेयक पेश किया है जिसे लेकर पाकिस्तान में काफी नाराजगी है इस बिल में अफगानिस्तान में सरकार बना चुके तालिबान और उसके सहयोगी देशों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।

इस विधेयक का नाम अफगानिस्तान काउंटर टेररिज्म ओवरसाइट एंड अकाउंटबिलिटी एक्ट है। बिल में ये भी मांग की गई है कि किसी भी देश की सरकार अगर तालिबान की मदद करती है तो अमेरिका उस सरकार का रिव्यू कर उस पर संभावित प्रतिबंध भी लगाए। इस विधेयक के एक सेक्शन में तालिबान के लिए समर्थन प्रदान करने वाली संस्थाओं में पाकिस्तान का नाम साफ तौर पर लिखा गया है। वही इस बिल को लेकर पाकिस्तानी सांसदों पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी का कहना है कि अमेरिका का साथ देने के चलते पाकिस्तान को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है उन्होंने कहा कि अमेरिका के 'आतंक के खिलाफ युद्ध' में सहयोगी बनकर साथ देने के बावजूद पाकिस्तान को अब इसकी सजा भुगतनी होगी।

शिरीन ने कहा कि अफगानिस्तान में अमेरिका और उसके सहयोगियों की नाकामियों के लिए पाकिस्तान को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। उन्होंने अपने ट्वीट्स में लिखा कि तो एक बार फिर पाकिस्तान को अमेरिका का साथ देने के चलते बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी क्योंकि अशरफ गनी के अफगानिस्तान छोड़ने और अमेरिका की अफगानिस्तान से वापसी के बाद अमेरिका की सीनेट में एक विधेयक पारित किया गया है जिसमें तालिबान पर प्रतिबंध लगाने की बात की गई है। अब देखने वाली बात ये होगी की क्या इस बिल से पाकिस्तान को क्या नुकसान पहुंचता है। बात चाहे कुछ भी हो लेकिन पीएम मोदी के अमेरिका से आने के बाद पाकिस्तान के अंदर ये खलबली मच गई है की उसके खिलाफ भारत ,अमेरिका कुछ बड़ी साजिश कर रहे है