क्या है अरावली पहाड़ी का मामला? 2019 से हो रहा है आंदोलन

अरावली पर्वत के ऊपर सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत परिभाषा पर पर्यावरण समूहों ने बड़ी प्रतिक्रिया दी है। पर्यावरण समूहों की मानें तो यह बदलाव अरावली के एक बड़े हिस्से को उसके सुरक्षा-घेरे से बाहर कर सकता है।

अरावली विवाद
अरावली विवाद : सुप्रीम कोर्ट की मुहर के बाद विरोध तेज
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar26 Dec 2025 04:42 PM
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Aravalli Hills Dispute : अरावली भारत ही नहीं दुनिया की सबसे पुरानी भूगर्भीय संरचनाओं में से एक है। अरावली पर्वत भारत के चार महत्वपूर्ण राज्यों को आपस में जोड़ता है या यूं कहे कि ये उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। अरावली पर्वत भारत के जिन चार महत्वपूर्ण राज्यों से जुड़ा हुआ है उनमें राजस्थान,हरियाणा, गुजरात और देश की राजधानी दिल्ली मुख्य रूप से शामिल है। हालांकि इसी अरावली पर्वत को लेकर पिछले कई दिनों से भारत के कई राज्यों में हलचल तेज है। अरावली को लेकर हो रही है हलचल की वजह कुछ और नहीं भारत के सर्वोच्च न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पर्वत को लेकर दी गई नई परिभाषा को स्वीकार करना है। भारत के सर्वोच्च न्यायलय सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस परिभाषा को स्वीकार किए जाने के बाद से भारत के कई महत्वपूर्ण राज्यों में आंदोलन शुरू हो गए है। अरावली पर्वत के ऊपर सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत परिभाषा पर पर्यावरण समूहों ने बड़ी प्रतिक्रिया दी है। पर्यावरण समूहों की मानें तो यह बदलाव अरावली के एक बड़े हिस्से को उसके सुरक्षा-घेरे से बाहर कर सकता है। 

अरावली क्या है और विवाद क्यों इतना बड़ा हो गया?

अरावली को दुनिया की सबसे प्राचीन भूगर्भीय धरोहरों में शुमार किया जाता है। यह पहाड़ी राजस्थान से निकलकर हरियाणा, गुजरात और दिल्ली-एनसीआर तक फैला हुआ है और उत्तर-पश्चिमी भारत के पर्यावरणीय संतुलन की रीढ़ भी माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार अरावली सिर्फ पहाड़ों की एक शृंखला नहीं, बल्कि वह प्राकृतिक कवच है जो रेगिस्तान के फैलाव को रोकता है, भूजल स्रोतों को पुनर्जीवित करता है, जैव विविधता को संरक्षण देता है और तो और लाखों लोगों की आजीविका से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। हालांकि हालिया विवाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकार की गई नई परिभाषा के बाद से खड़ा हुआ है। इस परिभाषा के तहत आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊँचाई वाले भू-भाग को ही अरावली पहाड़ी माना जाएगा, जबकि 500 मीटर के दायरे में स्थित दो या उससे अधिक पहाड़ियों और उनके बीच की भूमि को अरावली शृंखला का हिस्सा माना जा सकता है। पर्यावरणविदों का कहना है कि यही “ऊँचाई आधारित कसौटी अरावली की मूल आत्मा पर सवाल खड़े कर रही है और इसी वजह से देशभर में इसका विरोध तेज होता जा रहा है।

लोग सड़कों पर क्यों उतर रहे हैं?

अरावली को लेकर इस हफ्ते गुरुग्राम से उदयपुर तक कई शहरों में अरावली को लेकर शांतिपूर्ण विरोध देखने को मिला। प्रदर्शन में स्थानीय नागरिकों के साथ साथ किसान, पर्यावरण कार्यकर्ता, और कुछ स्थानों पर वकील व राजनीतिक दलों की मौजूदगी ने संकेत दिया कि यह मुद्दा अब सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं रहा। प्रदर्शनकारियों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि नई परिभाषा लागू होने पर 100 मीटर से कम ऊँचाई वाली कई छोटी-छोटी पहाड़ियाँ अरावली की श्रेणी से बाहर हो सकती हैं। जबकि यही झाड़ियों और प्राकृतिक वनस्पति से ढकी ढलानें रेगिस्तानीकरण रोकने, भूजल रिचार्ज और स्थानीय इको-सिस्टम को बचाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं। उन्हें आशंका है कि परिभाषा के दायरे से बाहर होते ही इन क्षेत्रों में खनन, निर्माण और व्यावसायिक गतिविधियों के लिए रास्ते आसान हो जाएंगे। पर्यावरण समूह पीपल फॉर अरावलीज की संस्थापक सदस्य नीलम आहलूवालिया की माने तो यह बदलाव अरावली की असली उपयोगिता को कमजोर कर सकता है, जो उत्तर-पश्चिम भारत में रेगिस्तान के फैलाव पर ब्रेक, पानी के स्रोतों का पुनर्भरण और लाखों लोगों की आजीविका का आधार है। वहीं पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत टोंगड़ की दलील और भी तीखी है। उनके मुताबिक अरावली को केवल ऊँचाई के पैमाने से नहीं, बल्कि उसके भूगर्भीय चरित्र, पर्यावरणीय योगदान और जलवायु-संतुलन में भूमिका से परिभाषित किया जाना चाहिए, क्योंकि दुनिया भर में पहाड़ी प्रणालियों की पहचान उनके “कद” से नहीं, उनके काम से होती है।

केंद्र का पक्ष क्या है?

अरावली को लेकर केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखा है। केंद्र सरकार का कहना है कि अरावली को लेकर उठ रही आशंकाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है और नई परिभाषा का उद्देश्य सुरक्षा घटाना नहीं, बल्कि नियमों को और भी मजबूत करना और देशभर में एकरूपता लाना है। बीते रविवार को जारी बयान में सरकार ने इस मुद्दे पर अपना तर्क दिया। केंद्र सरकार के मुताबिक खनन जैसी गतिविधियों को सभी राज्यों में समान ढंग से नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट, वस्तुनिष्ठ और लागू करने योग्य परिभाषा जरूरी थी। केंद्र सरकार की माने तो नई व्यवस्था केवल पहाड़ी चोटी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके ढलान,आसपास की भूमि और बीच के क्षेत्र भी परिभाषा के दायरे में भी आते हैं, ताकि पहाड़ी समूहों का आपसी पारिस्थितिक संबंध सुरक्षित रहे। इस मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने बड़ा ब्यान दिया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने साफ किया कि यह मान लेना गलत है कि 100 मीटर से कम ऊँचाई वाली हर जमीन पर खनन को हरी झंडी मिल जाएगी। मंत्रालय का दावा है कि अरावली शृंखला के भीतर नए खनन पट्टे नहीं दिए जाएंगे और पुराने पट्टे भी तभी चल सकेंगे जब वे टिकाऊ खनन मानकों का अच्छे से पालन करेंगे। सरकार ने यह भी दोहराया कि संरक्षित वन, पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र और आर्द्रभूमि जैसे अभेद्य इलाकों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। हालांकि कुछ रणनीतिक/परमाणु खनिजों को कानूनन अनुमति वाले अपवाद के रूप में रखा गया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के अनुसार 1,47,000 वर्ग किमी में फैली अरावली का केवल करीब 2% हिस्सा ही अध्ययन और आधिकारिक मंजूरी के बाद संभावित रूप से खनन उपयोग में आ सकता है। वही दूसरी तरफ इस मुद्दे पर आंदोलन कर रहे आंदोलनकारी समूहों का कहना है कि वे सरकार की दलीलों से संतुष्ट नहीं हैं और अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे। Aravalli Hills Dispute

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बालकनी में हरी मटर उगाने के लिए अपनाएं ये स्मार्ट टिप्स

हरी मटर सर्दियों की सबसे पसंदीदा और पौष्टिक सब्जियों में से एक है। बाजार में मिलने वाली मटर में केमिकल का इस्तेमाल आम बात है, लेकिन अब आप बिना किसी झंझट के अपने घर के बगीचे, छत या बालकनी में ताजी और केमिकल-फ्री हरी मटर उगा सकते हैं।

Green pea cultivation
हरी मटर की खेती (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar26 Dec 2025 02:19 PM
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हरी मटर ठंडी जलवायु की फसल है। इसे बोने का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से नवंबर के बीच माना जाता है। इस दौरान तापमान 10 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, जो अंकुरण और पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए अनुकूल होता है। ज्यादा गर्मी में मटर की बेल कमजोर हो सकती है।

गमला और जगह का चुनाव

बता दें कि बालकनी या छत पर मटर उगाने के लिए 12 से 14 इंच गहरा और चौड़ा गमला या ग्रो बैग सही रहता है। गमले के नीचे पानी की निकासी के लिए छेद होना जरूरी है। एक गमले में 6 से 8 बीज आसानी से लगाए जा सकते हैं। पौधे को रोजाना कम से कम 4 से 5 घंटे धूप मिलनी चाहिए।

मिट्टी कैसे करें तैयार

हरी मटर के लिए भुरभुरी और उपजाऊ मिट्टी जरूरी होती है। इसके लिए है कि 50% सामान्य बगीचे की मिट्टी, 30% सड़ी हुई गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट, 20% बालू या कोकोपीट है। इन सभी को अच्छी तरह मिलाकर गमले में भरें। इससे जड़ों को हवा मिलेगी और पौधा मजबूत बनेगा।

बीज बोने का सही तरीका

बता दें कि बीज बोने से पहले मटर के बीजों को 8 से 10 घंटे पानी में भिगो दें। इससे अंकुरण जल्दी होता है। इसके बाद बीजों को 1 से 2 इंच की गहराई पर बोएं और ऊपर से हल्की मिट्टी डाल दें। बीजों के बीच 2 से 3 इंच की दूरी रखें।

सिंचाई और सहारा

बता दें कि बीज बोने के तुरंत बाद हल्का पानी दें, लेकिन ध्यान रखें कि पानी जमा न हो। मटर को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। हफ्ते में 2 से 3 बार हल्की सिंचाई पर्याप्त होती है। हरी मटर बेल वाली फसल है, इसलिए जब पौधा 6 से 8 इंच का हो जाए तो उसे सहारे की जरूरत होती है। इसके लिए बांस, लकड़ी की स्टिक या जाली का इस्तेमाल किया जा सकता है।

खाद और पौधों की देखभाल

बता दें कि अच्छी बढ़वार के लिए हर 15 से 20 दिन में वर्मी कम्पोस्ट या सरसों खली का घोल डाल सकते हैं। फूल आने के समय हल्की खाद देने से फलियों की संख्या बढ़ती है। अगर एफिड्स या इल्ली दिखाई दें, तो नीम तेल का छिड़काव हफ्ते में एक बार करें। इससे पौधा सुरक्षित रहता है।

कब करें मटर की तुड़ाई

बता दें कि बीज बोने के लगभग 60 से 70 दिन बाद मटर की फलियां तैयार हो जाती हैं। जब फलियां हरी, भरी हुई और नरम हों, तभी तोड़ लें। समय पर तुड़ाई करने से पौधा ज्यादा फल देता है।

क्यों फायदेमंद है किचन गार्डनिंग

बता दें कि घर में उगाई गई हरी मटर ताजी, स्वादिष्ट और पूरी तरह केमिकल-फ्री होती है। इससे न सिर्फ पैसे की बचत होती है, बल्कि परिवार को पौष्टिक सब्जी भी मिलती है। साथ ही आपकी बालकनी या छत भी हरी-भरी नजर आती है।

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BMC Elections 2026: बीएमसी चुनाव से पहले ठाकरे बंधुओं की सक्रियता, मातोश्री में हुई अहम बैठक

महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में प्रस्तावित बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव 2026 को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। ठाकरे बंधुओं के गठबंधन के ऐलान के बाद अब भाजपा पार्टी नीत महायुति के खिलाफ संयुक्त रणनीति पर काम शुरू हो गया है।

BMC Elections 2026 Mumbai
ठाकरे गठबंधन मैदान में उतरेगा (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar26 Dec 2025 01:08 PM
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बता दें कि इसी कड़ी में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे के बेटे और नेता अमित ठाकरे, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता और विधायक आदित्य ठाकरे से मुलाकात करने ‘मातोश्री’ पहुंचे है।

युवा नेतृत्व के हाथों में प्रचार की कमान

बता दें कि ठाकरे बंधुओं के गठबंधन के बाद आदित्य ठाकरे और अमित ठाकरे को युवा चेहरों के तौर पर नगर निगम चुनाव प्रचार की अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है। दोनों नेताओं के बीच यह मुलाकात आगामी बीएमसी चुनाव के लिए संयुक्त प्रचार रणनीति को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से हुई।

बताया जा रहा है कि मुंबई समेत अन्य नगर निगम क्षेत्रों में आदित्य ठाकरे और अमित ठाकरे को एक साथ चुनाव प्रचार करते हुए देखा जा सकता है। शिवसेना (ठाकरे गुट) की ओर से जहां पहले से ही आदित्य ठाकरे की मौजूदगी में सभाएं और रैलियां आयोजित की जा रही हैं, वहीं अब मनसे की ओर से भी अमित ठाकरे को विशेष प्रचार जिम्मेदारी दी गई है।

बीएमसी चुनाव में अमित ठाकरे की भूमिका

बता दें कि मनसे सूत्रों के मुताबिक अमित ठाकरे को शहरी मतदाताओं और युवा वर्ग को साधने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। संयुक्त प्रचार के जरिए दोनों दल मुंबई महानगरपालिका समेत अन्य नगर निगम चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

फडणवीस का ठाकरे गठबंधन पर हमला

बता दें कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ठाकरे बंधुओं के गठबंधन पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे और उनकी सेना (UBT) का असली चेहरा और चरित्र सामने आ गया है। सत्ता के लालच में उन्होंने किस तरह के लोगों के साथ गठबंधन किया, यह जनता देख रही है। देश विरोधी, धर्म विरोधी और मानवता विरोधी ताकतों के साथ केवल वोटों के तुष्टिकरण की नीति के लिए किया गया यह गठबंधन जनता को स्वीकार नहीं होगा और इसका जवाब चुनाव में मिलेगा।”

सियासी समीकरणों पर टिकी निगाहें

बता दें कि बीएमसी चुनाव को लेकर ठाकरे बंधुओं के गठबंधन और युवा नेतृत्व की सक्रियता ने महाराष्ट्र की राजनीति में नए सियासी समीकरण पैदा कर दिए हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह रणनीति महायुति के लिए कितनी चुनौती साबित होती है।