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UP News : उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथावाचकों के साथ कथित बदसलूकी के बाद उपजा जातीय तनाव अब शिक्षा जगत तक पहुँच गया है। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के दांदरपुर गांव की रहने वाली रेनू दुबे का है, जिन्होंने यादव समाज के प्रबंधन वाले एक निजी स्कूल द्वारा नौकरी से निकाले जाने का गंभीर आरोप लगाया है। पीड़िता का कहना है कि कथावाचक कांड के बाद जब उन्होंने जातिसूचक टिप्पणियों के खिलाफ आवाज़ उठाई, तो उन्हें ही स्कूल से निकाल दिया गया, जबकि आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। रेनू दुबे डी.एन. इंटरनेशनल स्कूल में शिक्षिका थीं।उनका कहना है कि बीते दिनों जब वे स्कूल के प्रचार अभियान के तहत यादव बहुल खितौरा गांव से गुजर रही थीं, तो वहां कुछ लोगों ने कथावाचक विवाद को लेकर उन्हें अपशब्द कहे और जातिसूचक टिप्पणी की।
रेनू ने जब इस घटना की शिकायत स्कूल प्रशासन से की, तो बजाय उन्हें संरक्षण देने के, स्कूल ने उन्हें और उनकी 12 वर्षीय बेटी को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया।पीड़िता की मानें तो वह विधवा हैं और घर में उनकी सास और बेटी की पूरी ज़िम्मेदारी उन्हीं पर है। नौकरी जाने के बाद अब उनके सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। घटना के बाद से उनके घर के बाहर पुलिस बल और पीएसी के जवानों की तैनाती की गई है, जिससे गांव में तनाव का माहौल साफ महसूस किया जा सकता है।
इस पूरे प्रकरण पर जब स्कूल के व्यवस्थापक से बात की गई, तो उन्होंने रेनू के आरोपों को खारिज कर दिया। उनका कहना है कि शिक्षिका को नौकरी से नहीं निकाला गया है, बल्कि मौजूदा हालात को देखते हुए उन्हें अस्थायी रूप से कुछ दिन स्कूल न आने की सलाह दी गई थी। व्यवस्थापक ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय केवल उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया था, जातिगत आधार पर उन्हें हटाने का आरोप निराधार और तथ्यहीन है।
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथावाचकों से कथित दुर्व्यवहार के बाद से ब्राह्मण और यादव समुदायों के बीच तनाव चरम पर है। इस घटनाक्रम ने जिले की सामाजिक संरचना को झकझोर कर रख दिया है। अब रेनू दुबे का मामला सामने आने से विवाद और गहरा गया है। राजनीतिक गलियारों में भी इस मुद्दे को लेकर सरगर्मी तेज है। एक तरफ रेनू दुबे को न्याय दिलाने की मांग उठ रही है, तो दूसरी ओर स्कूल प्रबंधन अपने फैसले को तटस्थ और सुरक्षा आधारित बता रहा है। रेनू का कहना है कि जब तक गांव का माहौल सामान्य नहीं होता, तब तक वे किसी अन्य जगह नौकरी की तलाश नहीं करेंगी। लेकिन यह साफ है कि एक शिक्षिका जो सिर्फ अपने अधिकार की बात कर रही थी, वह अब खुद अन्याय की शिकार बनकर सामने आई हैं। UP News
UP News : उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथावाचकों के साथ कथित बदसलूकी के बाद उपजा जातीय तनाव अब शिक्षा जगत तक पहुँच गया है। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के दांदरपुर गांव की रहने वाली रेनू दुबे का है, जिन्होंने यादव समाज के प्रबंधन वाले एक निजी स्कूल द्वारा नौकरी से निकाले जाने का गंभीर आरोप लगाया है। पीड़िता का कहना है कि कथावाचक कांड के बाद जब उन्होंने जातिसूचक टिप्पणियों के खिलाफ आवाज़ उठाई, तो उन्हें ही स्कूल से निकाल दिया गया, जबकि आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। रेनू दुबे डी.एन. इंटरनेशनल स्कूल में शिक्षिका थीं।उनका कहना है कि बीते दिनों जब वे स्कूल के प्रचार अभियान के तहत यादव बहुल खितौरा गांव से गुजर रही थीं, तो वहां कुछ लोगों ने कथावाचक विवाद को लेकर उन्हें अपशब्द कहे और जातिसूचक टिप्पणी की।
रेनू ने जब इस घटना की शिकायत स्कूल प्रशासन से की, तो बजाय उन्हें संरक्षण देने के, स्कूल ने उन्हें और उनकी 12 वर्षीय बेटी को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया।पीड़िता की मानें तो वह विधवा हैं और घर में उनकी सास और बेटी की पूरी ज़िम्मेदारी उन्हीं पर है। नौकरी जाने के बाद अब उनके सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। घटना के बाद से उनके घर के बाहर पुलिस बल और पीएसी के जवानों की तैनाती की गई है, जिससे गांव में तनाव का माहौल साफ महसूस किया जा सकता है।
इस पूरे प्रकरण पर जब स्कूल के व्यवस्थापक से बात की गई, तो उन्होंने रेनू के आरोपों को खारिज कर दिया। उनका कहना है कि शिक्षिका को नौकरी से नहीं निकाला गया है, बल्कि मौजूदा हालात को देखते हुए उन्हें अस्थायी रूप से कुछ दिन स्कूल न आने की सलाह दी गई थी। व्यवस्थापक ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय केवल उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया था, जातिगत आधार पर उन्हें हटाने का आरोप निराधार और तथ्यहीन है।
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथावाचकों से कथित दुर्व्यवहार के बाद से ब्राह्मण और यादव समुदायों के बीच तनाव चरम पर है। इस घटनाक्रम ने जिले की सामाजिक संरचना को झकझोर कर रख दिया है। अब रेनू दुबे का मामला सामने आने से विवाद और गहरा गया है। राजनीतिक गलियारों में भी इस मुद्दे को लेकर सरगर्मी तेज है। एक तरफ रेनू दुबे को न्याय दिलाने की मांग उठ रही है, तो दूसरी ओर स्कूल प्रबंधन अपने फैसले को तटस्थ और सुरक्षा आधारित बता रहा है। रेनू का कहना है कि जब तक गांव का माहौल सामान्य नहीं होता, तब तक वे किसी अन्य जगह नौकरी की तलाश नहीं करेंगी। लेकिन यह साफ है कि एक शिक्षिका जो सिर्फ अपने अधिकार की बात कर रही थी, वह अब खुद अन्याय की शिकार बनकर सामने आई हैं। UP News