Agriculture Tips: खेती और किसान: सेहतमंद बनना है तो मखाना खाइये

Makhana
Agriculture Tips:
locationभारत
userचेतना मंच
calendar21 Dec 2022 09:44 PM
bookmark
Agriculture Tips: खाना फलहारी के साथ ही काफी सेहतमंद भी है। उत्पादन बाकी अनाजों की तरह नहीं बल्कि अलग तरह से किया जाता है। आपको तन्दरूस्त रहना है, सेहत बनाना है तो मखाना जरूर खाएं। चाहे, दूध के साथ या यूं ही भूनकर.

Agriculture Tips

[caption id="attachment_51731" align="alignnone" width="300"]Agriculture Tips: Agriculture Tips:[/caption] ऐसे उगाते हैं मखाना: मखाना, गोर्गन नट या फॉक्स नट एक महत्वपूर्ण फसल है। यह तालाबों, झीलों और दलदल जैसे स्थिर बारहमासी जल निकायों में उगाई जाती है। इसकी व्यावसायिक खेती उत्तर बिहार, मणिपुर, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों तक सीमित है। मखाने के कुल उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत बिहार के मधुबनी, पूर्णिया और कटिहार जिलों से आता है। मखाने के बीज को ब्लैक डायमंड भी कहा जाता है। बीज को खसखस के रूप में खाया जाता है और विभिन्न प्रकार की मिठाइयों और व्यंजनों की तैयारी में उपयोग किया जाता है। इसमें पोषक और औषधीय गुण होते हैं और इस फसल की निर्यात क्षमता बहुत अच्छी है। मखाने को सूखे मेवे जैसे-बादाम, अखरोट, नारियल इत्यादि से बेहतर माना जाता है। खाना या फॉक्स नट एक पौधा है, मखाना जो ज्यादातर उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाया जाता है। इसे 50 से 90 प्रतिशत की सापेक्ष आर्द्रता और 100-250 सें.मी. की वार्षिक वर्षा के साथ, उचित वृद्धि और विकास के लिए 20 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान की अनुकूल सीमा की आवश्यकता होती है। इसकी पत्तियों का आकार 1-2 मीटर होता है। ऊपर में हरे और निचले में बैंगनी और पत्तियों के दोनों तरफ पूरे पौधे में कांटे होते हैं। मखाने के अच्छे उत्पादन के लिए पानी की गहराई 0.2 से 2 मीटर होनी चाहिए। फसल कटाई के बाद: .मखाना बीज की कटाई के बाद मशीनों द्वारा निम्नलिखित प्रक्रिया सुनिश्चित की जाती हैं .मखाना बीजः नमी 37 प्रतिशत  (ताजा वजन के अनुसार) में .धूप सुखाना: नमी 31 प्रतिशत भंडारण (कुछ मिनट के अंतराल पर पानी का छिड़काव ) .कमरे के तापमान में 40-60 घंटे तक रखना .आकार के अनुसार ग्रेडिंग .मखाना पॉप और बीज को अलग करना .आकार के अनुसार मखाना पॉप की ग्रेडिंग .विभिन्न आकार के बैग में पैकेजिंग (9-15 कि.ग्रा.) .व्यापार मखाना उत्पादन के तरीके: मखाने की खेती बारहमासी जल निकायों में की जाती है, जिनमें जल क्षेत्र की गहराई 4 से 6 फीट होती है। तालाब प्रणाली: यह मखाने की खेती की पारंपरिक प्रणाली है। पुराने मखाने उगने वाले तालाबों में बीज बोने की आवश्यकता नहीं होती है। पिछली फसल के बीजों को बाद की फसल की रोपण सामग्री के रूप में कार्य किया जाता है। मखाने की खेती सीधे बीज बोने या नए जल निकायों में रोपाई के माध्यम से शुरू नहीं की जा सकती है। बीजों का प्रसारण दिसंबर में 80 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर पर किया जाना चाहिए। सामान्य तौर पर, तालाब की खेती को कम उत्पादकता के साथ जोड़ा जाता है। नीचे से बीज का संग्रहण एक बहुत ही कठिन प्रक्रिया है और यह किसानों के स्वास्थ्य पर भी असर डालता है। तालाब की स्थिति में यह एक वर्ष पूरा करने की अवधि लेता है। इस दौरान कोई अन्य फसल नहीं उगाई जा सकती है। पारंपरिक प्रणाली में मखाने के अलावा, मछलियां तालाबों में बाढ़ के पानी के साथ प्रवेश करती हैं, जिससे किसानों को मखाने के साथ मछलियां भी प्राप्त होती हैं। क्षेत्र प्रणाली: मखाने की खेती की एक नई प्रणाली तीव्र है, जिसमें मखाने की खेती कृषि क्षेत्रों में 1 से 2 फीट की गहराई करके की जाती है। शाह मखाने के बीजों को पहले नर्सरी के रूप में उगाया जाता है और फिर इष्टतम समय पर मुख्य रूप से खेतों में रोपाई की जाती है। यह फसल की तीव्रता को 200 से 300 प्रतिशत बढ़ाता है। मखाने की खेती की फसल प्रणाली में शाहबलूत मछली, विशेष रूप से कैटफिश सफलतापूर्वक पाली जा सकती है। खेत अच्छी तरह से दो से तीन गहरी जुताई द्वारा किया जाता है। जुताई से पहले, रोपाई के उचित पोषण के लिए 100 कि.ग्रा. ना 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 40 कि.ग्रा. पो प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल किया जाता है। खेत को 1.5 फीट की ऊंचाई तक पानी से भरा जाता है और दिसंबर में बीज बोया है। 20 कि.ग्रा. स्वस्थ बीज की मात्रा नर्सरी प्लॉट में समान रूप से प्रसारित की जाती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई के लिए 500 वर्ग मीटर का एक क्षेत्र नर्सरी बढ़ाने के लिए पर्याप्त है। रोपाई की बढ़ती अवधि के दौरान, अर्थात् दिसंबर से मार्च तक एक फीट ऊंचाई का जलस्तर बनाए रखा जाता है। रोपाई 1.20 X 1.25 मीटर की दूरी पर की जाती है। यह अप्रैल के पहले सप्ताह में नर्सरी प्लॉट से मुख्य क्षेत्र में स्थानांतरित की जाती है। फसल की कटाई: मखाने की कटाई अगस्त-अक्टूबर में 'मल्लाह' समुदाय के गोताखोरों द्वारा सुबह लगभग 6 बजे से 11 बजे तक की जाती है। एक गोताखोर तालाब की निचली सतह में गहराई तक जाता है, लेट जाता है, अपनी सांस पकड़ता है और दोनों हथेलियों के साथ स्थानीय रूप से 'कैरा' के रूप में जाने जाने वाले बांस के खंभे की ओर मिट्टी खींचता है। मिट्टी के ढेर को बांस के खंभे के आधार के पास बनाया जाता है। मखाने की पहली किस्म: स्वर्ण वैदेही, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा विकसित मखाने की पहली किस्म है। पारंपरिक किस्मों की उपज 1.6 टन हेक्टेयर होती है। स्वर्ण बैदेही की उपज क्षमता 2.8-3.0 टन प्रति हेक्टेयर है। मखाना उत्पादकों के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। आर्थिक लाभ: तालाब प्रणाली में अकेले मखाना तुलनात्मक रूप से कम आर्थिक लाभ प्रदान करता है। अन्य फसलों के साथ मखाने की खेती लाभ को बढ़ा सकती है। जैसे-मख्राने के बाद सिंघाड़ा फल 90,000 रुपये प्रति हेक्टेयर मखाना के बाद चावल और गेहूं से 1,25000 रुपये प्रति हेक्टेयर का लाभ होता है। मखाने की खेती भविष्य के लिए लाभकारी: लगातार बढ़ते व्यावसायिक मूल्य और इस पौष्टिक पौधे के बहु-उपयोग के कारण, मखाना अब सुपर-फूड के रूप में पहचाना जाने लगा है। किसानों को इसकी परंपरागत खेती प्रणालियों को नए तरीकों से बदलने में मदद करने और साथ ही सब्सिडी देने से खेती प्रणाली का पूरा विकास होगा। प्रति हेक्टेयर पैदावार में वृद्धि होगी और इस तरह से किसानों की आय में वृद्धि होगी। भारत में राज्य सरकारें मखाने की खेती की लागत पर 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान कर रही हैं, ताकि उत्पादन में वृद्धि हो सके। मैदानी क्षेत्र में मखाने की खेती करने वाले किसानों पर अधिक जोर दिया जा रहा है। नाबार्ड जैसी संस्थाएं किसानों को उदार सब्सिडी दे रही हैं। किसानों के पास खेती के लिए ज्यादातर संसाधनों की कमी है जैसे कि ऋण, उपकरण, डीजल और अन्य संसाधनों के संदर्भ में भी सहायता प्रदान की जा रही है।
अगली खबर पढ़ें

Agriculture News: खेती और किसान: जवानी बरकरार चाहिए! तो सोयाबीन खायें

Soya vadi 02
Agriculture News:
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 10:45 PM
bookmark
Agriculture News: आप मांसाहारी नहीं हैं, और चाहते हैं कि आपके शरीर में भी प्रोटीन पहुंचे। नॉनवेज वालों के लिए सोयाबीन प्रोटीन के लिए सबसे अच्छा आहार है। प्रोटीन के लिए आपको सोयाबीन जरूर खाना चाहिए। यह स्वादिष्ट के साथ ही काफी फायदेमंद है।आपको जवानी बरकरार रखनी है तो सोयाबीन जरूर खायें। बता दें, सोयाबीन गुणवत्ता प्रोटीन और जरूरी वसा अम्ल का महत्वपूर्ण माध्यम होने के कारण पर्यावरण के लिए अनुकूल है। मांस उत्पादन में सब्जियों की तुलना में अधिक पानी की आवश्यकता होती है। अत: सोयाबीन जैसा वनस्पति आधारित प्रोटीन कृषि पर वैश्विक तापमान के प्रभाव एवं जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों और बढ़ती मानव आबादी में कुपोषण जैसी समस्याओं से निपटने के लिए एक प्रभावी लागत और पर्यावरण अनुकूलित विकल्प हो सकता है।

Agriculture News

खास: देश में खाद्य तेल के कुल उत्पादन में सोयाबीन का सरसों के बाद द्वितीय स्थान (20.17 प्रतिशत) होने के कारण यह एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। भारत में उत्पादित कुल सोयाबीन का लगभग 94 प्रतिशत मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान में होता है। वर्ष 2018-19 के दौरान भारत में तिलहनों के कुल क्षेत्रफल (255 लाख हैक्टर) व उत्पादन (322.6 लाख टन) में सोयाबीन क्रमश: 44.45 तथा 42.74 प्रतिशत योगदान के साथ प्रथम रहा है। वर्ष 2019 के दौरान भारत में कुल 15 मिलियन टन खाद्य तेल का आयात हुआ जो लगभग 7300 करोड़ रुपये मूल्य के बराबर है। इसलिए खाद्य तेलों पर आयात की निर्भरता एवं विदेशी मुद्रा खर्च के बोझ को कम करने में सोयाबीन योगदान दे सकता है। उपयोगिता: सोयाबीन को एक तिलहन फसल के रूप में जाना जाता है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिज सहित कई उपयोगी पोषक तत्व होते हैं। सोयाबीन प्रोटीन में सल्फर अमीनो अम्ल (मेथिओनिन और सिस्टीन) को छोड़कर उनका पोषण मान लगभग पशु प्रोटीन के समान होता है। शाकाहारी लोगों के लिए सोयाबीन, प्रोटीन बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत है। सोयाबीन का उपयोग तेल उत्पादन में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। इसके अवशेष अर्थात खली को घरेलू पशुओं के लिए प्रोटीन खाद्य सामग्री धिक पानी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। बीन जैसा सोयाबीन से बने उत्पादों में टोफू, सोया दूध, - वैश्विक सोया सॉस, बनावटी वनस्पति प्रोटीन और सोया आटा है। दुनियाभर में उत्पादित लगभग 85 प्रतिशत सोयाबीन का उपयोग वनस्पति तेलों पूर्वी क्षेत्र को बनाने में किया जाता है। इसके अलावा -800014 भुने और नमकीन सोयाबीन को स्नैक्स के रूप में बेचा जाता है। [caption id="attachment_51462" align="alignnone" width="300"]Agriculture News Agriculture News[/caption] सोयाबीन के लाभ: सोयाबीन में कार्बोहाइड्रेट कम होता है, जो इसे एंटी डायबिटिक भोजन बनाता है। सोयाबीन को आहार में शामिल करने से यह खून में शर्करा स्तर नियंत्रित रखने में सहायक होता है। गर्भवती महिलाओं के लिए फोलिक अम्ल और विटामिन 'बी कॉम्प्लेक्सÓ बहुत आवश्यक है। सोयाबीन इनका समृद्ध स्रोत है। सोयाबीन में आयरन, कॉपर, जिंक, सेलिनियम, कॉपर, मैग्नीशियम और कैल्शियम की उच्च मात्रा होती है, जो इसे खून से संबंधित रोगों, हड्डियों को मजबूत और स्वस्थ रखने, नींद के अन्य रोगों के साथ-साथ अनिद्रा को कम करने में मदद करता है। सोयाबीन में फाइबर होने से यह पाचन तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सोयाबीन में आइसोफ्लेवोन्स प्रचुर मात्रा में होता है, जो प्रजनन प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए असंतृप्त वसा मदद कर सकती है। खेत की तैयारी एवं मृदा: 2-3 जुलाई के बाद पाटा चलाकर जमीन को समतल कर लें। हल्की दोमट मृदा, जिसमें जल निकासी की सुविधा हो एवं पर्याप्त मात्रा में जीवांश पदार्थ हो उपयुक्त रहती है। उन्नत प्रभेद: बिरसा सोयाबीन-1 एन. आर. सी. 7. एन.आर.सी.-37. जे. एस. 335. जे. एस. -9305. अलंकार, इंदिरा सोया-1 इंदिरा सोया-91 बीज दर, बुआई का समय और बीजोपचार: सोयाबीन के लिए बीज दर, छोटा 60-65 ग्राम/ हैक्टर मध्यम 70-75 ग्राम/हैक्टर और मोटा दाना 80-100 ग्राम/हैक्टर की आवश्यकता होती है। बीज की बुआई के लिए 25 जून से 15 जुलाई तक का समय सर्वोत्तम है। बीजजनित रोगों से बचाव के लिए थीरम या बाविस्टीन 2.0 ग्राम/कि.ग्रा. बीज को उपचारित करें। बेहतर नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए राइजोबियम कल्चर 20 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। बुआई की विधि: सोयाबीन की बुआई सीडडिल या हल द्वारा पंक्ति से पंक्ति 45 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 5-7 में मो. में करनी चाहिए। संरक्षण खेती में बिना जुताई के बीज की सीधी बुआई जोरोटिल दिल या हैप्पीसोडर मशीन द्वारा करनी चाहिए। सारणी 1. सोयाबीन का पोषण मूल्य (100 ग्रम) ऊर्जा 416 किलो कैलोरी प्रोटीन 36.5 ग्राम कुल वसा 19.9 ग्राम संतृप्त वसा अम्ल 2.9 ग्राम मोनोसैचुरेटेड वसा अम्ल 4.4 ग्राम पॉलीअनसैचुरेटेड वसा अम्ल 11.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट 30.2 ग्राम फाइबर 9.3 ग्राम कैल्शियम 277 मि.ग्रा. आयरन 15.7 मि.ग्रा. मैग्नीशियम 280 मि.ग्रा. फॉस्फोरस 704 मि.ग्रा. पोटेशियम 1797 मि.ग्रा. सोडियम 2.0 मि.ग्रा. जिंक 4.9 मि.ग्रा. कॉपर 1.7 मि.ग्रा. मैंगनीज 2.52 मि.ग्रा. पोषक तत्व प्रबंधन: 20, 80, 40, 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, गंधक / हैक्टर की दर से मृदा बुआई के समय अच्छी तरह से में मिलाना चाहिए। खरपतवार प्रबंधन: शुरू के 30-45 दिन खरपतवार के लिए संवेदनशील होते हैं। फसल बुआई के बाद एवं अंकुरण से पहले पेण्डामिथलीन 30 प्रतिशत ई.सी. 1000 ग्राम/ हैक्टर सक्रिय तत्व को 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। सिंचाई प्रबंधन: खरीफ मौसम होने के कारण सामान्यत: सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु पौधावस्था, पुष्पावस्था एवं फली में दाना भरने की अवस्था पर सूखे की स्थिति में सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। पौध संरक्षण: पीला मोजेक रोग से बचाव के लिए मिथाइल डीमैटोन 25 ई.सी. 0.8 लीटर / हैक्टर और थिऑमेथोक्सम / 100 ग्राम/हैक्टर की दर से छिड़काव करें। रतुआ रोग प्रभावित क्षेत्र में हैक्साकोनाजोल, प्रोपिकोनाजोल और ट्रायडीमेफोन 0.8 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से रोगनिरोधक के तौर पर प्रयोग करें। पत्तीजनित रोगों के लिए कार्बेन्डाजिम और थिओफिनेट मिथाइल / 0.5 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से छिड़काव बुआई के 35 दिनों और 50 दिनों के अंतराल पर करें। निष्पत्रक कीटों से बचाव के लिए सूक्ष्मजीवी कीटनाशक (डिपेल/बायोबिट/ डिस्पेल) से एक छिड़काव के 15 दिनों बाद इंडोक्साकार्ब 15.8 ई.सी. 33 मि.ली. दवा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। फसल कटाई और गहाई: जब सोयाबीन की पत्तियां पीली तथा फलियां भूरे रंग की हो जाएं, तो फसल को काट लेना चाहिए। कटाई के बाद 4-5 दिनों तक खेत में सूखने दें, ताकि दानों में नमी 13-14 प्रतिशत रह जाए। इसके बाद फलियों की गहाई कर लेनी चाहिए। फसल गहाई थ्रेसर, ट्रैक्टर, बैलों तथा हाथ द्वारा लकड़ी से पीटकर कर सकते हैं। फसल भंडारण: गहाई के उपरांत दानों को 2-3 दिनों तक धूप में सुखाकर, जब दानों में नमी 10 प्रतिशत हो, तो भण्डारण कर लें। फसल उत्पादन: 18-20 क्विंटल/ हैक्टर मुनाफा: 40, 000 से 50,000 रुपये/ हैक्टर मांस और दूध की तुलना में सोयाबीन प्रति एकड़ 5-15 गुना अधिक प्रोटीन उत्पादन करता है। अगर मनुष्य की प्रोटीन की जरूरतें पशुओं की बजाय सोया खाद्य से पूरी की जाये तो में सिर्फ वनों की कटाई में कमी आएगी बल्कि एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र बनाये रखने में मदद मिलेगी और ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में भी कमी आएगी।

Book Review: निर्भय सक्सेना की ‘कलम बरेली की-2’ में झलकता है समाज का प्रतिबिम्ब

 
अगली खबर पढ़ें

Book Review: निर्भय सक्सेना की ‘कलम बरेली की-2’ में झलकता है समाज का प्रतिबिम्ब

77e0dff8 47db 465d 9e7d 223cb1306d24
Book Review
locationभारत
userचेतना मंच
calendar24 Nov 2025 08:47 PM
bookmark
-समीक्षक: सुरेश बाबू मिश्रा, साहित्य भूषण Book Review: बरेली। निर्भय सक्सेना बरेली के जाने-माने पत्रकार हैं। वे निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए प्रतिमान गढ़े हैं। अब वे साहित्य के क्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।

Book Review

विगत वर्ष उनकी पुस्तक ‘कलम बरेली की’ प्रकाशित हुई थी, जो पाठकों के मध्य काफी चर्चित रही। कहते हैं कि पाठकों की मुक्त कंठ से की गई प्रशंसा साहित्यकार के लिए बूस्टर डोज का काम करती है। यह बात निर्भय सक्सेना पर पूरी तरह लागू होती है। अपनी पहली कृति की सफलता से उत्साहित होकर वे अपनी दूसरी कृति के लेखन कार्य में पूरी तल्लीनता के साथ जुट गए। अब उनकी दूसरी पुस्तक-“कलम बरेली की-2“ प्रकाशित हो चुकी है और पाठकों के मध्य खासी लोकप्रियता हासिल कर रही है। कलम बरेली की-2 में बरेली के तत्कालीन समाज का प्रतिबिम्ब झलकता है। यह पुस्तक बरेली का एक ऐतिहासिक दस्तावेज है और हमें इसमें बरेली की समृद्ध सांस्कृतिक एवं सामाजिक विरासत की झलक मिलती है। निर्भय सक्सेना बरेली के एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिन्होंने अपने लेखन कार्य का केन्द्र बिन्दु बरेली को बनाया है। उनकी यह पुस्तक उन शोध छात्रों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगी जो बरेली की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं साहित्यिक गतिविधियों पर शोध करना चाहते हैं। [caption id="attachment_51452" align="alignnone" width="225"]Book Review पूर्व केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार[/caption] इसके साथ ही इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों को बरेली की अतीत की सांस्कृतिक, सामाजिक एवं साहित्यिक विरासत की सही एवं सटीक जानकारी मिल सकेगी। बरेली की साहित्यिक गतिविधियों का सटीक विश्लेषण इस पुस्तक में किया गया है। जनपद के साहित्यिक सरोकार शीर्षक से समाहित लेख में बरेली के साहित्यकारों का विशद वर्णन किया गया है। इस लेख से ज्ञात होता है कि पंडित राधेश्याम कथा वाचक, निरंकार देव सेवक, पंडित नाथू लाल अग्निहोत्री नम्र, पंडित राम नारायन पाठक, वसीम बरेलवी, किशन सरोज, वीरेन डगवाल, सुकेश साहनी, खालिद जावेद तथा डा. इन्दिरा आचार्य आदि ने बरेली में साहित्य की अलख जगाई। इन साहित्यकारों ने साहित्य के क्षेत्र में पूरे देश में बरेली को अपनी अलग पहचान दिलाई। निर्भय सक्सेना कहते हैं कि वर्तमान समय में साहित्य भूषण सुरेश बाबू मिश्रा, भगवान शरण भारद्वाज, सुधीर विद्यार्थी, आचार्य देवेन्द्र देव, रणधीर प्रसाद गौड़, रमेश विकट, हरीशंकर सक्सेना, निर्मला सिंह, रमेश गौतम, डाॅ. एन.एल. शर्मा, शिवशंकर यजुर्वेदी, कमल सक्सेना, राहुल अवस्थी, पूनम सेवक, रोहित राकेश, आनन्द गौतम, डाॅ. दीपांकर गुप्त, डाॅ. अवनीश यादव, निरुपमा अग्रवाल, शराफत अली खान, नितिन सेठी आदि साहित्य की कीर्ति पताका पूरे देश में फहरा रहे हैं। इसके साथ वे कई नवोदित साहित्यकारों का भी उल्लेख करते हैं। स्थानीय कवियों का भी काफी विस्तृत उल्लेख है। बरेली कॉलेज एवम छात्र राजनीति पर भी विस्तृत विवरण है। ‘कलम बरेली की-2’ में लेखक बरेली के राजनीतिक परिदृश्य का वर्णन भी बड़ी बेवाकी के साथ करते है। लेखक के अनुसार श्री बृजराज सिंहउर्फ आछू बाबू, धर्मदत्त वैद्य, पी.सी. आजाद, राम सिंह खन्ना, राजवीर सिंह, सन्तोष गंगवार, कुँवर सुभाष पटेल, राजेश अग्रवाल, सर्वराज सिंह, सुमन लता सिंह, प्रवीन सिंह ऐरन आदि ने बरेली में राजनीति के परचम को फहराया। वर्तमान समय में डाॅ. अरुण कुमार, मेयर उमेश गौतम, धर्मेन्द्र कश्यप, संजीव अग्रवाल, डॉ आई एस तोमर आदि बरेली की राजनीति के सिरमौर हैं। लेखक बरेली में पत्रकारिता के परिदृश्य को रेखांकित करते हुए कहता है कि आजादी के पूर्व से ही बरेली -हिन्दी, उर्दू के साप्ताहिक एवं पाक्षिक समाचार-पत्रों का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। इन समाचार-पत्रों ने रुहेलखण्ड में आजादी की अलख जगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वर्तमान समय में बरेली से अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, जनमोर्चा, दिव्य प्रकाश, अमृत विचार का प्रकाशन हो रहा है। डिजिटल न्यूज पेपर रूप में गम्भीर न्यूज एवं रुहेलखण्ड पोस्ट भी पाठकों के मध्य काफी लोकप्रिय है। शंकर दास, विनीत सक्सेना, जनार्दन आचार्य, सुभाष चोधरी, मनवीर सिंह, संजीव गम्भीर, स्वर्गीय दिनेश पवन, पवन सक्सेना, सुनील सक्सेना, निर्भय सक्सेना, राजीव शर्मा, स्वर्गीय राकेश कोहरवाल, प्रशांत रायजादा, गोपाल विनोदी, विकास सक्सेना आदि की गणना बरेली के प्रमुख पत्रकारों में की जाती है। इस प्रकार प्रस्तुत कृति "कलम बरेली की 2" के अनुसार वर्तमान परिवेश में बरेली में प्रिन्ट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों का भविष्य उज्जवल है। लेखक के अनुसार बरेली को चित्रांश समाज की विभूतियों ने राजनीति, समाज सेवा, शिक्षा, चिकित्सा तथा वकालत के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। चित्रांश समाज के प्रमुख व्यक्तियों के रूप में वे डाॅ. अरुण कुमार सक्सेना, पी.सी. आजाद, वी पी सक्सेना, अनिल कुमार सक्सेना, किशोर कटरू, शिव कुमार वरतरिया, सुरेन्द्र बीनू सिन्हा तथा राजेन विद्यार्थी आदि का उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं कि बरेली निवासी प्रेम रायजादा ने तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद के अनुरोध पर भारतीय संविधान की पहली प्रति अपने हाथ से लिखी थी। वे कहते हैं कि चित्रांश समाज ने आजादी के आन्दोलन में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पी.सी. आजाद तथा बाबूराम सक्सेना का वे प्रमुख रूप से उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबूराम सक्सेना एवं कृपा देवी ने स्वतंत्रता के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को मिलने वाली पेंशन लेने से इनकार कर दिया था। इस प्रकार ‘कलम बरेली की-2’ अपने आप में बरेली के तत्कालीन समाज के विविध आयामों को समेटे हुए है। बरेली पर शोध करने वाले शोध छात्रों के लिए यह पुस्तक बहुत उपयोगी सिद्ध होगी ऐसा मेरा मानना है। इस कृति की व्यापक विषय वस्तु हेतु मैं निर्भय सक्सेना को साधुवाद देता हूँ और कृति "कलम बरेली की 2" की सफलता की कामना करता हूँ।

Mumbai : फीफा विश्व कप का फाइनल देखना इस परिवार को पड़ गया भारी