पूरे देश के आवारा कुत्तों पर कार्रवाई क्यों नही ?

पूरे देश के आवारा कुत्तों पर कार्रवाई क्यों नही ?
locationभारत
userचेतना मंच
calendar12 Aug 2025 10:24 AM
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दिल्ली NCR में आवारा कुत्तों के बढ़ते खतरे पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली/ NCR के नागरिक प्रशासन और स्थानीय निकाय को सख्त निर्देश जारी किए हैं। इनमें आवारा कुत्तों को पकड़ने, उनकी नसबंदी करने और उन्हें आश्रय गृह में रखने के निर्देश दिये गए हैं।सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति या संगठन आवारा कुत्तों के खिलाफ कार्रवाई में अड़ंगा डालता है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई करें। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि 'एनसीटी-दिल्ली, एमसीडी, एनएमडीसी तुरंत आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए अभियान शुरू करें और खासकर उन इलाकों में जहां आवारा कुत्तों का खतरा ज्यादा है।  Stray Dogs

पीठ ने स्थानीय निकायों को निर्देश दिया कि आठ हफ्तों में वे आवारा कुत्तों को रखने के लिए आश्रय स्थल बनाने की जानकारी दें। अदालत ने कहा कि आवारा कुत्तों के खिलाफ कार्रवाई में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति या संगठन इस काम में आड़े आए तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई करें।पीठ ने ये भी कहा कि 'एमसीडी/एनडीएमसी और दिल्ली एनसीआर के संबंधित प्राधिकरण दैनिक आधार पर आवारा कुत्तों को पकड़ने का रिकॉर्ड रखें और पकड़े जाने के बाद एक भी आवारा कुत्ता वापस छोड़ा नहीं जाना चाहिए और सभी को आश्रय स्थल में रखा जाए।' पीठ ने कहा कि अगर इस मामले में लापरवाही की गई तो हम सख्त कार्रवाई करेंगे।  Stray Dogs

अदालत ने कहा आवारा कुत्तों के बारे में शिकायत मिलने के चार घंटे के भीतर कार्रवाई होनी चाहिए और कुत्तों की नसबंदी के बाद उन्हें वापस पुरानी जगह न छोड़ा जाए। अदालत ने कहा कि रेबीज की वैक्सीन की उपलब्धता भी चिंता का कारण है। अदालत ने वैक्सीन की उपलब्धता की भी पूरी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि नवजात, छोटे बच्चे किसी भी कीमत पर इन आवारा कुत्तों के शिकार नहीं बनने चाहिए।सुप्रीम कोर्ट ने एक हेल्पलाइन स्थापित करने के भी निर्देश दिए।  पीठ ने कहा कि एक हफ्ते में हेल्पलाइन स्थापित की जाए, ताकि इस पर लोग कुत्तों के काटने की घटनाओं को रिपोर्ट कर सकें।  Stray Dogs

न्यायालय ने कहाकि  'आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में रखें, अड़ंगा डालने वालों पर कार्रवाई करें'। 

जस्टिस पारदीवाला ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि 'नसबंदी हो चुकी है या नहीं, सबसे पहली चीज है कि समाज आवारा कुत्तों से मुक्त होना चाहिए। एक भी आवारा कुत्ता शहर के किसी इलाके या बाहरी इलाकों में घूमते हुए नहीं पाया जाना चाहिए। हमने नोटिस किया है कि अगर कोई आवारा कुत्ता एक जगह से पकड़ा जाता है और उसकी नसबंदी करके उसे उसी जगह छोड़ दिया जाता है, ये बेहद बेतुका है और इसका कोई मतलब नहीं बनता। आवारा कुत्ते क्यों वापस उसी जगह छोड़े जाने चाहिए और किस लिए?'

पीठ ने कहा कि हालात बेहद खराब हैं और इस मामले में तुरंत दखल दिए जाने की जरूरत है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने भी अदालत से अपील की कि वे इस मामले में सख्ती से दखल दें ताकि आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान हो सके। मेहता ने कहा कि नसबंदी से कुत्तों की सिर्फ संख्या बढ़नी रुकती है, लेकिन रेबीज का संक्रमण फैलाने की उनकी क्षमता कम नहीं होती।

सवाल यह है कि ये आदेश दिल्ली /एनसीआरके लिए ही क्यों हैं।देश में भी तो नागरिक रहते हैं। उनके लिए क्यों नही। आवारा कुत्तों का आंतक तो पूरे देश में है। देश में कुत्तों के काटने से  औसतन प्रति वर्ष  29 हजार से ज्यादा व्यक्ति मरते हैं। यह तो संख्या वह है जो रिपोर्ट हो जाती है। गांव देहात के मामले से रिपोर्ट ही नही हो पाते। न वे खबरों की सुर्खियां  बनते हैं। Stray Dogs

उत्तर प्रदेश का बिजनौर बहुत छोटा जिला है। यहां हाल ही में 24 जुलाई की शाम थाना अफजलगढ़ क्षेत्र के गांव झाड़पुरा भागीजोत में खेत पर काम कर रहीं 65 वर्षीय वृद्धा को आवारा कुत्तों के झुंड ने नोच कर मार डाला। तीन अगस्त को हीमपुर दीपा के गांव गांगू नंगला में हिंसक कुत्ते ने हमला कर दो बच्चों सहित 10 लोगों को बुरी तरह से घायल कर डाला। छह जून 2025 को  अफजलगढ़ में पांच साल की बच्ची यास्मीन को आवारा कुत्तों के झुंड ने नोच-नोचकर मार डाला. दरअसल, बच्ची मां के साथ दूध लेने गई थी और पीछे रह जाने पर  बच्ची कुत्तों के हि लग गई।  Stray Dogs

 23 अक्तूबर 2023 को देश की प्रमुख चाय कंपनियों में से एक वाघ बकरी चाय के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पराग देसाई का निधन हो गया है। मीडिया खबरों के मुताबिक 49 साल के पराग पिछले हफ्ते अहमदाबाद में मॉर्निंग वॉक पर निकले थे। इस दौरान आवारा कुत्तों ने उन पर हमला कर दिया। खुद को बचाने में वह फिसलकर गिर गए और उन्हें ब्रेन हेमरेज होने से निधन हो  गया ।

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भारत सरकार के स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय ने पिछले साल संसद में हुए एक सवाल का जवाब देते हुए बताया  कि 2019 में 72 लाख 77 हजार 523 कुत्तों के हमले रिपोर्ट हुए। वहीं साल 2020 में कुल 46 लाख 33 हजार 493 कुत्तों के हमलों  रिपोर्ट हुए, जबकि साल 2021 में कुल 1701133 कुत्तों के काटने के मामले रिपोर्ट हुए।साल 2022, जुलाई तक भारतीय लोगों पर हुए कुत्तों के हमले की कुल संख्या स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 14 लाख 50 हजार 666 थी। इन हमलों में कई लोगों ने अपनी जान भी गंवाई है। ये हमले आवारा और पालतू दोनों कुत्तों के हैं। इसके साथ ही इन हमलों के शिकार, बच्चे, बुजुर्ग और जवान तीनों हुए हैं।

साल 2018 में मेडिकल जर्नल लैंसेट में छापी  इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में हर साल 20 हज़ार लोग रेबीज के कारण मरते हैं. इनमें से ज्यादातर रेबीज के मामले कुत्तों द्वारा इंसानों तक पहुंचे हैं।ऐसा नहीं है कि हर कुत्ते के काटने से आपको रेबीज हो सकता है, लेकिन ज्यादातर आवारा कुत्तों के काटने से रेबीज का खतरा रहता है।  कुत्तों के  इन हमलों के सबसे ज्यादा शिकार छोटे बच्चे ,महिलाएं और जवान होते  हैं। सुप्रीम कार्ट को यह समझना  होगा  कि अवारा कुत्तों की परेशानी दिल्ली− एनसीआर में ही नही  है, ये पूरे भारतवर्ष की समस्या है।देश के देहात के तो हडवार ( मरे जानवर डालने के स्थान के पास) रहने वाले कुत्ते  तो और भी ज्यादा खतरनाक होते  हैं।ये महिलाएं,बीमार और बच्चों समेत अकेले आते  जाते व्यक्ति को मारकर उसके मांस से अपना पेट भरतें हैं ।आवारा कुत्तों की समस्या भारत व्यापी है ।  इसलिए  इस मामले  पर कार्रवाई भी  देशव्यापी होनी चाहिए।    Stray Dogs

अशोक मधुप

( लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

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दुनिया के महान संत महावतार बाबाजी वास्तव में मृत्युंजय हैं

Saint Mahavatar Babaji
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locationभारत
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calendar25 Jul 2025 11:13 PM
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Mahavatar Babaji: दुनिया के महान संत महावतार बाबाजी वास्तव में मृत्युंजय हैं। मृत्युंजय उसे कहा जाता है जिसने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली हो। दूसरे शब्दों में मृत्युंजय वह होता है जो अमर है जो कभी मरता नहीं है। महावतार बाबाजी की याद में हर साल 25 जुलाई का दिन स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है। महावतार बाबाजी के स्मृति दिवस पर प्रसिद्ध पत्रकार एस.एन. वर्मा ने एक बड़ा लेख लिखा है। उस लेख को हम ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहे हैं।

मृत्युंजय हैं महावतार बाबा जी

एस.एन. वर्मा

आखिर कौन हैं महावतार बाबा जी?

पूरा यू-ट्यूब व गूगल उनके बारे में तरह-तरह की जानकारियां दे रहे हैं। तथाकथित संत महात्मा लोग तो महावतार बाबा जी से हिमालय में क्रियायोग की शिक्षा लेने का दावा भी कर रहे हैं और क्रिया योग सेंटर भी खोल रखे हैं। कुछ ने तो स्वंय को महावतार बाबाजी भी घोषित किए थे। आपको बताते चलें कि पूरे संसार को महावतार बाबाजी के बारे तब पता चला था जब परमहंस योगानद ने अपनी पुस्तक योगी कथामृत में उनका जिक्र किया और वही एक पुस्तक है जिसमें विभिन्न ईश्वर प्राप्त भारत के प्रसिद्ध संतों से महावतार बाबाजी की मुलाकात की बात पता चलती है और कई संतों ने तो परमहंस योगानंद के साथ साक्षात्कार में उन्हें बताया भी है कि बाबाजी ने ही लगभग लुप्त प्राय हो गए क्रिया योग के पुुनरुत्थान के लिए इस युग में लाहिड़ी महाशय को प्रशिक्षित किया था। प्रसिद्ध तेलुगु अभिनेता रजनीकांत और बाबाजी के भक्त ने तो बाबाजी पर एक फिल्म भी बनाया है। और वे द्रोणागिरी पर्वत के गुफा जहां महावतार बाबा जी से लाहिड़ी महाशय की प्रथम मुलाकात हुई थी, के नियमित तीर्थ यात्रा भी करते रहते हैं । भारत में योगदा सत्संग सोसायटी ऑफ इंडिया और विदेशों में सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के संन्नयासी और साधक 25 जुलाई को बाबाजी की स्मृति दिवस के रूप में मनाते हैं क्योंकि 25 जुलाई 1920 को परमहंस योगानंद के कोलकाता के गड़पार रोड पर स्थित उनके घर पर महावतार बाबाजी ने दर्शन दिए थे और उन्हें आश्वासन दिया था कि ईश्वर द्वारा अमेरिका में पूर्ण संरक्षण दिया जाएगा।बाबाजी ने उन्हें यह भी कहा था कि तुम ही वह हो जिसे मैंने पाश्चात्य जगत में क्रियायोग का प्रसार करने के लिए चुना है। बहुत वर्ष पहले मैं तुम्हारे गुरु युक्तेश्वर से एक कुंभ मेले मे मिला था और तभी मैंने उनसे कह दिया था कि मैं तुम्हें उनके पास शिक्षा ग्रहण के लिए भेज दुंगा। असल में योगानंद को अमेरिका में एक धर्म सम्मेलन को संबोधित करने के लिए न्योता मिला था और वे अमेरिका जाने के पहले पूर्ण रूप से ईश्वर से आश्वस्त हो जाना चाहते थे कि कहीं वे पश्चिम सभ्यता में अपने असली उद्देश्य से भटक न जाएं।

आदि शंकराचार्य को भी क्रियायोग सिखाया था बाबा जी ने

परमहंस योगानंद की पुस्तक योगी कथामृत के अनुसार बाबाजी ने ही आदि शंकराचार्य तथा कबीर को क्रियायोग की शिक्षा दी थी। बाबाजी सदा ईसा मसीह के सपंर्क में रहते हैं। वे दोनों मिलकर जगत के उद्धार के स्पंदन पृथ्वी पर भेजते रहते हैं। पुस्तक के अनुसार इतिहास में बाबाजी का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। किसी भी शताब्दी में बाबाजी कभी जनसाधारण के समक्ष प्रकट नहीं हुए। बाबाजी विनम्र गुमनामी में अपना कार्य करते रहते हैं। लाहिडी़ महाशय के शिष्यों ने उन्हें श्रद्धा से महामुनि बाबाजी महाराज,महायोगी तथा त्र्यंबक बाबा या शिव बाबा नाम दिए हैं। लाहिडी़ महाशय कहा करते थे कि जब भी कोई श्रद्धा से बाबाजी का नाम लेता है,उसे तत्क्षण आध्यात्मिक आर्शीवाद प्राप्त होता है। पुस्तक में योगानंद बताते है कि उनके संतवत संस्कृत गुरु स्वामी केवलानंद ने हिमालय में बाबाजी के साथ कुछ समय बिताया था। बाबाजी अपने शिष्यों के साथ जिसमें दो अमेरिकी शिष्य भी हैं, पर्वतों में एक स्थान से दूसरे स्थान भ्रमण करते रहते हैं। उन्होंने बताया था कि बाबाजी कभी  खाते  नहीं हैं क्योंकि अक्षय देह के लिए आहार की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन जब वे शिष्यों को दर्शन देते हैं तब लौकिक शिष्टाचार के रूप में कभी कभी फल या चावल की खीर स्वीकार कर लेते हैं। अमर बाबाजी के शरीर पर आयु का कोई लक्ष्ण दुष्टिगोचर नहीं होता। वे अधिक से अधिक 25 वर्ष के युवक दिखते हैं। योगानंद को बाबाजी ने जिस रूप में दर्शन दिया था वैसा ही चित्रण कर योगानंद ने बाबाजी का चित्र बनवाया था। जो आज हर जगह प्रचलित है।

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संसार के उद्धार के लिए करते थे चर्चा

लाहिड़ी महाशय के एक अन्य शिष्य निद्राजयाी संत रामगोपाल से भी बाबाजी की मुलाकात हुई थी। परमहंस योगानंद को रामगोपाल ने बताया था कि बनारस के दशाश्वमध घाट पर बाबाजी, लाहिड़ी महाशय तथा बाबाजी की बहन माताजी को उन्होंने देखा था। वे संसार के उद्धार के लिए आपस में विचार विमर्श कर रहे थे।योगी कथामृत के अनुसार बाबाजी 1861 में लाहिड़ी महाशय को रानीखेत के पास स्थित द्रोणगिरि पर्वत की गुफा के पास मिले थे। वहीं पर अपनी चमत्कारिक इच्छाशक्ति से एक महल का सृजन कर बाबाजी ने अपने शिष्य को सभी ऐहिक तृष्णाओं से मुक्त कर क्रियायोग की शिक्षा देते हैं। लाहिड़ी महाशय के अनुरोध पर, बाबाजी ने उन्हें सम्पूर्ण विश्व के सभी सच्चे सत्यान्वेषियों को यह पवित्र एवं गुप्त प्रविधि सिखाने की अनुमति दी थी। इस प्रकार परमहंस योगानन्द को अपने गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी और अपने परमगुरुओं से जीवन का उत्थान करने वाली और आत्मा को मुक्ति प्रदान करने वाली, क्रियायोग की जीवनशैली विरासत में प्राप्त हुई थी। योगानंद के गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर को भी बाबाजी ने एक कुभं मेले में स्वामी की उपाधि दी थी तथा उनसे ‘कैवल्य दर्शनम" नामक पुस्तक, लिखने का आग्रह किया था। पुस्तक लेखन के समापन पर श्रीराम पुर में बाबाजी ने स्वामी श्रीयुक्तेश्वर  को एक बार फिर दर्शन दिया था। जिसका जिक्र स्वामी श्रीयुक्तेश्वर ने ही योगानंद से किया था।

खुद बताया था प्रेम को अपना स्वरूप

भारत वापसी के समय जब योगानंद वृंदावन में लाहिड़ी महाशय के एक अन्य शिष्य स्वामी केशवानंद से मिलने गए तब केशवानंद ने उन्हें बताया कि एक बार हिमालय में रास्ता भटक जाने पर उन्हें बाबाजी से मुलाकात हुई थी तब उन्होंने बताया था कि योगानंद तुमसे मिलने आएंगे तो उन्हें बताना कि मैं उनसे इस बार नहीं मिलूंगा किसी और अवसर पर मिलूंगा। बाबाजी ने योगदा सत्संग सोसायटी आफ इंडिया और अमेरिका में सेल्फ रिलाइजेशन फेलोशिप के तीसरे अघ्यक्ष दया माता को भी मानस दर्शन दे कर बताया था कि मेरा स्वरूप प्रेम है, क्योंकि यह प्रेम ही है जो संसार को बदल सकता है। यह 1964-65 की घटना है जब भारत आगमन के दौरान दयामाता द्रोण पर्वत पर स्थित महावतार बाबाजी की गुफा का दर्शन करने गई थी।महावतार बाबाजी द्वारा प्रदत क्रियायोग द्वारा ईश्वर प्राप्ति के इच्छुक साधकों को भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया तथा विदेशों में सेल्फ रिलाइजेशन फेलोशिप इन्हीं शिक्षाओं पर आधारित विस्तृत आदर्श-जीवन पाठमाला भी प्रकाशित करती है और उन्हें सभी सदस्यों को मुद्रित और डिजिटल रूप में उपलब्ध कराती है तथा विशेष कक्षाओं के माध्यम से, ध्यान की प्रारम्भिक एवं उच्च प्रविधियों की शिक्षा प्रदान की जाती है। इस प्रकार हमें पता चलता है कि महावतार बाबाजी अजर अमर है और परमसत्ता ने उन्हें संसार के ईश्वर प्राप्ति के इच्छुक साधकों की मदद के लिए पृथ्वी पर भेजा है। योगी कथामृत पुस्तक में बाबाजी के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी है। भारत के रांची शहर में योगदा आश्रमों का मुख्यालय है।  
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पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं हैं भारतवासी

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Environment
locationभारत
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calendar01 Dec 2025 05:59 PM
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Environment :  क्या आपको पता है कि हम भारतीय पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection) के प्रति कितना सचेत है। उत्तर है ना के बराबर। अगर हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection)  को लेकर कानून सख्त न होता तो हम भारतवासी कराह रहे होते। प्रदूषण के कारण होने वाली सांस की बीमारियों से ग्रस्त होकर सारा देश खांस रहा होता। यह कानून ही है जिसके डर से वाहन चालक प्रदूषण प्रमाणपत्र  (Pollution Certificate) बनवा रहे हैं। जेल जाने के डर से पेड़ काटे नहीं जा रहे हैं। कानून नहीं बनता तो नदियों में औद्योगिक कचरे, विषाक्त जल व रसायनिक द्रव्य प्रवाहित किए जा रहे होते। Environment हांलाकि चोरी छिपे आज भी नदियां प्रदूषित की जा रही हैं, पेड़ों की कटाई हो रही है। खुल्लेआम पराली जलाए जा रहे हैं। हम पौलिथीन की थैलियों में दुकानदार से सामान लेने में हिचकते नहीं हैं। हमें धन्यवाद देना चाहिए वैसे स्वंयसेवियों और सामाजिक संगठनों को जिनके आंदोलनों व कार्यों के कारण सरकार सक्रिय रही है। पर्यावरण की अनदेखी के कारण ही वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है जिसके परिणाम दुनिया भर में महसूस किए जा रहे हैं। हालांकि, कुछ देश दूसरों की तुलना में अधिक पीडि़त हैं। 2021 की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार 100 सबसे प्रदूषित शहरों में से 63 शहर भारत में हैं, जिसमें नई दिल्ली को दुनिया में सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाली राजधानी (Capital) बताया गया है। शहरों में राजस्थान का भिवाड़ी सबसे प्रदूषित शहर है उसके बाद एनसीआर (NCR) के नगरों का नंबर आता है। भारतीय संविधान (Indian Constitution) के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार की गारंटी दी गई है। वास्तव में इस मौलिक अधिकार को प्रभावी बनाने के लिए 1986 का अधिनियम बनाया गया है। 1977 में सभी नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को संविधान में शामिल किया गया, जिसके तहत भारत के प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 51ए के खंड (जी) में दिए गए प्रावधान के अनुसार पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने का दायित्व सौंपा गया। हम अपने देश की राजधानी और कई अन्य शहरों में मानव जीवन पर पर्यावरण के बड़े पैमाने पर विनाश के गंभीर परिणामों का अनुभव कर रहे हैं। हर साल कम से कम दो महीने के लिए, दिल्ली के निवासियों को वायु प्रदूषण के कारण दम घुटता है। हवा के अलावा देश के जलमार्ग भी अत्यधिक प्रदूषित हो गए हैं, अनुमान है कि सतही जल का लगभग 70 फीसदी हिस्सा पीने योग्य नहीं है। नदियों और झीलों में अवैध रूप से कच्चा मल, गाद और कचरा डालने से भारत का जल गंभीर रूप से प्रदूषित हो गया है। पाइप योजना का लगभग पूर्ण अभाव और अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली स्थिति को और भी बदतर बना रही है। हर दिन चौंका देने वाला 40 मिलियन लीटर अपशिष्ट जल नदियों और अन्य जल निकायों में प्रवेश करता है। इनमें से पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण केवल एक छोटा सा अंश ही पर्याप्त रूप से उपचारित हो पाता है। प्रदूषित जल मनुष्यों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। लगभग 40 मिलियन भारतीय टाइफाइड, हैजा और हेपेटाइटिस जैसी जलजनित बीमारियों से पीडि़त हैं और हर साल लगभग 400,000 मौतें होती हैं। जल प्रदूषण फसलों को भी नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि सिंचाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पानी में संक्रामक बैक्टीरिया और बीमारियाँ उन्हें बढऩे से रोकती हैं। अनिवार्य रूप से, मीठे पानी की जैव विविधता भी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती है। भारत में प्लास्टिक संकट दुनिया के सबसे खराब संकटों में से एक है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत में औसतन हर दिन 25,000 टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा निकलता है, जो देश में पैदा होने वाले कुल ठोस कचरे का लगभग 6 फीसदी है। भारत राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर नदी के प्लास्टिक उत्सर्जन के उच्च अनुपात वाले शीर्ष 20 देशों में दूसरे स्थान पर है। सिंधु, ब्रह्मपुत्र और गंगा नदियों को प्लास्टिक प्रवाह के राजमार्ग के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे देश में अधिकांश प्लास्टिक मलबे को ले जाती हैं और बहाती हैं। 10 अन्य सबसे प्रदूषित नदियों के साथ, वे वैश्विक स्तर पर लगभग 90 फीसदी प्लास्टिक समुद्र में लीक करती हैं। जल प्रदूषण के कारण भारत की 16 फीसदी मीठे पानी की मछलियाँ, मोलस्क, ड्रैगन फ्लाई, डैमसेल्लाई और जलीय पौधे विलुप्त होने के खतरे में हैं और एक रिकार्ड के अनुसार देश में मीठे पानी की जैव विविधता में 84 फीसदी की गिरावट आई है। वनों की कटाई देश में जैव विविधता में गिरावट का एक और प्रमुख कारण है। इस सदी की शुरुआत से, भारत ने अपने कुल वृक्ष क्षेत्र का 19 फीसदी खो दिया है। जबकि 2.8 फीसदी वन वनों की कटाई से काटे गए, अधिकांश नुकसान जंगली आग के परिणामस्वरूप हुआ है, जिसने प्रति वर्ष 18,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक वनों को प्रभावित किया है वनों की कटाई के वार्षिक औसत से दोगुना से भी अधिक। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में औसत तापमान में वृद्धि देखी है। इस वृद्धि के कारण अधिक बार और तीव्र गर्मी की लहरें आती हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य, कृषि और जल संसाधन प्रभावित होते हैं। अनियमित वर्षा पैटर्न ग्लोबल वार्मिंग मानसून के पैटर्न को प्रभावित करती है, जिससे अनियमित वर्षा होती है। इस पर्यावरण दिवस (Environment Day) के अवसर पर पर्यावरण संरक्षण के कुछ तरीके को हम आसानी से अपना सकते हैं। हम फूल के पौधे लगा सकते हैं। मधुमक्खियों की आबादी दुनिया भर में कम होती जा रही है, प्रचुर मात्रा में देशी फूल और पौधे सुनिश्चित करना मधुमक्खियों को भरपूर भोजन और पराग प्रदान करने में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण है। मधुमक्खियाँ सभी आकार के जानवरों के लिए खाद्य श्रृंखला को बनाए रखने में मदद करती हैं। खाद खुद बनाएँ, बागवानी के लिए प्राकृतिक खाद का उपयोग करने से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाने वाले कृत्रिम उर्वरकों और कीटनाशकों की जरूरत खत्म हो जाएगी। साइकिल चलाएं या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें। कार में अकेले चलने के बजाय साइकिल चलाने या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करके कार्बन उत्सर्जन में कटौती करें। पुन: प्रयोज्य वस्तुओं का उपयोग करें। डिस्पोजेबल वस्तुओं के स्थान पर पुन: प्रयोज्य वस्तुओं जैसे पानी की बोतलें, शॉपिंग बैग और कंटेनरों का उपयोग करके अपशिष्ट को कम करें। अपने नलों की जांच करें व जल संरक्षण और अनावश्यक बर्बादी को रोकने के लिए किसी भी टपकते नल को ठीक कराएं। Environment: (लेखक स्वतंत्र पत्रकार व स्तंभकार हैं)   ग्रेटर नोएडा– नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।