National Flag : जानिए कैसे बना हमारी आन बान शान का प्रतीक हमारा राष्ट्रीय  ध्वज तिरंगा

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar08 Oct 2022 05:58 PM
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लोकेन्द्र सिंह National Flag : ध्वज किसी भी राष्ट्र के चिंतन और ध्येय का प्रतीक तथा स्फूर्ति का केन्द्र होता है। ध्वज, आक्रमण के समय में पराक्रम का संघर्ष के समय में धैर्य का और अनुकूल समय में उद्यम की प्रेरणा देता है। इसलिए सदियों से ध्वज  हमारे साथ रहा है। इतिहास में जाकर देखते हैं तो हमें ध्यान आता हैं कि लोगों को गौरव की अनुभूति करने के लिए कोई न कोई ध्वज हमेशा रहा है। भारत के सन्दर्भ में देखें तो यहाँ की सांस्कृतिक पहचान 'भगवा' रंग का ध्वज रहा है। आज भी दुनिया में भगवा रंग भारत की सांस्कृति का प्रतीक है। अर्थात सांस्कृतिक पताका भगवा ध्वज है। वहीं, राजनीतिक रूप से विश्व पटल पर राष्ट्र ध्वज 'तिरंगा' भारत की पहचान है। भारत के 'स्व' से कटे हुए कुछ लोगों एवं विचार समूहों को  'भगवा' से दिक्कत होती है। इसलिए वे भगवा ध्वज को नकारते हैं। परन्तु उनके नकारने से भारत की सांस्कृतिक पहचान को भुलाया तो नहीं जा सकता। राष्ट, ध्वज के रूप में 'तिरंगा' को संविधान द्वारा 22 जुलाई, 1947 को स्वीकार किया गया। उससे पहले विश्व में भारत की पहचान का प्रतीक  'भगवा' ही था। स्वतंत्रता संग्राम के बीच एक राजनीतिक ध्वज की आवश्यकता अनुभव होने लगी। क्रांतिकारियों से लेकर अन्य स्वतंत्रता सेनानियों एवं राजनेताओं ने 1906 से 1929 तक अपनी-अपनी कल्पना एवं दृष्टि के अनुसार समय-समय पर अनेक झंडों को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में प्रस्तुत किया। इन्हीं में वर्तमान राष्ट्र ध्वज तिरंगे का आविर्भाव हुआ। स्वतंत्रता आन्दोलन का साझा मंच बन चुकी कांग्रेस ने 2 अप्रैल, 1931 को करांची में आयोजित कार्यसमिति की बैठक में राष्ट्रीय ध्वज के विषय में समग्र रूप से विचार करने, तीन रंग के ध्वज को लेकर की गईं आपत्तियों पर विचार करने और सर्वस्वीकार्य ध्वज के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए सात सदस्यों की एक समिति बनाई। समिति के सदस्य वे-सरदार वल्लभ भाई पटेल, पं.जवाहरलाल नेहरू, डा.पट्टाभि सीतारमैया डा. ना.सु. हर्डीकर, आचार्य काका कालेलकर, मास्टर तारा सिंह और मौलाना आजाद।

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उल्लेखनीय है कि पिंगली वेंकैया ने राष्ट्र ध्वज का जो प्रारंभिक अभिकल्प (डिजाइन) प्रस्तुत किया। उसमें लाल और हरा, दो ही रंग थे। कांग्रेस के दृष्टिकोण और नीति के कारण स्वाभाविक ही लोगों ने इन दोनों रंगों को हिन्दु और मुस्लिम समुदाय से जोड़कर देखा। जबकि दोनों रंगों के पीछे वेंकैया की भावना हरे रंग को समृद्धि और लाल रंग को स्वतंत्रता की लड़ाई के प्रतीक के रूप में चित्रित करने की थी। बाद में शांति और अहिंसा के प्रतीक के  रूप में सफेद पट्टी  जोडऩे का सुझाव मिला। जिस पर  वेंकैया ने सबसे ऊपर पतली सफेद पट्टी , बीच में हरी पट्टी  और सबसे नीचे लाल पट्टïी रखकर तिरंगे को आकार दिया। कांग्रेस नेताओं ने सफेद, हरा और लाल रंगों की पट्टी को क्रमश: ईसाई, इस्लाम और हिन्दू धर्म के प्रतीक के रूप में व्याख्या करके तिरंगे को लेकर असहमतियां निर्मित कर दीं। सिक्ख समुदाय ने इस पर आपत्ति दर्ज की और पीले रंग को ध्वज में शामिल करने की मांग महात्मा गाँधी से की। अन्य व्यक्तियों एवं संगठनों की ओर से भी आपत्तियां आ रहीं थीं ।

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ध्वज समिति ने उपरोक्त आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए देशभर से सुझाव प्राप्त करने के लिए एक प्रश्नावली तैयार की, जिसमें शामिल तीन प्रश्न इस प्रकार थे - 1.क्या आपके प्रांत में लोगों के किसी समूह या समुदाय के बीच राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइन के संबंध में कोई भावना है, जिसे आपकी राय में समिति द्वारा विचार किया जाना चाहिए? 2.ध्वज को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए क्या आपके पास कोई विशिष्ट सुझाव है? 3.क्या वर्तमान में प्रचलित ध्वज के डिजाइन में कोई दोष या खामी है, जिस पर आप ध्यान देने की मांग करते हैं? ध्वज समिति ने आन्ध्र, बिहार, बाम्बे (सिटी), कर्नाटक, सिंध, तमिलनाड़, उत्कल और उत्तर प्रदेश की प्रांतीय कांग्रेस समितियों सहित अन्य समितियों को उक्त प्रश्नावली भेजकर व्यापक स्तर पर सुझाव एकत्रित किये। प्रांतीय कांग्रेस समितियों एवं अन्य से प्राप्त सुझावों का सब दृष्टि से विचार कर समिति ने सर्वसम्मति से अपना जो प्रतिवेदन दिया, उसमें लिखा 'हम लोगों का एक मत है. कि अपना राष्ट्रीय ध्वज एक ही रंग का होना चाहिए। भारत के सभी लोगों का एक साथ उल्लेख करने के लिए उन्हें सर्वाधिक मान्य केसरिया रंग ही हो सकता है। अन्य रंगों की अपेक्षा यह रंग अधिक स्वतंत्र स्वरूप का तथा भारत की पूर्व परंपरा के अनुकूल है'। निष्कर्ष के रूप में उन्होंने आगे लिखा। 'भारत के राष्ट्रीय ध्वज का एक रंग हो और उसका रंग केसरिया रहे तथा उसके दंड की ओर नीले रंग में चर्खे का चित्र रहे' । समिति ने यह भी कहा था कि तीन रंग के ध्वज से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। क्योंकि पर्शिया और बुल्गारिया का ध्वज भी इन्हीं तीन रंग की पट्टियों वाला है। भारत का ध्वज एक रंग का होगा तो इस प्रकार का भ्रम भी उत्पन्न नहीं होगा। ध्वज समिति का यह प्रतिवेदन राष्ट्रीय एकात्मता की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। समिति के प्रस्ताव से स्पष्ट होता है कि 'भगवा ध्वज' स्वाभाविक रूप से इस देश का ध्वज है। इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि विभिन्न प्रान्तों की कांग्रेस समितियों से प्राप्त सुझावों के उपरांत ध्वज समिति जिस निर्णय पर पहुंची, उसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई अधिवेशन में स्वीकार नहीं किया गया। कांग्रेस कार्यसमिति ने पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार किये गए तिरंगे को ही आंशिक परिवर्तन के साथ राष्ट्र ध्वज के रूप में मान्यता दी। विभिन्न सुझावों के आधार पर भगवा रंग को सबसे ऊपर कर दिया गया, मध्य में सफेद और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी। इस ध्वज पर बीच में चरखा अंकित कर दिया गया। स्मरण रखें कि इस ध्वज समिति में उस समय के कांग्रेस के प्रभावशाली नेता शामिल थे। भगवा रंग के आयताकार ध्वज राष्ट्र ध्वज के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानने वाले इस प्रस्ताव पर पंडित जवाहरलाल नेहरू, मास्टर तारा सिंह और मौलाना आजाद की भी सहमति थी। इसलिए भगवा ध्वज को लेकर आपत्ति करने वाले लोगों को अपनी दृष्टि को विस्तार देना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक सरसंघचालक डा. केशव बलिराम हेडगेवार ने ध्वज समिति के प्रस्ताव पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने प्रयास किये कि कांग्रेस की कार्यसमिति में राष्ट्र ध्वज को लेकर समिति के सुझाव को स्वीकार कर लिया जाये। डा. हेडगेवार संघ की स्थापना से पूर्व नागपुर कांग्रेस के प्रभावशाली नेता थे, इसलिए कांग्रेस में उनका गहरा संपर्क था। डा. हेडगेवार को इस बात की आशंका थी कि कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में ध्वज समिति के इस सुझाव को अस्वीकार किया जा सकता है। ऐसी स्थिति को टालने के लिए डा. हेडगेवार सक्रिय हो गए। लोकनायक बापूजी अणे कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य थे। ना. ह. पालकर ने पुस्तक 'डा. हेडगेवार चरित्र' में लिखा है कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक दिल्ली में होने वाली थी और लोकनायक अणे भी उसमें भाग लेने दिल्ली जाने वाले थे। वे भगवा रंग के पक्षधर थे। डा. हेडगेवार उनके पास गए और उन्हें समझाया कि केसरिया और भगवा रंग कोई दो रंग नहीं हैं। इनमें बहुत ही मामूली-सा अंतर है, मूलत: वे एक ही हैं। दोनों ही लाल एवं पीले रंग के सम्मिश्रण हैं। केसरिया रंग में लाल की तुलना में पीला रंग थोड़ा सा अधिक होता है और भगवा रंग में पीले की अपेक्षा लाल रंग थोड़ा सा अधिक होता है। अत: केसरिया ध्वज के समर्थन का अर्थ भगवा ध्वज का ही समर्थन है। डा. हेडगेवार ने आगे कहा यद्यपि काफी अध्ययन और खोज के उपरांत समिति ने केसरिया रंग का सुझाव दिया है, पर गांधी जी के सम्मुख सब मौन हो जाएंगे। गांधी जी ने केसरिया को अमान्य कर तिरंगे को ही बनाए रखने का आग्रह किया तो ये नेता मुंह नहीं खोलेंगे। अत: आपको आगे आकर निर्भयतापूर्वक अपने पक्ष का प्रतिपादन करना चाहिए। किन्तु डा. हेडगेवार के इन प्रयत्नों का कोई परिणाम नहीं निकला। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई- अधिवेशन में जब समिति का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया तो उसने उसे अमान्य करके तिरंगे को बनाये रखने का निर्णय लिया। इतना अवश्य किया कि गहरे लाल रंग के स्थान पर केसरिया रंग मान लिया तथा इस रंग का क्रम सबसे ऊपर कर दिया। इसके पूर्व लाल रंग की पट्टी -सबसे नीचे रहती थी। साथ ही यह भी बताया गया कि तीन रंग विभिन्न सम्प्रदायों के द्योतक न होकर गुणों के प्रतीक है। समिति ने यूँ ही नहीं कहा था कि केसरिया अर्थात भगवा रंग प्राचीन काल से हमारी सांस्कृति और परंपरा से जुड़ा होने के कारण अधिक स्वीकार्य है। 'भगवा ध्वज' प्राचीनतम समय से भारत की पहचान रहा है। महाभारत में अर्जुन के रथ पर भी 'भगवा ध्वज; विराजमान रहा। भगवा रंग दक्षिण के चोल राजाओं, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, महाराज छात्रसाल, गुरु गोविंद सिंह और महाराजा रंजीत सिंह की पराक्रमी परंपरा और सदा विजयी भाव का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है। भगवा रंग उगते हुए सूर्य के समान है जो ज्ञान और कर्मठता का प्रतीक है। भगवा ध्वज यज्ञ की ज्वाला के अनुरूप होने के कारण त्याग, समर्पण, जन कल्याण की भावना, तप, साधना आदि का आदर्श रखता है। यह समाज हित में सर्वस्व अर्पण करने का प्रतीक है। स्वामी रामतीर्थ भगवा रंग के बारे में कहते हैं। 'एक दृष्टि से मृत्यु तथा दूसरी दृष्टि से जन्म ऐसा दोहरा उद्देश्य यह रंग पूरा करता है।' भगवा ध्वज का सतयुग से कलयुग का संपूर्ण इतिहास देखने के बाद यह ध्यान में आता है कि हिन्दू समाज और भगवा ध्वज एक-दूसरे से अलग करना संभव नहीं है। हिन्दू राष्ट्र, हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म, हिन्दू सांस्कृति, हिन्दू जीवन पद्धति, हिन्दू तत्व ज्ञान, इन सबका भगवा ध्वज से अटूट नाता है त्याग, वैराग्य, नि:स्वार्थ वृत्ति, शौर्य, देश प्रेम ऐसे सब गुणों की प्रेरणा देने का सामर्थय भगवा ध्वज में है। संभवत: इसलिए ही जब राष्ट्रध्वज पर विचार किया जा रहा था, तब 'भगवा ध्वज' पर ही सबकी सहमति बनी थी।
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jaiprakash narayan पुण्यतिथि : पढ़ाई के लिए जयप्रकाश नारायण ने होटल में धोए थे बर्तन

Jaiprakash narayan
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calendar28 Nov 2025 05:56 PM
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jaiprakash narayan : लोकनायक जय प्रकाश नारायण की आज पुण्यतिथि है। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ समेत देश के सभी राज्यों में में उनको श्रद्धासुमन अर्पित किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जय प्रका​श नारायण को श्रद्धापुष्प अर्पित किए हैं। आज ही के दिन 1979 में उनका निधन हुआ था। जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के नारे ने पूरे देश को झकझोर दिया था। वो इतने स्वाभिमानी थे कि कभी किसी के आगे झुकना पसंद नहीं किया। यहां तक कि उच्च शिक्षा पाने के लिए उन्होंने बर्तन धोना तो पसंद किया, लेकिन किसी के आगे सिर नहीं झुकाया। उन्होंने बर्तन धोकर और खेतों में काम करके अपनी पढ़ाई का खर्ज निकाला था।

jaiprakash narayan death anniversary

आपको बता दें कि जयप्रकाश नारायण ने 9 साल की उम्र में ही गांव छोड़ दिया था और पढ़ाई के लिए पटना चले गए। वहां उन्होंने कॉलेजियट स्कूल में 7वीं क्लास में उन्होंने दाखिला लिया। 1920 में जब वो केवल 18 साल के थे, तब उनकी शादी 14 साल की प्रभादेवी के साथ हो गई थी। स्कूल जीवन में ही जयप्रकाश नाराय़ण का झुकाव स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ हुआ। 1919 में ब्रिटिश सरकार के रॉलेट एक्ट के खिलाफ बापू का असहयोग आंदोलन चल रहा था। देश की जनता महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के समर्थन में सड़कों पर उतरी थी। देशभर में अंग्रेज सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन और सभाएं हो रही थी।

उन्हीं दिनों महान स्वतंत्रता सेनाना मौलाना अबुल कलाम की एक सभा पटना में हुई। जयप्रकाश नारायण अपने साथियों के साथ उनका भाषण सुनने गए। मौलाना अबुल कलाम के भाषण का जयप्रकाश नारायण पर इतना प्रभाव पड़ा कि उसी वक्त उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने की इच्छा जाहिर कर दी। पटना कॉलेज मे पढ़ रहे जयप्रकाश नारायण का सिर्फ 20 दिनों बाद परीक्षा होनी थी। लेकिन वो कॉलेज छोड़कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े।

जयप्रकाश नारायण महात्मा गांधी के साथ रहकर स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेते रहे। हालांकि इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। 20 साल की उम्र में वो अपनी पत्नी प्रभादेवी को साबरमती आश्रम में छोड़कर अमेरिका पढ़ाई करने चले गए। 1922 में बर्कले यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए जयप्रकाश नारायण अमेरिका के कैलिफोर्निया पहुंचे। अमेरिका में रहने के दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई का खर्च खुद निकाला। इसके लिए उन्होंने कई छोटे-मोटे काम किए। कभी उन्होंने अंगूरों के खेतों में काम किया, कभी होटलों में झूठे बर्तन धोए तो कभी ऑटोमोबाइल मैकेनिक के तौर पर काम किया। इन सब काम करने के दौरान उन्होंने कामगारों की मुश्किल को नजदीक से देखा।

इसी दौरान उन्होंने कार्ल मार्क्स की दास कैपिटल पढ़ी। उन्हीं दिनों 1917 में रुस की क्रांति ने कामयाबी पाई थी। इस सबसे जयप्रकाश नारायण बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने विचार बनाया कि मार्क्स के रास्ते पर चलकर ही आम लोगों की समस्या दूर की जा सकती है। अमेरिका में जयप्रकाश नारायण अपनी पढ़ाई का खर्च खुद वहन करते थे, हालांकि उसके लिए उन्हें कई तरह के काम वहां करने पड़े।

अमेरिका से लौटने के बाद 1929 में जवाहर लाल नेहरू के कहने पर उन्होंने कांग्रेस जॉइन की। वो कांग्रेस में समाजवादी नेताओं की विचारधारा से थे। जल्द ही कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया और उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नाम से अलग संगठन खड़ा कर लिया। उनका विचार था कि अंग्रेजों के खिलाफ उग्र आंदोलन चलाकर ही उन्हें देश के बाहर खदेड़ा जा सकता है।

आजादी के बाद 1952 में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। आजादी के बाद बदली राजनीति ने जयप्रकाश नारायण को बहुत निराश किया। इसके बाद बिनोवा भावे के भूदान आंदोलन में उन्होंने अपना सबकुछ न्यौछावर करने का फैसला किया।

1974 में जयप्रकाश नारायण इंदिरा गांधी के राजनीति के खिलाफ तेजी से उभरे। इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ उन्होंने आवाज बुलंद की। उन्हीं दिनों बिहार में जयप्रकाश नारायण ने छात्रों के आंदोलन की अगुआई की। उस आंदोलन को जेपी आंदोलन का नाम मिला। इस आंदोलन ने बिहार में कई समाजवादी नेताओं को जन्म दिया, जो आज तक राजनीति में सक्रीय हैं।

जयप्रकाश नारायण के बारे में कहा जाता है कि वो भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बनने के प्रबल दावेदार थे, लेकिन वो सत्ता के कभी नजदीक नहीं रहे। उस वक्त इंदिरा गांधी कहीं नहीं थी। उस दौर में उन्हें कैबिनेट मिनिस्टर, प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव मिला, लेकिन उन्होंने सभी प्रस्तावों को ठुकरा कर जवाहर इंदिरा विरोध का रास्ता चुना। उन्होंने देश के गरीबों, मजलूमों और वंचितों के हक की आवाज उठाई।

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Indian Airforce Day 2022- पहली बार दिल्ली में नहीं बल्कि चंडीगढ़ में मनाया जाएगा

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userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 08:41 AM
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Indian Airforce Day 2022- हर साल 8 अक्टूबर को भारतीय वायुसेना दिवस मनाया जाता है। इस साल भारतीय वायुसेना के 90 साल पूरे हो रहे हैं। ऐसे में देशभर में वायुसेना दिवस के चर्चे हैं। हर साल 8 अक्टूबर को पूरे देश में वायुसेना दिवस मनाया जाता है। लेकिन इस साल 90 साल पूरे होने की खुशी में जश्न कुछ अलग और खास होने वाला है। इस बार पहली बार ऐसा हो रहा है कि वायुसेना दिवस को दिल्ली की जगह चंडीगढ़ (Indian Airforce Day 2022 will be celebrate in Chandigarh at the place of Delhi) में मनाया जा रहा है। बीते कुछ दिनों से इसके रिहर्सल भी हो रहे थे। वायुसेना दिवस हमेशा से ही राजधानी दिल्ली से सटे हुए हिंडन एयरबेस पर ही आयोजित किया जाता रहा है। इस वर्ष इसका आयोजन चंडीगढ़ के मशहूर सुकना लेक के खुले आसमान में किया जा रहा है। इस विशेष दिन पर देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी चंडीगढ़ में मौजूद रहने वाले हैं। खबरों की माने तो इस साल का फ्लाई पास्ट पूरे दो घण्टे चलने वाला है। ये दोपहर 2:45 बजे से शुरू होगा और शाम 4:45 तक चलेगा। इस साल 9 विमान ऐसे रहने वाले हैं जिन्हें स्टैंड बाय पर रखा जाएगा। वहीं 75 ऐरक्राफ्ट इस बार वायुसेना दिवस (Indian Airforce Day) के फ्लाई पास्ट में हिस्सा लेने जा रहे हैं। चंडीगढ़ के सुकना लेक में कुल मिलाकर 84 फाइटर जेट आसमान में नज़र आने वाले हैं। इस हवाई पास्ट का आगाज पेराटूपर की आकाश गंगा टीम एएन- 32 विमान से नीचे छलांग लगाकर करेगी। इसके बाद बाकी के विमान हवाई प्रदर्शन करेंगे। हल्के विमानों में तेजस, सुखोई, मिग-29, जगुआर, राफेल, आईएल-76, सी-130जे और हॉक फ्लाई पास्ट का हिस्सा होने वाले हैं। वहीं हेलीकॉप्टर में ध्रुव, , चिनूक, अपाचे और एमआई-17 को फ्लाई पास्ट का हिस्सा बनाया गया है।