jaiprakash narayan : लोकनायक जय प्रकाश नारायण की आज पुण्यतिथि है। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ समेत देश के सभी राज्यों में में उनको श्रद्धासुमन अर्पित किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जय प्रकाश नारायण को श्रद्धापुष्प अर्पित किए हैं। आज ही के दिन 1979 में उनका निधन हुआ था। जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के नारे ने पूरे देश को झकझोर दिया था। वो इतने स्वाभिमानी थे कि कभी किसी के आगे झुकना पसंद नहीं किया। यहां तक कि उच्च शिक्षा पाने के लिए उन्होंने बर्तन धोना तो पसंद किया, लेकिन किसी के आगे सिर नहीं झुकाया। उन्होंने बर्तन धोकर और खेतों में काम करके अपनी पढ़ाई का खर्ज निकाला था।
jaiprakash narayan death anniversary
आपको बता दें कि जयप्रकाश नारायण ने 9 साल की उम्र में ही गांव छोड़ दिया था और पढ़ाई के लिए पटना चले गए। वहां उन्होंने कॉलेजियट स्कूल में 7वीं क्लास में उन्होंने दाखिला लिया। 1920 में जब वो केवल 18 साल के थे, तब उनकी शादी 14 साल की प्रभादेवी के साथ हो गई थी। स्कूल जीवन में ही जयप्रकाश नाराय़ण का झुकाव स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ हुआ। 1919 में ब्रिटिश सरकार के रॉलेट एक्ट के खिलाफ बापू का असहयोग आंदोलन चल रहा था। देश की जनता महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के समर्थन में सड़कों पर उतरी थी। देशभर में अंग्रेज सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन और सभाएं हो रही थी।
उन्हीं दिनों महान स्वतंत्रता सेनाना मौलाना अबुल कलाम की एक सभा पटना में हुई। जयप्रकाश नारायण अपने साथियों के साथ उनका भाषण सुनने गए। मौलाना अबुल कलाम के भाषण का जयप्रकाश नारायण पर इतना प्रभाव पड़ा कि उसी वक्त उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने की इच्छा जाहिर कर दी। पटना कॉलेज मे पढ़ रहे जयप्रकाश नारायण का सिर्फ 20 दिनों बाद परीक्षा होनी थी। लेकिन वो कॉलेज छोड़कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े।
जयप्रकाश नारायण महात्मा गांधी के साथ रहकर स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेते रहे। हालांकि इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। 20 साल की उम्र में वो अपनी पत्नी प्रभादेवी को साबरमती आश्रम में छोड़कर अमेरिका पढ़ाई करने चले गए। 1922 में बर्कले यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए जयप्रकाश नारायण अमेरिका के कैलिफोर्निया पहुंचे। अमेरिका में रहने के दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई का खर्च खुद निकाला। इसके लिए उन्होंने कई छोटे-मोटे काम किए। कभी उन्होंने अंगूरों के खेतों में काम किया, कभी होटलों में झूठे बर्तन धोए तो कभी ऑटोमोबाइल मैकेनिक के तौर पर काम किया। इन सब काम करने के दौरान उन्होंने कामगारों की मुश्किल को नजदीक से देखा।
इसी दौरान उन्होंने कार्ल मार्क्स की दास कैपिटल पढ़ी। उन्हीं दिनों 1917 में रुस की क्रांति ने कामयाबी पाई थी। इस सबसे जयप्रकाश नारायण बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने विचार बनाया कि मार्क्स के रास्ते पर चलकर ही आम लोगों की समस्या दूर की जा सकती है। अमेरिका में जयप्रकाश नारायण अपनी पढ़ाई का खर्च खुद वहन करते थे, हालांकि उसके लिए उन्हें कई तरह के काम वहां करने पड़े।
अमेरिका से लौटने के बाद 1929 में जवाहर लाल नेहरू के कहने पर उन्होंने कांग्रेस जॉइन की। वो कांग्रेस में समाजवादी नेताओं की विचारधारा से थे। जल्द ही कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया और उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नाम से अलग संगठन खड़ा कर लिया। उनका विचार था कि अंग्रेजों के खिलाफ उग्र आंदोलन चलाकर ही उन्हें देश के बाहर खदेड़ा जा सकता है।
आजादी के बाद 1952 में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। आजादी के बाद बदली राजनीति ने जयप्रकाश नारायण को बहुत निराश किया। इसके बाद बिनोवा भावे के भूदान आंदोलन में उन्होंने अपना सबकुछ न्यौछावर करने का फैसला किया।
1974 में जयप्रकाश नारायण इंदिरा गांधी के राजनीति के खिलाफ तेजी से उभरे। इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ उन्होंने आवाज बुलंद की। उन्हीं दिनों बिहार में जयप्रकाश नारायण ने छात्रों के आंदोलन की अगुआई की। उस आंदोलन को जेपी आंदोलन का नाम मिला। इस आंदोलन ने बिहार में कई समाजवादी नेताओं को जन्म दिया, जो आज तक राजनीति में सक्रीय हैं।
जयप्रकाश नारायण के बारे में कहा जाता है कि वो भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बनने के प्रबल दावेदार थे, लेकिन वो सत्ता के कभी नजदीक नहीं रहे। उस वक्त इंदिरा गांधी कहीं नहीं थी। उस दौर में उन्हें कैबिनेट मिनिस्टर, प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव मिला, लेकिन उन्होंने सभी प्रस्तावों को ठुकरा कर जवाहर इंदिरा विरोध का रास्ता चुना। उन्होंने देश के गरीबों, मजलूमों और वंचितों के हक की आवाज उठाई।