Supreme Court : व्याभिचार के आरोपी अपने अफसरों पर कार्रवाई कर सकते हैं सशस्त्र बल : सुप्रीम कोर्ट

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locationभारत
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calendar02 Dec 2025 01:55 AM
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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को व्यवस्था दी कि सशस्त्र बल व्याभिचार के लिए अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। व्याभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले 2018 के ऐतिहासिक फैसले को स्पष्ट किया।

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न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि उसका 2018 का फैसला सशस्त्र बल अधिनियमों के प्रावधानों से संबंधित नहीं था। शीर्ष अदालत ने अनिवासी भारतीय जोसेफ शाइन की याचिका पर 2018 में व्याभिचार के अपराध से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।

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पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार भी शामिल थे। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने 2018 के फैसले पर स्पष्टीकरण का अनुरोध किया।

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रक्षा मंत्रालय ने 27 सितंबर, 2018 के फैसले से सशस्त्र बलों को छूट देने के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था। उसमें कहा गया था कि यह उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में बाधा बन सकता है, जो इस तरह के कार्यों में लिप्त हैं। यह सेवाओं के भीतर अस्थिरता पैदा कर सकते हैं।

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अर्जी में कहा गया कि उपरोक्त (2018 के) फैसले के मद्देनजर, चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अपने परिवारों से दूर काम कर रहे सैन्यकर्मियों के मन में हमेशा अप्रिय गतिविधियों में परिवार के शामिल होने के बारे में चिंता रहेगी। देश विदेशकी खबरों से अपडेट रहने लिएचेतना मंचके साथ जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।
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NATIONAL: राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार, संसदीय मर्यादा का अपमान:भाजपा

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locationभारत
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calendar31 Jan 2023 11:17 PM
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NATIONAL: नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किए जाने को लेकर तेलंगाना की सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआएस) और दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) को आड़े हाथों लिया और उनके इस कदम को संसदीय मर्यादा का अपमान करार दिया।

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वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यहां संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज देश के ​लिए बहुत ही ऐतिहासिक अवसर था जब जनजातीय वर्ग से ताल्लुक रखने वाली भारत की प्रथम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के बजट सत्र की शुरुआत के अवसर पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित किया। उन्होंने कहा, यह बहुत पीड़ा की बात है कि इतने महत्वपूर्ण अवसर पर बीआरएस और आम आदमी पार्टी ने इस अभिभाषण का बहिष्कार किया। उन्होंने कहा, ये भारत के राष्ट्रपति की मर्यादा के साथ-साथ देश की संसदीय परंपरा और मर्यादा का भी अपमान है। प्रसाद ने कहा कि राजनीतिक विरोध स्वाभाविक हैं लेकिन इसका भी एक स्तर होना चाहिए। बीआरएस और आप ने इससे पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने की घोषणा के साथ कहा था कि उनका यह कदम राज्यों के साथ व्यवहार सहित कई मुद्दों पर केंद्र की नीतियों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराना है। प्रसाद ने कहा कि यह एक ‘‘आधारहीन’’ तर्क है। उन्होंने कहा, कुल मिलाकर यह राष्ट्रपति का अभिभाषण था, जिसका उन्होंने बहिष्कार करने का फैसला किया। उन्होंने विपक्षी दलों की इस आलोचना को भी खारिज कर दिया कि अभिभाषण में सरकार के काम का महिमामंडन किया गया है। उन्होंने संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अनुमोदित भाषण को पढ़ने वाले राज्यपाल के पारंपरिक संबोधन का हवाला देते हुए पूछा, बजट सत्र की शुरुआत के दौरान कुछ विपक्ष शासित राज्यों में क्या होता है? ज्ञात हो कि राष्ट्रपति के अभिभाषण को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दी जाती है। प्रसाद ने कहा कि अगर विपक्षी दलों को भाषण में उद्धृत सरकार की उपलब्धियों से कोई समस्या थी, तो वे उन्हें अभिभाषण पर चर्चा के दौरान उठा सकते हैं और सरकार प्रभावी ढंग से जवाब देगी। उन्होंने कहा कि मुर्मू के संबोधन में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि यह ‘ठोस’ बातों पर आधारित है, जो केंद्र के सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देते हुए उसके सर्वसमावेशी विकास कार्यों को रेखांकित करता है। इससे पहले, बीआरएस के नेता के. केशव राव ने कहा था कि भाजपा नीत केंद्र सरकार के शासन के सभी मोर्चों पर विफलता के विरोध में उनकी पार्टी संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करेगी। ‘आप’ के नेता एवं सांसद संजय सिंह ने कहा, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के प्रति पूरे सम्मान के साथ, हम संसद के संयुक्त सत्र का बहिष्कार कर रहे हैं क्योंकि सरकार सभी मोर्चों पर विफल रही है और उसने अपने वादों को पूरा नहीं किया। राव और सिंह दोनों ने स्पष्ट किया कि वे और उनकी पार्टियां राष्ट्रपति मुर्मू और राष्ट्रपति के पद का सम्मान करती हैं, लेकिन केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार के विरोध में अभिभाषण का बहिष्कार कर रही है। बजट सत्र के पहले दिन संसद के ऐतिहासिक केंद्रीय कक्ष में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए बतौर राष्ट्रपति अपने पहले अभिभाषण में मुर्मू ने ‘‘विकास’’ एवं ‘‘विरासत’’ पर सरकार के जोर को रेखांकित करते हुए कहा कि उसने कोई भेदभाव किए बिना सभी के लिए काम किया है। साथ ही उन्होंने अगले 25 वर्ष में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य भी देश के समक्ष रखा। उन्होंने कहा, हमें ऐसा भारत बनाना है जो आत्मनिर्भर हो और जो अपने मानवीय दायित्वों को पूरा करने में समर्थ हो।

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Bihar Politics: जदयू के असंतुष्ट नेता कुशवाहा ने नीतीश से मांगा अपना हिस्सा

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Bihar Politics
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calendar30 Nov 2025 11:01 AM
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Bihar Politics: पटना। जनता दल (यूनाइटेड) के असंतुष्ट नेता उपेंद्र कुशवाहा ने मंगलवार को अपनी बगावत की तुलना उस चुनौती से की जो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तीन दशक पहले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद को दी थी।

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जद(यू) संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष कुशवाहा ने कहा कि कुमार के लिए उनके मन में ‘अगाध श्रद्धा’ है, लेकिन जोर दिया कि वह (नीतीश) अपने निर्णय नहीं ले पा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप जद (यू) कमजोर हो गया है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री कुशवाहा ने कहा कि मुझे यह स्पष्ट करने के लिए कहा गया कि पार्टी में अपने हिस्से का दावा करने से मेरा क्या मतलब है। मैं आज वह कर रहा हूं।

उन्होंने कहा कि मैं उसी हिस्से की बात कर रहा हूं जो नीतीश कुमार ने 1994 की प्रसिद्ध रैली में मांगा था जब लालू प्रसाद हमारे नेता को उनका हक देने से हिचक रहे थे।

कुशवाहा पटना में आयोजित ‘लव कुश’ रैली का जिक्र कर रहे थे जिसका मकसद बिहार में यादव जाति के राजनीतिक वर्चस्व में पीछे छूटे कुर्मी-कोइरी जाति के लोगों को एकजुट करना था। रैली में कुमार की उपस्थिति ने अविभाजित जनता दल से उनके अलग होने और एक स्वतंत्र राजनीतिक यात्रा की रूपरेखा तय की थी।

कुशवाहा मार्च, 2017 में अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय करने के बाद जद (यू) में लौटे थे। कुशवाहा ने कहा कि संसदीय बोर्ड के प्रमुख के रूप में उनके पास कोई शक्तियां नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यह पद एक तरह का ‘झुनझुना’ है।

कुशवाहा ने कहा कि मैं अतीत में राज्यसभा छोड़ चुका हूं और केंद्रीय मंत्रिपरिषद से भी हट गया था...अगर उन्हें लगता है कि ये मेरे लिए बड़े विशेषाधिकार हैं तो पार्टी मेरे सभी पद वापस ले सकती है और विधान परिषद सदस्य का दर्जा भी छीन सकती है।

कुशवाहा ने दावा किया कि 2013 के विपरीत जब जद (यू) ने पहली बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से नाता तोड़ा था कि बिखराव का खतरा अब हमारी पार्टी पर मंडरा रहा है।

क्या वह उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव के उभार से खतरा महसूस करते हैं, इस सवाल के सीधे जवाब से बचते हुए उन्होंने कहा कि मुझे यह कहना होगा कि मुख्यमंत्री अपने सार्वजनिक बयानों में यह कहते रहे हैं कि उनके सभी कदम, 2017 में भाजपा के साथ फिर से जुड़ना, पिछले साल अलग होना और महागठबंधन में शामिल होना और यहां तक कि चुनावों में उम्मीदवारों का चयन भी दूसरों के इशारे पर किया गया...वहीं समस्या है। वह अपना निर्णय नहीं ले पा रहे।

कुशवाहा ने यह भी दावा किया कि अति पिछड़ा वर्ग का जद (यू) से मोहभंग हो रहा है। भोजपुर जिले में सोमवार को अपने काफिले पर हुए हमले का जिक्र करते हुए कुशवाहा ने आरोप लगाया कि स्थानीय प्रशासन ने मामले को दबाने की कोशिश की और उन्होंने इस मामले में पुलिस महानिदेशक या मुख्य सचिव के व्यक्तिगत हस्तक्षेप की मांग की।

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