1600 साल से धंसने से बचा वेनिस, जानिए लकड़ी की अनोखी नींव का रहस्य

वेनिस की नींव सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि प्रकृति और इंसानी समझ का अद्भुत मेल है। बिना आधुनिक विज्ञान पढ़े, उस दौर के कारीगरों ने ऐसा निर्माण किया जो आज भी दुनिया के लिए प्रेरणा बना हुआ है। यह शहर साबित करता है कि टिकाऊ विकास सिर्फ नई तकनीक से नहीं, बल्कि प्रकृति को समझकर भी हासिल किया है।

Wooden foundation
लकड़ी से बनी नींव (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar31 Dec 2025 04:24 PM
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दुनिया में जहां आधुनिक इमारतें स्टील और कंक्रीट की नींव पर खड़ी की जाती हैं, वहीं इटली का ऐतिहासिक शहर वेनिस पिछले करीब 1600 सालों से लकड़ी के खंभों पर टिका हुआ है। यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन यही अनोखी इंजीनियरिंग आज भी इस शहर को धंसने से बचाए हुए है। 

वेनिस की नींव में लाखों छोटे-छोटे लकड़ी के खंभे ज़मीन में गाड़े गए हैं। इन्हें इस तरह लगाया गया है कि उनकी नुकीली नोक नीचे की ओर हो। यह पूरा ढांचा किसी “उल्टे जंगल” जैसा दिखता है, जो पानी, मिट्टी और लकड़ी के संतुलन से शहर को संभाले हुए है।

कैसे बनाई गई थी यह अनोखी नींव?

बता दें कि इतिहासकारों और इंजीनियरों के अनुसार, वेनिस में नींव बनाने की प्रक्रिया बेहद वैज्ञानिक थी, भले ही उस समय आधुनिक इंजीनियरिंग का ज्ञान मौजूद न रहा हो। एक वर्ग मीटर क्षेत्र में औसतन 9 लकड़ी के खंभे गाड़े जाते थे। खंभे लार्च, ओक, एल्डर, पाइन, स्प्रूस और एल्म जैसे पेड़ों से बनाए जाते थे। इनकी लंबाई 1 मीटर से लेकर 3.5 मीटर तक होती थी, खंभों को बाहर से केंद्र की ओर गोलाकार पैटर्न में लगाया जाता था, इसके ऊपर लकड़ी की क्षैतिज बीमें रखी जाती थीं, फिर पत्थरों से इमारतों का निर्माण किया जाता था।

चट्टान तक नहीं पहुंचते, फिर भी मज़बूत क्यों?

दिलचस्प बात यह है कि वेनिस के ये खंभे ज़मीन की ठोस चट्टान तक नहीं पहुंचते। इसके बावजूद वे इमारतों को संभालते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इसका कारण है मिट्टी और खंभों के बीच पैदा होने वाला घर्षण। जब बहुत सारे खंभे पास-पास गाड़े जाते हैं, तो मिट्टी उन्हें कसकर पकड़ लेती है। इसी सिद्धांत को आज भू-तकनीकी इंजीनियरिंग में बेहद अहम माना जाता है।

लकड़ी सड़ती क्यों नहीं?

आमतौर पर पानी में रहने से लकड़ी खराब हो जाती है, लेकिन वेनिस में ऐसा नहीं हुआ। शोध के मुताबिक मिट्टी लकड़ी को ऑक्सीजन से दूर रखती है, पानी लकड़ी की कोशिकाओं का आकार बनाए रखता है, बैक्टीरिया का असर बहुत धीमा होता है। हालांकि कुछ इमारतें धीरे-धीरे धंस रही हैं। उदाहरण के तौर पर, फ्रारी चर्च का घंटाघर हर साल लगभग 1 मिलीमीटर नीचे जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि पूरा सिस्टम अभी भी स्थिर है।

आधुनिक इंजीनियरिंग भी हैरान

बता दें कि स्विट्ज़रलैंड की ईटीएच यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अलेक्ज़ांडर प्यूज़्रिन के मुताबिक,आज की आधुनिक नींवों को आमतौर पर सिर्फ 50 साल की गारंटी के साथ बनाया जाता है, जबकि वेनिस की लकड़ी की नींव 1600 साल से खड़ी है। उनका कहना है कि यह दुनिया का एकमात्र ऐसा शहर है जहां घर्षण-आधारित लकड़ी की नींव इतने बड़े पैमाने पर सफल रही है।

आज फिर लौट रही है लकड़ी

बता दें कि 19वीं और 20वीं सदी में कंक्रीट ने लकड़ी की जगह ले ली थी, लेकिन अब हाल के वर्षों में लकड़ी को फिर से एक आधुनिक और पर्यावरण-अनुकूल निर्माण सामग्री के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि लकड़ी कार्बन को अवशोषित करती है, यह भूकंप-रोधी होती है, पर्यावरण के लिए बेहतर विकल्प है।

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जाने गांधी परिवार और धार्मिक विविधता की कहानी

नेहरू-गांधी परिवार का इतिहास केवल सत्ता और राजनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उनके निजी रिश्ते भी भारतीय समाज की विविधता और बदलते सामाजिक मूल्यों को दर्शाते रहे हैं।

Gandhi family
गांधी परिवार (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar30 Dec 2025 02:30 PM
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देश की राजनीति में दशकों तक अहम भूमिका निभाने वाला नेहरू-गांधी परिवार एक बार फिर चर्चा में है। इस बार वजह राजनीतिक नहीं, बल्कि निजी जीवन से जुड़ी एक खबर है। प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा के बेटे रेहान वाड्रा की सगाई की खबरों के बाद गांधी परिवार से जुड़े रिश्तों और उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि को लेकर दिलचस्प चर्चा शुरू हो गई है।

इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी

बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से विवाह किया था, जो पारसी समुदाय से आते थे। उस दौर में यह विवाह सामाजिक समरसता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रतीक माना गया। यह रिश्ता अपने समय से आगे की सोच को दर्शाता था।

राजीव गांधी और सोनिया गांधी

बता दें कि इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी ने इटली में जन्मीं सोनिया गांधी से विवाह किया। सोनिया गांधी एक रोमन कैथोलिक ईसाई परिवार से थीं। बाद में उन्होंने भारतीय नागरिकता ली और भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई।

संजय गांधी और मेनका गांधी

बता दें कि संजय गांधी और मेनका गांधी की शादी भी काफी चर्चा में रही है। मेनका गांधी का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था और विवाह के बाद भी उन्होंने हिंदू परंपराओं का पालन किया। यह रिश्ता राजनीतिक और सामाजिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण माना गया है।

प्रियंका गांधी वाड्रा और रॉबर्ट वाड्रा

बता दें कि प्रियंका गांधी का विवाह उद्योगपति रॉबर्ट वाड्रा से हुआ। रॉबर्ट वाड्रा की धार्मिक पहचान को लेकर समय-समय पर अलग-अलग दावे सामने आए हैं। कुछ रिपोर्ट्स में उन्हें ईसाई बताया गया, जबकि बाद में हिंदू धर्म अपनाने की बातें भी कही गईं। हालांकि इस पर परिवार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं रहा है।

रेहान वाड्रा और अवीवा बेग

अब गांधी परिवार की नई पीढ़ी चर्चा में है। खबरों के अनुसार रेहान वाड्रा ने अपनी गर्लफ्रेंड अवीवा बेग से सगाई कर ली है। दोनों के परिवारों की सहमति की बात कही जा रही है। हालांकि अवीवा बेग के धर्म को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है।

निजी फैसले और बदलता सामाजिक नजरिया

गांधी परिवार के यह रिश्ते इस बात की ओर इशारा करते हैं कि व्यक्तिगत जीवन में उन्होंने परंपराओं से हटकर अपनी पसंद और आपसी समझ को प्राथमिकता दी। यह कहानी केवल एक परिवार की नहीं, बल्कि बदलते भारतीय समाज और उसकी सोच की भी झलक पेश करती है।

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बीएमसी चुनाव 2025–26: कांग्रेस ने 52 उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की

इस बार कांग्रेस ने महाविकास अघाड़ी के सहयोगी दल शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार गुट के साथ गठबंधन नहीं किया है। पार्टी ने वंचित बहुजन अघाड़ी के साथ चुनावी गठबंधन का ऐलान किया है, जिससे बीएमसी चुनाव का राजनीतिक समीकरण और दिलचस्प हो गया है।

Congresss second list
कांग्रेस की दूसरी सूची (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar30 Dec 2025 01:06 PM
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बीएमसी (मुंबई महानगरपालिका) चुनाव 2025–26 को लेकर कांग्रेस पार्टी ने अपनी दूसरी उम्मीदवार सूची जारी कर दी है। इस सूची में कुल 52 वार्डों के लिए प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया गया है। कांग्रेस ने इस बार ओपन, ओबीसी, एससी और महिला आरक्षण श्रेणियों को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों का चयन किया है।

महाविकास अघाड़ी से अलग राह पर कांग्रेस

गौरतलब है कि इस बार कांग्रेस ने बीएमसी चुनाव में महाविकास अघाड़ी के सहयोगी दल शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार गुट के साथ गठबंधन नहीं किया है। इसके बजाय कांग्रेस ने वंचित बहुजन अघाड़ी के साथ चुनावी गठबंधन का ऐलान किया है, जिससे मुंबई की सियासत में मुकाबला और रोचक हो गया है।

इन वार्डों से घोषित किए गए उम्मीदवार

दूसरी सूची के अनुसार माघाठाणे (वार्ड 03) से प्रदीप रमाकांत चौबे, दहिसर (वार्ड 08 और 09) से रत्नप्रभा डी. जुन्नरकर और सदानंद बी. चव्हाण, चारकोप (वार्ड 31) से बीना रामकुबर सिंह, दिंडोशी (वार्ड 37, 39 और 41) से मीना दुबे, मधु बृजेश सिंह और राहुल उगले जोगेश्वरी पूर्व के वार्ड 52, 74, 78 और 79 से स्वाती एकनाथ, समिता नितिन सावंत, सिद्दीकी शबाना बानो और प्रियंका मनीष मिश्रा को टिकट दिया गया है।

पश्चिमी उपनगरों में कांग्रेस का जोर

बता दें कि कांग्रेस ने गोरेगांव, वर्सोवा और अंधेरी क्षेत्रों में भी मजबूत उम्मीदवार उतारे हैं। जिसमें गोरेगांव (वार्ड 58) से सूर्यकांत मिश्रा, वर्सोवा (वार्ड 60 और 65) से ग्लैडिस श्रियर और सुफियान हैदर, अंधेरी पूर्व (वार्ड 72, 75 और 86) से गायत्री गुप्ता, इमरान खलील शेख और नितिन सालगरे है।

बांद्रा से घाटकोपर तक उम्मीदवारों की घोषणा

बता दें कि बांद्रा पूर्व और पश्चिम के कुल आठ वार्डों में कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी घोषित किए हैं। वहीं, मुलुंड, भांडुप, विक्रोली और घाटकोपर क्षेत्रों में भी पार्टी ने अनुभवी और नए चेहरों पर भरोसा जताया है।

मध्य और पूर्वी मुंबई पर भी फोकस

कुर्ला, चांदिवली, कालिना, सायन कोलीवाड़ा, धारावी, माहिम, वडाला, शिवड़ी, बायकुला और मुम्बादेवी जैसे इलाकों में कांग्रेस ने सामाजिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों का चयन किया है।

चुनावी रणनीति का संकेत

दूसरी सूची से साफ है कि कांग्रेस इस बार बीएमसी चुनाव में पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरने की तैयारी में है। वंचित बहुजन अघाड़ी के साथ गठबंधन और विविध सामाजिक वर्गों के उम्मीदवारों को मौका देकर पार्टी मुंबई की राजनीति में नया समीकरण बनाने की कोशिश कर रही है। अब सभी की निगाहें कांग्रेस की अगली सूची और अन्य दलों की रणनीतियों पर टिकी हुई हैं।