Hindi Kavita: इस कविता को पढ़ कर याद आएंगे “दिनकर”

क्षमादान! संहार तू रोज करता है तापस भूमि के कण-कण को रौंदकर , कौन सा साम्राज्य तेरे ह्रदय को भरता…