मुसलमानों के लिए कितना अहम है 'अलविदा जुमा', जानें इसका महत्व

अलविदा जुमे की मुसलामनों में फज़ीलत
आपको बता दें कि रमजान के महीने में मुसलमान पूरे 29 या 30 दिन रोजे रखते है यानी करीब चार हफ्ते रोजे की मुद्दत होती है। इन चार हफ्तों आखिरी जुमा अलविदा जुमा होता है। अलविदा जुमा रमजान पाक के तीसरे अशरे (आखिरी 10 दिन) में आता है। मुसलमानों की हदीस के मुताबिक, रमजान का महीना वो पाक महीना होता है, जिसमें हर नेकी और इबादत के बदले 70 गुना ज्यादा सवाब (पुण्य) अल्लाह पाक मुसलानों को देते है।भारत में अलविदा जुमा को लेकर क्या है परंपरा
मुसलामनों के लिए अलविदा जुमा बाकि जुमे से खास माना जाता है, क्योंकि यह रमजान के महीने में पढ़ता है, भारत में अलविदा जुमा के दिन मजिस्दों में नमजियों की ज्यादा से ज्यादा रौनक देखने को मिलती। इसके लिए मजिस्दों में भी खास तैयारी की जाती है। सुबह के टाइम पूरे मजिस्दों में अच्छे से साफ-सफाई होती है। जिनका रोजा होता है नये और साफ कपड़े पहनकर इत्र (खुशबू) लगाकर नमाज के लिए घर से बाहर जाते हैं और मस्जिदों में इबादत करते हैं। इस दिन लोगों में खासा उत्साह रहता है और वो लोग पूरे जोश-व-खरोश के साथ इस नमाज़ का एहतिमाम करते हैं। बच्चों में इसको लेकर खासा दिलचस्पी देखने को मिलती है। इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, अलविदा की नमाज में लोग सच्चे दिल से जो जायज दुआ मांगते हैं वो कुबूल होती है और नेक दिल से अदा की गई नमाज से अल्लाह की रहमत और बरकत मिलती है। रमजान के महीने में हर इंसान के अल्लाह गुनाह माफ कर देता है। इस दौरान फर्ज (जरूरी) के साथ ही कई नफिल (अतिरिक्त) नमाजें भी पढ़ी जाती हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा सवाब मिल सके। इसके अलावा कुरान की तिलावत होती है और गरीब-जरूरतमंद लोगों की मदद भी की जाती है।Alvida Jumma 2024
अलविदा जुमा को लेकर क्या कहते हैं इस्लामिक स्कॉलर
आपकी जानकारी के लिए बता दें अलविदा जुमा के बारें में दारुल उलूम, देवबंद के कारी इशाक गोरा कहते हैं कि रमजान का महीना बेहद पाक होता है और जुमे का अपना अलग महत्तव है। रमजान के बाकी जुमों से अलग अलविदा जुमा के लिए लोगों के अंदर अलग ही खुशी रहती है। यही वजह है कि लोग नए कपड़े पहनकर और इत्र लगाकर नमाज के लिए घर से निकलते है। लेकिन इस बारें में मुसलमानों की हदीस में कोई जिक्र नहीं है, कि अलविदा के दिन नए कपड़े पहने या कोई खास तैयारी करें। इसके साथ ही कारी गोरा का कहना है कि इस्लाम में सिर्फ दो ही त्योहार सबसे ज्यादा अहमियत रखते हैं और वो ईद और बकरीद हैं। दार ए अरकम एजुकेशन सेंटर के मुफ्ती अहमद अरशद खान के मुताबिक, रमजान के महीने में सवाब (पुण्य) सत्तर गुना बढ़ जाता है। अलविदा जुमे को लेकर मुफ्ती अरशद खान ने बताया कि इस्लाम में आखिरी जुमे को लेकर अलग से कोई फजीलत नहीं है। जैसे रमजान के बाकी जुमे होते हैं वैसे ही ये जुमा भी होता है। Alvida Jumma 20247.2 तीव्रता के भूकंप से दहला ताइवान, जापान के दो द्वीपों में आई सुनामी
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अलविदा जुमे की मुसलामनों में फज़ीलत
आपको बता दें कि रमजान के महीने में मुसलमान पूरे 29 या 30 दिन रोजे रखते है यानी करीब चार हफ्ते रोजे की मुद्दत होती है। इन चार हफ्तों आखिरी जुमा अलविदा जुमा होता है। अलविदा जुमा रमजान पाक के तीसरे अशरे (आखिरी 10 दिन) में आता है। मुसलमानों की हदीस के मुताबिक, रमजान का महीना वो पाक महीना होता है, जिसमें हर नेकी और इबादत के बदले 70 गुना ज्यादा सवाब (पुण्य) अल्लाह पाक मुसलानों को देते है।भारत में अलविदा जुमा को लेकर क्या है परंपरा
मुसलामनों के लिए अलविदा जुमा बाकि जुमे से खास माना जाता है, क्योंकि यह रमजान के महीने में पढ़ता है, भारत में अलविदा जुमा के दिन मजिस्दों में नमजियों की ज्यादा से ज्यादा रौनक देखने को मिलती। इसके लिए मजिस्दों में भी खास तैयारी की जाती है। सुबह के टाइम पूरे मजिस्दों में अच्छे से साफ-सफाई होती है। जिनका रोजा होता है नये और साफ कपड़े पहनकर इत्र (खुशबू) लगाकर नमाज के लिए घर से बाहर जाते हैं और मस्जिदों में इबादत करते हैं। इस दिन लोगों में खासा उत्साह रहता है और वो लोग पूरे जोश-व-खरोश के साथ इस नमाज़ का एहतिमाम करते हैं। बच्चों में इसको लेकर खासा दिलचस्पी देखने को मिलती है। इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, अलविदा की नमाज में लोग सच्चे दिल से जो जायज दुआ मांगते हैं वो कुबूल होती है और नेक दिल से अदा की गई नमाज से अल्लाह की रहमत और बरकत मिलती है। रमजान के महीने में हर इंसान के अल्लाह गुनाह माफ कर देता है। इस दौरान फर्ज (जरूरी) के साथ ही कई नफिल (अतिरिक्त) नमाजें भी पढ़ी जाती हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा सवाब मिल सके। इसके अलावा कुरान की तिलावत होती है और गरीब-जरूरतमंद लोगों की मदद भी की जाती है।Alvida Jumma 2024
अलविदा जुमा को लेकर क्या कहते हैं इस्लामिक स्कॉलर
आपकी जानकारी के लिए बता दें अलविदा जुमा के बारें में दारुल उलूम, देवबंद के कारी इशाक गोरा कहते हैं कि रमजान का महीना बेहद पाक होता है और जुमे का अपना अलग महत्तव है। रमजान के बाकी जुमों से अलग अलविदा जुमा के लिए लोगों के अंदर अलग ही खुशी रहती है। यही वजह है कि लोग नए कपड़े पहनकर और इत्र लगाकर नमाज के लिए घर से निकलते है। लेकिन इस बारें में मुसलमानों की हदीस में कोई जिक्र नहीं है, कि अलविदा के दिन नए कपड़े पहने या कोई खास तैयारी करें। इसके साथ ही कारी गोरा का कहना है कि इस्लाम में सिर्फ दो ही त्योहार सबसे ज्यादा अहमियत रखते हैं और वो ईद और बकरीद हैं। दार ए अरकम एजुकेशन सेंटर के मुफ्ती अहमद अरशद खान के मुताबिक, रमजान के महीने में सवाब (पुण्य) सत्तर गुना बढ़ जाता है। अलविदा जुमे को लेकर मुफ्ती अरशद खान ने बताया कि इस्लाम में आखिरी जुमे को लेकर अलग से कोई फजीलत नहीं है। जैसे रमजान के बाकी जुमे होते हैं वैसे ही ये जुमा भी होता है। Alvida Jumma 20247.2 तीव्रता के भूकंप से दहला ताइवान, जापान के दो द्वीपों में आई सुनामी
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