आखिर क्यों सही से काम नहीं कर पा रही साहित्य अकादमियां ?

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Sahitya Akademi Awards controversy
locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Nov 2025 09:17 AM
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Sahitya Akademi Awards controversy : पिछले दशकों में पुरस्कारों की बंदर बांट कथित साहित्यकारों, कलाकारों और अपने लोगों को प्रस्तुत करने के लिए विशेष साहित्यकार, पुरोधा कलाकार, साहित्य ऋषि जैसी कई श्रेणियां बनी है। जिसके तहत विभिन्न अकादमियां एक दूसरे के अध्यक्षों को पुरस्कृत कर रही है और निर्णायकों को भी सम्मान दिलवा रही है। इन पुरस्कारों में पारदर्शिता का अभाव है। राज्य अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां संदिग्ध है। जो कार्य एक वर्ष में पूर्ण होने चाहिए उनको करने में सालों लग रहें है। पुरस्कारों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया स्पष्ट और समयानुसार नहीं है। साहित्य किसी भी देश और समाज का दर्पण होता है। इस दर्पण को साफ़-सुथरा रखने का काम करती है वहां की साहित्य अकादमियां। लेकिन सोचिये क्या होगा? जब देश या राज्य का आईना सही से काम न कर रहा हो तो वहां की सरकार पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। जी हाँ, ऐसा ही कुछ हो रहा है देश के राज्यों की साहित्य अकादमियों में। किसी भी राज्य की साहित्य अकादमी के अध्यक्ष है होते हैं राज्य के मुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री जिस संस्था के अध्यक्ष हो वही संस्था अगर सही से काम न करें तो बाकी संस्थाओं की स्थिति का अंदाज़ा आप लगा सकते है।

क्यों संदिग्ध है अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां ?

-डॉ. सत्यवान सौरभ आज हम देखते हैं कि अधिकांश साहित्य और कला अकादमियों के मंच पर पुरस्कृत होने वाले लोगों में अधिकतर को कोई जानता भी नहीं है। यह सच है कि आज जितनी राजनीति में राजनीति है उससे अधिक राजनीति साहित्य और कलाओं में है। प्रेमचंद ने साहित्य को राजनीति के आगे जलने वाली मशाल कहा था। लेकिन देश भर में आज साहित्य राजनेताओं के पीछे चल रहा है। पिछले दशकों में हुए साहित्य, संस्कृति और भाषा के पतन का असर आगामी पीढ़ियों तक जाएगा। लेकिन किसे फिक्र है। राज्य अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां संदिग्ध है। जो कार्य एक वर्ष में पूर्ण होने चाहिए उनको करने में सालों लग रहें है। पुरस्कारों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया स्पष्ट और समयानुसार नहीं है। उदाहरण के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी के वार्षिक परिणामों की घोषणा का साल खत्म होने को है, मगर अभी तक नहीं हुई है। न ही आगामी साल का प्रपत्र जारी किया गया है। एक अकादमी के भीतर क्या- क्या खेल चलते है ? पारदर्शिता के अभाव में किसी को पता नहीं चलता। वैसे कोई भी पुरस्कार या सम्मान उत्कृष्टता का पैमाना नहीं हो सकता। हिंदी भाषा में निराला, मुक्तिबोध, फणीश्वरनाथ रेणु, धर्मवीर भारती, राजेंद्र यादव, असगर वजाहत जैसे महत्वपूर्ण कवियों-लेखकों को भी साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं दिया गया और बहुत से ऐसे लेखकों को पुरस्कृत किया गया, जिन्हें कभी का भुलाया जा चुका है। इस बारे में विचार करना चाहिए और पुरस्कार की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए। आज जिस प्रकार से सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कुछ योग्य एवं अयोग्य साहित्यकार, कवि, लेखक, कलाकार साम-दाम-दण्ड-भेद सब अपना रहे हैं और अपने प्रयासों में प्रायः सफल भी हो रहे हैं, उससे सम्मानों और पुरस्कारों के चयन की प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। पुरस्कारों की दौड़ में साहित्य का भला नहीं हो सकता। *पुरस्कारों की दौड़ में खोकर, भूल बैठे हैं सच्चा सृजन । लिख के वरिष्ठ रचनाकार, करते है वो झूठा अर्जन ।। मस्तक तिलक लग जाए, और चाहे गले मे हार । बड़े बने ये साहित्यकार।।* Sahitya Akademi Awards controversy आज साहित्य और कला जगत में बहुत सी संस्थाएं काम कर रही है। जब मैं इन संस्थाओं की कार्यशेळी देखता हूँ या इनके समारोहों से जुडी कोई रिपोर्ट पढ़ता हूँ तो सामने आता है एक ही सच। और वो सच ये है कि किसी क्षेत्र विशेष या एक विचाधारा वाली संस्थाएं आपस में अग्रीमेंट करके आगे बढ़ रही है। ये एग्रीमेंट यूं होता है कि आप हमें सम्मानित करेंगे और हम आपको। और ये सिलसिला लगातार चल रहा है अखबारों और सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरता है। खासकर ये ऐसी खबर शेयर भी खुद ही आपस में करते है। आम पाठक को इससे कोई ज्यादा लेना देना नहीं होता। अब बात करते है सरकारी संस्थाओं और पुरस्कारों की। इनकी सच्चाई किसी से छुपी नहीं। जिसकी जितनी मजबूत लाठी, उतना बड़ा तमगा। सिफारिशों के चौराहों से गुजरते ये पुरस्कार पता नहीं, किस को मिल जाये। किसी आवेदक को पता नहीं होता। इनकी बन्दर बाँट तो पहले से ही जगजाहिर है। ऐसे पुरस्कारों की विश्वसनीयता को लेकर देश भर में गंभीर आरोप लग रहे हैं। सच्चा रचनाकार इनके चक्कर में कम ही पड़ रहा है। *अब चला हाशिये पे गया, सच्चा कर्मठ रचनाकार । राजनीति के रंग जमाते, साहित्य के ये ठेकेदार ।। बेचे कौड़ी में कलम, हो कैसे साहित्यिक उद्धार । बड़े बने ये साहित्यकार।।* आज संस्थाएं एक दूजे की हो गयी है। एक दूसरे को सम्मानित करने और शॉल ओढ़ाने में लगी है। सरकारी पुरस्कार बन्दर बाँट कहे या लाठी का दम। जितनी जान-पहचान उतना बड़ा तमगा। ये प्रमाण पुरस्कार विजेताओं की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं। आज देशभर की साहित्य अकादमियां पद और पुरस्कारों की बंदर बांट करने में लगी है।अधिकांश अकादमियों के कामकाज को देखकर तो यही लगता है। जब तक विशेषज्ञता के क्षेत्र में राजनीतिक नियुक्तियां होती रहेगी तब तक ऐसी दुर्घटनाएं होती रहेगी। सिविल सेवा कमिशन और प्रदेशों की अकादमी में सदस्यों और अध्यक्षों की राजनीतिक नियुक्तियों ने इन संस्थाओं की विशेषज्ञता पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं। पिछले दशकों में पुरस्कारों की बंदर बांट कथित साहित्यकारों, कलाकारों और अपने लोगों को प्रस्तुत करने के लिए विशेष साहित्यकार, पुरोधा कलाकार, साहित्य ऋषि जैसी कई श्रेणियां बनी है। जिसके तहत विभिन्न अकादमियां एक दूसरे के अध्यक्षों को पुरस्कृत कर रही है और निर्णायकों को भी सम्मान दिलवा रही है। इन पुरस्कारों में पारदर्शिता का अभाव है। बिना साधना के कैसा साहित्य? Sahitya Akademi Awards controversy *देव-पूजन के संग जरूरी, मन की निश्छल आराधना ।। बिना दर्द का स्वाद चखे, न होती पल्लवित साधना ।। बिना साधना नहीं साहित्य, झूठा है वो रचनाकार । बड़े बने ये साहित्यकार।।* अब समय आ गया है कि देश की सभी राज्य अकादमियों को केंद्रीय साहित्य अकादमी की तरह सचमुच स्वायत बनाया जाए और इनका काम पूरी तरह से साहित्यकारों, कलाकारों को सौंपा जाए। किसी भी अकादमी के वार्षिक कार्यों की प्रगति समयानुसार और पूरी तरह पारदर्शी बनाने पर जोर देना होगा ताकि सच्चे साहित्यकारों का विश्वास उन पर बना रहे। उदाहरण के लिए हरियाणा हिंदी साहित्य अकादमी के वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा जिसका राज्य के साहित्यकार बेसब्री से इंतज़ार करते है, के वर्ष 2022 के परिणाम अभी 2024 में भी जारी नहीं हुए है। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते है कि समाज को आईना दिखाने वाले किस क़द्र सोये पड़े है। हरियाणा हिंदी साहित्य अकादमी हर वर्ष 12 से अधिक साहित्यिक पुरस्कार जिसमें एक लाख से सात लाख तक की पुरस्कार राशि दी जाती है और श्रेष्ठ कृति के अंतर्गत पद्रह सौलह विधाओं में 31 -31 हज़ार रुपये की राशि सम्मान स्वरुप प्रदान करती है। इन पुरस्कारों के अलावा वर्ष भर की श्रेष्ठ पांडुलिपियों को चयनित कर उन्हें प्रकाशन अनुदान प्रदान करती है। लेकिन हरियाणा में सरकारी भर्तियों की तरह ये भी बड़ा दुखद है कि जो परिणाम अगस्त में घोषित होने थे; वो अगले साल कि जनवरी बीत जाने के बाद भी नहीं घोषित किये गए न ही साल 2023 का प्रपत्र जारी किया गया जिसमें आने वाले साल के लिए साहित्यकारों को आवेदन करना होता है; आखिर क्यों ? Sahitya Akademi Awards controversy उम्मीद है कि राज्य सरकारें अकादमियों के वर्तमान विवादास्पद कार्यों की जांच कराएगी और अकादमी में योग्य और प्रतिभाशाली लेखक, कलाकारों को नियुक्त करेगी। ताकि देश भर पर भाषा, साहित्य और संस्कृति नित नए आयाम गढ़ती रहे। नोट : यह लेखक के अपने विचार हैं।

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अमित शाह ने किया बड़ा ऐलान: इस नेता को एडवांस में बनाया मंत्री

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Amit Shah In Bihar
locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Nov 2025 04:03 AM
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Amit Shah In Bihar : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज बिहार के दौरे पर हैं (Amit Shah In Bihar)। बिहार के आरा में उन्होंने वीर कुंवर सिंह स्टेडियम में चुनावी सभा को संबोधित किया। बड़ी संख्या में आए लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पांच चरण के चुनाव हो चुके हैं और कल छठे चरण का चुनाव है ।

मोदी जी को 310 सीटें मिल चुकी है ,अमित शाह ने किया बड़ा ऐलान

Amit Shah In Bihar

लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा,मैं आप लोगों को बताना चाहता हूं कि मोदी जी को 310 सीटें मिल चुकी है। अमित शाह ने चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हम बीजेपी वाले हैं, हम एटम बम से भी नहीं डरते । उन्होंने कहा कि जल्द ही POK भी भारत का हिस्सा होगा। POK हमारा है और हम उसे लेकर रहेंगे। हमने 370 समाप्त किया, नक्सलवाद समाप्त किया। तीसरी बार मोदी जी को पीएम बना दो, छत्तीसगढ़ में भी नक्सल समाप्त कर देंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी और लालू यादव मंदिर नहीं बनने दे रहे थे। मोदी जी ने अपने दूसरे पांच साल में केस भी जीता और मंदिर भी बना दिया।

इंडिया गठबंधन देश में बुरी तरह से हार रहा है : अमित शाह

उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन देश में बुरी तरह से हार रहा है। वह बोले हम इंडिया गठबंधन वालों की तरह डरने वाले नहीं है। हम एटम बम से भी नहीं डरते हैं । अमित शाह ने बिहार के आरा में बीजेपी के प्रत्याशी आर के सिंह के लिए वोट मांगा। उन्होंने कहा कि आर के सिंह को हम अभी से एडवांस में सरकार का मंत्री घोषित करते हैं। अमित शाह ने इंडिया गठबंधन पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह लोग ओबीसी का आरक्षण छीन कर मुसलमान को देना चाहते हैं । हम मुसलमान का आरक्षण खत्म कर देंगे। साथ ही उन्होंने लोगों से यह भी कहा कि लालू यादव, यादवों का भी भला नहीं करते वह सिर्फ अपने परिवार और अपने बच्चों का ही भला कर सकते हैं।

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बैंकों में पड़ा है 42 हजार करोड़ कैश, लेने वाला कोई नहीं !

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Unclaimed Bank Diposits 
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 03:22 AM
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Unclaimed Bank Diposits  : कई भारतीय बैंकों से मिली जानकारी के मुताबिक एसबीआई और पंजाब नेशनल बैंक समेत कई सरकारी बैंकों में 42000 करोड़ से भी अधिक का धन ऐसा है जिसे लेने वाला कोई नही है। दुनिया भर में कोविड से करोड़ों लोगों की मौत हो गई थी। भारत पर इससे अछूता नहीं रहा था । कोविड के तूफान ने लाखों परिवारों को लील लिया था। कई लोगों की असमय ही मौत हो गई थी, कई परिवार अनाथ हो गए थे। ऐसे में आर्थिक चीजों का ध्यान कौन रख पाता ।

बैंकों में 42000 करोड़ से भी अधिक का धन है जिसे क्लेम करने वाला कोई नहीं

कोविड के 2 साल बीत जाने के बाद भी कई भारतीय बैंकों से मिली जानकारी के मुताबिक एसबीआई (SBI) और पंजाब नेशनल बैंक (PNB) समेत कई सरकारी बैंकों में 42000 करोड़ से भी अधिक का धन है जिसे क्लेम करने वाला कोई नहीं है। माना जा रहा है कि यह उन लोगों के खाते हो सकते हैं जिनकी कोविड में मौत हो गई या उनके परिवार को इसके बारे में कुछ पता नहीं था । और केवल सेविंग खाते ही नहीं, ऐसे फिक्स डिपाजिट खाते भी हैं जिनकी जानकारी लेने वाला  कोई नहीं है। यह सभी खाते इन ऑपरेटिव (in operative) पड़े हैं। आपको बता दें कि इतनी बड़ी रकम इन बैंकों में यूं ही पड़ी है। हालांकि पहले भी ऐसा होता था लेकिन कोविड के बाद इस तरह के पैसे में ढाई गुना तक की वृद्धि देखी गई है और अधिकांश मामलों में यह वह बचत खाते हैं जो इन ऑपरेटिव हो गए हैं या काफी दिनों से उसमें कोई लेनदेन नहीं हो रहा है।

Unclaimed Bank Diposits में ढाई गुना तक की वृद्धि

कई ऐसे फिक्स डिपाजिट भी हैं जिनको लेने या तोड़ने कोई नहीं आया है। यह वह Unclaimed Bank Diposits है जो बैंक के पास यूं ही पड़ा है । कोविड के दौरान लोगों की जिंदगियां उथल-पुथल हो गई थी। लोगों की जिंदगी में भूचाल आ गया था । एक आंकड़े के मुताबिक भारतीय बैंकों में दिसंबर 2022 में लगभग 39 हजााऱ करोड़ की ऐसी धनराशि थी जिसका क्लेम करने वाला कोई नहीं था। जबकि 2019 में बैंकों में अनक्लेम़ड धनराशि 18379 करोड़ थी जो की कोविड के बाद दिसंबर 2022 में बढ़कर 39900 करोड रुपए हो गई थी Unclaimed राशि में इतनी बड़ी वृद्धि कोविड के बाद ही देखी गई थी। देश भर में सभी तरह के बैंक चाहे पब्लिक सेक्टर बैंक हो या प्राइवेट सेक्टर, फॉरेन खाते या फिर ग्रामीण बैंक सभी बैंकों में कुल मिलाकर इस तरह की राशि मार्च 2023 में 42270 करोड़ की Unclaimed राशि ब गई और यह आंकड़ा भारत की संसद द्वारा सामने लाया गया ।

क्या होता है Unclaimed Bank Diposits का

आपको बता दे कि भारत के सबसे बड़े पब्लिक सेक्टर बैंक एसबीआई में यह राशि सबसे ज्यादा है, जहां 8000 करोड़ से भी अधिक की राशि Unclaimed है। दूसरे नंबर पर पंजाब नेशनल बैंक में 5000 करोड़ से भी अधिक की राशि Unclaimed है। इसके अलावा प्राइवेट सेक्टर के बैंक की बात करें तो आइसीआइसीआइ (ICICI BANK) बैंक में भी 1000 करोड़ से अधिक की राशि Unclaimed है। ऐसे ही एचडीएफसी बैंक (HDFC) में 447 करोड़ की राशि Unclaimed है। कोविड के बाद, बिना किसी नामांकन के, मृत ग्राहकों के खातों और जमा के कारण शेष राशि में वृद्धि हुई है। आर्थिक विशेषज्ञो का कहना है, कभी-कभी नामांकित व्यक्ति दावा करने के लिए आगे नहीं आते हैं। जमा का दावा करने के लिए किसी को भी उनकी शाखाओं में जाना होता है। और यदि आप कानूनी उत्तराधिकारी हैं, तो पैसे का दावा करने से पहले आपको बहुत सारे दस्तावेज़ों को पूरा करना होता है , जिसमेँ काफी जटिलताओं का सामना करना पड़ता है।

आरबीआई ने बनाया ऑनलाइन पोर्टल UDGAM

इससे निपटने के लिए, आरबीआई (RBI ) ने पिछले साल एक ऑनलाइन पोर्टल UDGAM (लावारिस जमा-सूचना तक पहुंचने का प्रवेश द्वार) भी लॉन्च किया था, ताकि उपयोगकर्ताओं को केंद्रीकृत तरीके से कई बैंकों में दावा न किए गए जमा की खोज करने में मदद मिल सके। मार्च 2024 तक, 30 बैंक UDGAM का हिस्सा बन चुुुके हैं, जो लावारिस धन पर जानकारी प्रदान करते हैं। आरबीआई ने बैंकों को बड़ी लावारिस रकम की नियमित समीक्षा करने और ऐसे ग्राहकों तक पहुंचने का भी निर्देश दिया है। विश्लेषकों का कहना है कि अकाउंट एग्रीगेटर प्रणाली जैसी तकनीक-संचालित पहल, जो किसी व्यक्ति के सभी बैंक खातों को एक केंद्रीय ढांचे से जोड़ती है, बैंकों के पास पड़े लावारिस धन को कम करने में मदद कर सकती है।

रेलवे का ये शेयर भाग रहा बुलेट ट्रेन से भी तेज,5 दिन में सौ रूपये बढ़ा भाव