UP Election Result 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजो ने यूपी की सियासत में भारतीय समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के लिए सत्ता और विपक्ष की भूमिका तो तय कर दी है।
लेकिन इन नतीजों ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) के अस्तित्व पर बड़े सवाल खड़े कर दिए है। इस बात पर डिस्कशन तेज हो गई है कि, क्या BSP अपना जनाधार खो चुका है? क्या मायावती का जादू खत्म हो चूका है? क्या BSP अपना मूल वोट बैंक भी नहीं बचा पा रही है?
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क्या अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है BSP
38 साल पहले 1984 में बनी BSP, UP Election Result 2022 के इलेक्शन में आते-आते अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है ऐसा लगता है। पड़ाव पर पहुच चुकी है, ऐसा लगता है। जिस BSP ने 2007 में यूपी में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, वही बसपा 10 साल में सिमटकर एक विधायक पर आ गई है।
2022 के चुनाव में सिर्फ एक विधायक (रसड़ा से उमाशंकर सिंह) ने ही जीत हासिल की है, बसपा के बाकी सभी प्रत्याशी चुनाव हार चुके हैं।
2017 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के 19 विधायक थे, लेकिन 2022 आते-आते बहुजन समाज पार्टी में 3 विधायक बचे थे. बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती के कभी खास सिपहसालार रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी, राम अचल राजभर, लाल जी वर्मा जैसे नेता बसपा छोड़कर चले गए।
BSP जिस सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) के सहारे सत्ता का सुख ले चुकी है, वह Social Engineering का फार्मूला 2012 के बाद ऐसा पटरी से उतरा कि आज बहुजन समाज पार्टी का अपना मूल वोटर तक जा चुका है।
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क्यों बनी थी बसपा? (UP Election Result)
दलितो में राजनैतिक चेतना जगाने के नाम पर, काशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना हुई थी। दलितों में चेतना और आपसी राजनीति एकता बढ़ाने के लिए शुरू कि गए कांशीराम के मिशन को मायावती ने राजनैतिक मुकाम दिलाया था।
लेकिन 2012 में जैसे सत्ता गई वैसे वैसे 10 साल बाद 2022 में मायावती एक विधायक के आंकड़े पर सिमट गए। चुनाव दर चुनाव बसपा का गिरता वोटिंग ग्राफ 2022 के चुनाव में बिल्कुल खात्मे पर आ गया. अगर आंकड़ों में समझें, तो 1990 के बाद से बहुजन समाज पार्टीने अपने वोट बैंक में थोड़ा इजाफा हुआ।
1993 से बहुजन समाज पार्टीने विधानसभा चुनावों में 65 से 70 सीटो पर जीतना शुरू किया। 2002 में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली बहुजन समाज पार्टी का वोट प्रतिशत 23% पार कर गया।
2007 में बहुजन समाज पार्टी को सबसे ज्यादा याने 40.43% वोट मिले थे और उसने अपने दम पर सरकार बनाई थी।
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क्यों सिमटता गया बसपा का जनाधार?
लेकिन बादमे बहुजन समाज पार्टी का पतन भी शुरू होने लगा। टिकट देने के नाम पर वसूली (Recovery) की चर्चा आम हो गई। खुद को दलितो की देवी के तौर पर स्थापित करने के लिए लखनऊ, नोएडा में स्मारक तो बनवाए ही लेकिन दलितो के उत्थान के लिए ऐसा कोई काम नहीं कर पाए जिससे दलितों के वोट रोके जा सके।
इसी दौरान, राम मंदिर आंदोलन के बाद से लगातार वनवास पर रही भारतीय समाज पार्टी की सत्ता में वापसी हुई, तो उसने सबसे पहले BSP के मूल दलित वोट बैंक पर निशाना बनाया।
हर विधान सभा में दलित वोटो की निर्णायक भूमिका को देखते हुए भारतीय समाज पार्टी ने BSP के मूल कैडर के नेताओ को पार्टी में शामिल करवाया।
असीम अरुण, बृजलाल जैसे तमाम अफसरों को भारतीय समाज पार्टी में जगह दी गई। 2014 में वाराणसी से प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव लड़ने के बाद से ही OBC और SC वोटरों पर भारतीय समाज पार्टीने काम करना शुरू कर दिया।
इसका नतीजा ये रहा कि 2017 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी 19 सीटों पर सिमट गई और 2022 में तो बसपा सिर्फ एक सीट रसड़ा जीत पाई।
2022 में भारतीय समाज पार्टी ने दोबारा सत्ता हासिल की तो इसका सबसे बड़ा कारण बहुजन समाज पार्टी की कमजोरी और उसके मूल वोटर का भारतीय समाज पार्टी में शामिल होना बताया जा रहा है।